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socialist leader DalshringarDubey is the Hero of Dr. Ram Manohar Lohiya's book 'Will to Power'

डॉ. राममनोहर लोहिया की चर्चित किताब ‘विल टू पॉवर’ का हीरो है गाजीपुर का यह सोशलिस्ट लीडर

डॉ. राममनोहर लोहिया अपनी चर्चित किताब ‘विल टू पॉवर’ में लिखते हैं कि, “अपने जीवन में यदि आद्योपान्त कोई हीरो रहा है तो वह हैं दलश्रृंगार दूबे। वीरता, स्वत: स्फूर्ति और जिन्दगी की पकड़ तीनों में कोई उनका मुकाबला नहीं कर सकता। दलश्रृंगार दूबे मामूली आदमी नहीं हैं, इस प्रदेश के सबसे बड़े मंत्री जितना दावा कर सकते हैं उतने समय से वे आजादी की लड़ाई में रहे हैं हांलाकि वे साहस एवं वीरता में अकेले हैं।”1

जी हां, यह स्टोरी है गाजीपुर जिले के करण्डा ब्लॉक के ब्राह्मणपुरा गांव में जन्मे दलश्रृंगार दूबे की जिनका जन्म 6 सितम्बर 1904 को हुआ था। दलश्रृंगार दूबे के पिता का नाम सहदेव दूबे तथा माता का नाम श्रीमती लाखी देवी था। दलश्रृंगार दूबे 19 वर्ष की उम्र से ही स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भागीदारी करने लगे थे।2

असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय वह अपने आसपास के क्षेत्रों में महात्मा गांधी के संदेशों को प्रचारित-प्रसारित करते रहे। साल 1992 में अपनी मां से चार आना मांगकर कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की। असहयोग आन्दोलन के समय दलश्रृंगार दूबे की गिरफ्तारी न होने की असली वजह यह थी कि ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाने वाली यह गिरफ्तारी मुख्य रूप से शहरों तक ही सीमित थी।3

ग्राम पंचायत में आने वाली प्रमुख पत्रिकाओं में से गणेश शंकर विद्याथी की पत्रिका ‘प्रताप’ तथा ‘अभ्युदय’ का प्रभाव दूबेजी के व्यक्तित्व पर पड़ा। जिस समय असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन अपने चरम पर था, उस समय सरोजिनी नायडू, सत्यवती देवी, जवाहरलाल नेहरू, आत्माराम, इन्द्रवर्मा आदि के आगमनों तथा भाषणों से गाजीपुर की जनता आन्दोलन में कूद पड़ी।4

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साल 1922 से 1930 के बीच कानपुर, कलकत्ता की यात्रा करने के अलावा दलश्रृंगार दूबे अध्यापन कार्य करते हुए भी गांवों में भारतीय राष्ट्रवाद और स्वराज का प्रचार-प्रसार करते रहे। इस दौरान दूबे​जी कितनी बार जेल गए, इसकी कोई गिनती नहीं है। इन नौ वर्षों में दलश्रृंगार दूबे पर आर्य समाज और कबीरपंथ का गहरा प्रभाव पड़ा। इन पर कबीर पंथ की शिक्षा एवं साधना में बलिया जिले के सदाफल स्वामी का विशेष योगदान रहा। इनके गुरूभाई प्रकाशानन्द जी बाद में भारत के अग्रणी कबीर पंथी साधक के रूप में विख्यात हुए।5

वर्ष 1934 में दलश्रृंगार दूबे अपने संस्मरण में लिखते हैं कि “लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता भारत का लक्ष्य घोषित हो चुका था। मैं अपनी सहधर्मिणी महारानी देवी की चिकित्सा के लिए इलाहाबाद गया था, उसी बीच समाचारपत्रों में प्रकाशित हुआ कि पुरूषोत्तमदास टंडन पार्क में 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वाधीनता दिवस मनाया जाएगा। वहां मोतीलाल नेहरू के सभापतित्व में पुरूषोत्तमदास टंडन द्वारा पूर्ण स्वाधीनता दिवस का प्रस्ताव पढ़े जाने पर उपस्थि​त लोगों में मै सपत्नीक सम्मिलित था, मैंने उस प्रतिज्ञा को हृदयंगम कर लिया।”6

महात्मा गांधी द्वारा नमक सत्याग्रह की घोषणा के बाद दलश्रृंगार दूबे ने 20 अप्रैल 1930 को अपने अध्यापन कार्य से एक दिन का अवकाश लेकर जिले के प्रथम सत्याग्रही के रूप में कांग्रेस शिविर में उपस्थित होते हुए सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। 26 अप्रैल 1930 को ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में तकरीबन पांच हजार नागरिकों ने गाजीपुर में नमक बनाया। ऐसे में 11 जून 1930 को कांग्रेस पदाधिकारी की गिरफ्तारी की वजह से दूबेजी को जिला कांग्रेस का मंत्री बनाया गया। पूरे प्रान्त में गाजीपुर नमक सत्याग्रह में प्रथम घोषित हुआ।7

जिन दिनों गाजीपुर जिले में सत्याग्रह का काम जोरों पर था, तब अनेक कांग्रेसी नेताओं को सूर्योदय से पूर्व ही गिरफ्तार कर लिया गया था। दलश्रृंगार दूबे चेचक के प्रभाव तथा शारीरिक कष्ट में होने के बावजूद भी गिरफ्तार कर लिए गए और 11 दिन हवालात में रहने के बाद 30 जुलाई 1930 को नमक कानून के अन्तर्गत 6 माह की सजा हुई।8

जेल से छूटने के बाद दूबेजी पुन: सत्याग्रह संचालन में जुट गए और थोड़े ही दिनों बाद सर्वसम्मति से गाजीपुर जिले का सत्याग्रह संचालक, जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री, तहसील कमेटी के प्रभारी तथा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य निर्वाचित हुए।9

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13 अगस्त 1933 ई. को दलश्रृंगार दूबे फिर से व्यक्तिगत सत्याग्रह के आरोप में गिरफ्तार हुए। करीब आठ मास के जेल प्रवास के बाद 1934 ई. में आप बाहर आए और जेल से छूटते ही गजानन्दजी के साथ भूकम्प पीड़ितों की सहायता के लिए बिहार चले गए। मई 1934 में पटना में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अधिवेशन के बाद डॉ. सम्पूर्णानन्दजी के साथ पूर्वी जिलों में इसकी शाखा स्थापित करने हेतु प्राणप्रण से जुट गए। इतना ही नहीं 1936 में किसान सभा की स्थापना के दौरान गाजीपुर में किसान आन्दोलन के जनक स्वामी सहजानन्दजी को अपना भरपूर सहयोग दिया।10

सन् 1937 के विधानसभा चुनाव के अवसर पर दूबेजी को जिला कांग्रेस संसदीय समिति का सचिव निर्वाचित किया गया। कांग्रेस उम्मीदवारों की महती सफलता के बाद 1938 में आपको बलिया जिले का संगठनकर्ता नियुक्त किया गया, वहां आपने चुनाव संचालन किया। 31 दिसम्बर 1939 ई. को बस्ती (डुमरियागंज) में आपकी गिरफ्तारी हुई और 8 जून 1940 को एक वर्ष की सजा सुनाई गई। सजा के दौरान आपका स्थानान्तरण बस्ती जेल से बनारस सेन्ट्रल जेल में कर दिया गया। इस दौरान दामोदरस्वरूप सेठ, विश्वम्भरदयाल त्रिपाठी, बालकृष्ण शर्मा, व्यंकटेश नारायण तिवारी जेल जीवन के साथी बने।11

गाजीपुर में प्रथम 6 मासीय जेल प्रवास के दौरान चन्द्रभान गुप्ता (पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश) और दूबेजी एक ही बैरक में पूरे समय तक रहे और आजीवन इनमें एक दूसरे के प्रति मंगल कामना की भावना बनी रही। सन 1933-34 में बिहार यात्रा के दौरान लोकनायक जयप्रकाश, डॉ. राममनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्रदेव और सम्पूर्णानन्दजी से सम्पर्क स्थापित हुआ जो आजीवन की मित्रता और विचारों की एकता में परिवर्तित हो गया। इन वर्षों में श्रीप्रकाश, शचीन्द्र सन्याल, जवाहरलाल नेहरू से भी दूबेजी के प्रगाढ़ राजनीतिक सम्बन्ध विकसित हुए। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अन्य नेताओं में अशोक मेहता, लाल बहादुर शास्त्री, केशवदेव मालवीय तथा बालकृष्ण केसकर से दूबेजी के राजनीतिक और व्यक्तिगत रिश्ते थे।12

साल 1938 में पूर्वांचल के बलिया, बस्ती तथा रायबरेली जिले में दलश्रृंगार दूबे ने किसान आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में गांधीजी द्वारा इन्हें जिले का अधिनायक नियुक्त किया गया था। 26 मार्च 1941 को दूबेजी गिरफ्तार हुए और 31 दिसम्बर 1941 को जेल से बाहर आए। मई-जून 1942 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री लालबहादुर शास्त्री और केशवदेव मालवीय के निर्देश पर भारत छोड़ो आन्दोलन की भूमिगत तैयारियों के लिए दलश्रृंगार दूबे मेरठ डिवीजन के संयोजक नियुक्त किए गए।

दलश्रृंगार दूबे ने जुलाई 1942 में मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, बुलंदशहर, देहरादून और मुजफ्फरपुर जिलों का व्यापक दौरा किया। बिजनौर तथा पौढ़ी गढ़वाल की तलहटी में स्थित कोटद्वार को प्रस्तावित भूमिगत आन्दोलन का केन्द्र बनाकर कुछ दिनों के लिए आप गाजीपुर वापस लौटे। इस दौरान गाजीपुर की अंग्रेज पुलिस को इनकी गतिविधियों का पता चल चुका था इसलिए घर आते ही इन्हे 9 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया। पैदल चलकर कारावास जाने में असमर्थ होने के चलते इन्हें पुलिस निगरानी में गांव से जिला मुख्यालय तक पालकी में बैठाकर जेल ले जाया गया, इस दौरान क्षेत्र की जनता द्वारा जगह-जगह भावभीनी विदाई दी गई। 13

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अगस्त क्रांति में जेल प्रवास के दौरान दलश्रृंगार दूबे के साथ अभद्र व्यवहार किया गया और 30 बेतों की सजा हुई। जेल से छूटने के बाद भी 21 बेतों के स्पष्ट निशान उनके जेल जीवन के साथियों द्वारा गिने गए। इस घटनाक्रम के दौरान बेतों की निर्दयी मार के बावजूद दूबेजी वंदेमातरम बोलते रहे और बेहोश नहीं हुए, इस निर्मम सजा को देखकर जेल का एक सिपाही बेहोश होकर गिर पड़ा।14

अगस्त 1944 ई. में दूबेजी को रिहा किया गया, शारीरिक अस्वस्थता के बावजूद आपने गाजीपुर जिले का दौरा कर 1942 में सरकार द्वारा की गई ज्यादतियों पर एक रिपार्ट तैयार की। सन् 1943 में शिमला सम्मेलन के बाद प्रान्तीय धाराओं के चुनाव की घोषणा की गई तत्पश्चात दूबेजी जिला संसदीय बोर्ड के सचिव और चुनाव संचालक चुने गए। साल 1946 में आपके नेतृत्व में दो कांग्रेस प्रत्याशी भारी मतों से जीते परन्तु लालबहादुर शास्त्री, मोहनलाल गौतम तथा चन्द्रभान गुप्ता की व्यक्तिगत इच्छा के बावजूद आपने चुनाव नहीं लड़ा।15

जानकारी के लिए बता दें कि कांग्रेस की राजनीति में सोशलिस्टों का दबदबा था और गाजीपुर जिले में दलश्रृंगार दूबे के कारण सोशलिस्ट लीडर बड़े ही प्रभावशाली थे। ऐसे में डॉ. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण को दूबेजी ने गाजीपुर दौरे के लिए आमंत्रित किया। इन दोनों नेताओं के आगमन के दौरान जिले की विभिन्न सभाओं में स्वागतोपरान्त उन्हें थैली भेंट की गई। 1948 में नासिक अधिवेशन के दौरान सोशलिस्टों ने कांग्रेस से अलग होने का निर्णय लिया। इसके बाद 1952 के आमचुनाव ने यह पुष्टि कर दी कि पूरे देश में सोशलिस्ट पार्टी का सर्वाधिक संगठित जिला गाजीपुर था। जिले की आठ विधानसभा सीटों में से तीन और बलिया के एक हिस्से को मिलाकर दो लोकसभा सीटों में से एक सीट  सोशलिस्ट पार्टी को मिली।

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हांलाकि प्रथम आमचुनाव के अप्रत्याशित नतीजों से सोशलिस्ट पार्टी में गहरी निराशा छा गई थी, बावजूद इसके दूबेजी ने पूरी ताकत से  सरकारी तथा गैर सरकारी जोर-जुल्म के खिलाफ व्यापक जनान्दोलन छेड़ दिया जिससे भ्रष्ट पुलिस, सरकारी कर्मचारियों तथा असमाजिक तत्वों में घबराहट फैली। एक वर्ष के व्यापक जनजागरण कार्यक्रम से बौखलाकर जिला प्रशासन और अपराधियों की सांठगांठ से 28 जुलाई 1953 को सादात रेलवे स्टेशन पर दलश्रृंगार दूबे पर प्राण घातक हमला किया गया। इस हमले को प्रदेश के प्रमुख समाचारपत्रों ने कुछ इस प्रकार से प्रकाशित किया-

वाराणसी से प्रकाशित प्रमुख दैनिक समाचारपत्र ‘आज’ ने लिखा कि “प्रजा समाजवादी नेता पर घातक प्रहार, अत्याचार विरोधी सभा से लौटते ही हमला। कबीर चौरा अस्पताल में मजिस्ट्रेट ने व्यापक बयान लिया।”16  इसके बाद वाराणसी के एक अन्य अखबार दैनिक ‘सन्मार्ग’ के अनुसार, “दलश्रृंगार दूबे बुरी तरह घायल, 30-40 चोटें। पुलिस अत्याचार विरोध की प्रतिक्रिया। अस्पताल में मजिस्ट्रेट ने बयान कलम बन्द किया।”17

दैनिक ‘आज’ रिपोर्ट के मुताबिक, “पुलिस अत्याचारों के विरोध में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित सभा से भाग लेकर लौटते समय मंगलवार की रात लगभग सवा नौ बजे सादात थाने के करीब गाजीपुर सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री दलश्रृंगार दूबे पर 15-16 लठैतों ने हमला कर दिया। श्रीदूबे चिन्ताजनक स्थिति में रात में ही कबीरचौरा अस्पताल लाए गए।”18

गाजीपुर सहित अन्य पूर्वी जिलों तथा प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दलश्रृंगार दूबे पर हुए हमले की व्यापक प्रतिक्रिया देखने को मिली। दैनिक ‘आज’ के अनुसार, “गाजीपुर में 4 अगस्त को आम हड़ताल, जुलूस और जनसभा।“ 15 अगस्त तक थानेदार तथा कप्तान को हटाने की मांग स्वीकार न होने पर जुलूस के दौरान सैकड़ों व्यक्ति लाल झंडा लेकर चल रहे थे। जनसभा में दस हजार व्यक्ति उपस्थित थे। इस दौरान फरीद उलहक अंसारी, रामचन्द्र शुक्ल, प्रभुनारायण सिंह एमएलसी, काशीनाथ मिश्र, विधानसभा विरोधी दल के नेता राजनारायण, बलिया के सोशलिस्ट पार्टी के युवा कार्यकर्ता चन्द्रशेखर (बाद में भारत के प्रधानमंत्री) तथा विश्वनाथ गहमरी के भाषण हुए।19

लखनऊ में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए डॉ. राममनोहर लो​​हिया ने कहा कि “अगर आज देश में कोई हीरो है तो वह दलश्रृंगार दूबे हैं। पिछले दिनों दूबेजी की तरह वीरता का प्रदर्शन कही नहीं हुआ है...जुल्म के खिलाफ दूबेजी के मन में लगन है, उसी ने उन्हें मरने नहीं दिया।”20

तकरीबन एक वर्ष तक गहन चिकित्सा चलने के बाद गृह जनपद गाजीपुर आने के दौरान वाराणसी तथा गाजीपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा भव्य स्वागत किया गया। एक जनवरी 1955 को देश में उत्पन्न मंहगाई तथा गरीबी रोकने में असमर्थ सरकार के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तथा जनकष्टों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की मांग की। वर्ष 1955 में ही जयप्रकाश-नेहरू समझौता, अशोक मेहता के पिछड़े अर्थतंत्र की बाध्यताओं के सिद्धान्त, कांग्रेस द्वारा समाजवादी समाज बनाने की घोषणा तथा त्रावणकोर में प्रजा समाजवादी सरकार द्वारा गोली चलवाने जैसे प्रमुख मुद्दों को लेकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अन्दर ही दरार दिखाई देने लगी। पार्टी की एकता के प्रबल पक्षधर होते हुए तथा जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्रदेव तथा अशोक मेहता से घनिष्ट सम्बन्ध होने के बावजूद सिद्धान्तों के आधार पर दलश्रृंगार दूबे ने डॉ. राममनोहर लोहिया का साथ दिया। इसी दौरान ओमप्रकाश दीपक (सेन्ट्रल आफिस, सोशलिस्ट पार्टी, हैदराबाद) द्वारा सम्पादित ‘सोशलिस्ट टार्चेज’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें देश के सर्वप्रमुख सोशलिस्ट लीडर्स के साथ दलश्रृंगार दूबे के चित्र को प्रमुखता से स्थान दिया गया।21

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29 से 31 दिसम्बर 1955 तथा 1 से 3 जनवरी 1956 को डॉ. राममनोहर लोहिया की अध्यक्षता में सोशलिस्ट पार्टी का स्थापना सम्मेलन हैदराबाद में हुआ जिसमें दूबेजी ने डॉ.लोहिया के साथ मिलकर पार्टी संस्थापना में सम्पूर्ण भागीदारी निभाई। इसी वर्ष 28-31 दिसम्बर 1956 को आयोजित सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में सिहोर (मध्यप्रदेश) में दूबेजी राष्ट्रीय समिति के सदस्य निर्वाचित हुए। 22

सन 1957 के चुनाव के बाद सोशलिस्ट पार्टी ने राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह का आह्वान किया। मई 1957 ई. में दूबेजी राज्य सोशलिस्ट पार्टी के सचिव संघर्ष संघर्ष संचालक बनाए गए अत: आपने लखनऊ से आकर गाजीपुर में सफल सत्याग्रह किया जिसमें उन्हें एक महीने का कारावास हुआ।

सन 1958-61 के बीच कांग्रेस की तरफ से चन्द्रभान गुप्ता, कमलापति त्रिपाठी, केशवदेव मालवीय तथा लाल बहादुर शास्त्री के माध्यम से दूबेजी पर कांग्रेस में वापस लौटने का आग्रह होता रहा, जिसमें उत्तर प्रदेश मंत्रिपरिषद में शामिल होने तथा 1962 में कांग्रेस से लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का भी स्पष्ट निमंत्रण मिला लेकिन दूबेजी ने अपने पुराने मित्रों के आग्रह को ठुकरा दिया।

जमानियां (गाजीपुर की एक तहसील) में विनोवा भावे के आगमन पर भोजन करते समय जब चन्द्रभान गुप्ता ने कांग्रेस में आकर मंत्रिपरिषद में सम्मि​लित होने की चर्चा की तो दूबेजी ने कहा, उस कूड़े पर मुझे क्यों बुलाते हों? 23

1967 में डॉ. राममनोहर ​लोहिया के निधन के पश्चात पार्टी की कमान प्रमुख नेताओं श्रीधर महादेव, कर्पूरी ठाकुर, मधुलिमये, राजनारायण और जार्ज फर्नांडीस के हाथों में थी। बाद में राजनारायण और मधुलिमये के आंतरिक विरोध के कारण 1972 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी विभाजित हो गई। ऐसे में राजनारायण और जार्ज फर्नांडीस दूबेजी से मिलने गाजीपुर उनके निवास पर आए। साल 1972 में ही देश की स्वतंत्रता जयंती के शुभ अवसर पर दलश्रृंगार दूबे को ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त 1977 में गाजीपुर में प्रबुद्धजनों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं तथा समाजसेवियों के द्वारा विशाल पैमाने पर दलश्रृंगार दूबे का अभिनन्दन किया गया जिसमें उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामनरेश यादव, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के निर्देश पर आए दो वरिष्ठ मंत्री कपिलदेव सिंह तथा सच्चिदानन्द सिंह भी शामिल थे। इस अभिनन्दन समारोह के बाद कम्यूनिष्ट नेता झारखण्डे राय का लेख ‘दूबेजी एक समाजवादी ऋषि’ प्रकाशित हुआ।24 इसके अतिरिक्त प्रख्यात साहित्यकार डॉ. विवेकी राय का लेख ‘समाजवादी योद्धा ऋषि’ शीर्षक से एक अन्य लेख प्रकाशित हुआ।25

मार्च 1978 में डॉ. दलश्रृंगार दूबे की तबियत खराब हुई और उन्हें ​गाजीपुर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया परन्तु अथक प्रयास के बावजूद पहली मई 1978 को इस जननेता का देहान्त हो गया।

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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

  1. डॉ. राममनोहर लोहिया, विल टू पॉवर, 10 सितम्बर 1953, नेशनल हेराल्ड

2-सत्यमित्र दूबे, अदना सा आदमी : अदम्य संकल्प, 1999, नई दिल्ली

3- डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक, दलश्रृंगार दूबे की कहानी उनकी जुबानी, सन 1997 में लिए गए साक्षात्कार पर आधारित

4- सत्यमित्र दूबे, अदना सा आदमी : अदम्य संकल्प, 1999, नई दिल्ली

5- सत्यमित्र दूबे, अदना सा आदमी:अदम्य संकल्प, 1999, नई दिल्ली

6- दलश्रृंगार दूबे, हस्तलिखित संस्मरण, 1934, गाजीपुर

7- दलश्रृंगार दूबे, हस्तलिखित संस्मरण, 1934, गाजीपुर

8- दलश्रृंगार दूबे, हस्तलिखित संस्मरण, 1934, गाजीपुर

9- दलश्रृंगार दूबे, हस्तलिखित संस्मरण, 1934, गाजीपुर

10-सत्यमित्र दूबे, अदना सा आदमी : अदम्य संकल्प, 1999, नई दिल्ली

11-सत्यमित्र दूबे, अदना सा आदमी : अदम्य संकल्प, 1999, नई दिल्ली

12- सत्यमित्र दूबे, अदना सा आदमी : अदम्य संकल्प, 1999, नई दिल्ली

13- सत्यमित्र दूबे, अदना सा आदमी : अदम्य संकल्प, 1999, नई दिल्ली

14- दलश्रृंगार दूबे के जेल जीवनसाथी हरिद्वार सिंह द्वारा लिखित संस्मरण, गाजीपुर

15- दलश्रृंगार दूबे के जेल जीवनसाथी हरिद्वार सिंह द्वारा लिखित संस्मरण, गाजीपुर

16- दैनिक ‘आज’, वाराणसी, 29 जुलाई 1953

17- दैनिक ‘सन्मार्ग’, वाराणसी, 29 जुलाई 1953

18- दैनिक ‘आज’, वाराणसी, 29 जुलाई 1953

19- दैनिक ‘आज’, वाराणसी, 5 अगस्त 1953

20- डॉ. राममनोहर लोहिया की चर्चित किताब ‘विल टू पॉवर’ से संकलित।

21- ओमप्रकाश दीपक का पत्र, ‘सोशलिस्ट टार्चेज’, हैदराबाद, 5 दिसम्बर, 1956

22- दलश्रृंगार दूबे स्मारक में मौजूद दस्तावेजों एवं संलग्न चित्र से स्पष्ट।

23- सच्चिदानन्द तिवारी, निर्भिकता एवं दृढ़निश्चयी मूर्ति, दलश्रृंगार दूबे के अभिनन्दन अवसर पर लिखित, 9 सितम्बर, 1977

24- झारखण्डे राय, ‘दूबेजी एक समाजवादी ऋषि’, अभिनन्दन परिशि​ष्ट, दैनिक ‘सन्मार्ग’, 9 सितम्बर 1977, वाराणसी

25- डॉ. विवेकी राय, ‘समाजवादी योद्धा ऋषि’, दैनिक ‘जनवार्ता’, सितम्बर, 1977, वाराणसी