प्रख्यात समाजवादी विचारक मधु लिमये के मुताबिक, “जर्मन भूराजनीतिक विचारक हौषेफर ने महाद्वीपीय ताकतों जर्मनी एवं रूस के बीच गठबन्धन की वकालत की थी।” हौषेफर से मुलाकात के बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को लगा कि जर्मन-सोवियत समझौते से शक्ति संतुलन बदलेगा। इसके बाद उनके संयुक्त समर्थन से अंग्रेजों को भारत से खदेड़ना बिल्कुल आसान हो जाएगा। इसी उद्देश्य से सुभाष चन्द्र बोस 17 जनवरी 1941 ई. को कोलकाता से अचानक गायब हो गए और पेशावर-काबुल के रास्ते रूस पहुंचे।
किन्तु ठीक इसके विपरीत द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी ने जून, 1941 में रूस पर आक्रमण कर दिया जिससे रूस ने मित्र राष्ट्रों का पक्ष लिया। ऐसे में विवश होकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को जर्मनी की तरफ रूख करना पड़ा। 29 मई 1942 की तारीख को सुभाष चन्द्र बोस ने जर्मन तानाशाह अडोल्फ़ हिटलर से मुलाकात की। इस दौरान उपहारस्वरूप सुभाष चन्द्र बोस ने हिटलर को भगवान बुद्ध की मूर्ति दी। तत्पश्चात हिटलर ने भगवान बुद्ध की मूर्ति अपने हाथों में लेकर सुभाष चन्द्र बोस से एक ऐसा अजीबोगरीब सवाल पूछा, जिससे जानने के बाद आप भी दंग रह जाएंगे।
ऐसे में अब आपका यह सोचना लाजिमी है कि आखिर में एडोल्फ हिटलर ने सुभाष चन्द्र बोस से ऐसा क्या पूछा जो न केवल हास्यास्पद है बल्कि अज्ञानतापूर्ण भी। अब इस रोचक तथ्य को जानने के लिए यह सुभाष चन्द्र बोस और हिटलर की मुलाकात से जुड़ी यह ऐतिहासिक स्टोरी जरूर पढ़ें।
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सुभाष चन्द्र बोस और हिटलर की मुलाकात
सुभाष चन्द्र बोस जब हिटलर से मिलने के लिए जाने लगे तब वह इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक प्रोटोकॉल के मुताबिक, किसी भी राष्ट्राध्यक्ष से मिलते समय एक उपयुक्त उपहार अवश्य दिया जाना चाहिए।
चूंकि हिटलर का व्यक्तित्व बहुमुखी और बेहद जटिल था, ऐसे में उसे उपयुक्त उपहार देने के लिए सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी पत्नी एमिली शेंकल से विचार-विमर्श किया। ऐमिली शेंकल ने कहा - “कोई दुर्लभ किताब या कोई सुंदर तैलचित्र ले लीजिए। चूंकि हिटलर पूर्व में चित्रकार था, ऐसे में यह उपहार कुछ ठीक नहीं होगा। अत: मैं कुछ और सोचती हूं।”
तत्पश्चात जर्मनी के विदेश मंत्री जोआखिम वॉन रिबेनट्रॉप के अथक प्रयासों के बाद सुभाष चंद्र बोस और जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ़ हिटलर से मुलाकात के लिए 29 मई 1942 की तारीख तय हुई। सुभाष चन्द्र बोस 28 मई 1942 को एक विशेष विमान के जरिए बर्लिन से प्रशिया पहुँचे। उनके साथ जर्मनी के विदेश राज्य मंत्री विलहेल्म केपलर तथा एडम ट्रॉट भी थे।
28 मई की रात को जर्मनी के विदेश मंत्री जोआखिम वॉन रिबेनट्रॉप ने एक विशेष भोज का आयोजन किया था, जिसमें हिटलर के करीबी सहयोगियों हिमलर और गोरिंग को भी आमंत्रित किया गया था। हांलाकि अडोल्फ़ हिटलर ने अपने सभी अधिकारियों को विशेष अतिथि सुभाष चन्द्र बोस के प्रति अत्यंत शिष्टाचार बरतने का निर्देश दिया था।
तत्पश्चात 29 मई, 1942 की शाम चार बजे सुभाष चन्द्र बोस की मुलाकात जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ़ हिटलर से उसके अध्ययन कक्ष में हुई। इस बैठक के दौरान जर्मनी के विदेश मंत्री जोआखिम वॉन रिबेनट्रॉप, विदेश राज्य मंत्री विलहेल्म केपलर और दुभाषिया पॉल शिमिट भी मौजूद थे। अडोल्फ हिटलर के अध्ययन कक्ष में यूरोप और एशिया का एक नक्शा लगा हुआ था।
सुभाष चन्द्र बोस जैसे ही अध्ययन कक्ष में शामिल हुए अडोल्फ हिटलर ने उनका जोरदार स्वागत करते हुए कहा- ‘आजाद हिन्द के नेता!’ सम्भवत: अडोल्फ हिटलर के इसी सम्बोधन के बाद सुभाष चंद्र बोस अपने अनुयायियों तथा समर्थकों में नेताजी के नाम से प्रसिद्ध हुए। अडोल्फ हिटलर के साथ हुई इस पहली और अंतिम मुलाकात के दौरान दोनों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया।
इसके बाद सुभाषचन्द्र ने हिटलर को पद्मासन में बैठे भगवान बुद्ध की तांबे के रंग की एक मूर्ति उपहारस्वरूप दी। अडोल्फ हिटलर उस मूर्ति को ध्यान से कई मिनटों तक घूरता रहा। कुछ देर तक पहचानने की कोशिश करता रहा, और फिर पूछा यह पहलवान कौन है?
सुभाष चन्द्र बोस ने जवाब दिया — “बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध। भगवान बुद्ध ने ही सम्पूर्ण दुनिया को शांति, अहिंसा और करुणा का उपदेश दिया।”
हिटलर ने उस मूर्ति को दोबारा देखते हुए पूछा – “फिर ये जेन्टलमैन, मि. गांधी से सीनियर हैं या जूनियर?” नेताजी ने कहा — माननीय, हम सभी से अधिक सीनियर हैं। हिटलर की इस अज्ञानता पर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को बेहद अफसोस हुआ और हंसी भी आ रही थी किन्तु वह खामोश रहे।
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अडोल्फ हिटलर ने सुभाषचन्द्र बोस को दिया धोखा
अडोल्फ हिटलर से अपनी पहली और अंतिम मुलाकात (29 मई 1942) से पूर्व नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जर्मनी में ‘फ्री इंडिया सेन्टर’ की स्थापना की थी। इसी संस्था के द्वारा सुभाष चन्द्र बोस ने पहली बार ‘जय हिन्द’ का नारा दिया था। इसी सम्बन्ध में हिटलर ने मुस्कुराते हुए नेताजी से पूछा — “बर्लिन में आपका प्रवास कैसा रहा? क्या ‘फ्री इंडिया सेंटर’ और ‘इंडियन लीजन’ का काम संतोषजनक ढंग से आगे बढ़ रहा है?"
सुभाषचन्द्र बोस ने जर्मनी द्वारा दी गई मदद के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा— “महामहिम, भारत को स्वतंत्र कराने की तीव्र इच्छा मुझे यहां खींच लाई है। हम खून बहाने को तैयार है, यदि जर्मनी, इटली और जापान जैसे तीन शक्तिशाली मित्रों का समर्थन हमे मिल जाए। इसके बाद ही हम अंग्रेजों को सबक सीखा सकते हैं।”
फिर हिटलर ने कहा — “यदि 38 करोड़ भारतीयों की तरह मेरे पास भी मानव संसाधन का विशाल भंडार होता तो मैं सिकंदर महान की तरह विश्व विजेता बन जाता। हांलाकि मेरा पूरा यकीन है कि भारत अगले 250 वर्षों तक गुलामी का जुआ नहीं उतार पाएगा।”
इसके बाद नेताजी ने कहा— यह सच नहीं है, सर! इस युद्ध के प्रहार से ब्रिटिश साम्राज्यवाद ध्वस्त हो जाएगा। न हमने अपनी आत्मा गिरवी रखी है और न ही अपने कलाईयों में चूड़ियां पहनी हैं। नेताजी के इस उत्तर से हिटलर को लगा कि इस युवा नेता ने उसे मात दे दी।
इसके बाद हिटलर अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और पतली छड़ी लेकर दीवार पर लगे नक्शे को दिखाते हुए बोला — “देखो ! तुम्हारा देश जर्मनी से कितनी दूर है? हम अपनी बख्तरबंद सेना को इतनी दूर अभियान पर नहीं भेज पाएँगे। यह बहुत ही अव्यावहारिक होगा। यह दूरी केवल हवाई मार्ग से तय की जा सकती है लेकिन परिस्थितियां अभी अनुकूल नहीं हैं।” इस बैठक के दौरान नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हिटलर से भारत की स्वतंत्रता की घोषणा पर हस्ताक्षर करने का अनुरोध किया किन्तु हिटलर ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मतलब साफ था, वह ब्रिटेन के विरूद्ध भारत को समर्थन देने के पक्ष में नहीं था।
निष्कर्षत: हिटलर से समर्थन हासिल नहीं कर पाने के बावजूद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपने सहयोगी आदिब हुसैन के साथ जर्मन पनडुब्बी (यू-180) से जापान के लिए रवाना हुए। सुभाष चन्द्र बोस बीच रास्ते जर्मन पनडुब्बी को छोड़कर हवाई जहाज से 13 जून 1943 ई. को टोकियो पहुंचे।
जापान में 7 जुलाई 1943 ई. को रासबिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज की कमान सुभाष चन्द्र बोस को सौंप दी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च कमांडर घोषित किए गए। तत्पश्चात 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार का गठन किया, जिसके मंत्रियों में एच.सी.चटर्जी (वित्त), एम.ए.अय्यर (प्रचार) तथा लक्ष्मी स्वामिनाथन (महिला विभाग) आदि शामिल थे। भारतीय मुक्ति संग्राम से जुड़ा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आगे का इतिहास सर्वविदित है।
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