
दोस्तों, हम सभी जानते हैं कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द सरकार को जापान, जर्मनी, इटली, सिंगापुर, मंचूरिया, मंगोलिया, रूस, क्रोएशिया थाईलैंड, बर्मा सहित तकरीबन 11 से अधिक देशों ने मान्यता प्रदान की थी।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार के गठन की घोषणा की, जिसमें वह स्वयं राज्य प्रमुख, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री थे। इतना ही नहीं, बतौर प्रधानमंत्री सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द सरकार खुद की मुद्रा, नागरिक संहिता और डाक टिकट तक जारी कर चुकी थी।
अब आपके मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि बतौर प्रधानमंत्री सुभाषचन्द्र बोस ने कब और कहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया था? इस रोचक प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
ब्रिटिश शासन से मुक्त भारतीय क्षेत्र
साल 1943 में सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द सरकार का अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर शासन था। अभी द्वितीय विश्व युद्ध जारी था, ऐसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने जापान से साझेदारी की थी। अत: जापान ने 29 दिसंबर 1943 तक जापान ने इन द्वीप समूहों को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया था। तत्पश्चात सुभाषचन्द्र बोस ने अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को ब्रिटिश शासन से मुक्त होने वाला पहला भारतीय क्षेत्र घोषित किया।
सुभाषचन्द्र बोस ने ब्रिटिश शासन से मुक्त अंडमान द्वीप का नाम बदलकर ‘शहीद द्वीप’ और निकोबार द्वीप का नाम ‘स्वराज द्वीप’ रख दिया। इतना ही नहीं, सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द सरकार ने यहां खुद की मुद्रा, नागरिक संहिता और डाक टिकट भी जारी कर दिए। सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिंद सरकार ने जनरल लोकनाथन को यहां का गवर्नर नियुक्त किया था। वर्तमान में अण्डमान निकोबार द्वीप समूह भारत का केन्द्र शासित प्रदेश है।
सुभाषचन्द्र बोस ने पोर्टब्लेयर में फहराया था तिरंगा
यह ऐतिहासिक घटना भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से चार वर्ष पूर्व 1943 ई. की है जब 29 दिसम्बर को आजाद हिंद सरकार के राष्ट्र प्रमुख और प्रधानमंत्री सुभाष चंद्र बोस, सेक्रेटरी विद मिनिस्टर रैंक आनंद मोहन सहाय, एडीसी कैप्टन रावत और नेताजी के निजी डॉक्टर कर्नल डीएस राजू अंडमान के पोर्टब्लेयर हवाई पट्टी पर जापानी सेना के एक विमान से उतरते हैं।
पोर्टब्लेयर हवाई पट्टी पर उतरते ही जापानी सेना के एडमिरल के साथ ही उत्सुक भारतीयों और बर्मी लोगों ने इन सभी का हार्दिक स्वागत किया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस यहां तीन दिवसीय दौरे पर आए थे। इसके ठीक अगले दिन 30 दिसम्बर 1943 ई. को सुभाषचन्द्र बोस ने पोर्टब्लेयर के जिमखाना ग्राउंड (अब नेताजी स्टेडियम) पर ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र भूमि पर बतौर प्रधानमंत्री तिरंग झण्डा फहराया। पोर्टब्लेयर में तिरंगा फहराकर सुभाषचन्द्र बोस ने अपने उस वादे को पूरा किया कि “1943 ई. के अंत तक आजाद हिन्द फौज भारत की धरती पर खड़ी होगी।”
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने 30 दिसम्बर 1943 ई. को पोर्टब्लेयर के ‘फ्लैग प्वाइंट’ पर जो तिरंगा फहराया था, वो कांग्रेस समर्थित तिरंगा ही था। इस तिरंगे के बीच की सफेद पट्टी पर अशोक चक्र की जगह चरखा बना हुआ था। अंडमान के पोर्टब्लेयर में तिरंगा फहराने के बाद सुभाषचन्द्र बोस 01 जनवरी 1944 ई. को वो सिंगापुर पहुंचे। साल 1945 तक आजाद हिन्द सरकार का इस द्वीप समूह पर कब्जा बना रहा किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के हारते ही यह क्षेत्र पुन: ब्रिटेन के पास आ गया।
फ्लैग प्वाइंट के नाम से मशहूर है वह जगह
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने पोर्टब्लेयर के साउथ पॉइंट इलाके में 30 दिसम्बर 1943 ई. को जहां तिरंगा फहराया था, आज की तारीख में वह स्थान ‘फ्लैग पॉइंट’ के नाम से मशहूर है। फ्लैग पॉइंट पर 150 फुट ऊंचा ध्वज स्तंभ है, जहां भारतीय तिरंगे को गर्व से लहराते हुए देखा जा सकता है। फ्लैग प्वाइंट से समुद्र का नजारा देखते ही बनता है, वहीं से नेताजी की एक प्रतिमा भी नजर आती है। सूर्यास्त होते ही फ्लैग प्वाइंट का सम्पूर्ण इलाका जगमगाती रोशनी से नहा उठता है, जो एक जीवंत मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
पोर्टब्लेयर के सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक ‘फ्लैग पॉइंट’ पर सैलानियों का तांता लगा ही रहता है। सर्दियों और गर्मियों के महीनों में यहां का मौसम सुखद और शुष्क होता है अत: यह समय फ्लैग प्वाइंट की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। मानसून में यहां यात्रा करने से बचें क्योंकि भारी बारिश से आपकी यात्रा बाधित हो सकती है।
फ्लैग पॉइंट से थोड़ी ही दूरी पर सेल्युलर जेल है, जिसे हम सभी ‘काला पानी’ के नाम से भी जानते हैं। इसी जेल में वीर सावरकर, पंडित परमानंद, बटुकेश्वर दत्त, योगेन्द्र शुक्ला, वासुदेव बलवन्त फड़के, उल्हासकर दत्त, बीरेंद्र कुमार घोष, पृथ्वी सिंह जाद, त्रिलोक नाथ चक्रवर्ती, पुलिन दास और महावीर सिंह जैसे अनेक महान क्रांतिकारियों ने काला पानी सजा काटी थी। इसी सेल्यूलर जेल जाकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कभी बन्दी बनाए गए भारतीय क्रांतिकारियों और शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि भी व्यक्त की।
सुभाष चंद्र बोस द्वीप (पहले रॉस द्वीप)
पोर्ट ब्लेयर से लगभग 3 किलोमीटर पूर्व में स्थित सुभाष चंद्र बोस द्वीप (पहले रॉस द्वीप) मौजूद है। 200 एकड़ में फैला यह द्वीप दक्षिण अंडमान जिले का हिस्सा है। ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए विख्यात सुभाषचंद्र बोस द्वीप सैलानियों के लिए लोकप्रिय गंतव्य स्थल है। असंख्य पक्षियों वाले सुभाष चंद्र बोस द्वीप तक पहुंचने के लिए सैलानियों को पोर्टब्लेयर से फेरी लेनी पड़ती है।
सुभाष चंद्र बोस की रहस्मयी मौत
ऐसा दावा किया जाता है कि 18 अगस्त 1945 ई. को जापान के ताइपेई में हुई विमान दुर्घटना में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु हो गई। दरअसल 23 अगस्त 1945 ई. को टोक्यो रेडियो ने यह जानकारी दी कि बॉम्बर प्लेन Ki-21 ताइहोकू एयरपोर्ट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सवार सुभाषचन्द्र बोस बुरी तरह जल गए और अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
हांलाकि यह खबर आज मिथक ही मानी जाती है क्योंकि मुखर्जी आयोग ने साल 2006 में जो रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसके मुताबिक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु का कोई सबूत नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि विमान दुर्घटना एक कवर- अप था और सुभाषचन्द्र बोस उस दुर्घटना में नहीं मरे थे।
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