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History of US sanctions against India

इतिहास गवाह है, अमेरिकी प्रतिबन्धों के समक्ष कभी नहीं झुका भारत

महाशक्ति अमेरिका अपनी वैश्विक साख बनाए रखने के लिए दुनिया के तकरीबन प्रत्येक देशों पर दबाव की राजनीति करता आया है। विशेषकर दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अमेरिका ने भारत ​के विरूद्ध हमेशा पाकिस्तान को सपोर्ट किया, वहीं चीन जैसे शक्तिशाली देश के विरूद्ध भारत को खड़ा करने के पैंतरे पर वह आज भी कायम है।

वैश्विक राजनीति में शक्ति संतुलन बनाए रखने की इसी सियासी नीति के तहत भारत के विरूद्ध अमेरिका अब तक चार बार प्रतिबंध लगा चुका है। किन्तु इतिहास गवाह है, अमेरिकी प्रतिबन्धों के समक्ष भारत कभी नहीं झुका। इतना ही नहीं, प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न भारत ने आत्मनिर्भरता के दम पर अमेरिकी प्रतिबन्धों को हर बार निष्प्रभावी बनाया। इस रोचक स्टोरी में हम आपको यह बताने का प्रयास करेंगे कि भारत के विरूद्ध अमेरिका ने कब और क्यों प्रतिबन्ध लगाए?

1. अमेरिकी प्रतिबन्ध, साल 1965

साल 1960 में अमेरिका तथा भारत के बीच 4 वर्ष की अवधि के लिए पी.एल. 480 नामक एक समझौता हुआ जिसके तहत अमेरिका ने भारत को पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न भेजने का आश्वासन दिया। दुर्भाग्यवश 1964 ई. में भारत के समक्ष खाद्यान्न संकट की विकट स्थिति उत्पन्न होने पर अमेरिका ने पी.एल. 480 के तहत पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्नों की आपूर्ति की।

हांलाकि इसके ठीक एक साल बाद यानि साल 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ गई। इस युद्ध में पाकिस्तान ने अमेरिकी हथियारों का जमकर इस्तेमाल किया, बावजूद इसके भारतीय सेना ने अपनी बढ़त बरकरार रखी। तत्पश्चात अमेरिका ने दोनों देशों के बीच युद्ध बन्द नहीं करने तक भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिया। इस दौरान अमेरिका ने जहाजों में भरकर जो सामग्री भेजी थी, उसे भारतीय तट से महज 15 किमी. की दूरी से ही वापस बुला लिया।

इसके बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि भारत अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं करेगा। शास्त्रीजी ने खाद्यान्न संकट से उबरने के लिए भारतवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की। देश की जनता ने अपने इस ईमानदार प्रधानमंत्री की अपील का अक्षरश: पालन किया। श्री लाल बहादुर शास्त्री ने खाद्यान्न आयात पर निर्भरता कम करने तथा सैनिकों में उत्साह भरने के लिए जय जवान-जय किसान का नारा दिया।

2. अमेरिकी प्रतिबन्ध, साल 1974

भारत ने 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। इस परमाणु परीक्षण के बाद भारत भी शक्ति संपन्न देशों की श्रेणी में शामिल हो गया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों - चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका से इतर परमाणु परीक्षण को अंजाम देने वाला भारत पहला देश था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे 'शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट' कहा था, बावजूद इसके अमेरिका नाराज हो उठा और उसने 30 सालों के लिए भारत पर प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जिसमें परमाणु तकनीक और सामग्री के निर्यात पर रोक भी शामिल था।
हांलाकि इन अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत और मजबूत होकर उभरा। सैन्य विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी कहते हैं कि अमेरिकी प्रतिबन्धों के बाद भारत मजबूत परमाणु हथियार, बैलिस्टिक मिसाइल और नागरिक अंतरिक्ष क्षमताएं विकसित करने में आत्मनिर्भर बन गया।

3. अमेरिकी प्रतिबन्ध, साल 1998

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में भारत ने साल 1998 में राजस्थान के पोखरण में 11 मई को तीन तथा 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। इस परीक्षण के भारत परमाणु क्लब में शामिल होने वाला दुनिया का छठां देश बन गया।

मई, 1998 में हुए परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका भड़क उठा, उसने ग्लेन संशोधन के तहत भारत पर कई तरह के प्रतिबन्ध लगा दिए, जैसे- हथियारों की बिक्री पर रोक, आर्थिक सहायता और ऋण पर रोक आदि। यही नहीं, अमेरिका ने भारतीय परमाणु ऊर्जा कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। अमेरिका ने दूसरे देशों को भी उकसाया कि वे भारत के साथ व्यापार ना करें और न ही निवेश।

अमेरिका इस भ्रम में था कि इस प्रतिबन्ध से भारत अलग-थलग पड़ जाएगा और इसकी अर्थव्यवस्था टूट जाएगी। किन्तु ठीक इसके विपरीत पूरे विश्व में भारत तकनीक, नवाचार और रक्षा के क्षेत्र में शक्ति के रूप में स्थापित हुआ।

4. अमेरिकी प्रतिबन्ध, साल 2025

पाकिस्तान के विरूद्ध भारत के ऑपरेशन सिन्दूर की सफलता बाद अमेरिका ने एक बार फिर से पाकिस्तान को सपोर्ट करने की रणनीति अपनाई है। ऐसा प्रतीत होता है, अमेरिका एक बार फिर से अपने इतिहास को दुहरा रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान को आईएमएफ से न केवल आर्थिक ऋण दिलवाने में मदद की अपितु राष्ट्रप​ति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ़ आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में बैठाकर भोजन भी करवाया।

अभी हाल में ही अमेरिका और पाकिस्तान ने एक व्यापारिक समझौते की घोषणा भी की है। इस व्यापारिक समझौते के तहत अमेरिका और पाकिस्तान मिलकर एक विशाल तेल भंडार विकसित करेंगे और अक्टूबर 2025 में अमेरिका से एक मिलियन बैलर क्रूड ऑयल भी कराची पहुंचेगा। इस सौदे को पाकिस्तान की सबसे बड़ी रिफाइनरी कम्पनी ‘Cnergyico Pk’ लिमिटेड और Vitol ने अंजाम दिया है। इसके अतिरिक्त अमेरिका ने भारत के मुकाबले पाकिस्तान पर 6 फीसदी टैरिफ कम लगाया है।

वहीं दूसरी तरफ अमेरिका ने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लागू करने की घोषणा की है। दरअसल भारत द्वारा रूस से रक्षा उपकरण व तेल खरीदने तथा ईरान के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रखने से अमेरिका नाराज है। यही वजह है कि अमेरिका ने ईरान के साथ पेट्रोलियम खरीदने वाली छह भारतीय कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप का यह कदम भारत के स्वतंत्र विदेश नीति पर दबाव डालने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

हांलाकि वर्तमान मोदी सरकार अमेरिका के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाए रखने के अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है। भारत ने अमेरिका को तगड़ा झटका देते हुए कहा है कि अब वह सीधे खरीदी के बजाय संयुक्त निर्माण और विकास पर जोर देगा। 2 अगस्त 2025 को वाराणसी में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि भारत अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह से सजग है। कुल मिलाकर, अमेरिका अपने टैरिफ कार्ड पर चाहे जितनी पैंतरेबाजी कर ले, भारत किसी भी कीमत पर उसके सामने झुकने वाला नहीं है।

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