भारत का इतिहास

Medieval Provincial Dynasties: History of Malwa Sultanate

मध्यकालीन प्रान्तीय राजवंश : मालवा सल्तनत का इतिहास

मालवा का राज्य नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच पठार पर स्थित था। उत्तर तथा दक्षिण भारत के बीच के मुख्य मार्गों पर मालवा का नियंत्रण था। ऐसे में मालवा पर कब्जा करने वाला शक्तिशाली राज्य सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर प्रभुत्व स्थापित करने की दिशा में अग्रसर हो जाता था। मालवा जब तक शक्तिशाली रहा, तब तक यह राज्य गुजरात, मेवाड़, बहमनी तथा दिल्ली सल्तनत के लिए बाधा बना रहा।

सल्तनतकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने 1305 ई. में मालवा पर अधिकार कर लिया था। अलाउद्दीन खिलजी की सेना के खिलाफ मालवा के परमार शासक महालकदेव की करारी हार हुई और फिर  मृत्यु हो गई। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने 1390 ई. में दिलावर ख़ाँ (हुसैन खां गोरी) को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया।

दिलावर खां  (1401-1405 ई.)

फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने तुर्क - अफगान मूल के हुसैन खां गोरी को अमीर के रूप में दिलावर खां की उपाधि प्रदान की थी। तैमूर आक्रमण के पश्चात दिल्ली सल्तनत की कमजोरी का लाभ उठाकर दिलावर खां ने 1401 ई. में स्वतंत्र सल्तनत के रूप में मालवा की स्थापना की। दिलावर खां ने धार को मालवा की राजधानी बनाई।

दिलावर खां ने खानदेश के राजा से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर अपने राज्य की दक्षिण-पूर्वी सीमा की सुरक्षा सुनिश्चित कर ली। दिलावर खां ने गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखा और मालवा को हमलों से सफलतापूर्वक बचाया।

हुशंग शाह  (1406-1435 ई.)

साल 1405 में दिलावर खां की मृत्यु के पश्चात उसका महत्वाकांक्षी पुत्र अल्प खां 1406 ई. में हुशंग शाह की उपाधि धारण कर मालवा की गद्दी पर बैठा। साल 1407 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने मालवा पर आक्रमण करके हुशंगशाह को बन्दी बना लिया। किन्तु मालवा में विद्रोह हो जाने पर मुजफ्फरशाह ने हुशंगशाह को ही उस विद्रोह को दबाने के लिए भेजा।

हुशंग शाह ने एक बार फिर से मालवा पर अधिकार कर लिया और माण्डू को अपनी राजधानी बनाई। हिन्दुओं के प्रति उदार नीति अपनाने वाला हुशंग शाह बेहद लोकप्रिय शासक था। हुशंग शाह ने राजपूतों को मालवा में बसने के लिए अनुदान दिए।

हुशंग शाह ने मालवा राज्य के जैन व्यापारियों व शाहूकारों को सहायता प्रदान की। हुशंग शाह का सलाहकार और खजांची नरदेव सोनी जो स्वयं एक सफल जैन व्यापारी था। महान विद्वान एवं रहस्यवादी सूफी संत शेख बुहरानुद्दीन का शिष्य था सुल्तान हुशंग शाह। अत: हुशंग शाह के संरक्षण से अनेक सूफी संत मालवा की तरफ आकर्षित हुए।

हुशंग शाह ने हिन्दुओं को मंदिर आदि निर्मित कराने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की थी। हुशंग शाह के समय ललितपुर मंदिर का निर्माण हुआ। सुल्तान हुशंग शाह ने अपनी मृत्यु से पहले साल 1435 में नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद नगर (पूर्व में नर्मदापुर) की स्थापना की।

मुहम्मद शाह (1436 ई.)

साल 1435 में हुशंग शाह की मौत के बाद उसके पुत्र गजनी खां ने मुहम्मद शाह की उपाधि धारण की और 1436 ई. में मालवा की गद्दी पर बैठा किन्तु वह अयोग्य साबित हुआ। महज एक वर्ष के शासनकाल में ही मुहम्मद शाह का मालवा दरबार षड्यंत्रों का केन्द्र बन गया ऐसे में उसके  वजीर महमूद खां ने जहर देकर उसे मार डाला। इस प्रकार गोरी शासन का अंत हो गया।

महमूद खिलजी प्रथम  (1436-1469 ई.)

मुहम्मद शाह की हत्या कर खिलजी तुर्क महमूद खां ने मालवा सल्तनत पर कब्जा कर लिया और खिलजी वंश की नींव डाली। मालवा के सुल्तानों में महमूद खिलजी प्रथम को सर्वाधिक शक्तिशाली एवं योग्यतम शासक माना जाता है। शासन के शुरूआत में महमूद खिलजी प्रथम को गोरी कुलीन वर्ग से खतरा था। ऐसे में उसने तुष्टीकरण की नीति अपनाई और गोरी कुलीन सरदार को इक्ता तथा उच्च पद प्रदान किए। बावजूद इसके महमूद खिलजी को उच्च पदस्थ सरदारों के विद्रोह का सामना करना पड़ा। हांलाकि महमूद खिलजी इन विद्रोहों को दबाने में सफल रहा।

मालवा पर शासन के दौरान महमूद खिलजी प्रथम ने अपना सम्पूर्ण समय गुजरात, मेवाड़, गोंडवाना, बहमनी तथा दिल्ली के शासकों से युद्ध में बिताया। इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि शिविर उसका घर बन गया था तथा युद्ध का मैदान उसके लिए आरामगाह था। वह अपने फुरसत के क्षण दुनिया के विभिन्न राजदरबारों के ​इतिहास और संस्मरणों को सुनने में व्यतीत करता था।

मेवाड़ के राणा कुम्भा के साथ हुए युद्धों में दोनों शासकों ने विजय का दावा किया। जहां राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ बनवाया वहीं महमूद खिलजी ने माण्डू में सात मंजिला स्तम्भ स्थापित करवाया। महमूद खिलजी के शासनकाल में मालवा का गौरव अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। सुल्तान महमूद खिलजी ने उदार नीति अपनाते हुए गैर मुस्लिमों को उच्च पदों पर नियुक्त किया।

मिस्र के खलीफा ने महमूद खिलजी को सुल्तान की उपाधि दी। उसके दरबार में मिस्र के सुल्तान अबु सईद का एक दूतमण्डल भी आया था। सुल्तान महमूद खिलजी ने व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहित करने के लिए जैन पूंजीपतियों को संरक्षण प्रदान किया।

सुल्तान ने जनता के लिए माण्डू में एक सार्वजनि​क चिकित्सालय की स्थापना की, जिसमें रोगियों के ठहरने तथा औषधियों की पर्याप्त व्यवस्था थी। महमूद खिलजी ने  माण्डू में एक आवासीय महाविद्यालय की भी स्थापना की।

महमूद खिलजी न्यायप्रिय एवं विद्वान शासक था किन्तु वह धर्मान्ध था जिसने हिन्दुओं के प्रति अ​सहिष्णुता की नीति अपनाई। महमूद खिलजी प्रथम ने मालवा राज्य का विस्तार दक्षिण में सतपुड़ा, पश्चिम में गुजरात, पूर्व में बुन्देलखण्ड तथा उत्तर में मेवाड़ एवं बून्दी की सीमाओं तक किया। 1469 ई. में महमूद खिलजी की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र गियासुद्दीन सिंहासन पर बैठा।

गयासुद्दीन खिलजी (1469-1500 ई.)   

सुल्तान गयासुद्दीन के चरित्र में बड़ा अन्तर्विरोध था। वह बाहर से बेहद पवित्र एवं धार्मिक जीवन व्यतीत करने का दिखावा करता था किन्तु व्यक्तिगत जीवन में वह नितान्त कामी था। उसके राजमहल में 16000 दासियां थीं जिनमें से अनेक हिन्दू सरदारों की पुत्रियां भी थीं। उसने इथोपियाई तथा तुर्की दासियों की एक अंगरक्षक सेना गठित की।

गयासुद्दीन ने मेवाड़ पर दो बार असफल आक्रमण किए। गयासुद्दीन के शासनकाल में ही गुजरात ने चम्पानेर को जीत लिया किन्तु वह कुछ न कर सका। 1500 ई. में गयासुद्दीन खिलजी के बड़े बेटे अब्दुल कादिर ने उसे जहर देकर मरवा दिया।

नासिरूद्दीन (1500-1510 ई.)

अब्दुल कादिर ने अपने पिता गयासुद्दीन खिलजी की हत्या करने के बाद नासिरूद्दीन शाह की उपाधि धारण कर मालवा की गद्दी पर बैठा। नासिरूद्दीन शाह एक क्रूर शासक था किन्तु बुखार के कारण 1510 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद नासिरूद्दीन के सबसे छोटे पुत्र आजम हुमायूं ने महमूद खिलजी द्वितीय की उपाधि धारण की और मालवा के राजसिंहासन पर बैठा।

महमूद खिलजी द्वितीय  (1511 ई.)

महमूद खिलजी द्वितीय 1511 ई. में मालवा की गद्दी पर बैठा। महमूद खिलजी द्वितीय के समय हिन्दू और मुसलमान सरदारों में सत्ता के लिए संघर्ष हुआ, इनमें मेदिनीराय सबसे अधिक सफल रहा। मुस्लिम अमीरों के षड्यंत्रों से अपनी रक्षा के लिए महमूद खिलजी द्वितीय ने चन्देरी के राजपूत सरदार मेदिनीराय को अपना वजीर नियुक्त किया।

बाद में महमूद खिलजी द्वितीय ने मेदिनीराय का प्रभाव समाप्त करने के लिए गुजरात के शासक मुजफ्फर द्वितीय की मदद ली किन्तु मेदिनीराय ने मेवाड़ के शासक राणा संग्राम सिंह से सहायता लेकर उसके प्रयत्नों को विफल कर दिया। साल 1531 में गुजरात के शक्तिशाली शासक बहादुरशाह ने महमूद खिलजी द्वितीय को पराजित कर मालवा को अपने राज्य में मिला लिया। बाद में महमूद खिलजी द्वितीय मारा गया।

मालवा का पतन

साल 1535 में जब मुगल बादशाह हुमायूं ने गुजरात को जीता तब मालवा स्वत: ही दिल्ली साम्राज्य का हिस्सा बन गया। शेरशाह सूरी द्वारा हुमायूं को भारत से खदेड़ने के पश्चात यह राज्य सूर साम्राज्य का हिस्सा बन गया। हांलाकि शेरशाह सूरी व उसके पुत्र इस्लामशाह सूरी की मौत के बाद मालवा के गवर्नर बाजबहादुर ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

साल 1561-62 में मुगल बादशाह अकबर ने आधम खां और पीर मुहम्मद खान के नेतृत्व में मुगल सेना को मालवा विजय हेतु भेजा। 29 मार्च 1561 को सारंगपुर की लड़ाई में मुगल सेना ने मालवा के तत्कालीन शासक बाजबहादुर को पराजित कर दिया।  

1562 ई. में अकबर ने उज़बेग अब्दुल्ला खान के नेतृत्व में एक बार फिर से मुगल सेना भेजी जिसने बाजबहादुर को करारी शिकस्त दी और वह चित्तौड़ भाग गया। तत्पश्चात अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया

इस आक्रमण के दौरान बाजबहादुर की पत्नी सती हो गई। बाजबहादुर उच्च कोटि का संगीतकार था। बाजबहादुर ने अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली तब उसे 2000 का मनसब प्रदान किया गया। मुगल सूबे मालवा की राजधानी उज्जैन थी जिसका पहला सूबेदार अब्दुल्ला खान था।

मालवा की स्थापत्य कला

धार में कमाल मौला मस्जिद (1405 ई.), मांडू में दिलावर ख़ाँ मस्जिद (1405 ई.) तथा मलिक मुगीस की मस्जिद (1442 ई.) मालवा राज्य की प्रारम्भिक इमारतें हैं। मलिक मुगीस मस्जिद के विषय में पर्सी ब्राउन का कहना है कि, “यह प्रमुख मस्जिद इस युग की भव्य एवं अपने आकार की अद्दभुत रचना है।मालवा के सुल्तानों द्वारा बनवाई गई इमारतें निम्नलिखित हैं

मांडू का किला- धार जिले में स्थित मांडू किले का निर्माण हुशंग शाह ने करवाया था। गयासुद्दीन खिलजी ने इस किले के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

माण्डू की जामी मस्जिद - जामी मस्जिद का निर्माणकार्य हुशंगशाह ने 1454 ई. में शुरू करवाया था। किन्तु इस मस्जिद को पूर्ण करवाने का श्रेय महमूद ख़िलजी को जाता है।

अशरफ़ी महल - अशरफी महल का निर्माण 1439-1469 ई. के मध्य महमूद ख़िलजी ने करवाया था।

रानी रूपमती का महल - सुल्तान नासिरुद्दीन शाह ने 1508-1509 ई. में इस महल का निर्माण करवाया। रानी रूपमती का महल पहाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। हांलाकि रानी रूपमती महल में कलात्मकता का आभाव है।

जहाज महल -  जहाजनुमा आकार में इस महल को मानव निर्मित दो तालाबों के बीच बनाया गया था। ग़यासुद्दीन ख़िलजी के समय में निर्मित जहाज महल मांडू में स्थित है। जहाज महल मांडू की खूबसूरत इमारतों में से एक है।

हिंडोला महल - हिंडोला महल को दरबार हालके नाम से भी जाना जाता है। हिंडोला महल का निर्माण 1425 ई. में हुशंगशाहने करवाया था। टेड़ी दीवारों के कारण इस महल को हिंडोला महल कहा जाता है।

हुशंगशाह का मक़बरा- हुशंगशाह के मक़बरे का निर्माण कार्य 1440 ई. में महमूद खिलजी प्रथम ने पूर्ण करवाया। हुशंगशाह का मक़बरा जामी मस्जिद के ठीक पीछे बना है।

कुश्क महल- चन्देरी स्थित फतेहाबाद में महमूद ख़िलजी प्रथम ने 1445 ई. में सात मंजिला कुश्क महल का निर्माण करवाया।