भारत का इतिहास

Indian campaign of Greek invader Alexander

यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर का भारतीय अभियान

यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर के समय भी पश्चिमोत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति तकरीबन वैसी ही थी जैसे ईरानी आक्रमण के समय थी। पश्चिमोत्तर भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था जिनमें से कुछ गणतंत्रात्मक तथा कुछ राजतंत्रात्मक राज्य थे। इन राज्यों में आपसी फूट एवं संघर्ष इनके पतन का कारण बना।

पश्चिमोत्तर भारत के प्रमुख राज्य थे- पूर्वी तथा पश्चिमी गंधार,अभिसार, पुरु,कठ, सौभूति, शिवि, क्षूद्रक, मालव, अम्बष्ठ, मद्र आदि। भारत पर यूनानी आक्रमण के समय सिकन्दर को अनेक देशद्रोही तथा पद लोलुप राजाओं से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष मदद मिली ऐसे में इन राजाओं के आपसी घृणा एवं संघर्ष के वातावरण ने सिकन्दर का कार्य आसान बना दिया।

सिकन्दर का जीवन परिचय 

मैसीडोन के क्षत्रप​ फिलिप द्वितीय का पुत्र था सिकन्दर। पिता की मृत्यु के बाद सिकन्दर महज 20 वर्ष की उम्र में राजा बना। महत्वाकांक्षी शासक सिकन्दर बचपन से विश्व सम्राट बनने की इच्छा रखता था। अदम्य उत्साह, साहस तथा वीरता से परिपूर्ण सिकन्दर ने मैसीडोन एवं यूनान में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के पश्चात दिग्विजय की व्यापक योजना बनाई।

व्यापक सैन्य अभियान के तहत सिकन्दर ने एशिया माइनर, सीरिया, मिस्र, बेबीलोन, बैक्ट्रिया, सोग्डियाना आदि पर विजय प्राप्त की। 331 ई. पू. में सिकन्दर ने आरबेला के युद्ध में डेरियस तृतीय (दारा तृतीय) को परास्त किया। इसके बाद सम्पूर्ण ईरानी साम्राज्य उसके आधिपत्य में आ गया।

सिकन्दर ने ईरान के हखमनी साम्राज्य को ध्वस्त करने के बाद 326 ई. पूर्व के बसन्त के अन्त में एक विशाल सेना लेकर भारत की तरफ प्रस्थान किया। महान दार्शनिक अरस्तु के शिष्य सिकन्दर ने बल्ख (बैक्ट्रिया) तथा काबुल को जीतते हुए हिन्दुकुश पर्वत पारकर भारत पर आक्रमण किया।

सिकन्दर की मदद करने वाले भारतीय राजा

तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकन्दर की खूब मदद की जिससे उसे बड़ा प्रोत्साहन मिला। आम्भी ने सिकन्दर को बहुमूल्य वस्तुएं तथा हाथी भेंट किए। हिन्दूकुश के उत्तर में एक अन्य राजा शशिगुप्त ने सिकन्दर की आधीनता स्वीकार की तथा उसकी सहायता का वचन दिया।

पुष्करावती ​के संजय तथा अन्य कई राजाओं ने सिकन्दर की मैत्री स्वीकार करके उसे हर सम्भव सहायता प्रदान की। सिन्धु कूच के दौरान सिकन्दर ने अस्टक तथा अश्वकों को परास्त किया। अश्वक गणराज्य की राजधानी मस्सग थी।

पाटल में अश्वक जाति की स्त्रियों ने सिकन्दर का बहादुरी से सामना किया किन्तु युद्ध लड़ते हुई मारी गईं। नीसा के गणतांत्रिक राज्य ने बिना युद्ध किए ही सिकन्दर की आधीनता स्वीकार कर ली। यहां के लोगों ने स्वयं को यूनानियों का वंशज बताया।

सिकन्दर का पोरस के साथ भीषण युद्ध 

सिन्धु नदी के पार झेलम तथा चेनाब नदियों के बीच पुरु राज्य (प्राचीन कैकय प्रदेश) था। सिकन्दर ने पुरु राज्य के शासक पोरस से आत्मसमर्पण की मांग की किन्तु पोरस जैसे स्वाभामिनी राजा के लिए यह शर्त अपने गौरव और मर्यादा के विरूद्ध लगी। उसने यह संदेश भेजा कि वह यूनानी विजेता सिकन्दर के दर्शन रणक्षेत्र में ही करेगा, यह सिकन्दर को खुली चुनौती थी।

राजा पोरस के पास शक्तिशाली हाथियों, बलिष्ठ अश्वारोहियों, रथों तथा पैदल सैनिकों से सुसज्जित विशाल सेना थी। वहीं सिकन्दर के पास प्रशिक्षित एवं तीव्रगामी अश्व सेना थी। पोरस तथा सिकन्दर की सेनाएं झेलम नदी के पूर्वी तथा पश्चिमी तट पर आ डटीं।

बरसात के कारण झेलम नदी में बाढ़ आ गई थी। किसी भी पक्ष के लिए नदी पार करना कठिन था। अंत में एक रात जब भीषण बारिश हुई तब सिकन्दर ने धोखे से अपनी सेना को झेलम नदी के पार उतार दिया। इससे भारतीय पक्ष स्तम्भित रह गया। पोरस ने सिकन्दर का मार्ग अवरूद्ध करने के लिए सबसे पहले अपने पुत्र को भेजा। परन्तु यूनानी सैनिकों के समक्ष वह मारा गया।

अब सिकन्दर का सामना करने के लिए पोरस एक विशालकाय हाथी पर सवार होकर पूरी सेना के साथ युद्ध मैदान में उतर गया। हांलाकि पोरस की सेना के हाथी युद्ध मैदान में यूनानी अश्वारोहियों के समक्ष नहीं टिक सके और युद्ध का परिणाम सिकन्दर के पक्ष में रहा।

युद्ध अपने पक्ष में होते देख सिकन्दर ने तक्षशिला के राजा आम्भी को आत्मसमर्पण सन्देश के साथ पोरस के पास भेजा। देशद्रोही आम्भी को देखते ही पोरस क्रोधित हो उठा और उसने अपने भाले से आम्भी पर प्रहार किन्तु वह बच निकला। इसके बाद सिकन्दर ने पोरस के मित्र मेरूस को भेजा। ऐसे में पोरस ने स्वयं को यूनानी सेना के हवाले कर दिया। घायल पोरस को कैद कर सिकन्दर के सामने लाया गया, उसके शरीर पर नौ घाव थे।

सिकन्दर ने पोरस से पूछा कि तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए? तब पोरस ने बड़ी निर्भिकता से जवाब दिया— “जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। यह जवाब सुनकर सिकन्दर अति प्रसन्न हुआ, उसने न केवल पोरस का राज्य लौटाया बल्कि उसके राज्य का अत्यधिक विस्तार कर दिया।

प्राचीन भारतीय इतिहास में पोरस तथा सिकन्दर के बीच हुए इस युद्ध को झेलम का युद्ध’, ‘वितस्ता का युद्ध तथा हाइडेस्पीज के युद्ध के नाम से जाना जाता है। हाइडेस्पीज का युद्ध सम्भवत: यूनानी लोगों के लिए सबसे महंगा युद्ध साबित हुआ।

यूनानी सैनिकों का आगे बढ़ने से इनकार

पोरस से युद्ध करने के बाद सिकन्दर ने ग्लौगनिकाय तथा कठ जातियों से युद्ध किया और विजय प्राप्त की। दरअसल भारत के विविध जनपदों ने जिस वीरता से यूनानियों से युद्ध किया था उससे यूनानी सैनिकों का उत्साह भंग हो चुका था।

ग्रीक स्रोतों के मुताबिक,  “नंद साम्राज्य की सेना यूनानी सेना के मुकाबले पांच गुना थी ऐसे में थके -मांदे यूनानी सैनिकों ने हाइफैसिस (व्यास नदी) के पास विद्रोह कर दिया। सिकन्दर के अथक प्रयास के बावजूद यूनानी सैनिकों ने आगे बढ़कर युद्ध करने से इनकार कर दिया।  तत्पश्चात कोनोस नामक सेनापति के सुझाव पर सिकन्दर ने स्वदेश लौटने का निर्णय लिया।

सिकन्दर विजित प्रान्तों की शासन व्यवस्था

ई. पूर्व 326 में सिकन्दर वापस झेलम पहुंचा। यहां उसने अपने विजित प्रान्तों की समुचित शासन व्यवस्था की। व्यास और झेलम के बीच का भाग सिकन्दर ने पुरुराज पोरस को सौंप दिया। प्लूटार्क के अनुसार, “इसमें 15 संघ राज्य थे, जिनमें पांच हजार बड़े नगर एवं असंख्य ग्राम शामिल थे।

झेलम व सिन्ध के बीच का इलाका गांधार नरेश आम्भी के सुपुर्द कर दिया। सिकन्दर ने सिन्ध के पश्चिमी प्रदेश अपने सेनापति फिलिप्स को दे दिए। भारत के जिन प्रदेशों में सिकन्दर का कब्जा हो चुका था, उनके अनेक नगरों में यवन सेना की छावनियां स्थापित की गई ताकि इन प्रदेशों में यवनराज सिकन्दर के विरूद्ध विद्रोह न हो सके।

सिकन्दर की यूनान वापसी 

स्वदेश लौटते समय सिकन्दर ने झेलम के सीमावर्ती प्रदेश सौभूति को पराजित किया। इसके बाद रावी नदी के प्रदेश मालव गण पर आक्रमण कर दिया, जिससे असंख्य मालव अपनी जन्मभूमि की रक्षा करते हुए मारे गए। सिकन्दर ने मालवों के पूर्व में स्थित झुद्रकों से सन्धि कर ली। इसके अलावा सिकन्दर को अम्बष्ठ, क्षत तथा वसाति जातियों से भी लड़ना पड़ा। वहीं उत्तरी सिन्ध में सिकन्दर ने मूसिकनोई नामक जनपद को हराया

सिन्ध नदी के मुहाने पर पहुंचने के बाद सिकन्दर ने 325 ईसा पूर्व के सितम्बर महीने में  पाटल से यूनान के लिए प्रस्थान किया। सिकन्दर ने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त कर दिया। नौसेना कमांडर नियार्कस को जहाजी बेड़े के साथ समुद्र मार्ग से वापस लौटने का आदेश देकर स्वयं जेड्रोसिया के ​रेगिस्तानी भागों से होता हुआ बेबीलोन पहुंचा। ठीक दो वर्ष पश्चात 323 ई. पूर्व में बेबीलोन में ही टाइफाइड ज्वर से सिकन्दर की मौत हो गई।

सिकन्दर के आक्रमण के प्रभाव

यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर भारत में तकरीबन 19 महीने रहा किन्तु आम जनजीवन से उसका विशेष सम्पर्क नहीं हुआ। य​द्यपि सिकन्दर के भारत छोड़ने से पूर्व ही उसके विरूद्ध विद्रोह प्रारम्भ हो गए। भारत में जो यवन सैनिक रह गए थे, उनमें से कुछ स्वदेश लौट गए और कुछ चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में भर्ती हो गए। बावजूद इसके सिकन्दर के आक्रमण से भारत पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ें।

सिकन्दर के आक्रमण से पश्चिमी तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के छोटे-बड़े राज्यों की सत्ता नष्ट हो गई।

सिकन्दर के आक्रमण से राज्यों के कमजोर पड़ जाने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए अपना साम्राज्य स्थापित करने में आसानी हो गई।

सिकन्दर के आक्रमण के परिणामस्वरूप पश्चिमोत्तर भारत में कई यूनानी उपनिवेश स्थापित हुए, जैसेनिकैया, बउकेफला, सिकन्दरिया, सोग्डियन-सिकन्दरिया आदि। इनके साथ भारतीयों का सांस्कृति आदान-प्रदान होने लगा।

समुद्री तथा स्थलीय मार्ग से भारतीय व्यापारी यूनान गए तथा यूनानी व्यापारी भारत आए।

भारत में यूनानी मुद्राओं के अनुकरण पर उलूक शैली के सिक्के ढाले गए

भारतीयों ने यूनानियों से क्षत्रप प्रणाली सीखी

मौर्य स्तम्भों के शीर्ष को मंडित करने वाले पशु आकृतियों पर यूनानी कला का ही प्रभाव था।

यूनानी कला के प्रभाव से ही गान्धार कला शैली विकसित हुई थी।

कला एवं ज्योतिष के क्षेत्र में भारतीयों ने यूनानियों से बहुत कुछ सीखा।

यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस पर भारतीय दर्शन का स्पष्ट प्रभाव दिखता है।

भारतीयों ने ह​स्ति (हाथी) सेना के स्थान पर अश्वारोही सेना को बढ़ावा दिया।

सिकन्दर ने उत्तर-पश्चिमी भारत के तकरीबन 2 लाख बैलों को मेसो​डोनिया भेजा

सिकन्दर ने रथ, जहाज और नावें बनाने वाले कुशल कारीगरों को यूनान भेजा। 

सिकन्दर के आक्रमण से यह स्पष्ट हो गया कि केवल देशप्रेम की भावना ही नहीं अपितु योग्य नेता, सुदृढ़ संगठन तथा मजबूत सैन्य शक्ति अति आवश्यक है।

यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर के सैन्य अभियान से जुड़े विस्तृत नक्शे और तिथियाँ प्रदान की, जिससे भारतीय इतिहास को कालक्रम तैयार करने में मदद मिली।

सिकन्दर के यूनानी आक्रमण से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

1. मेसीडोनिया (मकदूनिया) के शासक फिलिप द्वितीय का पुत्र था सिकन्दर।

2. बल्ख (बैक्ट्रिया) तथा काबुल को जीतते हुए हिन्दुकुश पर्वत पारकर भारत पर आक्रमण किया सिकन्दर ने ।

3. सिकन्दर और पोरस के बीच झेलम का युद्ध हुआ था 326 ई.पू.।

4. झेलम युद्ध के अन्य विख्यात नाम वितस्ता का युद्ध तथा हाइडेस्पीज का युद्ध

5. भारत में सिकन्दर की अंतिम विजय पाटल की विजय।

6. सिकन्दर किस भारतीय दार्शनिक को अपने साथ ले गया कालानास।

7. मेगस्थनीज के अनुसार, किस दार्शनिक ने अपने ज्ञान से सिकन्दर को प्रभावित किया मंडनिस।

8. सिकन्दर ने अपनी जीत की खुशी में किस नगर की स्थापना की थी निकैया (विजय नगर)

9. सिकन्दर ने अपने प्रिय घोड़े बुकाफेला के नाम पर दूसरा नगर बसाया बउकेफला (पाकिस्तान में पेशावर)।

10. ईसा पूर्व 323 में बेबीलोन में सिकन्दर की मौत हुई थी मस्तिष्क ज्वर से।

11.  झेलम नदी का यूनानी नाम हाइडेस्पीज, रावी नदी का यूनानी नाम हुड्राओरीज, चिनाब नदी का यूनानी नाम अकेसिनीज, व्यास नदी का यूनानी नाम हाइफैसिस।

12. सिकन्दर के साथ भारत आने वाले यूनानी सेनानायक अरिस्टोबुलस, ओनेसिक्रिटस और नियार्कस।

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