पश्चिमी संसार को राजस्थान से परिचित कराने वाले शख्स का नाम है कर्नल जेम्स टॉड। राजपूतों के नवीन इतिहास लिखने का जब भी अवसर आएगा जेम्स टॉड के ऐतिहासिक ग्रन्थों पर आधारित करके लिखा जाएगा। राजस्थान के इतिहास की आधारशिला रखने में जेम्स टॉड का योगदान अतिमहत्वपूर्ण है।
कर्नल जेम्स टॉड ने घोड़े पर बैठकर राजपूताना के इतिहास से संम्बन्धित सामग्री जुटाई थी इसलिए इन्हें ‘घोड़े वाले बाबा’ के नाम से भी जाना जाता है। टॉड ने पुरातत्व, शिलालेख, दस्तावेजों के आधार पर इतिहास लिखने की एक नवीन परम्परा को जन्म दिया। डॉ जे. एस. ग्रेवाल के अनुसार, “जेम्स टॉड एक ऐसा अंग्रेज इतिहासकार था जो युद्ध और राज्यों के संघर्ष पर ही नहीं रूका अपितु उसने सम्पूर्ण इतिहास लिखने का प्रयास किया।”
इस स्टोरी में हम आपको कर्नल जेम्स टॉड के जीवन चरित्र के अतिरिक्त उनके दो प्रमुख ग्रन्थों ‘एनाल्स एण्ड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान’ व ‘ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया’ पर भी प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे जिसके लिए इन्हें ‘राजस्थान के इतिहास का पितामह’ भी कहा जाता है।
कर्नल जेम्स टॉड का जीवन चरित्र
20 मार्च 1782 को इंग्लैण्ड के इसिंलगटन में जन्मे कर्नल जेम्स टॉड मूलतः स्कॉटलैण्ड के निवासी थे । मि. हेनरी टॉड के पुत्र जेम्स टॉड 1798 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना में बतौर सिपाही भर्ती हुए। ठीक दो साल बाद जेम्स टॉड 29 मई 1800 ई. को देशी पैदल फौज की 14वीं रेजीमेन्ट के लेफ्टिनेन्ट नियुक्त किए गए। कर्नल जेम्स टॉड की प्रतिभा से प्रभावित होकर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उन्हें 1801 ई. में दिल्ली के पास एक नहर के सर्वेक्षण का काम सौंपा।
वर्ष 1805 ई. में कर्नल टॉड को दौलत राव सिन्धिया के दरबार में एक अंग्रेजी सैन्य टुकड़ी के अधिकारी पद पर नियुक्त किया गया। वर्ष 1806 ई. में कर्नल टॉड एक अंग्रेज राजदूत के साथ उदयपुर आए। यहीं से उन्हें मध्यभारत और राजस्थान के राजनीति के प्रति रूचि जागी।
1817-18 ई. में जब तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध समाप्त हुआ तब जेम्स टॉड दक्षिण-पश्चिमी राजपूताने के रेजीडेन्ट पद पर मेवाड़ व हड़ौती क्षेत्रों में नियुक्त हुए। जेम्स टॉड जब भीलवाड़ा के माण्डलगढ़ कस्बे में आए तब उन्होंने माण्डगढ़ के जैनयति ज्ञानचन्द को अपना गुरू बनाया। अपने गुरू जैनयति ज्ञानचन्द की प्रेरणा से ही जेम्स टॉड ने राजस्थान की ऐतिहासिक सामग्री जुटाने की शुरूआत की। संस्कृत में लिखे दस्तावेजों का अनुवाद जेम्स टॉड अपने गुरू जैनयति ज्ञानचन्द से ही करवाते थे।
1818 ई. में मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह की ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ सन्धि में कर्नल जेम्स टॉड का विशेष योगदान था। कर्नल जेम्स टॉड की राजपूत शासकों के प्रति घनिष्ठ लगाव को देखते हुए ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों को इनकी स्वामी भक्ति पर सन्देह होने लगा था। यही कारण था कि जेम्स टॉड ने 1822 ई. में स्वास्थ्य का बहाना लेकर ईस्ट इंडिया कम्पनी से त्याग पत्र दे दिया और इंग्लैण्ड लौट गए। इस सम्बन्ध में विशप हार्वर 1824 ई. लिखता है कि “राजपूताना के प्रति अनन्य लगाव के कारण जेम्स टॉड को समय से पूर्व ही सेवानिवृत्त कर दिया गया।”
इंग्लैण्ड जाने के बाद जेम्स टॉड ने राजस्थान में संकलित की गई ऐतिहासिक सामग्री को साहित्यिक कृति के रूप में प्रकाशित करने का निश्चय किया। इससे पूर्व ही 1826 ई. में जेम्स टॉड को लेफ्टिनेंट कर्नल का मानद पद प्रदान किया गया। इतना ही नहीं, 17 नवम्बर 1828 ई. में उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसाइटी का सदस्य मनोनीत किया गया। तत्पश्चात जेम्स टॉड ने 1829 ई. में अपने संस्मरणों, वार्तालाप और अन्य स्रोतों के आधार पर लिखी गई ऐतिहासिक कृति ‘एनाल्स एंड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान’ का प्रथम भाग प्रकाशित करवाया। जबकि इस कृति का दूसरा भाग तीन वर्ष बाद 1832 में प्रकाशित हुआ। वहीं 1920 ई. में विलियम क्रूक द्वारा सम्पादित कर इसे पुनः प्रकाशित कराया गया।1835 ई. में जेम्स टॉड की मृत्यु हो गई। इसके बाद कर्नल टॉड की दूसरी कृति ‘पश्चिमी भारत की यात्रा/ ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया’ का प्रकाशन साल 1839 ई. में उनकी पत्नी ने करवाया।
‘एनाल्स एंड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान’
जेम्स टॉड की कृति ‘एनाल्स एंड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में कुल 21 अध्याय हैं जिसमें राजपूताने की भौगोलिक स्थिति, राजपूतों की वंशावली, सामंत व्यवस्था, जागीरदारी व्यवस्था तथा मेवाड़ का इतिहास साथ ही इसके दूसरे भाग में मारवाड़, बीकानेर, जैसलमेर, आमेर तथा हड़ौती आदि राज्यों का वर्णन किया गया है।
जेम्स टॉड ने ‘एनाल्स एंड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में राजपूताने के लिए सर्वप्रथम राजस्थान/रायथान/रजवाड़ा आदि शब्दों का प्रयोग किया है। जेम्स टॉड ने अपनी इस कृति में राजपूत जाति के प्रेम, बलिदान, देशभक्ति और स्वतंत्रता का तुलनात्मक वर्णन किया है। जेम्स टॉड का कहना था- “मैं इस देश के महलों से नहीं अपितु माटी प्रेम करता हूं।” वह राजपूताना के बारे में लिखते हैं कि “राजस्थान में कोई छोटा सा राज्य भी ऐसा नहीं है जहां थर्मोपल्ली जैसी रणभूमि न हो और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले जहां लियोनाइडास जैसा वीर पुरूष पैदा नहीं हुआ हो।”
‘एनाल्स एंड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में जेम्स टॉड ने राजस्थान के आर्थिक स्रोतों के रूप में भूमि की उर्वरता, प्रकृति, औद्योगिक उत्पादन व व्यापारिक मार्गों का वर्णन सरकारी दस्तावेजों तथा निजी जानकारी के आधार पर किया है। उन्होंने समाज में स्त्रियों की स्थिति, विवाह, सतीप्रथा, जौहर के अतिरिक्त व्रत, पूजा, धर्म सम्प्रदाय आदि के बारे में भी लिखा है।
जेम्स टॉड ने राजस्थान में भूमि की उर्वरा शक्ति की कमजोरी, पर्वतीय क्षेत्रों में जल की कमी एवं व्यापार-वाणिज्य पर विशिष्ट वर्ग के अधिकार को विस्तार से वर्णित किया है। टॉड ने राजस्थान के 36 राजपूत कुलों के सम्बन्धों को जोड़ने का प्रयत्न किया है व राजपूत सामन्त शाही की तुलना यूरोपीय सामन्तशाही से की है।
जानकारी के लिए बता दें कि ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘एनाल्स एंड एंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान’ का हिन्दी अनुवाद डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने किया, जो कि सिरोही राज्य के राहिड़ा गांव के निवासी थे।
‘ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया’
जेम्स टॉड के दूसरे ग्रन्थ का नाम ‘ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया’ है जो एक यात्रा वृत्तांत है। इस पुस्तक में टॉड ने उदयपुर से माण्डली तक की यात्रा का विवरण लिखा है। इस यात्रा वृत्तांत से पता चलता है कि वह जहां भी गए वहां के पुराने शिलालेखों, प्राचीन सिक्कों, हस्तलिखित ग्रन्थों की ही खोज में रहे।
इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ से यह भी जानकारी मिलती है कि यात्रा के दौरान टॉड ने महत्पूर्ण स्थानों, तीर्थों, मंदिरों, गढ़ों तथा शासकों आदि के विषय में तथ्यों को संकलित किया। जेम्स टॉड ने आबू पर्वत, गिरनार, द्वारका, सोमनाथ आदि हिन्दू तीर्थ स्थानों का बहुत ही भावपूर्ण वर्णन किया है।
कर्नल जेम्स टॉड के उपरोक्त ग्रन्थ राजपूत जाति एवं राजस्थान का ज्ञानकोष हैं जिसे हम राजस्थान के इतिहास का प्रथम वैज्ञानिक आधारस्रोत मान सकते हैं। इसी वजह से हम कर्नल टॉड को ‘राजस्थान के इतिहास का जनक’ अथवा ‘राजस्थान के इतिहास का पितामह’ भी कहते हैं।