ब्लॉग

Why did Lord Mountbatten call Mahatma Gandhi 'one man army'?

लॉर्ड माउंटबेटन ने महात्मा गांधी को ‘वन मैन आर्मी’ क्यों कहा था?

आजादी के महापर्व 15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश जश्न में डूबा था। पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने राजधानी दिल्ली में आयोजित आजादी के जश्न में शामिल होने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी न्यौता दिया था किन्तु बापू ने कहा कि, “जब कलकत्ता में हिंदू-मुस्लिम एक - दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में जश्न मनाने के लिए मैं कैसे आ सकता हूं। इससे ज्यादा जरूरी है कि मैं उनके बीच रहूं।

दरअसल 15 अगस्त 1947 ई. को महात्मा गांधी दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर कोलकाता में मौजूद थे। अब सवाल यह उठता है कि महात्मा गांधी ने नोआखली और कोलकाता सहित समूचे बंगाल में ऐसा क्या कर दिया, जिसे प्रभावित होकर भारत के वायसराय लॉर्ड माउन्टबेटन ने महात्मा गांधी को वन मैन आर्मीकहा था। महात्मा गांधी की उपाधि वन मैन आर्मीसे जुड़े रोचक तथ्य को जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।

आजादी के जश्न में शामिल नहीं हुए थे महात्मा गांधी

स्वतंत्रता दिवस से ठीक एक दिन पहले यानि 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद भवन के केंद्रीय हॉल में नियति से साक्षात्कार” (Tryst with Destiny) शीर्षक से एक शानदार भाषण दिया था। इसे पं. नेहरू के महान भाषणों में से एक माना जाता है किन्तु यह बात जानकर हैरानी होगी कि पं. नेहरू के इस भाषण को खुद महात्मा गांधी ने नहीं सुना था। बीबीसी एक रिपोर्ट के मुताबिक, “उस दिन महात्मा गांधी कोलकाता के बेलियाघाटा इलाके में स्थित हैदरी मंज़िल के एक कमरे में रात्रि 9 बजे ही गहरी नींद में सो गए थे।

यही नहीं, आजादी के महापर्व 15 अगस्त, 1947 के दिन भारत की जनता में जश्न में डूबी थी। दिल्ली में आयोजित आजादी के जश्न में शामिल होने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को न्यौता भी दिया था किन्तु उन्होंने इस जश्न में शामिल होने से इनकार कर दिया। पत्र के जवाब में महात्मा गांधी ने कहा कि जब कलकत्ते में हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं। इससे ज्यादा जरूरी है कि मैं उनके बीच रहूं। मेरे लिए आजादी की घोषणा की तुलना में हिंदू-मुस्लिमों के बीच शांति अधिक महत्वपूर्ण है।

15 अगस्त को कलकत्ता में थे महात्मा गांधी

भारत विभाजन के दंश से उपजी साम्प्रदायिक हिंसा की आग में पंजाब और बंगाल जैसे प्रान्त जल रहे थे। बंगाल में उठे सांप्रदायिक दंगों की आग में हजारों की संख्या में हिन्दू-मुसलमान हताहत हुए थे। बंगाल के नोआखली में खून खराबा रोकने तथा शांति स्थापित करने के लिए महात्मा गांधी 9 अगस्त, 1947 को कैडिलैक कार में सवार होकर कलकत्ता पहुंच गए थे।

कलकत्ता में पिछले एक साल से हिन्दू-मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक संघर्ष चल रहा था। महात्मा गांधी अपनी चिरस्थायी साथी मनु गांधी और आभा गांधी के साथ कलकत्ता की मुस्लिम बाहुल्य बस्ती बेलियाघाट के मुख्य मार्ग से दूर एक छोटी सी गली में स्थित हैदरी मंजिल (अब गांधी भवन) में ठहरे थे। इस भवन का चयन कोलकाता के मुस्लिम नेताओं द्वारा किया गया था, जिनका नेतृत्व सुहरावर्दी कर रहे थे।

1947 में हैदरी मंजिल (अब गांधी भवन) एक एक बोहरा मुस्लिम व्यापारी परिवार के स्वामित्व में था। किन्तु वर्तमान में इस ऐतिहासिक भवन का संचालन कोलकाता गांधी स्मारक समिति करती है। उन दिनों बेलियाघाट का इलाका पूरे कलकत्ता में दंगों का केन्द्र था। महात्मा गांधी का सामना पहली बार एक ऐसी भीड़ से हो रहा था, जो गांधी वापस जाओ के नारे लगा रही थी।

महात्मा गांधी ने 13 अगस्त से ही कलकत्तावासियों से मिलकर शांति के प्रयास शुरू कर दिए थे। महात्मा गांधी ने क्रोधित भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा,  “मैं हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों की सेवा करने आया हूं। मैं स्वयं को आपकी सुरक्षा में सौंपने जा रहा हूं। आप मेरे विरुद्ध जा सकते हैं... मैं जीवन की यात्रा के लगभग अंत पर पहुँच गया हूं... लेकिन यदि आप फिर से पागल हो गए, तो मैं इसका जीवित गवाह नहीं रहूंगा।"

14 अगस्त को दोपहर में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश भारत में अपनी आखिरी प्रार्थना सभा बेलियाघाट के एक मैदान में आयोजित की, जहां हिन्दू-मुस्लिम सहित समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग उपस्थित थे। प्रार्थना सभा में मौजूद तकरीबन 10,000 लोगों की मिलीजुली भीड़ ने एक स्वर में हिंदू-मुस्लिम एक हों के नारे लगाए। इस प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी ने कलकत्ता में लोगों के दिलों में हो रहे बदलाव पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की और कहा- “कल से हम ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्त हो जाएंगे, लेकिन भारत का विभाजन भी हो जाएगा। कल खुशी का दिन होगा, लेकिन साथ ही दुख का भी दिन होगा।"

संयोगवश 15 अगस्त के दिन महात्मा गांधी के निकटतम सहयोगी रहे महादेव देसाई की पांचवीं पुण्यतिथि थी, ऐसे में बापू उस दिन भोर में दो बजे ही उठ गए। गांधीजी ने उस दिन उपवास रखा और अपने सचिव महादेव देसाई की स्मृति में सुबह पौने चार बजे तक गीता पाठ करवाया। बापू जब सुबह टहलने निकले तो हज़ारों पुरुष, महिलाएं और बच्चे उनके दर्शन के लिए उमड़ पड़े। दिनभर लोगों के समूह आजादी के नारे लगाते हुए आते रहे। 15 अगस्त को कोलकाता में दंगे पूरी तरह से रुक गए थे। दैनिक अखबार अमृता बाज़ार पत्रिका लिखता है, "भाईचारे का खून-खराबा अचानक खत्म, शहर के माहौल में चमत्कारिक बदलाव।"

15 अगस्त के दिन ही महात्मा गांधी के पास पटना से टेलिफ़ोन संदेश आया कि कलकत्ता के जादू का असर वहां भी महसूस किया जा रहा है। महात्मा गांधी ने 16 अगस्त को हरिजन के अंक में लिखा कि, “कलकत्तावासियों के दिलों में हृदय परिवर्तन का श्रेय हर जगह मुझे दिया जा रहा है, जिसके लायक मैं नहीं हूं। हम सभी ईश्वर के हाथ के खिलौने हैं, वही हमें अपनी धुन पर नचाता है।

लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा- वन मैन आर्मी

मुस्लिम लीग ने संविधान सभा की बैठक में 24 अगस्त को एक प्रस्ताव पास कर कलकत्ता में शांति स्थापित करने तथा भारत-पाक के बीच भाईचारा बढ़ाने के गांधी के प्रयासों की तारीफ की और कहा कि उनके प्रयासों से ह़ज़ारों मासूम लोगों को जान बच गई है।

वहीं, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने महात्मा गांधी को तार भेजा, “मेरे प्रिय गांधीजी, पंजाब में हमारे पास 55000 सैनिक हैं तब भी वहां दंगे जारी हैं। जबकि बंगाल में सिर्फ़ आप हैं और वहां दंगे पूरी तरह से रुक गए हैं। बतौर प्रशासक मुझे वन मैन आर्मीको अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने की अनुमति दी जाए।

लॉर्ड माउंटबेटन आगे लिखते हैं कि “15 अगस्त के दिन संविधान सभा में आपका नाम आने के बाद गूंजी तालियों की आवाज आपको सुननी चाहिए थी। उस समय हम सभी आपके बारे में ही सोच रहे थे।सच है, बापू ने स्वयं के प्रयासों से भारतीय मुक्ति संग्राम में अभूतपूर्व योगदान दिया था।

गांधीजी 7 सितंबर, 1947 को दिल्ली के लिए रवाना हुए, ताकि वे पाकिस्तान जाकर वहां शांति की अपील कर सकें। किन्तु ऐसा नहीं हो सका, ठीक पांच महीने बाद ही बिड़ला हाउस के बगीचे में नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर बापू  की हत्या कर दी।

इसे भी पढ़ें : बतौर प्रधानमंत्री सुभाषचन्द्र बोस ने कब और कहां फहराया था तिरंगा?

इसे भी पढ़ें : महेंद्रगिरि पर्वत पर आज भी रहते हैं भगवान परशुराम, जानते हैं क्यों?