
भारत में समाचार पत्रों का इतिहास यूरोपीय शक्तियों के आगमन से शुरू होता है। भारत में प्रिंटिंग प्रेस लगाने का श्रेय सर्वप्रथम पुर्तगालियों को जाता है। गोवा के कुछ पादरियों ने साल 1557 में भारत में पहली पुस्तक छापी। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1684 ई. में बम्बई में अपनी पहली प्रिंटिंग प्रेस लगाई। विलियम बोल्ट्स ने 1776 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी की नीतियों के विरूद्ध समाचार पत्र प्रकाशित करना चाहा किन्तु उसे इंग्लैण्ड भेज दिया गया।
भारत में पहला समाचार पत्र निकालने का श्रेय जेम्स ऑगस्टस हिक्की को जाता है। जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 ई. में ‘द बंगाल गजट’ का प्रकाशन किया परन्तु ईस्ट इंडिया कम्पनी के कुछ अधिकारियों की आलोचना के कारण इसे जब्त कर लिया गया। भारत के पहले समाचार पत्र ‘द बंगाल गजट’ का एक नाम ‘The Calcutta General Advertiser’ भी था। 1780 ई. में ही ‘इंडिया गजट’ नामक एक अन्य समाचार पत्र का भी प्रकाशन हुआ।
जेम्स ऑगस्टस हिक्की का प्रेस जब्त किए जाने के पश्चात कुछ अन्य समाचार पत्र निकलने शुरू हुए, उनमें प्रमुख हैं— कलकत्ता गजट (1784 ई.), बंगाल जनरल (1785 ई.), द ओरिएंटल मैगजिन ऑफ कलकत्ता (1785 ई.), द कलकत्ता एम्यूजमेन्ट (1786 ई.), कलकत्ता क्रॉनिकल (1788 ई.), मद्रास कूरियर (1788 ई.) आदि।
गंगाधर भट्टाचार्य ऐसे पहले भारतीय थे जिन्होंने साल 1816 में अंग्रेजी में साप्ताहिक समाचार पत्र ‘बंगाल गजट’ का प्रकाशन किया। साल 1818 में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किंघम ने ‘कलकत्ता जनरल’ का सम्पादन किया। प्रेस को आधुनिक स्वरूप देने का श्रेय जेम्स सिल्क बर्किंघम को दिया जाता है। मार्शमैन ने 23 मार्च 1818 ई. को साप्ताहिक समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ का प्रकाशन शुरू किया, इसे साप्ताहिक समाचार पत्र ‘दिग्दर्शन’ (बंगाली भाषा में) का समकालीन माना जाता है।
भारतीय भाषा में समाचार पत्र प्रकाशित करने की शुरूआत सेरामपुर की मिशनरियों के द्वारा किया गया। वहीं भारत में राष्ट्रीय प्रेस की स्थापना का श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय के प्रबन्धन में एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘संवाद कौमुदी’ का प्रकाशन 4 दिसम्बर 1821 ई. को आरम्भ हुआ।
सामाजिक तथा धार्मिक विचारों का विरोध करने के लिए राजा राममोहनराय ने मार्च 1822 में ‘समाचार चन्द्रिका’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। अप्रैल 1822 ई. में राजा राममोहन राय ने फारसी भाषा में ‘मिरातुल अखबार’ (साप्ताहिक) तथा अंग्रेजी भाषा में ‘ब्रह्मनिकल मैगजीन’ निकालना शुरू किया। इसके अतिरिक्त राजा राममोहन राय ने ‘तुहफतुल मुवाहिदीन’ नामक एक फारसी पैम्फ्लेट का भी प्रकाशन किया।
जुगल किशोर ने साल 1826 में कानपुर से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू किया जो भारत का पहला हिन्दी समाचार पत्र है। राजा राममोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर तथा प्रसन्न कुमार टैगोर के सम्मिलित प्रयासों से 1830 ई. में बांग्ला भाषा में ‘बंगदत्त’ नामक पत्रिका का प्रकाशन हुआ।
1830 ई. में ही ईश्वरचन्द्र गुप्त ने बंगाली भाषा में समाचार पत्र ‘सम्वाद प्रभाकर’ शुरू किया। 1851 ई. में दादाभाई नौरोजी ने ‘रफ्त गोफ्तार’ तथा ‘अखबारे सौदागर’ का प्रकाशन किया। 1859 ई. में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने बंगाली भाषा में ‘सोम प्रकाश’ का प्रकाशन किया।
1857 की महाक्रांति के बाद भारतीय समाचार पत्र
1857 की महाक्रांति के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी देखने को मिली, ये सभी समाचार पत्र ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक बन गए। लार्ड लिटन की साम्राज्यवादी नीतियों के विरूद्ध समाचार पत्रों ने आग उगलना शुरू किया।
1868 ई. में मोतीलाल घोष ने कलकत्ता से बंगाली भाषा में ‘अमृत बाजार पत्रिका’ का प्रकाशन शुरू किया। किन्तु वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए 1878 ई. में यह समाचार पत्र अंग्रेजी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गया। इसके बाद 1891 ई. में यह दैनिक अखबार बन गया। संयुक्त प्रान्त (अब उत्तर प्रदेश) में ‘आजाद’ एवं ‘हिन्दुस्तान’ नामक अखबारों तथा पंजाब में ट्रिब्यून एवं अखबार-ए-आम ने राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
साल 1905 में बंगाल विभाजन के कारण देश में उत्पन्न अशांति तथा क्रांतिकारियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए लार्ड कर्जन ने समाचार अधिनियम -1908 लागू किया। इस अधिनियम के तहत नौ समाचार पत्रों पर मुकदमा चलाकर सात प्रिंटिंग प्रेस को जब्त कर लिया गया। पत्रकारों को अब उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर विभाजित किया जाने लगा।
भारत में अंग्रेजों द्वारा सम्पादित समाचार पत्रों में इलाहाबाद से प्रकाशित समाचार पत्र ‘पायनियर’ को ब्रिटिश सरकार की सबसे अधिक कृपादृष्टि प्राप्त थी। रॉबर्ट नाइट द्वारा सम्पादित समाचार पत्र ‘स्टेट्समैन’ अपने उदार विचारों के लिए प्रख्यात था, वहीं एंग्लो-इंडियन समाचार पत्रों में ‘इंग्लिश मैन’ सर्वाधिक रूढ़ावादी तथा प्रतिक्रियावादी समाचार पत्र था। जबकि लाहौर से प्रकाशित अखबार ‘सिविल एण्ड मिलिट्री गजट’ ब्रिटिश दकियानूसी विचारों का समर्थक था।
ब्रिटिश गवर्नर जनरलों में लॉर्ड वेलेजली, लॉर्ड मिन्टो, जनरल एडम्स तथा लॉर्ड लिटन के अतिरिक्त एलफिन्सटन व टॉमस मुनरो ऐसे नाम हैं, जो भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता के विरोधी थे। वहीं दूसरी तरफ गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स, चार्ल्स मेटकाफ, विलियम बेंटिक, मैकाले तथा लॉर्ड रिपन ऐसे नाम हैं, जो भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता के समर्थक थे।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
उर्दू का पहला समाचार पत्र सैय्यद -उल-अखबार था जिसका प्रकाशन 1818 ई. में किया गया। भारत में अंग्रेजों द्वारा सम्पादित प्रमुख समाचार पत्रों के नाम कुछ इस प्रकार हैं — टाइम्स ऑफ इंडिया-1861 ई., स्टेट्स मैन-1870 ई., फ्रेंड ऑफ इंडिया, मद्रास मेल, पायनियर-1865 ई.इलाहाबाद, सिविल एण्ड मिलिट्री गजट-1876 ई. लाहौर, इंग्लिश मैन आदि। बॉम्बे टाइम्स, बॉम्बे स्टैण्डर्ड तथा दो अन्य समाचार पत्रों को मिलाकर 1861 ई. में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ का प्रकाशन शुरू हुआ।
दादाभाई नौरोजी ने रफ्तगोफ्तार के अतिरिक्त हिन्दुस्तानी, वॉयस ऑफ इंडिया तथा एडवोकेट ऑफ इंडिया नामक समाचार पत्रों का भी सम्पादन किया। ‘आधुनिक हिन्दी भाषा के पिता’ भारतेन्दु हश्चिन्द्र ने साल 1867 में बनारस से ‘कविवचन सुधा’ का प्रकाशन शुरू किया।
बंकिमचन्द्र चटर्जी ने 1873 ई. में बांग्ला भाषा में ‘बंगदर्शन’ नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। भारतीयों द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित पहले दैनिक अखबार का नाम ‘हिन्दू पैट्रियाट’ था। इसके संस्थापक तथा सम्पादक हश्चिन्द्र मुखर्जी थे। बाद में क्रिस्टोदास पाल भी हिन्दू पैट्रियाट के सम्पादक बने। क्रिस्टोदास पाल को ‘पत्रकारिता का राजकुमार’ कहा जाता है। तत्पश्चात ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने इसे खरीद लिया।
साल 1874-75 के दौरान सुरेन्द्रनाथ बनर्जी लन्दन में ‘हिन्दू पेट्रियाट’ के संवाददाता रहे। हिन्दू पेट्रियाट को बाद में ब्रिटिश इंडियन ऐसोसिएशन ने खरीद लिया। गिरीश चन्द्र घोष ने 1876 ई. में ‘बंगाली’ नामक अखबार शुरू किया था, जिसे 1879 ई. में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने खरीद लिया।
1910 ई. में कानपुर से प्रकाशित अखबार ‘प्रताप’ का सम्पादन गणेश शंकर विद्यार्थी ने किया। यह अखबार उग्र राष्ट्रीयता का द्योतक तथा देशी रियासतों में जनता व किसान-मजदूर वर्ग का समर्थक था। लाहौर से उर्दू में प्रकाशित अखबार का नाम तालीफ-व-इशाद था। यह अखबार स्कूलों में चलाई जा रही पुस्तकों की समीक्षा करके ब्रिटिश सरकार को जानकारी देता था।
बाल गंगाधर तिलक ने ‘केसरी’ तथा अरविन्द घोष और बारीन्द्र घोस ने ‘युगान्तर’ और ‘वंदेमातरम’ के माध्यम से 1905 के बंगाल विभाजन का विरोध किया था।
‘बम्बई के बेताज बादशाह’ के नाम से पॉपुलर फिरोज शाह मेहता ने अपने उदारवादी विचारों को फैलाने के लिए साल 1913 में ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ का प्रकाशन किया। बॉम्बे क्रॉनिकल का सम्पादन बी.जी. हार्निमन ने भी किया।
मद्रास से प्रकाशित अखबार ‘मद्रास स्टैण्डर्ड’ को मिसेज एनीबेसेन्ट ने खरीदकर उसका नाम ‘न्यू इंडिया’ रखा। एनीबेसेन्ट ने ‘कॉमन व्हील’ नामक अखबार का भी प्रकाशन किया।
1922ई. में के. एम. पन्निकर ने दिल्ली से अंग्रेजी दैनिक ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’ का प्रकाशन किया। इसे मदन मोहन मालवीय ने खरीद लिया, इसके बाद साल 1927 में इस अखबार को धनश्याम दास बिड़ला ने खरीद लिया।
हमीद अल अंसारी ने बिजनौर से ‘मदीना’ तथा अब्दुल बारी ने लखनऊ से ‘हमदम’ नामक उर्दू पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। एस.सदानन्द ने 1930 में ‘दी फ्री प्रेस जरनल’ का सम्पादन व प्रकाशन किया। यह पत्र कांग्रेस तथा स्वतंत्रता आन्दोलन का समर्थक था।
प्रेस के विरूद्ध लगाए गए प्रतिबन्ध
शुरूआती दौर में भारत के सभी समाचार पत्र ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों की दया पर निर्भर थे, प्रेस सम्बन्धी कोई कानून नहीं था। परन्तु गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली ने 1799 ई. में ‘पत्रेक्षण अधिनियम’ पारित कर समाचार पत्रों पर सेंसर लागू कर दिया। इस अधिनियम के तहत समाचार पत्र के सम्पादक, मुद्रक तथा स्वामी का नाम स्पष्ट रूप से प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया गया। हांलाकि लार्ड हेस्टिंग्स ने 1818 ई. में इस अधिनियम को समाप्त कर दिया।
इससे दो कदम आगे बढ़कर कार्यवाहक गवर्नर जनरल एडम्स ने 1823 ई. में अनुज्ञप्ति नियम लागू कर मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापित करने से पहले लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया। लाइसेंस के बिना किसी भी साहित्य को मुद्रित अथवा प्रकाशित करने पर 400 रुपए का जुर्माना अथवा उसके बदले कारावास के दण्ड का प्रावधान था। अनुज्ञप्ति नियम के तहत राजा राममोहन राय को ‘मिरातुल अखबार’ का प्रकाशन बन्द करना पड़ा।
गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक का दृष्टिकोण समाचार पत्रों के प्रति बेहद उदार था। कार्यवाहक गवर्नर जनरल चार्ल्स मेटकाफ ने 1823 ई.में अनुज्ञप्ति नियमों को रद्द कर दिया, जिससे चार्ल्स मेटकाफ को ‘भारतीय समाचार पत्रों का मुक्तिदाता’ कहा गया। चार्ल्स मेटकाफ ने ‘the Liberation of the Indian press act, 1935’ पारित किया। इस एक्ट के तहत मुद्रकों तथा प्रकाशकों को केवल प्रकाशन के स्थान की सूचना देनी पड़ती थी।
1857 के विद्रोह के दौरान उत्पन्न हुई स्थितियों से निपटने के लिए 1857 के अधिनियम संख्या-15 के अनुसार, अनुज्ञप्ति नियम को दोबारा लागू कर दिया गया। लार्ड लिटन ने साल 1878 में देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम (वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट) पारित किया।
‘सोमप्रकाश’ व ‘भारत मिहिर’ ऐसे अखबार थे जिनके विरूद्ध लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू किया। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को ‘मुंह बन्द करने वाला अधिनियम’ कहा गया। इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायालय में अपील करने का कोई अधिकार नहीं था। एक मात्र समाचार पत्र ‘पायनियर’ ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट का पूर्ण रूप से समर्थन किया था। पायनियर की स्थापना जॉर्ज एलन ने की जो पूर्वोत्तर भारत के प्रतिष्ठित चाय कारोबारी थे।
गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन (1880 से 1884 ई.) ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट रद्द कर दिया। भारतीय राजनीति में उग्रवादी विचारों के बढ़ते प्रभावों को रोकने के लिए 1908 ई. में न्यूज पेपर्स एक्ट (सामचार पत्र अधिनियम) पास किया गया। इस एक्ट के तहत उस मुद्रणालय तथा उसकी सम्पत्ति को जब्त करने का आदेश था जिससे हिंसा अथवा हत्या को प्रेरणा मिले। न्यूज पेपर्स एक्ट के तहत बंगाल के उग्र विचारवाले समाचार पत्रों- वंदे मातरम्, संध्या तथा युगान्तर आदि को हमेशा के लिए बन्द कर दिया गया।
1910 ई. में इंडियन प्रेस एक्ट द्वारा स्थानीय सरकार प्रकाशक से बतौर जमानत 500 से 2000 रुपए तक मांग सकती थी। इस अधिनियम के अधीन 991 मुद्रणालयों और समाचार पत्रों के विरूद्ध कार्यवाही की गई। इनमें से 286 को कड़ी चेतावनी दी गई जबकि 705 मामलों में बड़ी-बड़ी जमानतें ली गईं।
साल 1921 में सर तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक प्रेस कमेटी नियुक्त की गई, जिसका उद्देश्य समाचार पत्र सम्बन्धी कानूनों की समीक्षा करना था। इस प्रेस कमेटी की सिफारिश पर 1908 तथा 1910 के प्रेस सम्बन्धी नियमों को रद्द कर दिया गया।
1931 में क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट पारित हुआ। 1947 ई. में ‘प्रेस जांच समिति’ की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य समाचार पत्र कानूनों की समीक्षा कर सुझाव देना था। 1951 के समाचार पत्र अधिनियम के तहत सरकार को समाचार पत्रों तथा मुद्रणालयों से आपत्तिजनक विषय प्रकाशित करने पर जमानत मांगने, जब्त करने और अधिक जमानत मांगने का अधिकार दे दिया गया।
बाद में 1951 के समाचार पत्र अधिनियम की समीक्षा करने के उद्देश्य से न्यायाधीश जी.एस.राजाध्यक्ष की अध्यक्षता में ‘समाचार पत्र आयोग’ की नियुक्ति की गई। इस समाचार पत्र आयोग ने 1954 में जो रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसके मुताबिक अखिल भारतीय समाचार पत्र परिषद गठित करने की सिफारिश की गई।
बाद के वर्षों में भारत सरकार ने डिलवरी ऑफ बुक्स एण्ड न्यूजपेपर्स एक्ट-1954, कार्यकर्ता पत्रकार तथा विविध आदेश अधिनियम-1955, समाचार पत्रों का पन्ने तथा मूल्य अधिनियम-1956 तथा संसद कार्यवाही अधिनियम-1960 आदि पारित किए गए।