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Neera Arya who murdered her Husband for Subhash Chandra Bose

सुभाष चंद्र बोस के लिए पति का कत्ल, अंग्रेजों ने काटे थे स्तन

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आजाद हिन्द फौज में महिलाओं की एक खास रजिमेन्ट थी, जिसका नाम था रानी झांसी रेजिमेंट। अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि रानी झांसी रेजिमेंट की महिलाएं ​आजाद हिन्द फौज के लिए ​ब्रिटिश हुकूमत की जासूसी करती हैं।

इसी क्रम में रानी झांसी रेजिमेन्ट की एक महिला सैन्य अधिकारी ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जान बचाने के लिए अपने पति की हत्या कर दी। अंग्रेजी सरकार ने उस महिला को काला पानी की सजा देकर अंडमान स्थित सेल्युलर जेल भेज दिया।

अंग्रेज अफसरों ने नेताजी एवं उनके साथियों का पता जानने का खूब प्रयत्न किया, इसके लिए उस वीरांगना को अंडमान के सेल्युलर जेल (काला पानी) में तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, यहां तक कि उस महिला का दाहिना स्तन भी काट दिया। किन्तु वह वीरांगना यही कहती रही कि सुभाष चन्द्र बोस की प्लेन क्रैश में मौत हो चुकी है।

आजादी के बाद अन्य कैदियों की तरह उस महिला की भी रिहाई हुई और उसने हैदराबाद के सड़कों पर फूल बेचकर अपना गुजारा किया तथा गुमानामी में ही उसकी मौत हो गई। जी हां, आजाद हिन्द फौज की उस पहली महिला जासूस का नाम था नीरा आर्या। यदि आप भी देशभक्त हैं और देशप्रेमी नीरा आर्या से जुड़ा रोचक इतिहास जानने के इच्छुक हैं तो यह ऐतिहासिक स्टोरी जरूर पढ़ें।

नीरा आर्या का जन्म स्थान

आजाद हिन्द फौज की पहली महिला जासूस नीरा आर्या का जन्म 5 मार्च 1902 ई. को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के खेकड़ा में हुआ था। नीरा आर्या जब छोटी थीं, तभी उनके माता-पिता की मौत हो गई, ऐसे में पेशे से व्यापारी और स्वभाव से रईस इंसान सेठ छजूमल ने नीरा आर्या और उनके इकलौते भाई बसंत को गोद लिया था।

नीरा आर्या ने पढ़ाई के दौरान ही निर्णय कर लिया था कि देश की आजादी के लिए वह सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज का हिस्सा बनेंगी। नीरा आर्या की स्कूली शिक्षा कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुई।  हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में प्रवीण नीरा आर्या ने बचपन के दिनों से ही आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। फिर क्या था, पढ़ाई पूरी करने के बाद नीरा आर्या आजाद हिन्द फौज की रानी झांसी रेजिमेंट में भर्ती हो गईं। बता दें कि नीर्या आर्या का भाई भी आजाद हिंद फौज का हिस्सा था।

नीरा आर्या की शादी

देशभक्त नीरा आर्या ने भारत की आजादी के लिए आजाद हिन्द फौज की रानी झांसी रेजिमेन्ट को ज्वाइन कर लिया, किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। आजाद हिन्द फौज की कैप्टन नीरा आर्या की शादी ब्रिटिश सेना के अधिकारी श्रीकांत जयरंजन दास से हुई जो सीआईडी इंस्पेक्टर था। हांलाकि नीरा और श्रीकांत के विचार एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। जहां नीरा आर्या देशी प्रेमी थीं वहीं उनका पति श्रीकांत जयरंजन दास अंग्रेजों का वफादार था।

सुभाष चन्द्र बोस की हत्या का प्रयत्न

शादी के कुछ दिनों बाद नीरा आर्या के पति श्रीकांत जयरंजन दास (सीआईडी इंस्पेक्टर) को जब यह पता चला कि उसकी पत्नी आजाद हिन्द फौज की रानी झासी रेजिमेंट में है, तो उसे लगा कि वह अपनी पत्नी नीरा के जरिए नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बारे में तमाम जानकारियां हासिल कर लेगा। कहते हैं, ब्रिटिश हुकूमत ने सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की हत्या ​का​ जिम्मा सौंपा था।

ऐसा करने के लिए सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत ने अपनी पत्नी नीरा पर दबाव बनाना शुरू किया लेकिन नीरा अपने इरादों से तनिक भी नहीं डिगीं। फिर क्या था, उसने नीरा आर्या की रेकी शुरू कर दी। इस तरह जल्द ही श्रीकांत ने सुभाष चंद्र बोस के ठिकाने का पता लगा लिया।

अत: एक बार जब नीरा आर्या नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से मिलने गईं तो उनका पति श्रीकांत भी उनके पीछे-पीछे गया ताकि मौका मिलते ही वह नेताजी को मार सके। इसके बाद मौका देखकर सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर गोली चला दी, लेकिन वह गोली नेताजी के ड्राइवर को लगी और सुभाषचन्द्र बोस बच गए। मौके की नजाकत देखकर नीरा आर्या ने नेताजी की जान बचाने के लिए अपने गद्दार पति की चाकू मारकर हत्या कर दी।

सुभाष चन्द्र बोस ने क्या कहा

नीरा आर्या की इस अचम्भित कर देने वाली कार्रवाई देखकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस दंग रह गए। उन्होंने नीरा आर्या को आजाद हिन्द फौज की पहली महिला जासूस कहा और नाम दिया 'नीरा नागिन' अंग्रेजों के​ खिलाफ एक अन्य साहसिक कार्रवाई से खुश होकर सुभाषचन्द्र बोस ने रानी झांसी ब्रिगेड में नीरा आर्या को कैप्टन का ओहदा दिया था, जिसकी स्टोरी कुछ इस प्रकार है

आजाद हिंद फौज के गुप्तचर विभाग के चीफ थे पवित्र मोहन रॉय, वहीं नीरा आर्या को रानी झांसी रेजिमेन्ट में जासूसी करने का काम मिला था। नीरा आर्या अपनी एक आत्मकथा में लिखती हैं कि उन्हें जासूसी की जिम्मेदारी स्वयं नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने दी थी।

नीरा आर्या के अनुसार,उन्हें और उनकी जूनियर सरस्वती राजामणि को अंग्रेज अफसरों के घरों और मिलिट्री कैंपों की जासूसी करने की जिम्मेदारी मिली थी, जिसकी जानकारी ये लोग नेता जी से साझा करती थीं। इसी क्रम में एक दिन उनकी एक अन्य साथी दुर्गा को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। दुर्गा को छुड़ाने के लिए नीरा आर्या और सरस्वती राजमणि हिजड़े का भेष बनाकर घटनास्थल पर पहुंची तथा नशीली दवा खिलाकर अंग्रेजों को बेहोश कर दिया किन्तु वहां से भागते वक्त अंग्रेजों ने फायरिंग कर दी जिससे राजामणि के पैर में गोली लग गई।

हांलाकि नीरा, राजामणि और दुर्गा को पकड़ने की अंग्रेजों ने नाकाम कोशिश की, आखिरकार ये तीनों किसी तरह जान बचाकर आजाद हिन्द फौज के बेस कैम्प में वापस लौटने में सफल रहीं। उनकी इस वीरता से प्रसन्न होकर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने सरस्वती राजामणि को लेफ्टिनेन्ट तथा नीरा आर्या को कैप्टन पद पर नियुक्त किया था।

नीरा आर्या को काला पानी की सजा

आजाद हिंद फौज की पहली महिला जासूस नीरा आर्या को अपने पति श्रीकांत जयरंजन दास (सीआईडी इंस्पेक्टर) की हत्या के जुर्म में काला पानी की सजा हुई। नीरा आर्या को कैदकर अंडमान के सेल्युलर जेल में भेज दिया गया।

फरहाना ताज अपनी किताब ‘First Lady Spy Of INA : Neera Arya’ में लिखती हैं कि अंडमान के सेल्युलर जेल में अंग्रेजी सरकार ने नीरा आर्या को यह लालच दिया कि यदि वह सुभाष चन्द्र बोस और उनके साथियों का पता बताएंगी तो उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन नीरा आर्या बार-बार यही कहती रहीं कि नेताजी की प्लेन क्रैश में मौत हो चुकी है।

नीरा आर्या से सच उगलवाने के लिए अंडमान जेल के अंग्रेज अफसरों ने उन पर खूब जुल्म ढाए। नीरा आर्या की बेड़िया काटते वक्त उनकी चमड़ी काट डाली। इतना ही नहीं, नीरा आर्या के पैरों पर हथौड़े से कई वार किए, इससे नीरा आर्या दर्द से चीख उठीं। अंग्रेज पुलिस अफसरों ने नीरा आर्या की अस्मिता के साथ बार-बार खिलवाड़ किया।  

एक बार सेल्युलर जेल के जेलर ने नीरा आर्या से पूछा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कहां हैं? तब नीरा आर्या ने कहा कि वह उनके दिल में हैं? इसके बाद गुस्साए जेलर ने उनका ब्लाउज फाड़ दिया और गलत तरीके से छूने लगा। इसके बाद उस अंग्रेज अफसर ने लोहार की तरफ इशारा किया, जिसने तुरन्त ही एक औजार से नीरा आर्या का दाहिना स्तन काट डाला।

हैदराबाद की सड़कों पर फूल बेचकर गुजारा

जब देश को आजादी मिली तो अन्य कैदियों की तरह नीरा आर्या को भी रिहाई मिली। तत्पश्चात तत्कालीन भारत सरकार ने नीरा आर्या को सरकारी पेन्शन देने की अपील की किन्तु उन्होंने किसी भी तरह की सरकारी मदद लेने से इनकार कर दिया।

नीरा आर्या अपने जीवन के अंतिम दिनों में हैदराबाद के फलकनुमा में एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थीं। नीरा आर्या हैदराबाद की सड़कों पर फूल बेचकर अपना गुजारा करती थीं। हैदराबाद के लोग प्यार से उन्हें फ्रीडम्मा कहते थे। ऐसा बताया जाता है कि सरकार ने नीरा आर्या की वह झोपड़ी भी यह कहकर तोड़ डाली कि वह सरकारी जमीन पर बनी है।

नीरा आर्या का निधन

नीरा आर्या के अंतिम दिन गुमानामी और बेहद गरीबी में गुजरे। आखिरकार इसी गुमनामी में नीरा आर्या ने 26 जुलाई 1998 को हैदराबाद के चारमीनार स्थित उस्मानिया हास्पिटल में अंतिम सांस ली। स्थानीय पत्रकार तेजपाल सिंह धामा ने अपने साथियों संग मिलकर धर्मपुत्र के रूप में नीरा आर्या का अंतिम संस्कार किया।

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