भारत का इतिहास

Post-Mauryan period: detailed study of the Shunga and Kanva dynasties

मौर्योत्तर काल : शुंग एवं कण्व राजवंश का विस्तृत अध्ययन

मौर्य वंश के अंतिम सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर सेनापति पुष्यमित्र ने 184 ईसा पूर्व में शुंग राजवंश की नींव डाली। हर्षचरित में बृहद्रथ को प्रज्ञा दुर्बल (दुर्बुद्धि) कहा गया है। पाणिनी ने अपनी कृति अष्टाध्यायी में शुंगों को भारद्वाज वंश का ब्राह्मण बताया है।

पुराण एवं तिब्बती लेखक तारानाथ भी शुंगों को ब्राह्मण मानते हैं। बौद्धायन श्रौतसूत्र से जानकारी मिलती है कि शुंग वंश के शासक बैम्बिक कश्यप गोत्र के ब्राह्मण थे। हांलाकि शुंग वंश की उत्पत्ति के विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती है। सम्भवत: शुंग उज्जैन प्रदेश के थे, जहां इनके पूर्वज मौर्यों की सेवा में थे।

शुंग वंश की समाप्ति के बाद राजा वसुदेव ने कण्व वंश की स्थापना की। इस पूरे काल को मौर्योत्तर काल कहा जाता है। मौर्योत्तर काल की अवधि 184 ईसा पूर्व से 30 ईसा पूर्व तक है। कण्व वंश का अंतिम शासक सुशर्मा था।

शुंग कालीन इतिहास जानने के स्रोत

1. साहित्यिक स्रोत - पुराण, बाणभट्ट कृत हर्षचरित, पतंजलि का महाभाष्य, गार्गी संहिता, कालिदास कृत मालविकाग्निमित्र, जैन लेखक मेरूतुंग कृत थेरावली, हरिवंश तथा बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान।

2. पुरा​तात्विक स्रोत - अयोध्या का लेख, बेसनगर का लेख, भरहुत का लेख तथा सांची, बोधगया आदि से प्राप्त स्तूप एवं स्मारक। 

शुंग वंश (187-75 ईसा पूर्व)

पुष्यमित्र  शुंग

पुष्यमित्र शुंग एक कट्टरवादी ब्राह्मण था। धनदेव के अयोध्या अभिलेख के अनुसार, पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। सुप्रसिद्ध व्याकरणविद् पतंजलि उसके अश्वमेध यज्ञ के पुरोहित थे।

पुष्यमित्र शुंग ने सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के परिणामस्वरूप क्षीण हुए हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया। पुष्यमित्र ने वैदिक धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की अत: उसका काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल भी कहा जाता है।

बौद्ध रचनाएं पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का हत्यारा तथा बौद्ध मठों एवं विहारों को नष्ट करने वाली  बताती हैं।  बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान के अनुसार, पुष्यमित्र शुंग ने अशोक द्वारा निर्मित 84  हजार बौद्ध स्तूपों को नष्ट कर दिया था। बाणभट्ट कृत ह​र्षचरित में पुष्यमित्र शुंग को अनार्य तथा निम्न जाति बताया गया है।

पुष्यमित्र शुंग ने अपने पुत्र अग्निमित्र को विदिशा का राज्यपाल (गवर्नर) नियुक्त किया था। शुंग काल में विदिशा का राजनीतिक एवं सांस्कतिक महत्व सर्वाधिक बढ़ गया था। अयोध्या लेख के अनुसार, धनदेव कोशल का राज्यपाल था। शुंग राजकुमार सेना का संचालन भी करते थे।

पुराणों के अनुसार, पुष्यमित्र शुंग ने 36 वर्षों तक राज्य किया। ऐसे में उसका शासनकाल 184 ईसा पूर्व से 148 ईसा पूर्व तक माना जा सकता है। हांलाकि पुष्यमित्र ने स्वयं को कभी राजा नहीं कहा बल्कि वह सेनापति ही कहा जाता रहा। बतौर उदाहरण- पुराण, हर्षचरित तथा मालविकाग्निमित्र सभी में पुष्यमित्र के लिए सेनानी अर्थात सेनापति की उपाधि का ही प्रयोग मिलता है।

पुष्यमित्र शुंग के समय यवनों का आक्रमण हुआ। यवन आक्रमण का उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य,  गार्गी संहिता तथा कालिदास के नाटक मालविकाग्निमित्र में मिलता है। कालिदास कृत मालविकाग्निमित्र के अनुसार, पुष्यमित्र ने विदर्भ (आधुनिक बरार) के राजा यज्ञसेन को हराया अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ के सचिव का साला था यज्ञसेन। बृहद्रथ की मृत्यु के साथ ही यज्ञसेन ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर लिया। ऐसे में यज्ञसेन शुंगों का स्वाभाविक शत्रु बन गया।

पुष्यमित्र को औद्भिज्ज (अचानक उठने वाला) भी कहा गया है। पुष्यमित्र ने पाटलिपुत्र स्थित अशोक निर्मित कुक्कटाराम के महाविहार को नष्ट करने का असफल प्रयास किया। पुष्यमित्र शुंग का साम्राज्य उत्तर में हिमालय लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक विस्तृत था। शुंग साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।

अग्निमित्र शुंग

पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के पश्चात शुंग वंश का राजा उसका पुत्र अग्निमित्र बना। राजा बनने से पूर्व वह विदिशा का उपराजा था। पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र ने कुल आठ वर्षों तक राज्य किया। हांलाकि अग्निमित्र के शासनकाल की किसी भी महत्वपूर्ण घटना के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है। अग्निमित्र के बाद सुज्येष्ठ तथा वसुज्येष्ठ राजा बने।

राजा वसुमित्र

शुंग वंश का चौथा राजा वसुमित्र था।  राजा वसुमित्र के नेतृत्व में  शुंग सेना ने यवनों को पराजित किया। वसुमित्र ने 10 वर्षों तक शासन किया। राजा बनते ही वसुमित्र विलासी हो गया, ऐसे में एक बार नृत्य का आनन्द लेते समय मूजदेव अथवा मित्रदेव नामक शख्स ने उसकी हत्या कर दी। इस घटना का उल्लेख बाणभट्ट कृत हर्षचरित में मिलता है।

वसुमित्र के पश्चात आन्ध्रक, पुलिन्दक, घोष तथा फिर वज्रमित्र राजा हुए। हांलाकि इनके शासनकाल के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है।

राजा भागवत (भागभद्र)

शुंग वंश का नौवां शासक भागवत अथवा भागभद्र था। भागवत कुछ ज्यादा ही शक्तिशाली राजा था। भागभद्र के शासकाल के 14वें वर्ष तक्षशिला के यवन शासक एण्टियालकीट्स के राजदूत हेलियोडोरस ने विदिशा (बेसनगर) में वासुदेव के सम्मान में गरुण स्तम्भ स्थापित करवाया।

हेलियोडोरस का गरुण स्तम्भ हिन्दू धर्म से सम्बन्धित प्रथम प्रस्तर स्मारक था। शुंग काल में ही भागवत धर्म का उदय हुआ तथा भगवान विष्णु की उपासना प्रारम्भ हुई।

राजा देवभूति

शुंग वंश का दसवां एवं अंतिम शासक देवभूति (देवभूमि) था। देवभूति ने दस वर्षों तक शासन किया। देवभूमि अत्यंत विलासी शासक था। देवभूति की हत्या उसके ही अमात्य वसुदेव ने की थी। देवभूति की मृत्यु के साथ ही शुंग राजवंश की समाप्ति हो गई।

शुंग काल की महत्वपूर्ण उपलब्धियां

शुंगों की राजधानी पाटलिपुत्र (कुसुमध्वज) थी। शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुनरूत्थान हुआ। महर्षि पतंजलि का संस्कृत के उत्थान में विशेष योगदान दिया। मनुस्मृति के वर्तमान स्वरूप की रचना शुंग काल में ही हुई। मनुस्मृति के अनुसार, जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।

मौर्यकाल में स्तूपों का निर्माण ईंटों तथा मिट्टी की सहायता से होता था जबकि शुंग काल में स्पूपों के निर्माण में पाषाणों का प्रयोग होने लगा। शुंग काल में ही सांची स्तूप को पाषाण द्वारा संवर्धित कर उसका आकार बढ़ाया गया।

लार्ड कनिंघम ने साल 1873 में भरहुत स्तूप का पता लगाया। उसका तोरणद्वार अधिकाशंत: शुंगकालीन थे। भरहूत तथा बोधगया के स्तूपों तथा तोरण द्वारों का निर्माण शुंग काल में हुआ।

तोरण द्वारों पर जातक कथाओं का अंकन, लोक धर्म से संबंधित चित्र तथा गौतम बुद्ध से संबंधित चित्र प्राप्त होते हैं। किन्तु शुंग काल में गौतम बुद्ध का मानव रूप में अंकन शुरू नहीं हुआ था।

सांची में मुख्य स्तूप के अतिरिक्त दो अन्य स्तूप हैं। दूसरे स्तूप में अशोक कालीन धर्म प्रचारकों व तीसरे में बुद्ध दो शिष्यों सारिपुत्र तथा महामोद्ग्ल्यायन के अस्थि अवशेष सुरक्षित हैं।

शुंग कालीन स्थापत्य कला

1. विदिशा का गरुण ध्वज

2. भाजा का चैत्य एवं विहार

3. अजन्ता का चैत्य मंदिर

4. नासिक तथा कार्ले के चैत्य

5. मथुरा की अनेक यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियां

कण्व वंश की स्थापना (75-30 ईसा पूर्व)

शुंग वंश का अंतिम सम्राट देवभूति अत्यंत निर्बल तथा विलासी था। ऐसे में देवभूति की हत्या करके उसके अमात्य वसुदेव ने 75 ईसा पूर्व में जिस नवीन राजवंश की स्थापना की, उसका नाम कण्व अथवा कण्वायन है। राजा वसुदेव ने कुल 9 वर्षों तक शासन किया।

वसुदेव के बाद तीन राजा भूमिपुत्र, नारायण व सुशर्मा हुए। इन राजाओं ने क्रमश: चौदह, बारह तथा दस वर्षों तक राज्य किया। कण्व वंश के राजाओं के नाम के अतिरिक्त उनके राज्यकाल के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। सुशर्मा की मृत्यु के साथ ही कण्व राजवंश समाप्त हो गया। निष्कर्षतया कण्व वंश के चार राजाओं ने 75 ईसा पूर्व से 30 ईसा पूर्व के लगभग तक शासन किया।

शुंगकालीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन

शुंग कालीन समाज वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित था। ब्राह्मण का कर्तव्य अध्ययन-अध्यापन, दान-यज्ञ था, क्षत्रिय का कर्तव्य राज्य की रक्षा तथा शस्त्र ग्रहण करना था। वैश्य प्रमुखत: व्यापार करते थे। जबकि शूद्र तीनों वर्णों की सेवा करते थे।

शुंगकालीन समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। समाज में आठ प्रकार के विवाह प्रचलित थे - ब्राह्म, दैव, आर्य, प्रजापत्य, असुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पैशाच।

समाज में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह के साथ-साथ नियोग प्रथा एवं विधवा विवाह भी होते थे।

शुंगकालीन समाज में बाल विवाह का प्रचलन था, कन्याओं का विवाह आठ वर्ष से बारह वर्ष की आयु में किया जाने लगा।

शुंग काल में कृषि एवं पशुपालन ही आर्थिक जीवन के आधार थे। बौद्धग्रन्थ मिलिन्दपण्हो के अनुसार, विभिन्न प्रकार के व्यवसायों का उल्लेख मिलता है जैसे सुवर्णकार, लौहकार, रंगरेज, जुलाहे, दर्जी, रथकार आदि।

जातक ग्रन्थों के अनुसार, प्रमुख नगरों में व्यापारियों तथा व्यवसायियों की कुल 18 श्रेणियां थीं।

पाटलिपुत्र, कौशाम्बी, वैशाली, हस्तिनापुर, वाराणसी तथा तक्षशिला प्रमुख व्यापारिक नगर थे।

भृगुकच्छ, सुप्पारक, ताम्र​लिप्ति प्रमुख बन्दरगाह थे।

रेशमी वस्त्र, हीरे-जवाहररात, हाथी दांत की वस्तुएं तथा गरम मसालों का बाहरी देशों में निर्यात किया जाता था।

स्वर्ण मुद्रा को निष्क, दीनार, सुवर्ण, सुवर्णमासिक कहा जाता था।

चांदी के सिक्के को पुराण अथवा धारण कहा गया है।

तांबे के सिक्के कार्षापण कहलाते थे।

धर्म तथा भाषा-साहित्य

शुंग काल को वैदिक अथवा ब्राह्मण धर्म के पुनर्जागरण का काल माना जाता है।

शुंग काल में वैदिक यज्ञों का अनुष्ठान पुन: प्रारम्भ हुआ। स्वयं पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किए थे।

समाज में भागवत धर्म का उदय हुआ जिससे भगवान विष्णु की पूजा आरम्भ हुई।

भागतव धर्म के साथ-साथ देश में माहेश्वर तथा पाशुपत सम्प्रदायों का भी प्रचार था।

बौद्ध भिक्षुओं पर अत्याचार का उल्लेख अपवादस्वरूप था अन्यथा यह काल धार्मिक सहिष्णुता का था।

शुंग काल में संस्कृत भाषा का पुनरूत्थान हुआ। महर्षि पतंजलि ने पाणिनी के सूत्रों पर एक महाभाष्य लिखा।

महाभाष्य के अतिरिक्त मनुस्मृति का वर्तमान स्वरूप इसी युग में रचा गया था।

कुछ विद्वानों के अनुसार, महाभारत महाकाव्य के शांतिपर्व तथा अश्वमेध पर्व का भी परिवर्द्धन हुआ।

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