
मुगलकालीन इतिहासकार अब्दुल कादिर बंदायूनी ने राजपूताना राज्य मारवाड़ के शासक राव मालदेव (1532-1562 ई.) को ‘भारत का महान पुरुषार्थी राजकुमार’ तथा इतिहासकार फरिश्ता ने राव मालदेव को ‘हिन्दुस्तान का सबसे शक्तिशाली राजा’ कहकर सम्बोधित किया है। जबकि मुगल इतिहासकार अबुल फजल ने भी “राव मालदेव को भारत के शक्तिशाली राजाओं में से एक बताया है।”
इतिहासकार याहिया बिन अहमद सरहिन्दी अपनी कृति ‘तारीख-ए-शेरशाही’ में लिखता है कि “राव मालदेव के खिलाफ सुमेल के युद्ध में हिन्दुस्तान का ताकतवर शासक शेरशाह सूरी हारते-हारते जीता था।” युद्ध जीतने के बाद शेरशाह सूरी के मुंह से अकस्मात ही निकल गया कि “मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।”
मारवाड़ के शक्तिशाली राजा राव मालदेव की 25 रानियां और 12 पुत्र थे। इन्हीं रानियों में से एक उमादे भटियाणी मारवाड़ के राजा राव मालदेव की दूसरी पत्नी थी, जो राजपूताना इतिहास में ‘रूठी रानी’ के नाम से विख्यात हैं। नशे में धुत राव मालदेव ने अपनी सुहागरात रानी उमादे की जगह उनकी अत्यंत खूबसूरत दासी के साथ बिताई थी।
फिर क्या था, सुबह जब इस बात का पता रानी उमादे को चला तो शादी होने के बाद वे कभी भी मालदेव के पास नहीं गईं। हांलाकि राव मालदेव की मृत्यु के पश्चात ‘रूठी रानी’ उमादे उसकी पगड़ी के साथ महासती हो गई। ‘रूठी रानी’ उमादे के इस महान कृत्य ने उन्हें राजस्थानी लोककथाओं में गौरव एवं सम्मान का प्रतीक बना दिया। जाहिर है, इतना कुछ जानने के बाद अब आप भी रूठी रानी उमादे का गौरवपूर्ण इतिहास जानने को उत्सुक होंगे, ऐसे में यह ऐतिहासिक स्टोरी जरूर पढ़ें।
कौन थी रानी उमादे
जैसलमेर के राजा लूणकरण भाटी की पुत्री राजकुमारी उमादे को राजपूताना इतिहास में ‘रूठी रानी’ के नाम से जाना जाता है। जैसलमेर के भाटी राजपूत वंश की राजकुमारी उमादे पूरा नाम उमादे भटियाणी था, जो मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह की पत्नी धीर बाई भटियाणी की बहन थीं।
राव मालदेव ने साम्राज्य विस्तार के तहत जब जैसलमेर पर आक्रमण करना चाहा तब लूणकरण भाटी ने साल 1536 में 30 मार्च को अपनी खूबसूरत एवं स्वाभिमानी पुत्री उमादे की शादी राव मालदेव से कर दी। इस प्रकार जैसलमेर के राजा लूणकरण भाटी ने स्वयं को मालदेव के विकट आक्रमण से बचा लिया।
रूठी रानी उमादे
भाटों व ख्यातों के अनुसार, विवाह के पश्चात रानी उमादे के साथ दहेज में कई दासियां भी आई थीं, इन्हीं में से एक बेहद खूबसूरत दासी का नाम था भारमली। सुहागरात के दिन रानी उमादे ने अपनी अत्यंत सुन्दर दासी भारमली को राव मालदेव को बुलाने के लिए भेजा। उस रात राव मालदेव नशे में धुत था, दासी भारमली भी अत्यधिक खूबसूरत थी। अत: राव मालदेव ने अपनी सुहागरात दासी भारमली के साथ ही बिताई।
सुबह जब इस बात की जानकारी रानी उमादे को हुई तो वह सर्वदा के लिए राव मालदेव से नफरत करने लगी और किसी भी प्रकार का वैवाहिक संबंध रखने से इनकार कर दिया। वहीं राव मालदेव भी रानी उमादे के साथ दुर्व्यहार करने लगा। ऐसे में जैसलमेर के राजा लूणकरण को इस बात की जानकारी मिली तो वह राव मालदेव की हत्या करवाने का षड्यंत्र रचने लगा।
अत: लूणकरण भाटी की पत्नी ने अपने पुरोहित राघव देव के जरिए राव मालदेव को इस षड्यंत्र से अवगत करवाया। हांलाकि इस सूचना ने आग में घी का काम किया। राव मालदेव ने रानी उमादे को उसी वक्त अजमेर के तारागढ़ दुर्ग में भेज दिया। इस प्रकार रानी उमादे अजमेर के तारागढ़ फोर्ट में रहने लगी, जिसे इतिहास में ‘बीठली दुर्ग’ भी कहा जाता है। राव मालदेव ने ‘रूठी रानी’ उमादे के लिए तारागढ़ दुर्ग में रहट का भी निर्माण करवाया था। जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर अधिकार कर लिया तब राव मालदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ। ऐसे में उसने अपनी भूल सुधारने के उद्देश्य से रानी उम्मादे को मनाने के लिए अपने दरबारी कवि ईश्वरदास बारहठ को भेजा।
रूठी रानी उमादे का आत्मसम्मान
रूठी रानी उमादे पहले तो राव मालदेव के पास जाने को तैयार नहीं थीं, किन्तु कवि ईश्वरदास बारहठ ने जब रानी उमादे को यह विश्वास दिलाया कि मारवाड़ जाने के बाद आप राव मालदेव की पटरानी होंगी और आपका पुत्र ही मारवाड़ का उत्तराधिकारी होगा। इस प्रकार काफी समझाने के बाद रानी उमादे मारवाड़ चलने को तैयार हो गईं। इसका पता जब अन्य रानियों को चला तब उन्होंने आसा बारहठ को रानी उमादे के पास भेजकर मारवाड़ नहीं पहुंचने का षड्यंत्र रचा। आसा बारहट ने जोधपुर के निकट कोसाना गांव के पास रानी उमादे को एक दोहा सुनाया, जो इस प्रकार है —
"मान रखे तो पीव तज, पीव रखे तज मान। दो दो गयंद न बंधही, एकण खम्भे ठांण।।"
अर्थात— मान रखना है तो पति को त्याग दो और पति रखना है तो मान को त्याग दो, लेकिन दो हाथियों को एक ही स्थान पर बांधा जाना असम्भव है।
उपरोक्त दोहे को सुनते ही रानी उमादे का आत्मसम्मान जाग उठा और उन्होंने मारवाड़ जाने से इन्कार कर दिया। साथ ही रानी उमादे ने यह प्रण लिया कि वह आजीवन राव मालदेव का चेहरा नहीं देखेंगी। रानी उमादे अजमेर के तारागढ़ दुर्ग के निकट महल में रहना शुरू किया और ‘रूठी रानी’ के नाम प्रसिद्ध हुईं।
चूंकि अजमेर पर अफगानी शासक शेरशाह सूरी के आक्रमण की प्रबल संभावना थी, ऐसे में ‘रूठी रानी’ वहां से कोसाना चली गईं। बता दें कि राव मालदेव अपनी झाला रानी स्वरूप दे के प्रति अधिक आसक्त था, अत: उसी के कहने पर राव मालदेव ने कुंवर रामदेव को राज्य से निकाल दिया था। तत्पश्चात रामदेव मारवाड़ छोड़कर मेवाड़ रियासत के केलवा में जाकर रहने लगा था। ऐसे में गूंरोज में कुछ समय रहने के बाद रूठी रानी उमादे अपने दत्तक पुत्र रामसिंह के साथ राजसमन्द के केलवा (रानी उमादे का ननिहाल) में निवास किया।
रूठी रानी के महासती होने का प्रसंग
7 नवम्बर, 1562 ई. को राव मालदेव की मृत्यु हो गई। राव मालदेव के निधन का समाचार सुनने के बाद रानी उमादे ने सोलह श्रृंगार कर गंगाजल से स्नान किया। तत्पश्चात राजसी वस्त्र पहनकर घोड़े पर सवार हुईं और अपनी शिरोभूषण चोटी और बालों को खोल अग्नि को प्रदक्षिणा करने के पश्चात 10 नवम्बर 1562 ई. को राव मालदेव की पगड़ी के साथ महासती हो गईं। मेवाड़ के केलवा में रूठी रानी की छतरी बनी हुई है। इस प्रकार रानी उमादे का राव मालदेव से रूठना हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो गया।
हांलाकि कुछ इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि “मारवाड़ के शक्तिशाली मालदेव का खूबसूरत दासी के साथ सुहागरात मनाने की वजह से नहीं अपितु राव मालदेव साथ के तनावपूर्ण सम्बन्धों के चलते रानी उमादे आजीवन रूठी रहीं।”
राजपूताना की अन्य रूठी रानियां
- 12वीं सदी में चौहान शासक पृथ्वीराज द्वितीय की रूठी रानी का नाम था ‘सुहाव देवी’ जो मेवाड़ के मेनाल स्थित महल में रहने लगीं। उन्होंने सुहावेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण भी करवाया।
- मेवाड़ के जयसमंद इलाके में ढेबर झील के पास मौजूद हवा महल को रूठी रानी का महल कहा जाता है, यह महल मेवाड़ के शासक जय सिंह की रूठी रानी ‘कोमला देवी परमार’ का निवास स्थल था।
- एक अन्य रूठी रानी का महल गुजरात के ईडर गढ़ में भी है।
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