
मेवाड़ का शासक महाराणा कुम्भा (1433-1468 ई.) पराक्रमी योद्धा होने के साथ-साथ स्थापत्य प्रेमी भी था। कवि श्यामलदास अपनी कृति ‘वीर विनोद’ में लिखते हैं कि “मेवाड़ के 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग महाराणा कुम्भा ने बनवाए थे।” कुम्भा को राजस्थानी स्थापत्यकला का जनक भी कहते हैं।
हैरानी की बात यह है कि महाराणा कुम्भा एक कवि, नाटककार, टीकाकार तथा संगीताचार्य भी था। महाराणा कुंभा की एक पुत्री भी महान संगीतज्ञ थी। कुम्भा की उस पुत्री को साहित्य में ‘वागीश्वरी’ के नाम से जाना जाता है।
जी हां, महाराणा कुम्भा की उस पुत्री का नाम रमाबाई था, जिसने उदयपुर के जावर में विष्णु मंदिर एवं विशाल जलकुंड का निर्माण करवाया और आजीवन उसी जगह रही। अब आपका सोचना लाजिमी है कि महाराणा कुम्भी की पुत्री रमाबाई आजीवन जावर में ही क्यों रहीं? इस तथ्य से रूबरू होने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
महाराणा कुम्भा की पुत्री रमाबाई
महाराणा कुम्भा की तीन संतानों में से एक रमाबाई संगीतज्ञ थी। कुम्भा की पुत्री रमाबाई साहित्य में ‘वागीश्वरी’ नाम से विख्यात है। वागीश्वरी की यह उपाधि रमाबाई की संगीत निपुणता को दर्शाता है। रमाबाई का विवाह जूनागढ़ के यादव शासक मंडलीक तृतीय के साथ हुआ था।
किन्तु जब गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा ने मंडलीक तृतीय को करारी शिकस्त दी और उसे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया। तब रमाबाई गिरनार छोड़कर मेवाड़ चली आईं और जावर (उदयपुर) में ही रहने लगीं।
रमाबाई ने बनवाया विष्णु मंदिर एवं विशाल जलकुण्ड
उदयपुर के समीप जावर में मिले शिलालेख के अनुसार, जावर का प्राचीन नाम ‘योगिनी पट्टन’ था। इस प्राचीन शिलालेख के मुताबिक, जावर स्थित विष्णु मंदिर का निर्माण रमाबाई ने करवाया था। रमाबाई द्वारा निर्मित यह मंदिर वर्तमान में ‘रामस्वामी मंदिर’ अथवा ‘रामनाथ मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।
रमाबाई ने विष्णु मंदिर के पास एक विशाल जलकुंड का भी निर्माण करवाया जिसे ‘रमाकुंड’ कहा जाता है। जावर स्थित विष्णु मंदिर एवं रमाकुंड का शिल्पकार ‘ईश्वर’ नामक व्यक्ति था जो महाराणा कुम्भा के मुख्य वास्तुकार मंडन का पुत्र था।
जावर स्थित ‘विष्णु मंदिर’ की वास्तुकला
राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले से तकरीबन 30 किमी. दूर जावर नामक कस्बा विश्व की प्राचीनतम जस्ता की खान के लिए विख्यात है। जावर में महाराणा कुम्भा की पुत्री रमाबाई द्वारा निर्मित एक सुन्दर विष्णु मंदिर है और विशाल जलकुंड भी है। मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण शिलालेख के अनुसार, इस विष्णु मंदिर और जल कुंड का निर्माण तकरीबन 1479 ई. में हुआ था। रमाबाई द्वारा निर्मित जलकुंड को ‘रमाकुंड’ तथा विष्णु मंदिर को ‘रामस्वामी अथवा रामनाथ मंदिर’ कहा जाता है।
रमाबाई निर्मित यह विष्णु मंदिर नागर शैली में निर्मित है। मंदिर का गुम्बदाकार सभामंडप 32 खंभों पर टिका हुआ है। चहारदीवारी से सुरक्षित मंदिर परिसर में कुल पांच मंदिर हैं जिसके मुख्य भाग में विष्णु मंदिर और चारों कोनों पर भगवान गणेश, सूर्यदेव, महिषासुरमर्दिनी और शिव-पार्वती के चार छोटे मंदिर बने हुए हैं। मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण सुन्दर प्रतिमाएं देखते ही बनती हैं। विष्णु मंदिर के गर्भगृह में वामन अवतार स्थापित है तथा मंदिर के सामने बनी छतरी में भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ जी की प्रतिमा विराजित है।
जावर स्थित विष्णु मंदिर में एक काले पत्थर का शिलालेख भी मिला है, जो संरक्षण के आभाव में शीर्णशीर्ण में अवस्था में है। संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण इस शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि जावर स्थित रामस्वामी मंदिर (विष्णु मंदिर) एवं जलकुंड (रमाकुंड) का निर्माण महाराणा कुम्भा की पुत्री रमा बाई ने करवाया था, जो आजीवन जावर में ही रहीं।
इसे भी पढ़ें : 22 उपाधियों वाला यह महायोद्धा 32 दुर्गों का निर्माता भी था, इसे जानते हैं आप?
इसे भी पढ़ें : राजस्थानी गौरव की प्रतीक 'रूठी रानी' उमादे का रोचक इतिहास