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Anne Besant used to say that “in my previous life I was a Hindu”

ऐनी बेसेन्ट कहती थीं कि “पूर्व जन्म में मैं हिन्दू थी ”

एनी बेसेन्ट का जन्म स्थानएक अक्टूबर सन् 1847 को ब्रिटेन के लंदन में जन्मी एनी बेसेंट के बचपन का नाम एनी वुड था। आयरिश परिवार से ताल्लुकात रखने वाली एनी बेसेन्ट अभी पांच वर्ष की थी, तभी उनके पिता का देहावसान हो गया। चूंकि एनी बेसेन्ट के पिता पेशे से डॉक्टर थे अत: उनके निधन के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। ऐसे में एनी बेसेन्ट की शिक्षा का भार उनकी मां की सहेली मिस मेरियट ने उठाया। मिस मेरियट उन्हें अपने साथ फ्रांस और जर्मनी ले गईं। गणित और दर्शनशास्त्र में अभिरूचि रखने वाली ऐनी बेसेन्ट ने बहुत जल्द ही जर्मन और फ्रांसीसी भाषा सीख लिया। इसके बाद जब वह 17 साल की थीं तब अपने मां के पास वापस लौट आईं। एनी बेसेन्ट जब 19 वर्ष की थीं तब उनकी शादी फ्रैंक बेसेंट नामक शख्स से हुई जो एक पादरी थे। जीवन के शुरूआती दिनों से ही ऐनी बेसेन्ट का ईसाई मत से विश्वास उठ गया था लिहाजा धार्मिक मतभेदों के कारण उनका तलाक हो गया। एनी बेसेन्ट का मानना था कि चर्च के सबसे महान सेन्ट ऐसे हैं जो स्त्रियों से सर्वाधिक घृणा करते हैं। इसके बाद ऐनी बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसाइटी के सम्पर्क में आईं।

थियोसोफिकल सोसाइटी और मिसिज एनी बेसेन्ट-  थियोसोफिकल सोसाइटी उन पश्चिमी विद्वानों द्वारा आरम्भ की गई थी जो भारतीय संस्कृति और विचारों से बहुत प्रभावित थे। मैडम एच.पी. ब्लावेट्स्की ने वर्ष 1875 में थियोसोफिकल सोसाइटी की नींव अमेरिका में रखी। इस सोसाइटी के सदस्य कर्नल एम.एस. ओल्कॉट भी थे। 1882 में कर्नल ओल्कॉट ने थियोसोफिकल सोसाइटी का मुख्य कार्यालय मद्रास के समीप अडयार में स्थापित कर लिया। थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य पुनर्जन्म तथा कर्म में विश्वास रखते थे और सांख्य तथा उपनिषदों के दर्शन द्वारा प्रेरणा प्राप्त करते थे, इनका विश्वास आध्यात्मिक भ्रातृभाव में था। इस समाज के अनुयायी ईश्वरीय ज्ञान, आत्मिक हर्षोन्माद और आत्मिक ज्ञान के जरिए प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे। कुछ वर्षों में यह आन्दोलन भी हिन्दू पुनर्जागरण का भाग बन गया।

एनी बेसेन्ट का भारत आगमन- कर्नल ओल्कॉट की मृत्यु के पश्चात एनी बेसेन्ट 16 नवंबर 1893 को मद्रास के अडयार में थियोसोफिकल सोसायटी के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आईं। चूंकि एनी बेसेन्ट भारतीय विचार और संस्कृति से भलीभांति परिचित थीं ऐसे में उन्होंने व्यापक रूप से भारत भ्रमण किया। एनी बेसेन्ट ने 'ब्रदर्स ऑफ सर्विस' नामक संस्था के जरिए भारत में फैली सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, विधवा विवाह आदि को दूर करने का पुरजोर प्रयास किया।

हिंदू धर्म और भागवद्गीता- मिसिज एनी बेसेन्ट ने 1907 से 1933 तक थियोसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख के रूप में कार्य किया। इस दौरान हिंदू धर्म और इसके आध्यात्मिक सिद्धांतों में रुचि रखने के कारण भगवद्गीता से लगाव हो गया था जिसके चलते उन्होंने 'थाट्स आन दी स्टडी ऑफ दी भगवद्गीता' नाम से इसका अंग्रेजी-अनुवाद भी किया। भगवद्गीता के अनुवाद से प्रतीत होता है कि वह हिन्दू धर्म और वेदान्त में विश्वास रखती थीं। यह हिन्दू धर्म का ही प्रभाव था कि वर्ष 1898 में एनी बेसेन्ट ने वाराणसी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की जिसमें हिन्दू धर्म और पाश्चात्य वैज्ञानिक विषय पढ़ाए जाते थे। आगे चलकर 1916 में यही काशी हिंदू विश्वविद्यालय बन गया।

आखिरकार हिन्दू हो गईं मिसिज एनी बेसेन्ट-

एनी बेसेन्ट का अधिकांश समय वाराणसी में बीता। इसलिए उन पर काशी और गीता का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह शनै: शनै: हिन्दू हो गईं— न केवल विचारों से अपितु वस्त्र, भोजन, मेल-मिलाप और सामाजिक शिष्टाचार से भी। उन दिनों एक कथा प्रचलित हो गई थी कि मिसिज बेसेन्ट पूर्व जन्म में शुद्ध ब्राह्मण थीं और इसी कारण वह हिन्दू धर्म शास्त्रों की व्याख्या करने में सिद्धहस्त थीं। एनी बेसेन्ट हमेशा 'रुद्राक्ष' की माला पहनती थी और अक्सर साड़ी (तमिलियन तरीके से) भी पहनती थीं। एक बार कांची के शंकराचार्य के साथ मंच साझा करते वक्त एनी बेसेन्ट ने अपने व्याख्यान की शुरूआत ‘शिव स्तुति’ से किया ​था। एनी बेसेन्ट का व्याख्यान सुनने के बाद शंकराचार्य ने उन्हें साक्षात ‘सरस्वती की प्रतिमूर्ति’ कहा था।

एनी बेसेन्ट ईश्वर के अतिरिक्त भूत-प्रेत जैसी नाकारात्मक शक्तियों में भी विश्वास रखती थीं। उन्होंने रूढ़िवादी परम्परा के अनुसार हिन्दू धर्म की व्याख्या की और प्राचीन भावना ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ को साकार करने का प्रयत्न किया। हिन्दू धर्म में अगाध विश्वास के फलस्वरूप उनमें राष्ट्र निर्माण भी भावना जागी। प्रखर वक्ता ऐनी बेसेन्ट ने अपना पूरा जीवन भारत की आजादी, समाज सुधार और शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया।

 ऐनी बेसेन्ट ने 1914 में साप्ताहिक समाचार पत्र ‘कॉमनविल’ की स्थापना की। इसी वर्ष उन्होंने 'मद्रास स्टैंडर्ड' को खरीदकर उसे 'न्यू इंडिया' नाम दिया। इन दो अखबारों के जरिए एनी बेसेन्ट ने अपनी आवाज उठाई कि जिस तरह से गोरे उपनिवेशों में वहां की जनता को अपनी सरकार बनाने का अधिकार दिया गया है, ठीक उसी प्रकार से भारतीय जनता को भी स्वशासन का अधिकार मिले। ऐनी बेसेन्ट ने राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए कई किताबें लिखीं जैसे- शैल इंडिया डाई ऑर लिव', 'अवेक इंडिया','न्यू सिविलाइजेशन, 'प्राचीन आदर्श इन मॉडर्न लाइफ',हाउ इंडिया रॉट हर फ्रीडम' आदि।

एनी बेसेन्ट ने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के साथ मिलकर होम रूल लीग यानि स्वराज संघ की स्थापना की। होम रूल आन्दोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इसने भावी राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए जुझारू योद्धा तैयार किए। भारतीय मुक्ति संग्राम के दौरान साल 1917 में वह राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनीं, यह उनकी लोकप्रियता का परिणाम था कि महात्मा गांधी ने उन्हें बसंत देवी तक कह डाला था। साल 1917 में जब उन्हें ब्रिटीश सरकार ने नजरबन्द कर दिया तब उनकी आयु सत्तर वर्ष थी। उन्होंने अपने आखिरी संदेश में कहा कि “मैं वृद्धा हूँ, किन्तु मुझे विश्वास है कि मरने के पहले ही मैं देखूंगी कि भारत को स्वायत्त-शासन मिल गया।” एनी बेसेंट का निधन 20 सितंबर 1933 को अडयार में हुआ। हिंदू धर्म में उनकी आस्‍था का ही परिणाम था कि मोक्ष प्राप्ति की कामना से उनकी इच्छानुसार उनकी अस्थियों को काशी लाकर मां गंगा में प्रवाहित किया गया।

एनी बेसेन्ट ने हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व के लिए क्या कहा- मिसिज ऐनी बेसेन्ट कहती थीं कि पूर्व जन्म में मैं हिन्दू थी। सत्यतापूर्वक ईश्वर को साक्षी मानकर मैं यह कह रही हूँ कि हिन्दू धर्म विश्व में सबसे प्राचीन ही नहीं बल्कि सर्वश्रेष्ठ भी है। भारत और हिन्दुत्व एक-दूसरे के पर्याय हैं। भारत और हिन्दुत्व की रक्षा भारतवासी और हिन्दू ही कर सकते हैं। हिन्दुत्व के बिना भारत के सामने कोई भविष्य नहीं है। भारत में प्रश्रय पाने वाले अनके धर्म व जातियां है लेकिन इनमें से किसी में दम नहीं हैं कि वह भारत को एक राष्ट्र के रूप में जीवित रख सकें। भारत के इतिहास को देखिए, उसके साहित्य, कला और स्मारकों को देखिए, सब पर हिन्दुत्व, स्पष्ट रूप से खुदा हुआ है। ऐसे भारत को मैं नमन करती हूं।

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