भारत का इतिहास

Medieval Provincial Dynasties: History of the Golconda Sultanate

मध्यकालीन प्रान्तीय राजवंश : गोलकुण्डा सल्तनत का इतिहास

बहमनी साम्राज्य से अलग होने वाला गोलकुण्डा का मुस्लिम राज्य वारंगल के पुराने हिन्दू राज्य के खण्डहरों पर कायम हुआ। गोलकुण्डा के कुतुबशाही राजवंश (1518-1687 ई.) का संस्थापक कुली कुतुब शाह था जो प्रारम्भ में बहमनी साम्राज्य का गवर्नर था। बहमनी साम्राज्य के आंतरिक कलह और सत्ता संघर्ष का लाभ उठाकर कुली कुतुब शाह ने 1518 ई. में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

सुल्तान कुली कुतुब शाह (1518-1543 ई.)

गोलकुण्डा का सुल्तान कुली कुतुब शाह फारस से जुड़े एक कुलीन शिया परिवार से था। कुली कुतुब शाह ने गोलकुण्डा की सीमाओं को उड़ीसा, बीजापुर तथा विजयनगर साम्राज्य की सीमाओं तक पहुंचा दिया थागोलकुंडा साम्राज्य ने बीजापुर और बीदर के साथ भी युद्ध किया।

सुल्तान कुली कुतुब शाह ने व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन दिया जिससे गोलकुण्डा सल्तनत में आर्थिक समृद्धि आई। कुली कुतुब शाह ने कई इमारतों का निर्माण करवाया जिनमें कुतुब शाही मकबरा भी शामिल है, जो कुतुबशाही राजवंश के उत्तरवर्ती शासकों के लिए दफ़न स्थल बना। 1543 ई. में कुली कुतुब शाह के पुत्र जमशेद ने उसकी हत्या कर दी।

जमशेद कुली कुतुब शाह (1543-1550 ई.)

जमशेद कुली कुतुब शाह ने अपने पिता कुली क़ुतुबशाह की हत्या करके सिंहासन प्राप्त किया था। य​द्यपि जमशेद कुली कुतुब शाह का शासनकाल छोटा था, फिर भी उसने अली बरीद को बीदर के शासक के रूप में सत्ता में वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सुल्तान जमशेद कुली कुतुब शाह से जुड़ी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। जमशेद कुली कुतुब शाह की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र सुभान कुली कुतुब शाह 7 वर्ष की उम्र में राजा बना किन्तु कुछ समय बाद ही उसकी भी मृत्यु हो गई।

इब्राहिम कुली कुतुबशाह (1550-1580 ई.)

इब्राहिम कुली कुतुब शाह का शासनकाल गोलकुण्डा के ​इतिहास का अविस्मरणीय युग था। इब्रा​हिम बहुत ही सुसंस्कृत व्यक्ति, प्रसिद्ध भाषाविद् तथा अपने राज्य में हिन्दू तथा मुसलमानों के बीच बड़ा लोकप्रिय था। गोलकुण्डा के सुल्तानों में इब्राहिम पहला शासक था जिसने कुतुब शाह की उपाधि धारण की तथा अपने नाम के सिक्के ढलवाए।

गोलकुण्डा सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम कुली कुतुब शाह को उसके सैन्य अभियानों और राज्य विस्तार के लिए याद किया जाता है। वह दक्कनी राज्यों द्वारा साल 1565 में विजयनगर के विरूद्ध गठित संयुक्त सैनिक मोर्चे में शामिल था।

मुहम्मद कुली कुतुबशाह (1580-1612 ई.)

मुहम्मद कुली कुतुबशाह 15 वर्ष की उम्र में सुल्तान बना। मुहम्मद कुली कुतुबशाह को कुतुबशाही वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासकों में से एक माना जाता है। मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने अपनी राजधानी हैदराबाद में स्थानांतरित कर दी। कला, साहित्य और वास्तुकला के संरक्षक सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने अपनी प्रिय रानी भागमती (हैदर महल) के सम्मान में हैदराबाद नगर की स्थापना की। भागमती को भाग्यवती के नाम से भी जाना जाता है।

मुहम्मद कुली कुतुबशाह दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्य संग्रह दीवान का लेखक था। मुहम्मद कुली ने उर्दू और तेलुगू को समान रूप से संरक्षण प्रदान किया। मुहम्मद कुली कुतुबशाह को दक्कनी उर्दू काव्य जन्मदाता माना जाता है। मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने 1591 में हैदराबाद के चार मीनार का निर्माण करवाया। मुहम्मद कुली कुतुबशाह की मृत्यु 46 वर्ष की आयु में 11 जनवरी 1612 को हैदराबाद स्थित दौलत खान--अली महल में हुई थी। 

मुहम्मद कुतुब शाह (1612-1626 ई.)

मुहम्मद कुतुब शाह जो सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुबशाह का भतीजा व दामाद था जिसने 1607 ई. में मुहम्मद कुली कुतुबशाह की इकलौती बेटी हयात बख्शी बेगम से शादी की थी। मुहम्मद कुतुब शाह ने बाह्य शक्तियों से गोलकुंडा की सफलतापूर्वक रक्षा की और राज्य के भीतर स्थिरता बनाए रखी। 1626 ई में मुहम्मद कुतुब शाह की मृत्यु के पश्चात उसका 11 वर्षीय पुत्र अब्दुल्ला कुतुबशाह गद्दी पर बैठा। 

अब्दुल्ला कुतुबशाह (1626-1672 ई.)

सुल्तान मुहम्मद कुतुब शाह का पुत्र अब्दुल्ला कुतुब शाह के अल्पायु (11 वर्ष) होने के कारण उसकी सुयोग्य माता हयात बख्श बेगम ने शासन का संचालन किया। उसने अपने नाम पर अनेक ग्रामों तथा सरायों आदि का निर्माण करवाया।

शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान 1636 में अब्दुल्ला कुतुबशाह ने ‘आत्मसमर्पण के दस्तावेज़’ पर हस्ताक्षर किए गए। तत्पश्चात अब्दुल्ला कुतुबशाह ने मुगल बादशाह शाहजहां के नाम का खुतबा पढ़वाया तथा गोलकुण्डा के सिक्कों पर उसका नाम अंकित करवाया। अब्दुल्ला के काल में उसका फारसी वजीर मीर जमुला था, जो बाद में मुगलों की सेवा में चला गया।

अबुल हसन कुतुब शाह (1672-1687 ई.)

गोलकुण्डा के अंतिम सुल्तान अबुल हसन कुतुब शाह के शासनकाल में मदन्ना व अखन्ना नामक दो ब्राह्मण भाईयों ने गोलकुण्डा के प्रशासन एवं सेना पर नियंत्रण बनाए रखा था। सुल्तान अबुल हसन कुतुब शाह  को ‘ताना शाह’ के नाम से भी जाना जाता है। 1687 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब ने गोलकुण्डा पर अधिकार कर इसे मुगल साम्राज्य में मिला लियासुल्तान अबुल हसन को बन्दी बनाकर मत्युपर्यन्त दौलताबाद के किले में भेज दिया। इस प्रकार गोलकुण्डा के कुतुबशाही साम्राज्य का अंत हो गया।

गोलकुण्डा की प्रशासनिक व्यवस्था

गोलकुण्डा के कुतुब शाही साम्राज्य का केन्द्रीय शासन सुल्तान के अधीन था। सभी कार्यकारी, न्यायिक तथा सैन्य अधिकार सुल्तान के पास थे। सुल्तान की अनुपस्थिति में सल्तन का शीर्ष अधिकारी ‘पेशवा’ था। पेशवा की मदद के लिए खजानादार, कोषाध्यक्ष तथा कोतवाल जैसे पदाधिकारी नियुक्त थे। साल 1670 में गोलकुण्डा साम्राज्य में 21 सरकारें (प्रांत) शामिल थीं, जो 355 परगनों (जिलों) में विभाजित था।

गोलकुण्डा सल्तनत की जागीरों से ‘कर’ वसूलने तथा सैनिक उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी जागीरदारों की थी। ‘कर’ (tax) का एक निश्चित हिस्सा जागीरदार अपने पास रखते थे, शेष भाग सुल्तान को देते थे। गोलकुण्डा के कुतुबशाही साम्राज्य के अधीन तकरीब 66 किले ​थे, इनमें से प्रत्येक किला ‘नायक’ के अधीन हुआ करता था। इन नायकों में कई हिन्दू थे, विशेषरूप से ब्राह्मण।

धार्मिक व्यवस्था

कुतुब शाही राजवंश अपने शासन के शुरूआती दौर में हिन्दुओं के प्रति काफी सख्त था। गोलकुण्डा राज्य में हिन्दूओं को धार्मिक त्यौहार सार्वजनिक रूप से मनाने की अनुमति नहीं थी। किन्तु सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह के समय हिन्दूओं को धार्मिक त्यौहार सार्वजनिक रूप से मनाने की छूट दी गई।

कुतुब शाही वंश के सुल्तानों ने शासन के अंतिम दशकों में हिन्दू, सूफी तथा शिया-सुन्नी इस्लामी परम्पराओं का समर्थन किया। गोलकुण्डा के अंतिम सुल्तान अबुल हसन कुतुबशाह ने अपने ब्राह्मण मंत्रियों मदन्ना और अक्कन्ना की मदद से राम नवमी पर भद्राचलम के राम मंदिर में मोती भेंट करने की परम्परा ​स्थापित की।

आर्थिक व्यवस्था

गोलकुंडा राज्य के दक्षिणी भागों में हीरे की खदानें थी, जिससे यह सल्तनत काफी समृद्ध था। इसके अतिरिक्त कृषि तथा ‘भूमि कर’ भी इस सल्तनत की आय का प्रमुख स्रोत था। गोलकुंडा सल्तनत रेशम और सूती सहित अन्य उच्च गुणवत्ता वाले कपड़ों के लिए विख्यात था। गोलकुंडा सल्तनत के मुख्य बंदरगाह मसूलीपट्टनम से कपड़े तथा हीरे का निर्यात विभिन्न देशों में होता था। स्थानीय व्यापारी पुर्तगाली, डच और अंग्रेज़ जैसी यूरोपीय शक्तियों के साथ-साथ ओटोमन साम्राज्य, फ़ारस और दक्षिण-पूर्व एशिया के व्यापारियों के साथ भी व्यापार करते थे। 1620-1630 के दशक में राज्य की वित्तीय समृद्धि चरम पर थी।

साहित्य एवं संस्कृति

कुतुबशाही राजवंश के शुरूआती 90 वर्षों तक गोलकुंडा सल्तनत की आधिकारिक और दरबारी भाषा फ़ारसी थी। किन्तु 17वीं शताब्दी की शुरुआत में इसकी जगह तेलुगु भाषा ने ले ली। हांलाकि गोलकुण्डा साम्राज्य में उर्दू, फारसी तथा तेलुगू को समान रूप से संरक्षण प्रदान किया गया। सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुबशाह तेलुगु, फ़ारसी और दक्कनी उर्दू में कविताएं लिखीं। उसके द्वारा दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्य संग्रह का नाम दीवानथा। गोलकुण्डा के कवियों और लेखकों ने दक्कनी उर्दू में लिखते समय तेलुगु, हिंदी और फ़ारसी शब्दावली का इस्तेमाल किया।

स्थापत्य कला

गोलकुण्डा के कुतुबशाही शासनकाल में निर्मित इमारतों में इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने हैदराबाद के चार मीनार का निर्माण करवाया। कुतुबशाही वंश के द्वारा निर्मित इमारतों में कुतुब शाही मकबरे, चार मीनार, चार कमान, खैरताबाद मस्जिद, मक्का मस्जिद, तारामती बारादरी, हयात बख्शी मस्जिद और टोली मस्जिद आदि इं​डो-इस्लामी वास्तुकला के कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं।

गोलकुण्डा फोर्ट

काकतीय राजवंश के शासनकाल के दौरान साल 1143 में गोलकुंडा किले का निर्माण सर्वप्रथम मिट्टी के किले के रूप में किया गया था। 1364 ई. में जब बहमनी साम्राज्य ने गोलकुण्डा किले पर अधिकार कर लिया तब इसे पत्थर की संरचनाओं से सुदृढ़ करना शुरू कर दिया।

साल 1518 में कुतुब शाही राजवंश ने जब गोलकुण्डा पर अधिकार कर लिया तब इस वंश ने गोलकुण्डा को अपनी राजधानी बनाई तथा गोलकुण्डा किले का विस्तार कर इसे एक अभेद्य किले में तब्दील कर दिया। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गोलकुंडा सल्तनत व गोलकुण्डा का किला एक प्रमुख हीरा व्यापार केंद्र बन गया, जिसने दुनिया भर के व्यापारियों और सौदागरों को आकर्षित किया।

1687 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब ने गोलकुण्डा पर आक्रमण कर दिया। तकरीबन आठ महीने की लंबी घेराबंदी के बाद किले पर औरंगजेब ने कब्जा कर लिया जिससे कुतुब शाही वंश का अंत हो गया। 1724 ई. में हैदराबाद के निज़ामों ने गोलकुंडा किले पर अधिकार कर लिया और यह किला हैदराबाद रियासत का एक प्रमुख हिस्सा बन गया। आजादी के बाद साल 1948 में हैदराबाद रियासत का स्वतंत्र भारत में विलय कर लिया गया, तब से गोलकुण्डा फोर्ट एक ऐतिहासिक स्थल और लोकप्रिय पर्यटन स्थल में तब्दील हो चुका है।

गोलकुण्डा साम्राज्य से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

गोलकुण्डा साहित्यकारों का बौद्धिक क्रीड़ा स्थल था। अकबर का समकालीन सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुबशाह साहित्य एवं स्थापत्य कला में विशेष रूचि रखता था। मुहम्मद कुली कुतुबशाह को दक्कनी उर्दू काव्य जन्मदाता माना जाता है।

— कुतुबशाही साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी गोलकुण्डा ‘हीरे’ का विश्व प्रसिद्ध बाजार तथा मछलीपट्टनम एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था।

वजबी एवं फैज नामक विद्वान भी गोलकुण्डा के दरबार में थे।

वजबी ने ‘कुतुब मुशतरी’ व ‘सबरस’ नामक किताबें लिखीं।

मुहम्मद नुसरत नामक विद्वान ने दक्षिण में उर्दू भाषा में ‘गुलशन-ए-इश्क’, ‘अलीनामा’ वतारीख-ए-सिकन्दरी’ नामक पुस्तकें लिखी।

गोदावरी और कृष्णा नदियों के निचले इलाकों के बीच गोलकुंडा क्षेत्र की पहाड़ियों से हीरे प्राप्त होते थे जिनमें विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर और महान मुगल हीरा शामिल हैं।