भारत का इतिहास

Vijayanagara Empire: History of the Saluva Dynasty during 1485 to 1505 AD

विजयनगर साम्राज्य : सालुव वंश का इतिहास (1485-1505 ई.)

विजयनगर में व्यापक अराजकता की स्थिति देखकर साल 1485 में चन्द्रगिरी के गवर्नर न​रसिंह सालुव ने राजसिंहासन पर अधिकार कर संगम वंश को समाप्त कर दिया और सालुव वंश की स्थापना की। ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, सालुव वंशी आधुनिक भारत में उत्तरी कर्नाटक के कल्याणी क्षेत्र के मूल निवासी थे। विजयनगर के शिलालेखों से जानकारी मिलती है कि सालुव नरसिंह के परदादा का नाम मंगलदेव था। मंगलेदव ने मदुरै की तुर्क-फ़ारसी सल्तनत के विरुद्ध सम्राट बुक्का राय प्रथम की विजयों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

नरसिंह सालुव को प्रथम बलापहार कहा जाता है। इस प्रकार नरसिंह सालुव अपने वंश का एकमात्र शासक हुआ। उड़ीसा के गजपति शासक पुरुषोत्तम ने सालुव नरसिंह को पराजित कर बन्दी बना लिया, साथ ही उदयगिरि के किले पर कब्जा कर लिया। बाद में बन्दी जीवन से मु​क्त होने के बाद सालुव नरसिंह ने कर्नाटक के तुलुव प्रदेशों को जीता। सालुव नरसिंह का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उसने प्रान्तीय सूबेदारों को अपने अधीन करके विजयनगर साम्राज्य को खण्डित होने से बचा लिया।

विजयनगर के शासक सालुव नरसिंह ने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए अरब व्यापारियों को अधिक घोड़े आयात करने के लिए प्रलोभन एवं प्रोत्साहन दिया। 1490 ई. में सालुव नरसिंह की मृत्यु के पश्चात उसका अल्पवयस्क पुत्र इम्मादि नरसिंह उत्तराधिकारी बना।

चूंकि इम्मादि नरसिंह की उम्र बहुत कम थी अत: सालुव नरसिंह का सेनानायक नरसा नायक उसका सरंक्षक बना। वहीं, कुछ विद्वानों के अनुसार, सालुव नरसिंह को लगा कि उसका अल्पवयस्क पुत्र इम्मादि नरसिंह सिंहासन का कार्यभार संभालने के लिए तैयार नहीं हैं, इसलिए उसने अपनी शासन-सत्ता अपने सबसे विश्वसनीय सेनापति नरसा नायक को सौंप दी।

अवसर पाकर सेनानायक नरसा नायक विजयनगर का वास्तविक शासक बन बैठा। सालुव नरसिंह का पुत्र इम्मादि नरसिंह जब वयस्क हुआ तो उसका अपने संरक्षक नरसा नायक से विवाद शुरू हो गया। ऐसे में नरसा नायक ने इम्मादि नरसिंह को पेनुकोण्डा के किले में कैद कर दिया।

नरसा नायक ने अगले 12-13 वर्षों तक सफलतापूर्वक शासन करके विजयनगर के खोए हुए प्रदेशों को वापस लेने का प्रयास किया। नरसा नायक ने बीजापुर, बीदर, मुदरा और श्रीरंगपट्टम आदि के विरूद्ध सफलतापूर्वक अभियान किए। नरसा नायक ने बीदर के शासक कासिम बरीद के साथ मिलकर रायचूर-दोआब के कई किलों पर अधिकार कर लिया।

नरसा नायक ने साल 1498 में बीजापुर के शासक आदिल खान को पराजित कर कुछ समय के लिए बन्दी बना लिया। इतना ही नहीं, नरसा नायक ने चोल, पाण्डय और चेर राज्यों पर आक्रमण किए और इन तीनों राज्य के शासकों को विजयनगर की प्रभुसत्ता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।

नरसा नायक की सबसे बड़ी सफलता गजपतियों के विरूद्ध थी, उसने प्रताप रूद्र गजपति द्वारा दक्षिण की ओर साम्राज्य विस्तार के सारे प्रयासों को विफल कर दिया। नरसा नायक ने (1491 से 1503). मृत्युपर्यन्त विजयनगर साम्राज्य पर शासन किया।

1503 ई. में नरसा नायक की मृत्यु हो गई, तत्पश्चात उसके पुत्र वीर ​नरसिंह ने इम्माडि नरसिंह की हत्या कर दी और 1505 ई. में स्वयं वीर ​नरसिंह ने सिंहासन पर अधिकार करके तुलुव राजवंश की नींव डाली। इस प्रकार वीर ​नरसिंह विजयनगर के तृतीय राजवंशतुलुव राजवंश का संस्थापक बना। वीर नरसिंह (1505 से 1509 ई. तक) को विजयनगर के इतिहास में द्वितीय बलापहार कहा जाता है।

विजयनगर के सालुव वंश से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य ( Important facts related to the Saluva dynasty)

सालुव वंश का संस्थापक सालुव नरसिंह पूर्व में कहां का गवर्नर था चन्द्रगिरी।

विजयनगर का प्रथम बलापहारकहा जाता है नरसिंह सालुव को ।

विजयनगर का द्वितीय राजवंश था सालुव वंश।

सालुव वंश के शासकों ने विजयनगर पर शासन किया — 1485 ई. से 1505 ई. तक।

अरब से होने वाले घोड़े के व्यापार को फिर से शुरू करवाया था सालुव नरसिंह ने।

सालुव नरसिंह ने विजयनगर पर शासन किया — 1485 से 1490 ई. तक।

सालुव नरसिंह का सेनापति था नरसा नायक।

सालुव नरसिंह के अल्पवयस्क पुत्र इम्मादि नरसिंह का संरक्षक था नरसा नायक। 

नरसा नायक ने इम्माडि नरसिंह को कैद किया था पेनुकोण्डा के किले में। 

इम्मादि नरसिंह ने शासन किया — 1490 से 1505 ई. तक। 

1505 ई. में इम्मादि नरसिंह की हत्या कर दी वीर नरसिंह ने।

वीर नरसिंह किसका पुत्र था नरसा नायक।

तुलुव वंश का संस्थापक था वीर नरसिंह।

विजयनगर का द्वितीय बलापहारकहा जाता है वीर नरसिंह को। 

तुलुव वंश के शासकों ने विजयनगर पर शासन किया — 1505 से 1565 ई. तक।

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