महाराणा प्रताप का वह पुत्र जो उन्हीं की तरह शक्तिशाली था किन्तु अपने पिता की यशगाथा एवं प्रबल व्यक्तित्व के सम्मुख उसकी छवि को इतिहासकार थोड़ा कमतर आंकते हैं। जी हां, मैं महाराणा प्रताप के सुपुत्र महाराणा अमर सिंह की बात कर रहा हूं, जिनके अद्भुत शौर्य का लोहा मुगल भी मानते थे।
आपको यह तथ्य जानकर हैरानी होगी कि साल 1597 में महाराणा प्रताप के निधन के पश्चात मुगल बादशाह अकबर ने अपनी सबसे लाडली बेटी की शादी महाराणा अमर सिंह से कर दी। अब आपका यह सोचना लाजिमी है कि आखिर में मुगल बादशाह अकबर ने अपने सबसे बड़े दुश्मन महाराणा प्रताप के बेटे से अपनी पुत्री की शादी क्यों की?
कौन थी वह मुगल शहजादी जिससे महाराणा अमर सिंह विवाह करने को राजी हुए? इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

मेवाड़ के शासक महाराणा अमर सिंह
महाराणा प्रताप की प्रिय रानी अजब दे पंवार के गर्भ से 16 मार्च 1559 ई. को एक पुत्ररत्न का जन्म हुआ, जिसे हम सभी महाराणा अमर सिंह के नाम से जानते हैं। साल 1597 में 19 जनवरी को महाराणा प्रताप की चावंड में मृत्यु के पश्चात उनके सुपुत्र महाराणा अमर सिंह मेवाड़ के शासक बने।
महाराणा अमर सिंह का राज्याभिषेक चावंड में ही हुआ था। महाराणा अमर सिंह को भी अपने पिता महाराणा प्रताप की तरह शक्तिशाली मुगल आक्रमणों का सामना करना पड़ा।
अकबर के विरूद्ध अमर सिंह का अद्भुत शौर्य प्रदर्शन
1.दिवेर का युद्ध
हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने दिवेर के युद्ध में मुगलों को करारी शिकस्त दी थी। इतिहासकारों के अनुसार, दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप के पुत्र महाराणा अमर सिंह ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था। महाराणा प्रताप ने अक्टूबर, 1582 में राजपूती सेना और अपने पुत्र अमर सिंह के साथ मिलकर दिवेर पर बेहद भयंकर आक्रमण किया था।
उस समय दिवेर का किलेदार व अकबर की सेना का सेनापति काका सेरिमा सुल्तान खान था। सुल्तान खान पहले हाथी पर सवार था, किन्तु जब महाराणा प्रताप ने अपने भाले से प्रहार किया तब वह घोड़े पर सवार हो गया।

युद्ध के दौरान अमर सिंह ने अपने भाले से सुल्तान खान पर इतना जबरदस्त प्रहार किया जो उसके शरीर तथा घोड़े को चीरते हुए जमीन में धंस गया। सुल्तान खान के बुत को देखकर मुगल सेना में भगदड़ मच गई। मेवाड़ी राजपूतों ने मुगल सेना को अजमेर तक खदेड़ दिया था।
महाराणा प्रताप के कहने पर अमर सिंह ने सुल्तान खान के शरीर से वह भाला निकाला था। महाराणा प्रताप व उनके पुत्र अमर सिंह ने दिवेर युद्ध के पश्चात एक ही दिन में 36 मुगल चौकियों पर अधिकार कर लिया था। दिवेर के युद्ध को ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने ‘मेवाड़ का मैराथन’ की संज्ञा दी है।
2. ऊँठाला का युद्ध
महाराणा अमर सिंह द्वारा मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठने दो साल बाद यानि कि 1599 ई. में मुगल बादशाह अकबर के आदेश पर सलीम (जहांगीर) ने उदयपुर पर आक्रमण किया। उदयपुर से 39 किलोमीटर पूर्व में स्थित ऊँठाला नामक स्थान पर मेवाड़ी व मुगल सेना के मध्य जमकर युद्ध हुआ।
ऊँठाला दुर्ग मुगलों का महत्वपूर्ण किला था, मजबूत परकोटे से युक्त ऊँठाला दुर्ग के चारों ओर नदी बहती है, जिससे यह किला बेहद दुर्गम था। ऊँठाला दुर्ग का किलेदार कायम खान था। महाराणा अमर सिंह के नेतृत्व में लड़े गए ऊँठाला युद्ध में मुगल सेना को करारी शिकस्त मिली और मुगल राजकुमार सलीम (जहांगीर) दिल्ली वापस लौट गया। हांलाकि इस युद्ध में महाराज शक्ति सिंह के पुत्र बल्लू सिंह शक्तावत और रावत कृष्णदास चूंडावत के पुत्र जैत सिंह चूंडावत वीरगति को प्राप्त हुए थे।
अकबर की पुत्री से अमर सिंह का विवाह
महाराणा प्रताप और उनके यशस्वी पुत्र महाराणा अमर सिंह के विरूद्ध लम्बे युद्ध अभियान के बावजूद मेवाड़ पर जीत हासिल नहीं कर पाने के कारण मुगल बादशाह अकबर ने मुगल-मेवाड़ संघर्ष को समाप्त करने तथा एक राजनीतिक गठबन्धन स्थापित करने का निर्णय लिया। इसके लिए बादशाह अकबर ने अपनी सबसे लाडली बेटी खानम बेगम (खानुम) की शादी का प्रस्ताव महाराण अमर सिंह के समक्ष रखा। अकबर की शाही उपपत्नी से जन्मी खानम बेगम का पालन-पोषण उसकी दादी हमीदा बानू बेगम ने किया था।
इस प्रकार मेवाड़ के शासक महाराणा अमर सिंह ने अकबर की बेटी शहजादी खानम बेगम से शादी कर ली। खानम बेगम उम्र में महाराणा अमर सिंह से दस साल छोटी थी। अकबर ने अपनी पुत्री खानम बेगम के साथ अमर सिंह का विवाह करके मुगल-राजपूत संबंधों में शांति और राजनीतिक स्थिरता लाने का महत्वपूर्ण प्रयास किया। मुगल राजकुमारी खानम बेगम और अमर सिंह का विवाह दुर्लभ विवाहों में से एक था।
अकबर की मृत्यु के पश्चात अमर सिंह की स्थिति
साल 1605 ई. में अकबर की मृत्यु के पश्चात सलीम यानि कि जहांगीर मुगल गद्दी पर बैठा। मुगल बादशाह बनते ही अमर सिंह से युद्ध हारे जहांगीर ने मेवाड़ में गहरी रूचि लेनी शुरू कर दी। जहांगीर ने 1605 ई. में ही अपने दूसरे पुत्र परवेज को मेवाड़ पर आक्रमण करने हेतु भेजा।
देबारी के पास परवेज और महाराणा अमर सिंह की शाही सेना के मध्य अनिर्णायक युद्ध हुआ। तत्पश्चात 1608 ई. में एक बार फिर से जहांगीर ने महावत खां को मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा किन्तु महावत खां भी असफल रहा।
इसके बाद 1613 ई. में जहांगीर स्वयं दिल्ली से अजमेर पहुंचा। अजमेर पहुंचकर उसने अपने पुत्र खुर्रम (शाहजहां) और सेनापति अब्दुल रहीम खान खाना को एक विशाल सेना के साथ मेवाड़ की तरफ रवाना किया।
जहांगीर ने आदेश दे रखा था कि मेवाड़ के खेत-खलिहानों को जलाकर राख कर दो। इसके साथ ही जो भी व्यक्ति दिखे उसका कत्लेआम कर दो। फिर क्या था, मेवाड़ पहुंचते ही मुगल सेना ने यह कुकृत्य करना शुरू कर दिया। मुगलों ने मेवाड़ की स्त्रियों व बच्चों को गुलाम बनाकर बेचना शुरू कर दिया। मुगल सेना के इस कुकृत्य से मेवाड़ की जनता कराह उठी।
यह सब देखकर राजकुमार कर्ण सिंह व मेवाड़ी सरदार महाराणा अमर सिंह के पास पहुंचे और मुगलों से सन्धि करने को कहा। इसके बाद विवश होकर महाराणा अमर सिंह ने 5 फरवरी 1615 ई. को मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। ध्यान रहे, महाराणा अमर सिंह मुगलों की अधीनता स्वीकार करने वाले पहले शासक बने।
इस संधि के पश्चात महाराणा अमर सिंह बेहद दुखी रहने लगे। उन्होंने अपना राजपाट कर्ण सिंह के हवाले कर दिया और राजसमन्द झील के किनारे कुटिया बनाकर वैरागी जीवन व्यतीत करने लगे तत्पश्चात 26 जून 1620 ई. को अपना प्राण त्याग दिया। मेवाड़ के महाराणाओं के श्मशान स्थल आहड़ में महाराणा अमर सिंह का दाह-संस्कार किया गया, जहां अमर सिंह की छतरी बनी हुई है।
