भारत का इतिहास

Rise of the Left Movement in India Communists and Congress Socialists

भारत में वामपंथी आन्दोलन का उदय : साम्यवादी तथा कांग्रेस समाजवादी

1789 की फ्रांसीसी क्रांति के दौरान सर्वप्रथम दक्षिण एवं वाम शब्दों का प्रयोग किया गया। राजा के समर्थकों को दक्षिणपंथीतथा विरोधियों को वामपंथी कहा गया। बाद में वामपंथ को ही 'समाजवाद' एवं 'साम्यवाद' कहा जाने लगा।

भारत में वामपंथी विचारधारा का उदय प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात बनी राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों जैसे - आधुनिक उद्योगों का विकास, महामंदी (1929  से 1939 ई.) तथा रूस की 1917 ई. की बोल्शेविक क्रांति के परिणामस्वरूप हुआ। कालान्तर में यह विचारधारा राष्ट्रवादी आन्दोलन के साथ पूर्णरूप से सम्बद्ध हो गई। हांलाकि 1918 से लेकर 1922 तक चले कामगार असंतोष ने भी भारत में साम्यवाद के बीजारोपण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

समाजवादी एवं वामपंथी विचारों का उद्भव

साल 1917 में हुई रूसी क्रांति के पश्चात विश्वभर में साम्यवादी विचारों का बड़ी शीघ्रता से प्रचार-प्रसार हुआ। ऐसे में भारत भी इस विचारधारा से अछूता नहीं रहा। अ​त: 17 अक्टूबर 1920 ई. को ताशकन्द में सर्वप्रथम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई। इसके संस्थापक सदस्यों में एम.एन.राय (नरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य), ए.टी.राय, अवनी मुखर्जी, रोजा फिटिग्राफ, मोहम्मद शफीक तथा मुहम्मद अली का नाम सर्वप्रमुख है।

मानवेन्द्र नाथ राय (एम.एन.राय) ने साल 1922 में अवनी मुखर्जी की मदद से बर्लिन से वैनगार्ड आफ इंडियन इंडिपेंडेंस तथा इंडिया इन ट्रांजिशन नामक अखबार प्रकाशित किए।

वैनगार्ड आफ इंडियन इंडिपेंडेंसभारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का पहला अखबार था। बाद में इस अखबार का नाम बदलकर एडवांस गार्ड रख दिया गया। 

बंगाल में नवयुग के सम्पादक मुजफ्फर अहमद, बम्बई में दी सोशलिस्ट के सम्पादक श्रीपाद अमृत डांगे (एस.ए.डांगे) (गांधी बनाम लेनिन नामक पुस्तक भी लिखी), मद्रास में लेबर किसान गजट के सम्पादक सिंगारवेलु चेट्टियार तथा लाहौर में इन्कलाब के सम्पादक गुलाम हुसैन आदि लोगों ने अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से भारत में साम्यवादी विचारों के प्रचार-प्रसार में महती योगदान दिया।

भारत में वामपंथी विचारों का समूह एक दल के रूप में 01 सितम्बर 1924 ई. को कानपुर में अखिल भारतीय साम्यवादी दल के नाम से स्थापित हुआ। अखिल भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना सत्यभक्त द्वारा की गई। इस पार्टी के अध्यक्ष सिंगारवेलु चेट्टियार तथा एस.वी. घाटे व जे.पी. वर्गररहट्टा को संयुक्त सचिव बनाया गया। पार्टी के अन्य सदस्यों में हसरत मोहानी, वी.एम. जोशी, रमाशंकर अवस्थी तथा पंडित रामगोपाल का नाम शामिल है। 

वहीं, ठीक एक साल बाद 27 सितम्बर 1925 ई. को कानपुर में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई। इस पार्टी ने सर्वप्रथम भारत को पूर्ण स्वतंत्र करने की मांग रखी तथा नारा दिया राजनीतिक स्वतंत्रता एक साधन है और आर्थिक स्वतंत्रता एक लक्ष्य।

कलकत्ता में मुजफ्फर अहमद और काजी नजरूल इस्लाम ने कम्युनिस्ट ग्रुप की स्थापना की। नजरूल इस्लाम ने बंगाली भाषा में धूमकेतु नामक पत्रिका निकाली।

पेशावर षड्यंत्र (1922-23), कानपुर षड्यंत्र (1924) तथा मेरठ षड्यंत्र (1929-33) के कारण साम्यवादी दल के सदस्य काफी चर्चित रहे।

कांग्रेस पार्टी में भी वामपंथी विचारों का प्रभाव देखने को​ मिला। लिहाजा साल 1934 में पटना में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। इसके मुख्य नेता थे- जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, डॉ. राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता, कमला देवी चट्टोपाध्याय आदि। वहीं कांग्रेस के दो प्रमुख नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा सुभाष चन्द्र बोस भी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे।

अखिल भारतीय समाजवादी कांग्रेस पार्टी (आल इंडिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी) का प्रथम वार्षिक अधिवेशन अक्टूबर, 1934 ई. में डॉ. सम्पूर्णानन्द की अध्यक्षता में बम्बई में आयोजित हुआ। इसमें गठित कार्यकारिणी के महासचिव जयप्रकाश नारायण थे।

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस के भीतर रहकर कांग्रेस को समाजवादी मूल्यों से आबद्ध करना तथा इसकी बुनियादी नीतियों को बचाए रखना था।

साल 1936 में जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस कार्यकारिणी में आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण तथा अच्युत पटवर्धन को स्थान दिया। जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि भारत तथा विश्व की समस्याओं के हल की एकमात्र कुंजी समाजवाद में निहित है।

जयप्रकाश नारायण नेसमाजवाद ही क्यों?’ तथा आचार्य नरेन्द्र देव ने समाजवाद एवं राष्ट्रीय आन्दोलन नामक चर्चित पुस्तकों की रचना की। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस सोशलिस्ट नामक पत्रिका प्रारम्भ की। अशोक मेहता इसके सम्पादन से जुड़े रहे।

सुभाष चन्द्र बोस ने साल 1939 में कांग्रेस से त्यागपत्र देकर फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। शार्दूल सिंह कवीशा को फारवर्ड ब्लाक का उपाध्यक्ष बनाया गया। सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस की अंग्रेजों से सहयोग की नीति के विरोधी थे, इसलिए वह अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए सैनिक सहायता प्राप्त करने हेतु देश से बाहर गए।

साल 1947 में फारवार्ड ब्लॉक ने शक्ति के हस्तान्तरण को झूठे शक्ति हस्तान्तरण की संज्ञा दी और उनका कहना था कि भयभीत बुर्जुवा लोगों ने अंग्रेजी साम्राज्यवादियों से साझेदारी स्थापित कर ली है ताकि जनता के संघर्ष को समाप्त किया जा सके।

रामगढ़ में हुए कांग्रेस अधिवेशन (1940) में एक क्रांतिकारी समाजवादी दल का गठन किया गया। यह संगठन अंग्रेजों के बाद भारत में समाजवाद की स्थापना करना चाहता था।

भारत के अन्य वामपंथी दल

1937 ई. में मानवेन्द्र नाथ राय ने लीग आफ रेडिकल कांग्रेस मैन तथा सौम्येन्द्र नाथ टैगोर ने क्रांतिकारी साम्यवादी दल की स्थापना की। द्वितीय विश्वयुद्ध (1939) शुरू होने पर साम्यवादियों ने इसे लोकयुद्ध (people’s war) की संज्ञा दी।

साल 1939 में एन.दत्त मजूमदार ने भारतीय बोल्शेविक दल की स्थापना की। वहीं साल 1940 में एम.एन. राय ने मार्क्सवाद से निराश होकर रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी (अतिवादी लोकतंत्र दल) का गठन किया। अजीतराय और इन्द्रसेन जैसे ट्राटस्की के अनुयायी क्रांतिकारियों ने साल 1941 में बोलशेविक-लेनिनिस्ट दल की शुरू किया। जबकि 1942 में सौम्येन्द्र नाथ टैगोर ने क्रांतिकारी साम्यवादी दल की स्थापना की।

 ​महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि साम्यवादियों ने शुरू में भारत छोड़ो आन्दोलन (8-9 अगस्त 1942) का समर्थन किया किन्तु कांग्रेस का ब्रिटिश सरकार द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के प्रयासों का समर्थन नहीं करने पर कम्युनिस्ट पार्टी ने खुद को आन्दोलन इस से अलग कर लिया। 1946 में हुए नौसेना विद्रोह का साम्यवादियों द्वारा समर्थन किया गया। 

1946 ई. में साम्यवादियों ने कैबिनेट मिशन के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि भारत को 17 प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यों में बांट दिया जाए। दरअसल साम्यवादी इनमें से किसी एक राज्य पर अधिकार उसे सम्पूर्ण भारत में साम्यवाद के प्रसार का आधार बनाना चाहते थे।

जर्मनी में रह रहे भारतीय क्रांतिकारियों ने साल 1914 में बर्लिन कमेटी की स्थापना की। बाद में इस कमेटी का नाम भारतीय स्वतंत्रता कमेटी रखा गया। इस कमेटी के नेताओं में वी. चट्टोपाध्याय तथा डॉ. भूपेन्द्र नाथ दत्त ने बोल्शेविकों तथा लेनिन संग सम्पर्क स्थापित करने की असफल कोशिश की। हांलाकि कालान्तर में यह कमेटी भंग हो गई।

मजूदरों में बढ़ रहे साम्यवादी प्रभाव को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1928 ई. में पब्लिक सेफ्टी बिल पेश किया। पब्लिक सेफ्टी बिल कानून बनने पर अंग्रेजी सरकार ने 14 मार्च 1929 ई. को 31 साम्यवादी नेताओं को गिरफ्तार कर उन पर मेरठ षड्यंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया।

मेरठ षड्यंत्र केस (1929) के तहत जिन पर मुकदमा चलाया गया उनमें तीन ब्रिटिश नागरिक फिलिप स्प्रेट, बेन ब्रैडले तथा लेस्टर हचिन्सन भी शामिल थे।

मेरठ षड्यंत्र केस के अभियुक्तों को बचाने के लिए जवाहर लाल नेहरू, एम.ए. अन्सारी, कैलाश नाथ काटजू तथा एम.सी. छागला जैसे राष्ट्रवादियों ने भी पैरवी की।

मेरठ षड्यंत्र (1929-33) के दौरान अभियुक्तों की तरफ से हाईकोर्ट के नामी वकील अब्दुल कादिर ने जोरदार पैरवी की। 18 मई, 1923 को मेरठ षड्यंत्र का ऐतिहासिक फैसला आया जिसमें अभियुक्तों को एक या दो साल की कड़ी सजा दी गई।

कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने भारत की समस्याओं को हल करने के लिए एक कमीशन एवं उपसमिति की भी नियुक्ति की जिसका नाम माली ब्यूरो था। समिति ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की जाए।

मजदूर आन्दोलन को संगठित करने तथा भारतीय क्रांतिकारियों से सम्पर्क स्थापित करने हेतु एम.एन.राय अप्रैल 1922 में भारत आए तथा बंगाल के क्रांतिकारी मुजफ्फर अहमद से मिले।

साल 1921-22 तक बम्बई, कलकत्ता, मद्रास, लाहौर तथा कानपुर में कम्युनिस्ट केन्द्र स्थापित हो गए। बम्बई ग्रुप के नेता श्रीपाद अमृत डांगे थे, जो कि सोशलिस्ट नामक अंग्रेजी साप्ताहिक का सम्पादन कर रहे थे। वहीं बंगाल में मुजफ्फर अहमद ने नवयुग नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। जबकि मद्रास में सिंगारवेलु चेट्टियार ने लेबर किसान गजट का सम्पादन किया तथा लाहौर से गुलाम हुसैन ने इन्कलाब नामक पत्र निकाला। उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों जैसे कानपुर से वर्तमान और नागपुर से प्राणवीरनामक प्रगतिशील समाचार पत्र प्रकाशित किए गए।

कम्यूनिस्ट पार्टी ने अंग्रेजी में नेशनल फ्रन्ट तथा मराठी भाषा में क्रांति नाम से मुखपत्र निकाले। पीपुल्स वार नामक अंग्रेजी साप्ताहिक भी साम्यवादी विचारधारा की पत्रिका थी।

भारत में कम्यूनिस्ट आन्दोलन की बढ़ती शक्ति तथा प्रभाव को कम करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने एक मुकदमा चलाया जो कानपुर षड्यंत्र (1924) के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

कानपुर षड्यंत्र (1924) के तहत ब्रिटिश सरकार ने यह आरोप लगाया कि कुछ लोग भारत में क्रांतिकारी संगठन स्थापित करने के लिए षड्यंत्र रच रहे हैं, जिसका उद्देश्य भारत से सम्राट की प्रभुसत्ता को समाप्त करना है। इस आरोप के तहत 21 फरवरी 1924 को एम.एन.राय, मुजफ्फर अहमद, श्रीपाद अमृत डांगे, उस्मानी, गुलाम हुसैन, रामचरण लाल शर्मा तथा सिंगारवेलु चेट्टियार पर कानपुर में मुकदमा चलाया।

इस मुकदमें के दौरान केवल चार व्यक्ति नलिन गुप्ता, उस्मानी, एस.डांगे तथा मुजफ्फर अहमद को अदालत में पेश किया गया। तत्पश्चात कोर्ट ने 20 मई 1924 को अपने फैसले में इन चारों अभियुक्तों को चार-चार साल की कड़ी कैद की सजा सुनाई।

भारत में वामपंथी आन्दोलन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

भारत के क्रांतिकारी समूहों और ज्यादातर नेताओं ने साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और जमींदारी का विरोध करने के लिए समाजवाद का अनुसरण करना शुरू कर दिया।

ट्रेड यूनियनों तथा श्रमिक हड़तालों ने वामपंथी गति को बढ़ाया।

भारत का समाजवाद रूसी क्रांति से प्रेरित था।

साल 1920 में एम.एन. रॉय ने ताशकंद में सर्वप्रथम कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया।

क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का नेतृत्व चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह ने किया, जिसके जरिए समाजवाद को एक क्रांतिकारी विचारधारा के रूप में बढ़ावा मिला।

अखिल भारतीय किसान सभा (1936) ने सामंतवाद विरोधी आंदोलनों का नेतृत्व किया।

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना साल 1934 में जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेंद्र देव जैसे नेताओं ने की थी।

प्रगतिशील लेखक संघ (1936) और भारतीय जन नाट्य संघ (1943) ने साहित्य एवं लोक कलाओं के माध्यम से समाजवादी विचारों का प्रचार-प्रसार किया।

तेलंगाना किसान विद्रोह (1946-51) से भारत में वामपंथी उग्रवाद की शुरूआत मानी जाती है।

साल 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में हुए विद्रोह को भी भारत में वामपंथी उग्रवाद आंदोलन की शुरुआत माना जाता है। 

भारत में वामपंथी उग्रवाद को बढ़ावा देने में मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के वैचारिक प्रभाव को उत्तरदायी माना जाता है।