
दोस्तों, इस बात को हम सभी जानते हैं कि केसर दुनिया का सबसे महंगा मसाला है। यदि हम भारत की बात करें तो एक ग्राम केसर की कीमत 450 से 500 रुपए तक है। मतलब साफ है, भारतीय बाजारों में एक किलो केसर की कीमत तकरीबन 5 लाख रुपए है। इसी वजह से केसर को ‘अभिजात वर्ग’ का मसाला भी कहा जाता है।
केसर एक ऐसा महत्वपूर्ण मसाला है, जिसका इस्तेमाल दवा से लेकर बेहतरीन पकवान बनाने तथा धार्मिक अनुष्ठानों तक में किया जाता है। यद्यपि भारतीय पकवानों में केसर का उपयोग राजपूतों और मुगलों के समय से होता आया है। किन्तु यदि हम मुगल काल की बात करें तो मुगल बादशाहों का सबसे लोकप्रिय मसाला केसर ही था। मुगलों की शाही रसोई में बिरयानी, तंदूरी चिकन और करी जैसे पकवानों को स्वादिष्ट एवं सुगन्धित बनाने के लिए केसर का उपयोग अवश्य किया जाता था।
मुगल इतिहास में ऐसा उल्लेख मिलता है कि अकबर के महल की मुर्गियों को हाथ से केसर के दाने खिलाए जाते थे तथा गुलाब जल पिलाया जाता था। अब आपका यह सोचना भी बिल्कुल लाजिमी है कि आखिर में मुर्गियों को केसर के दाने क्यों खिलाए जाते थे? इस रोचक प्रश्न का उत्तर जानने के लिए भोजन इतिहास से जुड़ा यह लेख जरूर पढ़ें।
अकबर की शाही रसोई
चर्चित भोजन इतिहासकार सलमा हुसैन अपनी किताब ‘द एम्पायर ऑफ द ग्रेट मुगल्स : हिस्ट्री, आर्ट एण्ड कल्चर’ में लिखती हैं कि “अकबर की शाही रसोई में भारत और फारस (अब ईरान) के तकरीबन 400 से अधिक रसोईए काम करते थे।” शाही रसोई के इन कर्मचारियों में एक मुख्य रसोईया, एक कोषाध्यक्ष, एक स्टोर कीपर, क्लर्क तथा शाही भोजन चखने वाले शामिल थे।
रसोई प्रांगण के ठीक बीचोबीच एक मंच बना होता था, जहां से प्रमुख खानसामा (रसोईघर का अधीक्षक) पूरे पाकशाला की निगरानी करता था। शाही रसोई में पके हुए व्यंजनों तथा पेय पदार्थों को ‘दौलत खाना’ तथा ‘अब्दरखाना’ में ले जाया जाता था, जहां से भोजन परीक्षण के बाद बादशाह के समक्ष परोसा जाता था अथवा शाही हरम में ले जाया जाता था।
सलमा हुसैन आगे लिखती हैं कि “बादशाह को दैनिक भोजन सामान्यतया किन्नर ही परोसते थे। शाही भोजन को सोने, चांदी, पत्थर और मिट्टी के बर्तनों में रखकर परोसा जाता था। शाही चिकित्सक के द्वारा पकवानों की ऐसी मेनू तैयार की जाती थी जिसमें औषधीय रूप से लाभकारी सामग्रियों को शामिल किया जाता था।” बतौर उदाहरण - बिरयानी बनाते वक्त चावल के प्रत्येक दाने पर चांदी के तेल का लेप किया जाता था। शाही चिकित्सक के अनुसार, ऐसा करने से चावल जल्दी पच जाता था, साथ ही काम उत्तेजना बढ़ाने में भी मदद करता था।
अकबर के पकवानों में केसर का इस्तेमाल
सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी भोजन करने वाला बादशाह अकबर केवल गंगाजल ही पीता था। मुगल दौर में फ्रीजर तो थे नहीं, ऐसे में अकबर के पेय पदार्थों जैसे- शरबत आदि को ठंडा करने तथा मिठाईयों को जमाने के लिए हरकारों की मदद से एक विस्तृत प्रणाली के जरिए हिमालय से प्रतिदिन बर्फ मंगवाया जाता था।
केसर और इलायची से युक्त मुगलई मिठाईयां बेहद मलाईदार होती थीं जिन्हें खाने योग्य फूलों के साथ-साथ सोने या चांदी की पन्नी से सजाया जाता था। भोजन इतिहासकार सलमा हुसैन अपनी किताब ‘द एम्पायर ऑफ द ग्रेट मुगल्स : हिस्ट्री, आर्ट एण्ड कल्चर’ में लिखती हैं कि “अकबर के किचन गार्डेन को गुलाब जल से सींचा जाता था ताकि भोजन पकाते वक्त सब्जियों से सुगन्ध आए।”
वहीं दूसरी तरफ, सूखे मेवे तथा सुगन्धित गरम मसालों से युक्त बिरयानी, तंदूरी चिकन और करी जैसे मुगल पकवानों को अत्यधिक स्वादिष्ट बनाने और शानदार रंग देने के लिए केसर का इस्तेमाल जरूर किया जाता था। शाही रसोई में मीठा पुलाव, शाही रान तथा मुर्ग जमींदोज तैयार करते वक्त अन्य सुगन्धित गरम मसालों के साथ केसर के इस्तेमाल का विशेष ख्याल रखा जाता था।
अकबर के पकवानों में केसर जैसे बेशकीमती मसाले का किस कदर इस्तेमाल किया जाता है, इसे जानने के लिए आप ख्यातिलब्ध भोजन इतिहासकार कोलीन टेलर सेन की चर्चित किताब ‘A History of food in India’ को आसानी से पढ़ सकते हैं। किताब ‘A History of food in India’ के मुताबिक, “ बादशाह अकबर के महल की मुर्गियों को केसर के दाने हाथ से खिलाए जाते थे तथा गुलाब जल पिलाया जाता था। इतना ही नहीं, इन शाही मुर्गियों की प्रतिदिन कस्तूरी तेल और चंदन से मालिश की जाती थी।”
इतिहासकार कोलीन टेलर सेन आगे लिखते हैं कि “यह वह दौर था जब बादशाह अकबर ने अपने हाथी के लिए रोजाना खाने हेतु जो फरमान जारी किया था उसमें तकरीबन डेढ़ किलोग्राम सोना और एक चुटकी केसर शामिल था।” यह सच है कि जब लोगों को भोजन में केसर नसीब नहीं होता था, तब अकबर के हाथी को भी एक राजा की तरह रोजाना किलोभर सोना तथा केसर युक्त भोजन मिलता था।
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