हमारे देश के अधिकांश रेस्तरां में पुलाव, कबाब, बिरयानी और कोफ्ता जैसे मुगलई व्यंजन बड़े आसानी से मिल जाते हैं। इन लजीज और लाजवाब पकवानों को लोग बड़े चाव से परोसते और खाते हैं। चूंकि मुगलों की रसोई में उज्बेकिस्तान, फारस, अफगानिस्तान के साथ-साथ पंजाब, कश्मीर और दक्कन जैसे दूर-दूराज के क्षेत्रों के पकवानों के सम्मिश्रण ने मुगलई पाककला को और भी अद्वितीय बना दिया जो कि किसी भी बादशाह, राजा अथवा धनाढ्य वर्ग के लिए सबसे उपयुक्त था और आज भी है।
आपको यह याद दिलाना आवश्यक हो जाता है कि बहुसंख्यक हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही मुगल साम्राज्य के आधार थे, ऐसे में गाय और सूअर का मांस दोनों ही मुगलों की रसोई में शामिल नहीं थे। इसके अतिरिक्त मुर्गी, मटन और शाकाहारी पकवान मुगलों को ज्यादा पसन्द थे। यहां तक कि इन लजीज पकवानों को दूध, दही, मक्खन, क्रीम आदि से और भी लजीज बना दिया जाता था। मुगलई मिठाईयों में केसर, इलायची आदि का जमकर इस्तेमाल किया जाता था। आखिर में इन सभी बेहतरीन व्यंजनों को सोने या चांदी के पन्नों से सजाकर परोसना मुगल रसोई की विशेष पहचान थी।
देखा जाए तो मुगलिया हुकूमत को मजबूत बनाने में मुगल पकवानों ने विशेष भूमिका निभाई है, क्योंकि मुगल बादशाह अपनी ताकत का प्रदर्शन करने व दोस्ती को मजबूत बनाने के लिए अक्सर दावतों का इंतजाम करते थे जिनमें एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन परोसे जाते थे। इस स्टोरी में हम आपको मुगल बादशाह बाबर से लेकर औरंगजेब तक, इन 6 मुगल बादशाहों के लजीज व्यंजनों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें वे खाना बेहद पसन्द करते थे।
बादशाह बाबर
भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर को फरगना और समरकन्द का खाना बेहद प्रिय था। चूंकि बाबर का अधिकांश जीवन युद्धों में ही व्यतीत हुआ इसलिए उसे मसालेदार चावल और मांस बेहद पसन्द थे जो कि मिट्टी के बर्तन में रखकर और आग के गड्ढों में दफनाकर पकाए जाते थे। भारत आने के बाद बाबर ने मछली जैसे नए खाद्य पदार्थों का भी आनंद लेना शुरू कर दिया था, उसे खारे पानी की मछलियों से बने पकवान भी बेहद प्रिय थे।
बाबर की आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी से पता चलता है कि बाबर को कस्तूरी खरबूज बेहद प्रिय थे। उसकी आत्मकथा के मुताबिक, भारत में एक बार कस्तूरी खरबूजों को देखकर वह भावुक हो गया था और उसे अपनी मातृभूमि की याद आ गई थी। हांलाकि तुजुक-ए-बाबरी में मुगल बादशाह बाबर ने फलों में आम की भी प्रशंसा की है और उसे फलों में श्रेष्ठ माना है।
हुमायूँ
मुगल बादशाह हुमायूं को पर्शियन पकवान बेहद पसन्द थे क्योंकि उसकी ईरानी पत्नी हामिदा बानू बेगम को ज्यादातर फारसी व्यंजन तैयार करना पसन्द था। हमीदा बेगम के दौर से ही मुगल रसोई में सूखे मेवे और केसर का इस्तेमाल शुरू हुआ। आज की तारीख में भी सूखे मेवे और केसर ईरानी खानों में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं।
इसके अतिरिक्त अन्य तुर्कों की तरह मुगल बादशाह हुमायूं को खिचड़ी पसन्द थी। उसे शर्बत पीना भी पसन्द था, इसके बाद से शाही रसोई में फलों से तैयार पेय पदार्थ तैयार किए जाने लगे। पेय पदार्थों को ठण्डा करने के लिए बर्फीले इलाकों से बर्फ मंगवाई जाती थी क्योंकि उस जमाने में फ्रीजर मौजूद नहीं थे।
अकबर
अकबर को सबसे ताकतवर मुगल बादशाह कहा जाता है। भारत के कई राजपूत राजवंशों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के बाद अकबर की शाही रसोई में फारसी स्वादों के साथ-साथ भारतीय पाक कला का अद्भुत मिश्रण देखने को मिला।
अकबर सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी भोजन करता था जिसमें वह सम्बुश यानि समोसा और घी से भरपूर पालक व्यंजन यानि साग, दाल, मौसमी सब्जियां और पुलाव को तरजीह देता था। बाकी तीन दिन वह मुर्ग-मुसल्लम और नवरतन कोरमा जैसे पारम्परिक मांसाहारी व्यंजनों को खाना पसन्द करता था। वह गंगाजल ही पीता था तथा उसने गोमांस पर प्रतिबंध लगा रखा था।
जहांगीर
मुगल बादशाह जहांगीर एक विलासी शासक था। बेहद खूबसूरत नूरजहां उसकी बीसवीं पत्नी थी जिसकी मुगलिया हुकूमत में तूती बोलती थी। नूरजहां के हाथ से तैयार वाइन पीना जहांगीर को काफी पसन्द था। जहांगीर की आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी के मुताबिक, वह 20 प्याला शराब प्रतिदिन पीता था, जिसमें 14 प्याला शराब वह दिन में और 6 प्याला शराब रात में पीता था। जहांगीर शराब के अलावा अफीम का भी सेवन करता था। कई यूरोपीय देशों से उपहार प्राप्त करने वाले जहांगीर को उड़द की दाल, केसर, केवड़ा, कपूर, लौंग और शक्कर की चाशनी से तैयार इमरती तथा इन्द्रधनुषी रंग की दही बेहद लजीज थी।
शाहजहां
मुगल बादशाह जहांगीर के बेटे शाहजहां के शासनकाल को मुगल साम्राज्य का स्वर्ण युग माना जाता है। शाहजहां ने आगरा में ताजमहल, मोतीमहल तथा दिल्ली में लाल किला और जामा मस्जिद जैसी इमारतों का निर्माण करवाया जोकि पूरी दुनिया में स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना मानी जाती हैं।
अपने पूर्ववर्ती वंशजों की तरह शाहजहां को भी मसालेदार व्यंजन पसन्द थे हांलाकि उसने अपनी शाही रसोई में हल्दी, जीरा, धनिया और लाल मिर्च जैसी जड़ी-बूटियों और मसालों को उनके उपचार गुणों के कारण शामिल करने का निर्देश दिया। जिसके बारे में ऐसी मान्यता थी कि ये बुरी आत्माओं को दूर भगाती हैं अर्थात इन मसालों से नाकारात्मकता दूर होती है। मांसाहारी व्यंजनों में निहारी खाना शाहजहां को बेहद प्रिय था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि शाहजहां केवल यमुना का पानी पीता था, वह आमों का शौकीन था, उसे फलों का सेवन करना बेहद पसंद करता था।
औरंगजेब
औरंगजेब अन्य मुगल बादशाहों की तुलना में सबसे अधिक धार्मिक था, इसलिए उसे जिन्दा पीर जैसी उपाधियों से भी नवाजा गया है। औरंगजेब ने मांस से बने पकवानों की जगह शाकाहारी व्यंजनों को ज्यादा तरजीह दी। औरंगजेब ने अपनी शाही रसोई में पंचमेल दाल, काबुली चने से बने व्यंजन, खिचड़ी, तथा राजमा, अखरोट के अतिरिक्त बादाम और दही से तैयार कबूली बिरयानी तैयार करवाना शुरू किया।
गौरतलब है कि मुगलों ने अपनी शाही रसोई में जिन पकवानों को तैयार करवाया, वे सभी आज भी भारत के शहरों-कस्बों में मौजूद हाई पेड रेंस्तरा से लेकर स्ट्रीट फूड स्टाल पर बड़े शौक से तैयार किए जाते हैं, जिन्हें लोग बड़े गर्व के साथ खाना पसन्द करते हैं।
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