वीर नरसिंह विजयनगर के तृतीय राजवंश ‘तुलुव वंश’ का संस्थापक था। साल 1505 में वीर नरसिंह ने सालुव वंश के नरेश इम्माडि नरसिंह की हत्या करके स्वयं विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया। इसीलिए वीर नरसिंह को विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में ‘द्वितीय बलापहार’ की संज्ञा दी गई है।
वीर नरसिंह ने अपनी घुड़सवार सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए पुर्तगाली गवर्नर अल्मीडा से पुर्तगालियों द्वारा लाए गए सभी घोड़ों को खरीदने के लिए एक समझौता किया। वीर नरसिंह ने ‘विवाह कर’ को हटाकर एक उदार नीति को आरम्भ किया।
वीर नरसिंह अपने शासन के चार वर्षों में आंतरिक विद्रोहों तथा बहमनी राज्य के आक्रमणों का सामना करता रहा। पुर्तगाली यात्री नूनिज लिखता है कि “वीर नरसिंह एक ‘धार्मिक राजा’ था जो पवित्र स्थानों पर दान किया करता था।” वीर नरसिंह की मृत्यु 1509 ई. में हुई, इसके बाद उसका छोटा भाई कृष्णदेव राय शासक बना।
कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.)
वीर नरसिंह की मौत के बाद उसका छोटा भाई कृष्णदेव राय 8 अगस्त 1509 ई. को विजयनगर के राजसिंहासन पर बैठा। कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य तथा भारत के महानतम शासकों में से एक था। कृष्णदेव राय ने सर्वप्रथम अनेक सामन्तों का दमन किया। साल 1509-10 में बीदर के सुल्तान महमूद शाह ने बीजापुर के आदिलशाह के साथ मिलकर विजयनगर पर आक्रमण किया, किन्तु ‘अदोनी’ के समीप पराजित हो गया, इस युद्ध में युसूफ आदिलशाह भी मारा गया।
1512 ई. में कृष्णदेव राय ने बीजापुर को परास्त कर सम्पूर्ण रायचूर दोआब को जीत लिया तथा रायचूर को विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया। 1513-1518 ई. के बीच कृष्णदेव राय ने उड़ीसा के गजपति शासक प्रताप रूद्रदेव से कम से कम चार बार युद्ध किया और हर बार उसे पराजित किया। उसने गजपति शासक से उदयगिरि दुर्ग जीता।
कृष्णदेव राय की अंतिम महान सफलता 19 मार्च 1520 ई. को रायपुर के निकट इस्माइल आदिलशाह पर विजय थी। उसने आदिलशाह को परास्त कर गुलबर्गा के प्रसिद्ध किले को ध्वस्त कर दिया। कृष्णदेव राय ने गुलबर्गा व बीदर पर आक्रमण कर बहमनी सुल्तान महमूद शाह को कारागार से मुक्त करवाकर उसे बीदर की राजगद्दी पर बैठाया। इस उपलब्धि की स्मृति में कृष्णदेव राय ने ‘यवनराज स्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की।
कृष्णदेव राय के पुर्तगालियों से अच्छे सम्बन्ध थे, दरअसल अरब और फारस से होने वाले घोड़ों के व्यापार पर पुर्तगालियों का एकाधिकार था और एक सन्धि के तहत पुर्तगाली केवल विजयनगर को ही घोड़ों की आपूर्ति करते थे। इसके साथ ही विजयनगर की भांति पुर्तगालियों की भी बहमनी साम्राज्य से शत्रुता थी।
साल 1510 में पुर्तगाली शासक अलबुकर्क ने फादर लुई के. नेतृत्व में एक व्यापारिक व दूत मिशन विजयनगर भेजा। कृष्णदेव राय ने इस पुर्तगाली मिशन को भटकल में एक दुर्ग निर्माण करने की अनुमति प्रदान की, केवल इस शर्त पर कि वे गोवा को मुसलमानों से छीन लेंगे।
एक बार दक्कन के कई सुल्तानों मलिक अहमद बाहरी, नूरी खान ख्वाजा-ए-जहां, आदिलशाह, कुतुब-उल-मुल्क, तमादुल-मुल्क, दस्तूरी ममालिक, मिर्जा लुत्फुल्लाह ने मिलकर कृष्णदेव राय पर आक्रमण कर दिया। ‘दीवानी’ नामक स्थान पर युद्ध हुआ, किन्तु इस युद्ध में दक्कन के सुल्तानों को बुरी हार का सामना करना पड़ा। हांलाकि इन सुल्तानों को नष्ट नहीं करना विजयनगर साम्राज्य के लिए महंगा पड़ा। साल 1565 में ‘तालीकोटा के युद्ध’ में मुस्लिम सुल्तान फिर से एकत्र हुए और इस राज्य का सर्वनाश कर दिया।
कृष्णदेव राय के साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में दक्षिण कोंकण तक, पूर्व में विजयपट्टनम तक तथा दक्षिण में प्रायद्वीप की सुदूरवर्ती सीमा तक हो गया। कृष्णदेव राय की दो रानियां थीं — तिम्मला देवी और चिन्ता देवी। कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 ई. में हुई।
कृष्णदेव राय कृत ग्रन्थ - 1. अमुक्तमाल्यद (तेलुगू राजनीति पर आधारित पुस्तक), 2. जाम्बवती कल्याणम् (संस्कृत नाटक), 3. उषा परिणय।
अमुक्तमल्याद के अनुसार, “राजा को तालाबों एवं सिंचाई के अन्य साधनों एवं कल्याणकारी कार्यों द्वारा प्रजा को सन्तुष्ट रखना चाहिए। राजा को कभी भी धर्म की अवहेलना नहीं करनी चाहिए।” कृष्णदेव राय का शासनकाल तेलुगू साहित्य में शास्त्रीय युग माना जाता है। जबकि तुलुव राजवंश को ‘तेलुगु साहित्य का स्वर्ण काल’ माना जाता है।
कृष्णदेव राय के ‘अष्टदिग्गज’
कृष्णदेव राय के दरबार में तेलुगू के आठ महान विद्वान थे, जिन्हें ‘अष्टदिग्गज’ कहा जाता था। अष्टदिग्गज कवियों में ‘अल्लासानी पेड्डाना’ सर्वप्रमुख था। अल्लासानि पेड्डाना की मुख्य कृतियां हैं — मनुचरित, स्वरोचित सम्भव तथा हरिकथा सार। संस्कृत तथा तेलुगू भाषा के ज्ञाता पेड्डाना को ‘आन्ध्र कविता का पितामह’ कहा जाता है।
अष्टदिग्गज कवियों में नन्दी तिम्मन, भट्टमूर्ति, धूर्जटि, मल्लन, रामचन्द्र, पिंगली सूरन्न तथा तेनालीराम थे। नन्दी तिम्मन ने ‘पारिजातहरण’ की रचना की थी। भट्टमूर्ति ने अलंकार शास्त्र की पुस्तक ‘नरसभूपालियम’ तथा धूर्जटि ने ‘कालहस्ती महात्म्य’ की रचना। जबकि मादय्यगिरि मल्लन ने ‘राजशेखरचरित’ तथा रामचन्द्र ने ‘सफलकथा सारसंग्रह’ एवं ‘रामाभ्युदयम’ की रचना कर कृष्णदेव से सम्मान प्राप्त किया। पिंगली सूरन्न ने ‘राघव पाण्डवीय’ की रचना की। वहीं, तेनालीराम रामकृष्ण ने ‘पाण्डुरंग महात्म्य’ लिखा था।
कृष्णदेव राय को महान विद्वान होने के कारण ‘अभिनव भोज’ तथा ‘आन्ध्र भोज’ व ‘आन्ध्र पितामह’ भी कहा जाता था। कृष्णदेव राय ने अनेक मंदिरों, मण्डपों, गोपुरम, तालाबों आदि का निर्माण करवाया। उसने अपनी राजधानी विजयनगर के निकट अपनी मां नागलादेवी की स्मृति में नागलपुर नामक नगर की स्थापना की। कृष्णदेव राय ने हजारा मंदिर (राम को समर्पित) तथा विट्ठलस्वामी के मंदिर बनवाए। कृष्णदेव राय की वैष्णव धर्म में आस्था थी किन्तु वह अन्य धर्मों के प्रति भी उदार था।
कृष्णदेव राय ने ‘विवाह कर’ जैसे अलोकप्रिय करों को हटा दिया। उसने भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण करवाया तथा ‘कर’ निर्धारित किया। कृष्णदेव राय के राजगुरु का नाम व्यास राज था। मुगल बादशाह बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ (तुजुक-ए-बाबरी) में कृष्णदेव राय को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया। कृष्णदेव राय के शासनकाल में पुर्तगाली यात्री डेमिंगो पायस तथ डुआर्ट बारबोसा विजयनगर आए।
पुर्तगाली यात्री डेमिंगो पायस कुछ समय तक कृष्णदेव राय के दरबार में भी रहा। डेमिंगो पायस ने कृष्णदेव राय तथा विजयनगर साम्राज्य के बारे में कुछ इस प्रकार लिखा है— “कृष्णदेव राय अत्यधिक विद्वान तथा सर्वगुण सम्पन्न नरेश है, उसके जैसा शायद ही कोई अन्य हो सके। वह एक महान शासक और अत्यन्त न्याय प्रिय व्यक्ति है।” पायस विजयनगर की प्रशंसा में लिखता है कि “इसके बाजारों में विश्व की ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो न बिकती हो। आकार में यह रोम के समान विशाल एवं सुविस्तृत है।”
अच्युतदेव राय (1530-1542 ई.)
कृष्णदेव राय ने अपनी मृत्यु से पहले अच्युदेव राय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। हांलाकि अच्युतराय एक दुर्बल शासक सिद्ध हुआ। उसने कृष्णदेव राय के जामाता रामराय के साथ संयुक्त शासन किया। अच्युदेव राय के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य की वास्तविक शक्ति तिरूमाल नामक दो भाईयों के हाथों में थी जो अच्युत राय के साले थे।
अच्युदेव राय के शासनकाल में पुर्तगालियों ने तूतीकोरम के मोती क्षेत्र पर विजय प्राप्त किया था। अच्युदेव राय के शासनकाल में पुर्तगाली यात्री नूनिज ने यात्रा की। अच्युदेव राय ने महामण्डलेश्वर नामक नए अधिकारी की नियुक्ति की।
सदाशिव राय (1542-1565 ई.)
सदाशिव राय तुलुव वंश का अंतिम शासक था। यह अयोग्य एवं कठपुतली शासक था। सदाशिव राय अपने मंत्री रामराय के हाथों की कठपुतली मात्र था, जो राज्य का वास्तविक शासक था। विजयनगर की सेना के उद्दंड आचरण ने विजयनगर के प्रति दक्कन की सल्तनतों के चिरकालीन किन्तु धीरे-धीरे सुलग रहे विरोध को प्रज्जवलित कर दिया। रामराय ने विजयनगर की सेना में बहुत बड़ी संख्या में मुसलमानों की भर्ती शुरू की।
सदाशिव राय ने दक्कन के सुल्तानों के झगड़े में सक्रिय हस्तक्षेप किया। साल 1558 में रामराय ने बीजापुर व गोलकुण्डा के साथ मिलकर अहमदनगर को लूटा। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप बरार को छोड़कर चार बहमनी राज्यों- बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर और बीदर ने विजयनगर के विरूद्ध एक संयुक्त संघ बनाया। गोलकुण्डा से शत्रुता के कारण बरार इस संघ में शामिल नहीं हुआ।
बहमनी साम्राज्य के इस संयुक्त संघ ने 23 जनवरी 1565 ई. को तालीकोटा (राक्षस तगड़ी या बन्नीहट्टी) के युद्ध में विजयनगर की सेना को बुरी तरह पराजित किया। विजयनगर की सेना का नेतृत्व 70 वर्षीय रामराय ने किया जिसे युद्ध के मैदान में हुसैन निजामशाह ने अपने हाथों से मारा।
बन्नीहटी या तालीकोटा के युद्ध को सामान्य रूप से विजयनगर साम्राज्य के शानदार युग का अन्त माना जाता है। तालीकोटा युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी आर.सेवेल अपनी किताब ‘ए फॉरगोटेन एम्पायर’ में लिखता है कि “संसार के इतिहास में कभी भी इतने वैभवशाली नगर का इस प्रकार सर्वनाश नहीं किया गया जैसा कि विजयनगर का।”
बावजूद इसके रामराय के भाई तिरूमाल ने वैनुगोंडा को अपनी राजधानी बनाकर विजयनगर के अस्तित्व को बनाए रखा। साल 1570 में उसने सदाशिव को हटाकर अरविडु वंश के शासन की नींव डाली।
तुलुव वंश से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
— तुलुव राजवंश ने विजयनगर साम्राज्य पर शासन किया — 1505 से 1565 ई. तक।
— तुलुव वंश का संस्थापक — वीर नरसिंह।
— तुलुव वंश के संस्थापक वीर नरसिंह का शासनकाल — 1505 से 1509 ई. तक।
— राजा कृष्णदेव राय का शासनकाल — 1509 से 1529 ई. तक।
— बीजापुर के सुल्तान युसूफ आदिलशाह को 1512 ई. में परास्त कर रायूचर दोआब पर कब्जा किया था — कृष्णदेव राय ने।
— पुर्तगाली गवर्नर अल्बुकर्क को भटकल में किला बनाने की अनुमति दी थी — कृष्णदेव राय ने।
— पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पायस एवं बोरबोसा विजयनगर आए थे — कृष्णदेव राय के समय।
— तुलुगू ग्रन्थ अमुक्तमाल्यद, जाम्बवती कल्याणम् (संस्कृत नाटक) व उषा परिणय किसने लिखा था — कृष्णदेव राय ने।
— कृष्णदेव राय के आठ सर्वश्रेष्ठ दरबारी कवियों को कहा जाता था — अष्टदिग्गज।
— तेलगू कविता का पितामह कहा जाता था — अल्लसीन पेड्डाना।
— मनुचरित, स्वरोचित सम्भव तथा हरिकथा सार नामक ग्रन्थों को लिखा था — अल्लासानि पेड्डाना।
— पारिजातहरण नामक ग्रन्थ लिखा था — नन्दी तिम्मन ने।
— अलंकार शास्त्र से संबंधित शास्त्र नरसभूयालियम लिखा था — कवि भट्टमूर्ति ने।
— राजशेखरचरित लिखा था — कवि मल्लन ने।
— पाण्डुरंग महात्म्य नामक ग्रन्थ लिखा था — तेनालीराम रामकृष्ण ने।
— आन्ध्र पितामह, आन्ध्रभोज एवं अभिनवभोज की उपाधि धारण की थी — कृष्णदेव राय ने।
— हजारा एवं बिटठल स्वामी मंदिर बनवाया था — कृष्णदेव राय ने।
— अच्युदेव राय का शासनकाल — 1529 से 1542 ई. तक।
— तुलुव वंश के अंतिम शासक सदाशिव राय का शासनकाल — 1542 से 1572 ई. तक।
— विजयनगर में शिक्षा को सर्वाधिक प्रोत्साहन दिया था — तुलुव वंश के शासकों ने।
— विजयनगर साम्राज्य में शिक्षा के मुख्य केन्द्र थे — मंदिर, मठ एवं अग्रहार।
— दक्षिण भारत का वह साम्राज्य जहां स्त्री अंगरक्षक रखे जाते थे — विजयनगर।
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