
भारत में पूंजीवाद की गाड़ी बाजारवाद की पटरी पर सरपट दौड़ रही है, जिसकी गति आर्थिक विकास दर पर निर्धारित है। इलिट वर्ग ने देश के कुछ गिने-चुने अर्थशास्त्रियों, राजनीतिक-सामाजिक विश्लेषकों तथा मीडिया महारथियों के जरिए आम जनता के समक्ष अतिशयोक्तिपूर्ण और भ्रामक सूचनाओं के आधार पर समृद्ध भविष्य की मृगमरीचिका पैदा करने का कार्यभार अपने उपर ले रखा है।
जबकि हकीकत यह है कि मुट्ठीभर धनाढ्य तबके के विचारों और रूचियों से देश की 146 करोड़ जनता को कुछ नहीं मिलने वाला है। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के हर व्यक्ति पर औसतन 4.8 लाख रुपए का विदेशी कर्ज है। हमारा देश दुनिया की चौथी आर्थिक महाशक्ति बन चुका है, बावजूद इसके आजादी के 78 साल बाद भी भारत में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई बढ़ती ही जा रही है।
इस स्टोरी में हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि भारत की कुल सम्पति में से कितनी फीसदी सम्पत्ति पर सिर्फ एक फीसदी अमीरों का कब्जा है। ऐसे में अमीरों तथा गरीबों के बीच बढ़ती खाई से रूबरू होने के लिए इस स्टोरी को जरूर पढ़ें।
भारत में आर्थिक असमानता
भारत सरकार ने 21 फरवरी 1997 को अपने आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात को उजागर किया था कि साल 1951 में गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों की संख्या 164 मिलियन थी जो 1993-94 में बढ़कर 320 मिलियन हो गई। बावजूद इसके भारतीय सरकारें सिर्फ कहती रहीं हैं कि गरीबी की क्या बात है, अब लोग अनाज के बजाय दूध, फल, मांस और अण्डे आदि ज्यादा खाने लगे हैं।
जबकि हकीकत यह है कि अलग-अलग सर्वेक्षण विधियों में घपलेबाजी करने के बाद भी 1993-94 से 2005-2006 के बीच कुल 11 वर्षों में गरीबी की कुल आबादी में महज 8 फीसदी हिस्सा ही कम हुआ। वहीं, वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब तथा न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार, भारत में आय और धन असमानता 1992-2023 के बीच बढ़ी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022-23 में देश की कुल आय का 22.6 फीसदी हिस्सा सिर्फ एक फीसदी अमीरों के पास था। जबकि सबसे गरीब 50 फीसदी आबादी के पास केवल 6.5 फीसदी हिस्सा था। साल 2022-23 में देश के एक फीसदी लोगों ने औसतन 53 लाख रुपए कमाए जो कि औसत भारतीय की आय 2.3 लाख रुपए के मुकाबले 23 गुना अधिक है। गौर करने वाली बात है कि यह आंकड़ा ब्रिटिश शासन के अधीन भारत से भी अधिक है।
सिर्फ एक फीसदी अमीर हैं देश के असली राजा
ताजा आकड़ों के अनुसार, साल 2025 में भारत की कुल सम्पत्ति के 60 फीसदी हिस्से पर सिर्फ एक फीसदी अमीरों का कब्जा है। जबकि शेष 99 फीसदी आबादी के पास सिर्फ 41 फीसदी संपत्ति है। जानकारी के लिए बता दें कि भारत के इन अमीरों ने अपने धन को रियल एस्टेट एवं सोने में निवेश कर रखा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में भारत की कुल घरेलू संपत्ति करीब 19.6 ट्रिलियन डालर है, इसमें से 11.6 ट्रिलियन डालर (तकरीबन 59 फीसदी) सिर्फ एक फीसदी अमीरों के पास है। जाहिर है, उदारीकरण के बाद से सिर्फ कुछ सबसे अमीर लोगों के हाथों में ही सम्पत्ति का इजाफा हुआ है। मतलब साफ है, देश के धनी परिवार दिन-प्रतिदिन और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं।
हम देश के नीति निर्धारकों से यह पूछना चाहते हैं कि क्या सभी अमीर यहां के गरीबों को सुखी व समृद्ध देखने की सच्ची अभिलाषा रखते हैं? यदि ऐसा है तो फिर उनकी मजदूरी कौन करेगा जिससे पीढ़ियों तक उनके बच्चे करोड़पति से अरबपति बनते रहेंगे और इतिहास के पन्नों पर अमर होते रहेंगे। जबकि अपने खून-पसीने से अमीरों के कल-कारखानों को चलाने वाला मजदूर मिट्टी के गर्त में दफनाया जाता रहेगा।
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