संगम के पांच पुत्रों में से हरिहर तथा बुक्का सर्वाधिक प्रसिद्ध थे। हरिहर और बुक्का शुरूआत में वारंगल के काकतियों के सामंत थे, किन्तु बाद में आधुनिक कर्नाटक के काम्पिली राज्य में मंत्री बने। दिल्ली सल्तनत के विद्रोही बहाउद्दीन गुर्शस्प (मुहम्मद तुगलक का चचेरा भाई) को शरण देने के चलते सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने काम्पिली (अनेगोण्डी) को रौंद डाला, स्थिति यह हो गई कि काम्पिली की महिलाओं को जौहर करना पड़ा। इस युद्ध में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने हरिहर-बुक्का को बन्दी बनाकर दिल्ली भेज दिया।
तत्पश्चात इन दोनों भाईयों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। बाद में मुहम्मद बिन तुगलक ने इन्हें ही दक्षिण भारत (आन्ध्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आधुनिक महाराष्ट्र के समस्त प्रदेश) में विद्रोह शान्त करने के लिए भेजा, जहां उनके गुरु माधव विद्यारण्य के प्रयत्नों से उनकी शुद्धि हुई। दरअसल माधव विद्यारण्य ने अपने गुरु और श्रृंगेरी के मठाधीश विद्यातीर्थ को उन्हें हिन्दू बनाने के लिए मना लिया और हरिहर-बुक्का हिन्दू बन गए।
साल 1336 में हरिहर-बुक्का ने अपने गुरु माधव विद्यारण्य तथा वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार सायण से प्रेरणा लेकर तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर विजयनगर (विद्यानगर) साम्राज्य की नींव डाली। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास की एक महान घटना है।
संगम वंश का इतिहास (1336-1485 ई.)
हरिहर एवं बुक्का बन्धु संगम के पुत्र थे और उन्होंने अपने पिता के नाम पर अपने वंश की स्थापना की। अत: 1336 ई. में स्थापित विजयनगर साम्राज्य के प्रथम वंश को ‘संगम वंश’ कहा जाता है। संगम वंश ने तकरीबन 150 वर्ष तक शासन किया। विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (हस्तिनावती) है। हम्पी (हस्तिनावती) विजयनगर की पुरानी राजधानी का प्रतिनिधित्व करता है। विजयनगर साम्राज्य की राजधानियां थीं - अनेगोण्डी, विजयनगर, बेनुगोण्डा तथा चन्द्रगिरि।
हरिहर प्रथम (1336-1356 ई.)
विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर प्रथम के राज्यारोहण का समय 1336 ई. निर्धारित किया गया। हरिहर प्रथम को 'हक्का' या 'वीर हरिहर' के नाम से भी जाना जाता है। हरिहर ने अपनी पहली राजधानी अनेगोण्डी को बनाई किन्तु सात वर्ष पश्चात उसने अपनी राजधानी ‘विजयनगर’ स्थानान्तरित कर दी। हरिहर प्रथम ने पश्चिमी तट (कर्नाटक) पर बरकुरु में एक किले का निर्माण करवाया।
1346 ई. में मदुरा सल्तनत के विरूद्ध युद्ध करते हुए अंतिम होयसल सम्राट बल्लाल चतुर्थ मारा गया। इस अवसर का लाभ उठाकर हरिहर तथा उसके भाइयों ने सम्पूर्ण होयसल साम्राज्य को विजयनगर में शामिल कर लिया।
बहमनी वंश के संस्थापक अलाउद्दीन बहमन शाह ने कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के मध्य स्थित रायचूर किले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद बहमनी और विजयनगर साम्राज्य के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हुआ, यह संघर्ष तकरीबन 150 वर्षों तक चला।
1352-53 ई. में हरिहर ने मदुरा सल्तनत पर विजय प्राप्त की और उस पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार उसने इस क्षति की कुछ सीमा तक पूर्ति कर दी। विजयनगर साम्राज्य की सम्पत्ति प्रबन्धन तथा सैन्य व्यवस्था की निगरानी के लिए हरिहर प्रथम ने नायकों (सैन्य अधिकारियों) नियुक्ति की थी, इसे ‘नयनकार प्रणाली’ कहा गया।
वहीं, हरिहर प्रथम ने राज्य को स्थल, निदु और सीमा में विभाजित कर राजस्व संग्रह एवं नागरिक प्रशासन के लिए अधिकारी नियुक्त किए। इस प्रकार हरिहर ने विजयनगर साम्राज्य को सुदृढ़ रूप से स्थापित कर लिया।1356 ई. में हरिहर की मृत्यु हो गई।
बुक्का प्रथम (1354-1377 ई.)
हरिहर का उत्तराधिकारी उसका भाई बुक्का बना जिसने 1354-1377 ई. तक शासन किया। हांलाकि बुक्का 1346 ई. से ही संयुक्त शासक के रूप में शासन कर रहा था। 1374 ई. में बुक्का ने चीन में एक दूत मण्डल भेजा था। बुक्का ने 1377 ई. में मदुरई का अस्तित्व मिटाकर उसे विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया। ऐसे में विजयनगर साम्राज्य का प्रसार सम्पूर्ण दक्षिण भारत (रामेश्वरम तक) में हो गया, इसमें तमिल व चेर के प्रदेश भी सम्मिलित थे। इस प्रकार बुक्का ने अपने भाई हरिहर से प्राप्त साम्राज्य का और अधिक विस्तार किया।
बुक्का ने बहमनी सुल्तान मुहम्मद शाह प्रथम के साथ भी युद्ध किया जिसके कारण कृष्णा-तुंगभद्रा (रायचूर) नदियों के दोआब पर विजयनगर का अधिकार हो गया। हिन्दू धर्म की सुरक्षा का दावा कर बुक्का ने ‘वेद-मार्ग प्रतिष्ठापक’ की उपाधि ग्रहण की। हांलाकि बुक्का ने जैन, बौद्ध, ईसाई तथा मुसलमान आदि सभी को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की।
बुक्का एक महान योद्धा के साथ-साथ कुशल राजनीतिज्ञ तथा विद्याप्रेमी था। बुक्का ने वेदों तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों की टीकाएं लिखवाई तथा तेलुगू साहित्य को प्रोत्साहित किया। उसने तेलुगु कवि ‘नचना सोम’ को दरबारी कवि नियुक्त किया। बुक्का के समय विजयनगर साम्राज्य एवं बहमनी साम्राज्य की सीमा कृष्णा नदी थी। 1377 ई. में बुक्का की मृत्यु हो गई।
हरिहर द्वितीय (1377-1404 ई.)
बुक्का के उत्तराधिकारी हरिहर द्वितीय ने ‘महाराजाधिराज’ व ‘राजपरमेश्वर’ की उपाधि धारण की। हरिहर द्वितीय ने अपनी शासनावधि में मैसूर, कनारा, चिंगलपुर, त्रिचनापल्ली तथा कांजीवरम सहित समस्त दक्षिण भारत को जीता तथा श्रीलंका के राजा से राजस्व वसूल किया।।
हरिहर द्वितीय भगवान शिव के विरूपाक्ष रूप का उपासक था, किन्तु अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु था। धर्म एवं साहित्य में हरिहर द्वितीय के योगदान के लिए उसे ‘वैदिकमार्ग स्थापनाचार्य’ और ‘वेदमार्ग प्रवर्तक’ की उपाधियों से नवाजा गया। उसने कन्नड़ कवि ‘मधुरा’ को संरक्षण प्रदान किया तथा उसके शासनकाल में वेदों पर भाष्य एवं टीकाएं लिखी गईं।
साल 1377 में बहमनी सुल्तान मुजाहिद ने विजयनगर राज्य पर असफल आक्रमण किया और वापस जाते हुए मार्ग में उसका वध कर दिया गया। मुजाहिद की मृत्यु से उत्पन्न अव्यवस्था का लाभ उठाकर हरिहर द्वितीय ने कोंकण और उत्तरी कर्नाटक पर आक्रमण किए तथा गोवा को भी जीत लिया।
कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के बीच स्थित रायचूर दोआब पर कब्जा करने के लिए बहमनी सुल्तान मुहम्मद शाह द्वितीय के पश्चात फिरोशाह ने प्रयत्न किया किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली।1404 ई. में हरिहर द्वितीय की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात उसके पुत्रों में संघर्ष हुआ। इसके बाद क्रमश: विरूपाक्ष प्रथम और बुक्का द्वितीय शासक बने किन्तु 1406 ई. में देवराय प्रथम विजयनगर के राजसिंहासन पर बैठा।
देवराय प्रथम (1406-1422 ई.)
देवराय प्रथम ने 15 नवम्बर, 1406 ई. को विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया किन्तु बहमनी सुल्तान फिरोजशाह के हाथों उसे हार का सामना करना पड़ा। लिहाजा देवराय प्रथम को हून, मोतियों एवं हाथियों के रूप में दस लाख का हर्जाना देना पड़ा।
इतना ही नहीं, देवराय प्रथम को सुल्तान फिरोजशाह बहमनी के साथ अपनी लड़की की शादी करनी पड़ी तथा दहेज के रूप में दोआब क्षेत्र में स्थित बाकापुर भी सुल्तान को देना पड़ा ताकि भविष्य में युद्ध न हो सके। इस युद्ध को ‘सोनार की बेटी’ का युद्ध भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में यह पहला राजनीतिक विवाह नहीं था, इससे पूर्व खेरला के राजा ने शांति स्थापित करने के लिए फिरोज बहमनी के साथ अपनी लड़की की शादी की थी। हांलाकि अंतिम युद्ध में देवराय प्रथम वारंगल के राजा को अपने पक्ष में कर फिरोज बहमनी को हरा दिया।
देवराय प्रथम ने अनेक जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू की। उसने 1410 ई. में तुंगभद्रा नदी तथा हरिद्रा नदी पर बांध बनवाकर अपनी राजधानी विजयनगर तक नहरें निकलवाईं। अत: विजयनगर में जल का आभाव समाप्त हो गया। देवराय प्रथम के शासनकाल में ही इतालवी यात्री निकोलोकोण्टी ने विजयनगर की यात्रा की। निकोलोकोण्टी ने देवराय प्रथम का उल्लेख करते हुए इस नगर में मनाए जाने वाले दिपावली, नवरात्र आदि उत्सवों का वर्णन किया है।
देवराय प्रथम विद्वानों का भी संरक्षक था। उसके राजदरबार को ‘हरविलासम’ का रचनाकार तथा प्रसिद्ध तेलुगू कवि ‘श्रीनाथ’ सुशोभित करते थे। वह अपने राजप्रासाद के मुक्ता सभागार में प्रसिद्ध व्यक्तियों को सम्मानित किया करता था। देवराय प्रथम के समय विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत में विद्या का केन्द्र बन गया।
देवराय प्रथम ने शक्तिशाली घुड़सवार सेना बनाने के लिए अरब और फारस से घोड़े मंगवाए तथा अपनी सेना में तुर्की धनुर्धरों को भर्ती किया। देवराय प्रथम की सेना में 10,000 मुसलमान थे, ऐसा करने वाले वे विजयनगर के पहले राजा थे। देवराय प्रथम 1422 ई. में देवराय प्रथम की मृत्यु हो गई। देवराय प्रथम की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र वीरविजय और रामचन्द्र कुछ माह ही शासन कर सके।
देवराय द्वितीय (1422-1446 ई.)
बुक्का के पुत्र देवराय द्वितीय को संगम वंश का महानतम शासक माना जाता है। देवराय द्वितीय का शासनकाल विजयनगर साम्राज्य के वैभव एवं पराकाष्ठा का सूचक है। विजयनगर की प्रजा ने अपने इस राजा को ‘इम्माडि देवराय’, ‘प्रौढ़ देवराय’ तथा ‘महान देवराय’ से सम्बोधित किया।
सामान्यजन उसे देवराज ‘इन्द्र’ का अवतार मानते थे। अभिलेखों में उसके लिए ‘गजबेटकर’ (हाथियों का शिकारी) की उपाधि का उल्लेख किया गया है। बहमनियों को जोरदार टक्कर देने के लिए उसने अपनी सेना में दस हजार मुस्लिम घुड़सवार धुनर्धारियों की भर्ती करवाई। मुस्लिम सैनिकों को जागीरें दी गईं तथा उन्हें मस्जिदें बनाने की स्वतंत्रता प्रदान की गई।
देवराय द्वितीय ने कोण्डविदु पर विजय प्राप्त कर कृष्णा नदी तक विजयनगर की उत्तरी-पूर्वी सीमा का विस्तार किया। इतना ही नहीं, बहमनी सुल्तान से सन्धि करने वाले वेलेम के शासक को विजयनगर की प्रभुसत्ता स्वीकार करने को बाध्य किया।
देवराय द्वितीय के समय फारसी (ईरानी) राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की थी। फारसी इतिहासकार अब्दुर्रज्जाक लिखता है कि “उसका साम्राज्य सीलोन (श्रीलंका) से गुलबर्गा और उड़ीसा से मालाबार तक फैला हुआ था।” अब्दुर्रज्जाक के अनुसार, “संसार के सबसे शानदार नगरों में से एक विजयनगर की समृद्धि का मूल्यांकन करना काफी कठिन था। विजयनगर के बाजारों में हीरे, मोती और दूसरे कीमती पत्थर खुले रूप से बेचे जाते थे।”
वहीं पुर्तगाली यात्री नूनिज लिखता है कि “क्विलान, श्रीलंका, पूलीकट, पेगू, तेनसिरिम (क्रमश: बर्मा और मलाया) के राजा देवराय द्वितीय को ‘कर’ देते थे।”
संस्कृत का निष्णात विद्वान देवराय द्वितीय साहित्य का महान संरक्षक था। देवराय द्वितीय ने संस्कृत भाषा में महानाटक ‘सुधानिधि’ लिखा तथा वादरायण के ‘ब्रह्मसूत्र’ पर टीका की रचना की। इतना ही नहीं, उसने कन्नड़ भाषा में ‘सोबागिना सोन’ और ‘अमरुका’ नामक ग्रन्थों की रचना की।
देवराय द्वितीय ने ‘चामरस’ और ‘कुमार व्यास’ जैसे प्रमुख कन्नड़ कवियों को संरक्षण प्रदान किया। देवराय द्वितीय के दरबारी कवि चामरस ने ‘प्रभुलिंग-लीला’ की रचना की। वहीं देवराय द्वितीय के मंत्री लक्कन दण्डेश ने लिंगायतों के सिद्धान्तों एवं अनुष्ठानों से सम्बन्धित ग्रन्थ ‘शिवत्व चिन्तामणि’ की रचना की। 1446 ई. में देवराय द्वितीय की मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी मल्लिकार्जुन गद्दी पर आसीन हुआ।
मल्ल्किार्जुन (1446-1465)
देवराय द्वितीय के बाद मल्ल्किार्जुन (1466-1465) विजयनगर के राजसिंहासन पर आसीन हुआ। मल्लिकार्जुन को ‘प्रौढ़ देवराय’ भी कहा जाता है। चीनी यात्री माहुआन 1451 ई. में मल्लिकार्जुन के समय में विजयनगर आया था।
उसके शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य का पतन आरम्भ हो चुका था और विजयनगर साम्राज्य के उत्तर पूर्व की ओर से उड़ीसा के गजपति नरेश कपिलेश्वर तथा उत्तर की ओर से बहमनी सुल्तानों ने आक्रमण शुरू कर दिए। कपिलेश्वर गजपति ने आन्ध्र के तटवर्ती प्रदेशों में विजयनगर साम्राज्य के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।
यद्यपि मल्लिकार्जुन कुछ समय तक अपने साम्राज्य की सीमा सुरक्षा में सफल रहा किन्तु 1456 ई. में गजपतियों की सेनाएं रामेश्वरम तक पहुंच गईं। गजपतियों के हाथों मिले पराजय को मल्लिकार्जुन सहन नहीं कर पाया और 1465 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
विरूपाक्ष द्वितीय (1465-1485)
मल्लिकार्जुन का उत्तराधिकारी विरूपाक्ष द्वितीय संगम वंश का अंतिम शासक था। विरूपाक्ष द्वितीय के शासनकाल में आंतरिक विघटन और बाह्य आक्रमण दोनों की गति बहुत तीव्र हो गई। कपिलेश्वर गजपति ने विजयनगर साम्राज्य के अनेक तटवर्ती प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।
वहीं दूसरी तरफ विरूपाक्ष की अयोग्यता, विजयनगर की आंतरिक अशांति तथा कपिलेश्वर गजपति के आक्रमण का लाभ उठाकर बहमनी सुल्तान मुहम्मद अष्टम की सेनाओं ने आन्ध्र में कांची तक विजयनगर पर प्रहार किए। इस संकटपूर्ण स्थितियों में बहमनियों ने आन्ध्र में तेलंगाना तक अपनी सत्ता का विस्तार किया। विरूपाक्ष 1485 ई. तक शासन करता रहा। किन्तु इसी वर्ष उसके बड़े बेटे ने उसकी हत्या कर दी और इसी के साथ संगम वंश समाप्त हो गया।
चन्द्रगिरि में विजयनगर के गवर्नर सालुव नरसिंह ने गजपति नरेश के आक्रमण का वीरतापूर्वक सामना किया, उसने उड़ीसा की सेनाओं के साथ चौबीस युद्ध लड़े। विजयनगर के द्वितीय राजवंश ‘सालुव वंश’ का संस्थापक सालुव नरसिंह था।
विजयनगर साम्राज्य से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
— 1336 ई. में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की थी — हरिहर एवं बुक्का ने।
— हरिहर एवं बुक्का मंत्री थे — काम्पिली राज्य के।
— हरिहर एवं बुक्का को हिन्दू से मुसलमान बनाया था — मुहम्मद बिन तुगलक ने।
— हरिहर एवं बुक्का को दोबारा हिन्दू बनाया था — माधव विद्यारण्य ने।
— हरिहर एवं बुक्का के पिता का नाम था — संगम।
— विजयनगर साम्राज्य में ‘संगम वंश’ के संस्थापक — हरिहर एवं बुक्का।
— संगम वंश का प्रथम शासक— हरिहर प्रथम।
— अनेगोण्डी से स्थानान्तरित कर विजयनगर को राजधानी बनाने वाला शासक — हरिहर प्रथम।
— हरिहर प्रथम के बाद विजयनगर का शासक बना — बुक्का प्रथम।
— वेदमार्ग प्रतिष्ठापक उपाधि थी — बुक्का प्रथम की।
— कृष्णा नदी को विजयनगर एवं बहमनी राज्य के बीच की सीमा माना था — बुक्का प्रथम ने।
— हरिहर द्वितीय ने उपाधि धारण की थी — महाराजाधिराज की।
— श्रीलंका के राजा से राजस्व वसूल किया था — हरिहर द्वितीय ने।
— तुंगभद्रा तथा हरिद्रा नदी पर बांध बनवाया था — देवराय प्रथम ने।
— इटली के यात्री निकोलोकोण्टी ने विजयनगर की यात्रा — देवराय प्रथम के समय।
— इमाडिदेवराय कहा जाता था — देवराय द्वितीय को।
— फारसी (ईरानी) राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की थी— देवराय द्वितीय के समय।
— तेलुगू कवि ‘श्रीनाथ’ ने कुछ समय बिताया था — देवराय द्वितीय के दरबार में।
— विजयनगर में मुसलमानों को मस्जिद बनाने की छूट दी थी — देवराय द्वितीय ने।
— ‘गजबेटकर’ (हाथियों का शिकारी) कहा जाता है — देवराय द्वितीय को।
— देवराय द्वितीय ने भाष्य लिखा था — महानाटक सुधानिधि एवं ब्रह्मसूत्र पर।
— कन्नड़ भाषा में ‘सोबागिना सोन’ और ‘अमरुका’ नामक ग्रन्थों की रचना की— देवराय द्वितीय ने।
— ‘प्रौढ़ देवराय’ के नाम से जाना जाता था — मल्लिकार्जुन को।
— संगम वंश का अन्तिम शासक था — विरूपाक्ष द्वितीय।
— विरूपाक्ष द्वितीय के समय चन्द्रगिरि का गर्वनर था — सालुव नरसिंह।
— ‘नरसा नायक’ सेनापति था — सालुव नरसिंह का।
— रूसी यात्री एवं व्यापारी अफानासी निकितिन ने 15वीं शताब्दी में विजयनगर की यात्रा की। उसने अपने यात्रा वृत्तांत ‘The Journey Beyond Three Seas’ में विजयनगर के बारे में लिखा है।
इसे भी पढ़ें : विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर-बुक्का के गुरु कौन थे?