भोजन इतिहास

Iranian physician Hakim Humam was the The chief of Akbar's royal kitchen

अकबर की शाही रसाई का चीफ था यह ईरानी चिकित्सक

मुगल बादशाह अकबर की शाही रसोई में एक प्रमुख रसोइया, एक कोषाध्यक्ष, एक स्टोरकीपर, क्लर्क तथा स्वाद चखने वाले सहित भारत और ईरान के तकरीबन 400 से ज्यादा रसोइए कार्यरत थे। अकबर की भव्य एवं सुव्यवस्थित शाही रसोई में शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन तैयार किए जाते थे। इसके अतिरिक्त मुगल रसोई में ईरानी, अफगानी और तुर्की व्यंजन भी तैयार किए जाते थे। हिमालय से बर्फ़ मंगाई जाती थी तथा विभिन्न प्रकार के सुगंधित मसालों का इस्तेमाल होता था।

अकबर को परोसी जाने वाली सब्जियों में अच्छी सुगन्ध आए, इसके लिए किचन गार्डन को गुलाब जल से सींचा जाता था। भोजन की शुद्धता और सुरक्षा के लिए कड़े नियम बनाए गए थे। अकबर सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी भोजन करता था। चिकित्सीय दृष्टिकोण, पोषक तत्वों तथा स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अकबर के लिए तैयार किए जाने वाले भोजन को सोने, चांदी, पत्थर और मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता था।

परन्तु क्या आप जानते हैं, अकबर की शाही रसोई का चीफ कौन था? जी हां, बादशाह अकबर की शाही रसोई का मुखिया ईरानी चिकित्सक हुकीम हुमाम था, जो बादशाह के नवरत्नों में से एक था। यदि आप भी अकबर की शाही रसोई और ईरानी चिकित्सक हकीम हुमाम से जुड़ी तमाम बातें जानने को इच्छुक हैं तो यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

अकबर की शाही रसोई

मुगल बादशाह अकबर की शाही रसोई में भारत और ईरान के तकरीबन 400 से ज्यादा रसोइए कार्यरत थे, जिसमें एक प्रमुख रसोइया (मीर बकावल), एक कोषाध्यक्ष, एक स्टोरकीपर, क्लर्क सहित स्वाद चखने वाले मौजूद थे।

अकबर की शाही रसोई मीठे जलस्रोत से जुड़ी हुई थी। शाही रसोई के बिल्कुल पास ही मीठे पानी की टंकी थी, जिसमें पीने योग्य मीठे पानी को चिनाई के खंभों के ऊपर बनी जल-नलिकाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से ले जाया जाता था।

अकबर की विशाल शाही रसोई में भट्टियों और चूल्हों की एक बड़ी श्रृंखला मौजूद थी। शाही रसोई के उत्तर पूर्वी कोने में खाना पकाया जाता था। शाही रसोई के आंगन के बीचोबीच एक चबूतरा बना हुआ था, जहां से शाही रसोइए निगरानी करते थे।

शाही रसोई में तैयार भोजन और पेय पदार्थों को पहले दौलतखाना और अब्दरखाना (पेय गृह) में ले जाया जाता था, जहां परीक्षण के बाद भोजन को बादशाह के सामने सलीके से सजाकर परोसा जाता था अथवा शाही हरम में ले जाया जाता था।

भोजन करते समय मुगलों में संगीत सुनने का भी रिवाज था। अकबर के आदेश पर उसे पीने के लिए जो मीठा पानी दिया जाता था, उसमें पहले गंगाजल मिलाया जाता था। इतिहासकार डॉ. रामनाथ अपनी किताब प्राइवेट लाइफ़ ऑफ़ मुगल्समें लिखते हैं कि अक़बर ज्यादातर गंगाजल ही पीता था। वह गंगाजल को आब-ए-हयातयानि स्वर्ग का पानी कहता था।

अकबर की शाही रसोई के अधीक्षक (दारोगा) का नाम मुहम्मद बाकिर था, यह वही शख्स था जो बादशाह अकबर को दिन में तीन बार खाना खिलाता था। मुहम्मद बाकिर की यह जिम्मेदारी थी कि बादशाह के समक्ष परोसे जाने वाले भोजन को चखकर देखें कि उसमें कहीं ज़हर तो नहीं है।

अकबर की शाही रसोई के पकवान

अकबर की भव्य एवं सुव्यवस्थित शाही रसोई में शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन तैयार किए जाते थे। मुगल रसोई में ईरानी, अफगानी और तुर्की व्यंजन भी तैयार किए जाते थे। हिमालय से बर्फ़ मंगाई जाती थी एवं विभिन्न प्रकार के सुगंधित मसालों का इस्तेमाल होता था।

आईन-ए-अकबरी के अनुसार, “अकबर को परोसी जाने वाली सब्जियों में अच्छी सुगन्ध आए, इसके लिए किचन गार्डन को गुलाब जल से सींचा जाता था। भोजन की शुद्धता और सुरक्षा के लिए कड़े नियम बनाए गए थे। चिकित्सीय दृष्टिकोण, पोषक तत्वों तथा स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अकबर के लिए तैयार किए जाने वाले भोजन को सोने, चांदी, पत्थर और मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता था। अकबर की शाही रसोई में कुछ इस तरह से पकवान बनाए जाते थे जो औषधीय रूप से पचने में सहायक हों तथा स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हों।

भोजन इतिहासकार सलमा हुसैन की किताब  “द एंपायर ऑफ द ग्रेट मुगल्स : हिस्ट्री, आर्ट एंड कल्चर के अनुसार, अकबर ने गोमांस खाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। जाहिर है, उसकी शाही रसोई में इस तरह के व्यंजन नहीं बनते थे। अकबर को गोश्त में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी, वह सप्ताह में तीन दिन शाकाहारी भोजन करता था।

अकबर को संबूसा (समोसा), पालक का साग, हलीम (मांस की जगह दाल और सब्जियों का इस्तेमाल), यखनी सर्वाधिक पसन्द थे। वह घी से भरपूर साग, दाल, मौसमी सब्जियां और पु​लाव को तरजीह देता था। अकबर को पालक का साग बनाया जाता था, पालक के साग को घी, मेथी, अदरक, इलायची और लौंग के साथ पकाया जाता था।

अकबर को पंचमेल दाल भी बहुत पसन्द थी। आइन-ए-अकबरी के मुताबिक, “बादशाह अकबर की शाही रसोई में घी से भरपूर सात प्रकार की खिचड़ी तैयार की जाती थी। अकबर को खूरबूजे इतने पसन्द थे कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से उसके लिए खरबूजे मंगवाए जाते थे।

गौर करने वाली बात यह है कि अकबर ने यह फरमान जारी कर रखा था कि शाही रसोई में जो भी भोजन उसके लिए तैयार किया जा रहा है, उसमें से कुछ हिस्सा गरीबों को बंटवाया जाए।

शाही रसोई का चीफ हकीम हुमाम

अकबर के नवरत्नों में शामिल हुकीम हुमाम चिकित्सक होने के साथ-साथ कूटनीतिज्ञ, राजनयिक, काव्य-विशेषज्ञ और विज्ञानी भी था। हकीम हुमाम के संरक्षण में बने भोजन ही अकबर को सर्वाधिक पसन्द थे। बतौर उदाहरण- बादशाह अकबर ने कई बार कहा था कि हकीम हुमाम की अनुपस्थिति में भोजन का स्वाद नहीं आता।

ईरान स्थित गिलान का मूल निवासी हकीम हुमाम शिया मुसलमान था। हकीम हुमाम का असली नाम हुमायूं था। हकीम हुमाम जब अकबर की सेवा में आया तो उसने बादशाह अकबर के पिता हुमायूँ के सम्मान में खुद को हुमायूं कुली (हुमायूं का गुलाम) कहा। आगे चलकर उसने अपना नाम हकीम हुमाम रख लिया।

हकीम हुमाम को अकबर ने शाही रसोई का मीर बकावल (रसोई अधीक्षक) नियुक्त किया था। हकीम हुमाम को 600 सैनिकों का मनसब प्राप्त था। बादशाह अकबर के विश्वासपात्रों में से एक हकीम हुमाम को साल 1588 में बुखारा के सुल्तान अब्दुल्ला खान द्वितीय के पास राजदूत बनाकर भेजा गया था। मुगल इतिहासकार अबुल फजल लिखता है कि अति सुन्दर और मधुरभाषी हकीम हुमाम की मृत्यु  40  वर्ष की उम्र में दो महीने की लम्बी बीमारी के बाद तपेदिक (टीबी) से 30 अक्टूबर 1596 ई. को हो गई।

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