भोजन इतिहास

Is Agra's petha really born from the kitchen of Mughal emperor Shahjahan?

क्या सच में मुगल बादशाह शाहजहां की रसोई से जन्मा है आगरा का पेठा?

पेठे का जन्म मुगल बादशाह शाहजहां की रसोई में हुआ है, इस तथ्य को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं है। जनश्रुतियों के मुताबिक, महाभारतकाल से आयुर्वेद में पेठे का उपयोग चिकित्सीय रूप में किया जाता रहा है। आमजन ​विभिन्न रोगों जैसे- अम्लपित्त, रक्तविकार, वात प्रकोप, हृदय रोग तथा स्त्री रोग आदि में पेठे का प्रयोग करते थे। जलने की स्थिति में भी पेठे से बनी दवा का इस्तेमाल काफी लाभकारी होता था। औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसे संस्कृत शब्द कूष्मांड के नाम से अनेक चिकित्सीय विधियों में प्रयोग किया जाता है।

जानकारी के लिए बता दें कि मुगल बादशाह शाहजहां के काल के लिखी गई महत्वपूर्ण फारसी पुस्तक नुस्खा-ए-शाहजहानी में मुगल व्यंजनों और शाही रसोई से जुड़े रहस्यों को उजागर किया गया है। ऐसे में इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ में भी पेठे का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है, जो इस बात का संकेत है कि मुगल रसोई से पूर्व भी पेठा अपने अस्तितत्व में था। एक तर्क यह भी है कि मुगल दूध और मावा से भरपूर मिठाइयों को बनाना और खाना पसंद करते थे जबकि पेठे को बनाने में कद्दू व लौकी का इस्तेमाल किया जाता है।

ताजमहल और मुगल बादशाह शाहजहां से जुड़े पेठे की कहानीमें भी एकरूपता नहीं है। पहली कथा यह है कि ताजमहल के निर्माण में लगभग 21,000 श्रमिक लगे हुए थे, जो प्रतिदिन केवल दाल और रोटी खाते थे। रोजाना दाल-रोटी खाकर मजूदर भी ऊब चुके थे। तब मुगल बादशाह शाहजहां ने भीषण गर्मी में मजदूरों को तुरंत एनर्जी देने के लिए ताजमहल के मुख्य वास्तुकार मास्टर आर्किटेक्ट उस्ताद ईसा से चिन्ता जाहिर की। उस्ताद ईसा ने पीर नक्शबंदी साहब को अपनी समस्या बताई और जल्द ही कोई समाधान ढूंढने का अनुरोध किया। कहा जाता है कि एक दिन इबादत के दौरान पीर साहब बेहोश हो गए और उन्हें पेठा बनाने की विधि का सुझाव आया था। इसके बाद तकरीबन 500 मुगल रसोईयों ने मजदूरों के पेठा बनाया था।

दूसरी कहानी यह है कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की याद में आगरा में संगमरमर निर्मित भव्य ताजमहल का निर्माण करवाया। बादशाह शाहजहां को ताजमहल से झलकने वाली पवित्रता और शांति ने इस हद तक आकर्षित किया कि उन्होंने अपने शाही रसोईयों से ताजमहल की तरह ही सफेद, चमकदार और शुद्ध मिठाई बनाने की चुनौती पेश कर दी। फिर क्या था, शाही रेसाईयों ने सफेद कद्दू को टुकड़े में काटा और धीमी कोयले की आग में गुलाब के स्वाद वाली चाशनी में उबाला। इस तरह से आगरा का प्रसिद्ध पेठा बनकर तैयार हुआ।

तीसरी कहानी के मुताबिक स्वयं मुमताज ने अपने हाथों से पेठा बनाकर मुगल बादशाह शाहजहां को खिलाया था। इसके बाद शाहजहां को यह व्यंजन ​इतना पसंद आया कि उन्होंने अपनी शाही रसोई में पेठा बनाने का ऐलान कर दिया। फिर क्या था, शाहजहां की शाही रसोई में कार्यरत तकरीबन 500 कारीगरों के जरिए पेठा बनना शुरू हो गया। पेठे से जुड़े इतिहास में तथ्यों की असमानता इस बात का द्योतक है कि पेठा का जन्म मुगल रसोई में हुआ था, इसे लेकर संदेह है। खैर जो भी हो, यह सच है कि पेठे के स्वाद की लोकप्रियता मुगलकाल में आगरा से ही शुरू हुई।

आखिर इतना पॉपुलर क्यों है आगरा का पेठा?

यह भी सच है कि देश के विभिन्न हिस्सों में पेठा तैयार किया जाता है और बेचा जाता है लेकिन जितना मशहूर आगरा का पेठा है उतना कहीं का नहीं। देश का कोई भी शख्स आगरा जाए या फिर आगरा के रास्ते से गुजरे वो यहां का पेठा लिए बिना नहीं लौटता। चूंकि यह सफेद किस्म के कद्दू से तैयार किया जाता है इसलिए पेठे का दूसरा नाम विंटर मेलन भी है।

आगरा स्थित ताज होटल एंड कन्वेंशन सेंटर के कार्यकारी शेफ पलाश घोष के मुताबिक, “यहां का पेठा इतना लोकप्रिय है इसलिए यह आगरा का पेठा के नाम से प्रसिद्ध है। इसके विभिन्न आकार होते हैं जैसे- आयताकार, बेलनाकार, टुकड़ेदार और अतिरिक्त। हमारे होटल में कस्टमर्स को अंगूरी पेठा, पान पेठा, नारियल पेठा, चॉकलेट पेठा, केसरी पेठा और शहद पेठा परोस रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि आगरा के बाजार में पेठे की 50 से 60 किस्में उपलब्ध हैं। कहा जाता है कि आगरा के पेठे में स्वाद के बदलाव का दौर 1945 के बाद शुरू हुआ। गोकुल चंद गोयल ने पेठे के स्वाद में एक नया बदलाव किया उन्होंने इसको गोदकर और खांड के स्थान पर चीनी और सुंगध का प्रयोग किया। लिहाजा आगरा में सूखा पेठा के साथ-साथ रसीला पेठा भी बनने लगा जो आगे चलकर अंगूरी पेठा के नाम से विख्यात हुआ।

बता दें कि श्री गोकुल चंद गोयल ने नूरी दरवाजा मोहल्ले में पेठा बनाना शुरू किया था जो आज तक जारी है। गोकुल चंद गोयल के प्रपौत्र और पुरानी पेठा स्टोर के मालिक राजेश अग्रवाल कहते हैं कि चीनी और सुंगध के बाद पेठे में केसर और इलायची के साथ एक नए जायके का उदय हुआ। आगरा के पेठे की खासियत का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इस मिठाई को जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) भी प्राप्त है।