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Indian national song ‘Vande Mataram’ is born from the Sannyasi rebellion

संन्यासी विद्रोह से जन्मा गीत है ‘वन्दे मातरम्’

दोस्तों, इस बात को हम सभी जानते हैं कि भारत के राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् की रचना 1875 ई. में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने की थी। यह गीत सर्वप्रथम 7 नवम्बर 1875 ई. को बंग दर्शन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। बंकिम चन्द्र चटर्जी ने अपने कालजयी उपन्यास आनन्द मठ में इस गीत को जगह दी। तत्पश्चात इस गीत को साल 1896 में सर्वप्रथम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया।

बंकिम चन्द्र चटर्जी रचित वन्दे मातरम गीत को 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी। परन्तु यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि बंकिम चन्द्र चटर्जी रचित वन्दे मातरम गीत वास्तव में बंगाल-बिहार में हुए संन्यासी विद्रोह की ही उपज है। ऐसे में आपका यह सोचना लाजिमी है कि आखिर में बंकिम चन्द्र चटर्जी को संन्यासी विद्रोह में ऐसा क्या देखने को मिला जिससे उन्होंने राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम की रचना की। इस ऐतिहासिक तथ्य को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

संन्यासी विद्रोह (1770-80) की उपज है वन्दे मातरम्

प्लासी तथा बक्सर युद्ध के पश्चात बंगाल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन स्थापित होने के बाद 1765 से 1772 ई. के बीच जनता का इतना शोषण हुआ कि वहां गरीबी, भूखमरी और अराजकता फैल गई। इसके अतिरिक्त साल 1769 -1770 में भीषण अकाल पड़ा जिससे एक तिहाई जनता मौत के मुंह में समा गई। स्वयं अंग्रेजों को भी यह स्वीकार करना पड़ा कि बंगाल की दुर्दशा के लिए उनका शासन ही जिम्मेदार है।

बावजूद इसके अंग्रेजों ने तीर्थ स्थानों पर आने-जाने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जिससे संन्यासी लोग झुब्ध हो उठे। संन्यासी विद्रोह का एक कारण यह भी माना जाता है कि अंग्रेजों ने तकरीबन 150 संन्यासियों को अकारण ही फांसी पर लटका दिया। संन्यासी विद्रोहियों में अधिकांश शंकराचार्य के अनुयायी थे, इनमें हिन्दू नागा, गिरि, योगी, नाथ तथा गोस्वामी सम्प्रदाय के सशस्त्र (तलवार-भाले और बरछियां) संन्यासी थे। इन संन्यासियों की आक्रमण पद्धति गोरिल्ला युद्ध पर आधारित थी।

चूंकि संन्यासियों की अन्याय के विरूद्ध लड़ने की परम्परा थी अत: उन्होंने जनता के साथ मिलकर कम्पनी के कोषों तथा कोठियों पर भयंकर आक्रमण किए। स्थिति यह थी कि संन्यासियों ने बोगरा और मैमन सिंह में अपनी स्वतंत्र सरकार बनाई। संन्यासी लोग अंग्रेजी सैनिकों के विरूद्ध वीरतापूर्वक लड़े तथा वारेन हेस्टिंग्स एक लम्बे अभियान के बाद ही संन्यासी विद्रोह को दबा पाया। फिर भी साल 1800 तक बंगाल और बिहार में संन्यासियों का अंग्रेजों से संघर्ष होता रहा। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ वन्दे मातरम गीत ने जिस प्रकार से आमजन पर प्रभाव डाला, जल्द ही यह क्रांतिकारियों का नेशनल एन्थम बन गया।

संन्यासी लोग ईस्ट इंडिया कम्पनी की कोठियों पर हमले के दौरान वन्दे मातरम का नारा लगाते थे। इस बारे में इतिहासकार डॉ. भूपेंद्र नाथ दत्त ने लिखा है कि संन्यासी योद्धा ओम् वंदेमातरम्के रणनाद उद्घोष करते थे। ब्रह्मबांधव उपाध्याय की किताब 'स्वराज्य' के अनुसार, एक हिमालय का संन्यासी बंकिम चन्द्र चटर्जी से मिला था, उसी ने उन्हें वन्दे मातरम का मंत्र मिला था।

संन्यासी विद्रोह का विस्तृत उल्लेख बंकिम चन्द्र चटर्जी ने अपनी कालजयी कृति आनन्द मठ में किया है। उपन्यासआनन्द मठ में वन्दे मातरम गीत को भवानन्द नाम का एक संन्यासी विद्रोही गाता है। निष्कर्षत: संन्यासियों द्वारा किए जाने वाले जय उद्घोष वंदे मातरम्के आधार पर ही बंकिम चन्द्र चटर्जी ने राष्ट्रीय गीत की रचना की थी।

राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम से जुड़े रोचक तथ्य

भारत के राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् की रचना साल 1875 में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने की थी।

वन्दे मातरम् गीत सर्वप्रथम 7 नवम्बर 1875 ई. को बंग दर्शन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 1882 ई. में प्रकाशित अपने कालजयी उपन्यास आनन्द मठ’ (बांग्ला भाषा) में वन्दे मातरम् गीत को जगह दी।

वन्दे मातरम गीत को साल 1896 में सर्वप्रथम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने गाया था।

साल 1906 में कांग्रेस के पहले ध्वज पर वन्दे मातरम लिखा हुआ था। पीले रंग के इस ध्वज को भगिनी निवेदिता ने डिजाइन किया था।

साल 1906 में बिपिन चंद्र पाल और अरविंदो ने वन्दे मातरम् नामक अखबार का सम्पादन शुरू किया।

बंकिम चन्द्र चटर्जी रचित वन्दे मातरम गीत की आठ पंक्तियों को 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी।

राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम को गाने में 65 सेकेंड (1 मिनट और 5 सेकेंड) का समय लगता है।

वन्दे मातरम् की कुछ पंक्तियां संस्कृत में शेष बाँग्ला भाषा में लिखी गई हैं।  

बंकिम चन्द्र चटर्जी ने वन्दे मातरम् गीत को सियालदह से नैहाटी आते वक्त ट्रेन में ही लिखा था।

साल 1870-80 के दशक में ब्रिटिश हुकूमत ने सरकारी समारोहों में गॉड! सेव द क्वीनगीत को गाना अनिवार्य कर दिया लिहाजा इस विदेशी गीत के विकल्प के रूप में बंकिम चन्द्र चटर्जी (डिप्टी कलेक्टर) ने वन्दे मातरम की रचना की।

वन्दे मातरम का अंग्रेजी अनुवाद सर्वप्रथम अर​विन्दो घोष तथा उर्दू अनुवाद आरिफ मोहम्मद खान ने किया।

साल 1938 में मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के समक्ष जो 11 सूत्रीय मांग रखी थी, उनमें से एक वन्दे मातरम को बन्द करने की डिमांड थी।

राष्ट्रीय गीत का दर्जा देते वक्त कुछ मुसलमानों को "वन्दे मातरम्" गीत पर आपत्ति थी, क्योंकि इसमें देवी दुर्गा की भी स्तुति है। ऐसा माना जाता है कि यह गीत आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है जो कि मुस्लिम विरोधी है।

वन्दे मातरम गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में शामिल किया गया है, बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र है।

लाला लाजपत राय द्वारा लाहौर से प्रकाशित पत्रिका का नाम वन्दे मातरम् था।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वन्दे मातरम को छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि के तोरण पर अंकित करवाया।

ब्रिटिश गोली की शिकार बनी शहीद वीरांगना मातंगिनी हाजरा के आखिरी शब्द "वन्दे मातरम्" ही थे।

मैडम भीखाजी कामा ने साल 1907 में जर्मनी के स्टुटगार्ट में आयोजित समाजवादी सम्मेलन में जो तिरंगा फहराया उसके मध्य में वन्दे मातरम् लिखा हुआ था।

अमर क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की किताब क्रांति गीतांजलि का पहला गीत वन्दे मातरम् ही था।

बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत एवं बांग्ला में रचित गीत वन्दे मातरम

वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलाम्

मलयजशीतलाम्

शस्यश्यामलाम्

मातरम्।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम्॥1

सप्तकोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले

द्विसप्तकोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,

अबला केन मा एत बले।

बहुबलधारिणीं

नमामि तारिणीं

रिपुदलवारिणीं

मातरम् ॥2

तुमि विद्या, तुमि धर्म

तुमि हृदि, तुमि मर्म

त्वम् हि प्राणा: शरीरे

बाहुते तुमि मा शक्ति,

हृदये तुमि मा भक्ति,

तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे ॥3

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

कमला कमलदलविहारिणी

वाणी विद्यादायिनी,

नमामि त्वाम्

नमामि कमलाम्

अमलां अतुलाम्

सुजलां सुफलाम्

मातरम् ॥4

वन्दे मातरम्

श्यामलाम् सरलाम्

सुस्मिताम् भूषिताम्

धरणीं भरणीं

मातरम् ॥5

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