एशिया ही नहीं अपितु विश्व के प्रथम अर्न्तराष्ट्रीय विश्वविद्यालय नालंदा की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम ने 415-455 ई. में की थी। हर्षवर्धन काल में नालन्दा विश्वविद्यालय को पूर्ण संरक्षण मिला जिससे यह विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। 9वीं शताब्दी से 12 वीं शताब्दी के बीच विश्व के सबसे ख्यातिलब्ध विश्वविद्यालयों में से एक नालन्दा को साल 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने ध्वस्त कर दिया।
आपको यह तथ्य जानकर हैरानी होगी कि नालन्दा विश्वविद्यालय को अग्नि के हवाले करने, 11 बड़े बौद्ध मठों (विहार) और 6 प्रमुख मंदिर को लूटने और नष्ट करने तथा धर्माचार्यों व भिक्षुओं की हत्या करने एवं उन्हें विश्वविद्यालय परिसर से भगाए जाने के बाद भी ‘धर्मगंज’ पुस्तकालय में मौजूद तकरीबन 90 लाख किताबें धू-धू करके छह महीने तक जलती रहीं। यदि आप भी ‘धर्मगंज’ पुस्तकालय से जुड़ी रोचक बातें जानने को इच्छुक हैं तो यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
‘धर्मगंज’ पुस्तकालय से जुड़ी रोचक बातें
1. नालन्दा विश्वविद्यालय के विशाल पुस्तकालय धर्मगंज का शाब्दिक अर्थ है - ‘धर्म का खजाना’।
2. नालन्दा विश्वविद्यालय के धर्मगंज पुस्तकालय में मौजूद पांडुलिपियों एवं किताबों की संख्या तकरीबन 90 लाख थी।
3. एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में शामिल ‘धर्मगंज’ नौ मंजिला भवन में संचालित होता था, जिसकी ऊंचाई तकरीबन 300 फीट थी।
4. इतिहासकारों के अनुसार, नालन्दा विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार तथा धर्मगंज पुस्तकालय के नौ मंजिला भवन का निर्माण गुप्तवंश के सम्राट नरसिंहगुप्त बालादित्य ने करवाया था।
5. नालन्दा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय ‘धर्मगंज’ के तीन मुख्य भवन थे : पहला भवन - रत्नसागर (रत्नों का सागर), दूसरा भवन- रत्नोदधि (रत्नों का महासागर) तथा तीसरा भवन - रत्नरंजक (रत्नों से सजा हुआ)।
6. धर्मगंज पुस्तकालय की पहली और सबसे बड़ी इमारत ‘रत्नसागर’ थी जिसमें सबसे कीमती और दुर्लभ पांडुलिपियां रखी हुई थीं।
7. धर्मगंज पुस्तकालय की दूसरी सबसे बड़ी इमारत ‘दत्नोदधि’ में बौद्ध दर्शन-शिक्षाओं से युक्त ग्रन्थ संरक्षित थे और यह इमारत अध्ययन हेतु समर्पित थी।
8. धर्मगंज पुस्तकालय के तीन मुख्य भवनों में ‘रत्नरंजक’ सबसे छोटी इमारत थी। इस भवन का इस्तेमाल नए पाठ्य पुस्तकों तथा पांडुलिपियों को संग्रहित करने के लिए होता था। इतना ही नहीं, रत्नरंजक भवन में विद्वतजन बैठकर वाद-विवाद करते थे।
9. नालन्दा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय धर्मगंज बौद्ध ग्रन्थों का विशाल संग्रह था, जिसमें महायान सूत्र, विनय पिटक, अभिधम्म पिटक, सूत पिटक सहित जाने माने विद्वानों की कई टीकाएँ शामिल थीं।
10. नालन्दा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय ‘धर्मगंज’ में न्याय, सांख्य, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत जैसे कई दार्शनिक ग्रन्थ मौजूद थे। यह पुस्तकालय दार्शनिक चर्चाओं का केंद्र था।
11. धर्मगंज नामक विशाल पुस्तकालय में गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और अन्य वैज्ञानिक विषयों से युक्त पांडुलिपियाँ भी मौजूद थीं।
12. धर्मगंज पुस्तकालय में धर्म-दर्शन तथा वैज्ञानिक कृतियों के अतिरिक्त साहित्य, संगीत, कला और नाट्य आधारित पांडुलिपियाँ भी थीं।
13. नालन्दा विश्वविद्यालय ने पूरे एशिया के विद्वानों को अपनी तरफ आकर्षित किया लिहाजा धर्मगंज पुस्तकालय में कई अलग-अलग देशों जैसे- चीन, जापान, तिब्बत, श्रीलंका, ग्रीस, फारस (ईरान), मंगोलिया, कोरिया आदि की पांडुलिपियां भी मौजूद थीं।
14. धर्मगंज पुस्तकालय में धर्मग्रन्थों तथा पांडुलिपियों को कई पीढ़ियों तक सुरक्षित तथा संरक्षित रखने के लिए विद्वानों ने विशेष तकनीक का इस्तेमाल किया था।
15. धर्मगंज पुस्तकालय की पांडुलिपियां सामान्यतया ताड़ के पत्तों पर लिखी जाती थीं, जिन्हें वर्षों तक टिकाऊ बनाने के लिए तेल से संरक्षित किया जाता था।
16. विद्वतजन एवं विद्यार्थी लिखने के लिए पौधों के अर्क से तैयार स्याही का इस्तेमाल करते थे।
17. पांडुलिपियों तथा धर्मग्रन्थों को नमी, धूल और कीड़ों से बचाए रखने के लिए इन्हें खास तौर पर बनाए गए ताखों और अलमारियों में रखा गया था।
18. पांडुलिपियों में मौजूद ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए नालन्दा के विद्वान नियमित रूप से ग्रंथों की नकल करके डुप्लीकेट कॉपी बनाते थे।
19. धर्मगंज पुस्तकालय में मौजूद पांडुलिपियों का सावधानीपूर्वक कैटलॉग किया गया था ताकि विद्वान अपनी जरूरत के हिसाब से टेक्स्ट आसानी से ढूंढ़ सकें।
20. धर्मगंज पुस्तकालय में विद्वानों और नालन्दा के शिक्षकों द्वारा लेक्चर और प्रेजेंटेशन भी आयोजित किए जाते थे।
21. विभिन्न भाषाओं के ग्रन्थों का अनुवाद और उनकी व्याख्या धर्मगंज पुस्तकालय की प्रमुख गतिविधियों में से एक था।
22. 7वीं सदी के एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु, यात्री और विद्वान ह्वेनत्सांग ने धर्मगंज पुस्तकालय की भव्यता और इसके संग्रह की व्यापकता का सटीक वर्णन किया है।
23. धर्मगंज पुस्तकालय की कुछ पांडुलिपियां अमेरिका के लॉस एंजिल्स काउंटी म्यूजियम आर्ट और तिब्बत के यारलुंग म्यूजियम में देखी जा सकती हैं।
24. हूण शासक मिहिरकुल ने नालन्दा विश्वविद्यालय को सर्वप्रथम क्षति पहुंचाई थी।
25. साल 1199 ई. में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालन्दा विश्वविद्यालय को ध्वस्त कर दिया। फारसी इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज की ‘तबाकत-ए-नासिरी’ के अनुसार, बख्तियार खिलजी ने पहले तो नालंदा विश्वविद्यालय में इस्लाम की शिक्षा का दबाव डाला और फिर यहां के धर्माचार्यों तथा बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवा दी। तत्पश्चात विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालय धर्मगंज को भी आग के हवाले कर दिया।
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