भारत का इतिहास

Socio religious reform movement: Annie Besant and the Theosophical Society

सामाजिक-धार्मिक सुधार आन्दोलन : एनी बेसेन्ट और थियोसॉफिकल सोसाइटी

थियोसॉफिकल सोसाइटी की अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष एनी बेसेंट ने हिन्दू पुनर्जागरण तथा भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया। समाज सुधारक तथा शिक्षाविद् ऐनी बेसेन्ट ने थियोसॉफिकल सोसाइटी के जरिए देश में कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की तथा महिला शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु पुरजोर प्रयास किया।

इतना ही नहीं, प्रखर वक्ता एवं भारतीय राष्ट्रवाद की प्रचारक मिसेज बेसेन्ट ने अखिल भारतीय होमरूल लीग की स्थापना करके देशवासियों में स्वराज्य की अलख जगाई। समाजवादी-थियोसोफिस्ट एनी बेसेंट ने साल 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया।

एनी बेसेन्ट का संक्षिप्त जीवन-परिचय

ब्रिटेन के लन्दन में जन्मी एनी बेसेन्ट (01 अक्टूबर 1847 ई.) के बचपन का नाम एनी वुड था। आयरिश परिवार से ताल्लुकात रखने वाली एनी बेसेन्ट जब पांच वर्ष की थीं तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। पेशे से डॉक्टर पिता के निधन के पश्चात परिवार की माली हालत खराब हो गई, ऐसे में एनी बेसेन्ट की शिक्षा का भार उनकी मां की सहेली एलेन मेरियट ने उठाया। मिस मेरियट उन्हें अपने साथ फ्रांस और जर्मनी ले गईं।

गणित एवं दर्शनशास्त्र में अभिरूचि रखने वाली एनी बेसेन्ट ने जल्द ही फ्रेंच एवं जर्मन भाषा सीख ली। इसके बाद एनी बेसेन्ट जब 17 साल की थीं, तब वह अपने मां के पास लौट आईं। एनी बेसेन्ट जब 20 वर्ष की थीं तब उनकी शादी फ्रैंक बेसेन्ट नामक शख्स से हुई जो लिंकनशायर के सिबसी स्थित सेंट मार्गरेट चर्च में पादरी था।

जीवन के शुरूआती दिनों में एनी बेसेन्ट का ईसाई धर्म से विश्वास उठ गया, लिहाजा धार्मिक मतभेदों के चलते एनी बेसेन्ट का तलाक हो गया। एनी बेसेन्ट का मानना था कि चर्च के सबसे महान सेन्ट ऐसे हैं जो स्त्रियों से सर्वाधिक घृणा करते हैं। इसके बाद एनी बेसेन्ट थियोसॉफिकल सोसाइटी के सम्पर्क में आईं।

थियोसॉफिकल सोसाइटी की स्थापना

साल 1875 में एक रूसी महिला मैडम एच.पी. ब्लावत्सकी (पूरा नाम हेलेना पेट्रोवना व्लावत्सकी) तथा इंग्लैण्ड के एक भूतपूर्व कर्नल एच.एस. आल्कॉट (पूरा नाम हेनरी स्टील आल्कॉट) ने अमेरिका के न्यूयार्क में थियोसॉफिकल सोसाइटी की स्थापना की।

थियोसॉफी शब्द थियो और सॉफी से मिलकर बना है, जिसमें थियो का अर्थ है- ईश्वर और सोफी का अर्थ है- ज्ञान यानि कि ईश्वर का ज्ञानथियोसॉफिकल सोसाइटी के दो आधार स्तम्भ थे बन्धुत्व और स्वतंत्रता।

इस सोसाइटी की स्थापना सभी प्राच्य धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करने के उद्देश्य से किया गया था। इस सोसाइटी ने हिन्दू धर्म को विश्व का सर्वाधिक गूढ़ एवं आध्यात्मिक धर्म माना। थियोसॉफी (ब्रह्म विद्या) हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक दर्शन और उसके कर्म सिद्धान्त तथा आत्मा के पुनर्जन्म सिद्धान्त का समर्थन करती है। यह सोसाइटी जाति-पांति, सम्प्रदाय या लिंगभेद किए बिना मनुष्य के सार्वभौमिक बन्धुत्व का प्रचार करती थी। इस सोसाइटी के अनुयायी ईश्वरीय ज्ञान को आत्मिक हर्षोन्माद (spiritual ecstacy) और अंतर्दृष्टि (intuition) द्वारा प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे।

थियोसॉफिकल सोसाइटी ने रूढ़िवादी परम्परा के अनुसार हिन्दू धर्म की व्याख्या की और प्राचीन भावना कृष्णवन्तो विश्वमार्यम को साकार बनाने का प्रयत्न किया। इसके साथ ही भारतीयों में राष्ट्रीय गौरव की भावना विकसित करने में भी इस आन्दोलन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भारत में थियोसॉफिकल सोसाइटी का अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालय साल 1882 में मद्रास की एक बस्ती आड्यार में खोला गया। यद्यपि इस सोसाइटी की शाखाएं सम्पूर्ण भारत में खुलीं परन्तु दक्षिण भारत में इसका प्रभाव ज्यादा रहा। 10 मई 1889 ई. को एनी बेसेन्ट थियोसॉफिकल सोसाइटी की औपचारिक सदस्य बनीं।

एनी बेसेन्ट का भारत आगमन

साल 1891 में मैडम व्लावत्सकी के निधन के पश्चात 16 नवम्बर 1893 ई. को एनी बेसेन्ट मद्रास के अड्यार में थियोसॉफिकल सोसाइटी के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आईं, तब उनकी उम्र 46 साल थी। एनी बेसेन्ट भारतीय विचार एवं संस्कृति से भलीभांति परिचित थीं, ऐसे में उन्होंने भारत का व्यापक भ्रमण किया। 1907 ई. में आल्काट की मृत्यु के पश्चात एनी बेसेन्ट (1847-1933) थियोसॉफिकल सोसाइटी की दूसरी अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षा बनीं। वह मृत्युपर्यन्त (20 सितंबर,1933 ) इस पद पर बनी रहीं। एनी बेसेंट का 85 वर्ष की आयु में ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसीडेंसी के अड्यार में निधन हो गया। एनी बेसेन्ट को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि जब तक भारतवर्ष जीवित है, तब तक एनी बेसेन्ट की सेवाएं भी जीवित रहेंगी।

बता दें कि एनी बेसेन्ट ने साल 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में थियोसॉफिकल सोसाइटी का प्रतिनिधित्व किया था। यह विश्व धर्म सम्मेलन भारत में इसलिए विख्यात है क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने भी इस सम्मेलन को संबोधित किया था।

एनी बेसेन्ट ने ब्रदर्स आफ सर्विस नामक संस्था के जरिए भारत में फैली सामाजिक बुराईयों जैसे- बाल विवाह, जाति व्यवस्था को दूर करने तथा विधवा पुनर्विवाह के लिए पुरजोर प्रयास किया और फिर यह आन्दोलन काफी लोकप्रिय हुआ।

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए एनी बेसेन्ट ने बनारस में 1898 ई. मेंसेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की स्थापना की, जहां हिन्दू धर्म एवं पाश्चात्य वैज्ञानिक विषय पढ़ाए जाते थे। आगे चलकर साल 1916 में मदनमोहन मालवीय जी के प्रयासों से यह शिक्षण संस्थान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में परिवर्तित हो गया।

साल 1914 में एनी बेसेन्ट ने साप्ताहिक पत्र कॉमनव्हील तथा दैनिक समाचार पत्र न्यू इंडिया का सम्पादन करते हुए ब्रिटिश भारत की औपनिवेशिक सरकार पर हमले किए तथा स्वशासन की दिशा में निर्णायक कदम उठाने की पहल की। आयरलैण्ड के स्वराज्य लीग के नमूने पर एनी बेसेन्ट ने सितम्बर 1916 में बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर अखिल भारतीय होमरूल लीग की स्थापना की। इस लीग ने भारत के अधिकांश क्षेत्रों को गम्भीर रूप से प्रभावित किया। 1917 में एनी बेसेन्ट के होमरूल लीग के आधिकारिक सदस्यों की संख्या तकरीबन 27 हजार थी।

साल 1917 में एनी बेसेन्ट ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन की अध्यक्षता की, ऐसे में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष थीं।

हिन्दू पुनर्जागरण में थियोसॉफिकल सोसाइटी का योगदान

एनी बेसेन्ट की असामान्य वाक् शक्ति, लेखन शक्ति तथा सुधारवादी उत्साह ने थियोसॉफिकल सोसाइटी की सफलता में भरपूर योगदान दिया। एनी बेसेन्ट को प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति जबरदस्त आकर्षण था। एनी बेसेन्ट ने भागवद्गीताका थॉट्स आन दी स्टडी ऑफ द भगवदगीता नाम से अंग्रेजी अनुवाद भी किया, इससे प्रतीत होता है कि वह वेदान्त में विश्वास रखती थीं। आखिरकार वह हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज में पूर्णतया रम गईं। हिन्दू धर्म एवं भारत का पुनरूत्थान ही बेसेन्ट का कर्तव्य हो गया। 

एनी बेसेन्ट ने भारत की प्राचीन गौरव-गरिमा को पुन: स्थापित करने का यथासम्भव प्रयत्न किया। एनी बेसेन्ट की अगुवाई में सभी धर्मावलम्बी एक-दूसरे के नजदीक आए। भारत में थियोसॉफिकल सोसाइटी एनी बेसेन्ट की देख-रेख में हिन्दू पुनर्जागरण का आन्दोलन बन गई। इस सोसाइटी ने नई पीढ़ी के दृष्टिकोण को गम्भीर रूप से प्रभावित किया। सबसे बढ़कर सोसाइटी ने भारतीयों में उनके प्राचीन गौरव को उजागर कर आत्मसम्मान पैदा किया और राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में मदद की।

थियोसॉफिकल सोसाइटी की हिन्दू धर्म की व्याख्या रूढ़िवादी थी और इसके कई भारतीय नेता जैसे बनारस के डॉ. भगवान दास और मद्रास के सर एस. सुबमण्यम अय्यर हिन्दू रूढ़िवादिता के समर्थक थे। हांलाकि सोसायटी के रूढ़िवादी दृष्टिकोण का इसके प्रसार एवं सफलता पर बेहद खराब असर पड़ा। इसके तांत्रिक स्वरूप को देखकर ही कुछ लोग इसमें शामिल नहीं हुए अथवा इससे अलग हो गए। किन्तु इसके सामाजिक सिद्धान्त काफी प्रगतिशील और ज्यादा महत्वपूर्ण थे।

एनी बेसेन्ट का हिन्दुत्ववादी दृष्टिकोण

एनी बेसेन्ट ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी में व्यतीत किया लिहाजा उन पर काशी और गीता का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह शनै:-शनै: हिन्दू बन गईं, न केवल विचारों से अपितु वस्त्र, भोजन, मेल-मिलाप एवं सामाजिक शिष्टाचारों से भी। उन दिनों जनसामान्य में एक कथा प्रचलित हो उठी कि एनी बेसेन्ट पूर्व जन्म में शुद्ध ब्राह्मण थीं, इसीलिए वह हिन्दू धर्म शास्त्रों की व्याख्या करने में सिद्धहस्त थीं।

हैरानी बात यह है कि एनी बेसेन्ट रूद्राक्ष की माला पहनती थीं तथा अक्सर साड़ी भी पहनती थीं। एक बार कांची के शंकराचार्य के साथ मंच साझा वक्त करते एनी बेसेन्ट ने अपने व्याख्यान की शुरूआत शिव स्तुति से की थी, इसलिए शंकराचार्य उन्हें साक्षात सरस्वती की प्रतिमूर्ति कहा था।

एनी बेसेन्ट ईश्वर के अतिरिक्त भूत-प्रेत जैसी नाकारात्मक शक्तियों में भी विश्वास रखती थीं। हिन्दू धर्म में अगाध विश्वास के कारण ही उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना जागी। प्रखर वक्ता एनी बेसेन्ट अपना सम्पूर्ण जीवन भारत की आजादी, समाज-सुधार एवं शिक्षा के लिए अर्पित कर दिया।

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