भारत का इतिहास

Medieval Provincial Dynasty: History of Gujarat

मध्ययुगीन प्रान्तीय राजवंश : गुजरात का इतिहास

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलूग खान तथा नुसरत खान ने चालुक्य राजा कर्ण बाघेला को पराजित करके 1297 ई. में गुजरात को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। तत्पश्चात 1401 ई. तक गुजरात राज्य दिल्ली सल्तनत का ही एक सूबा रहा। दिल्ली के सुल्तान मुहम्मदशाह तुगलक ने 1391 ई. में जफर खां को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया।

1398 ई. में तैमूर के आक्रमण के पश्चात दिल्ली सल्तनत की दुर्बलता का लाभ उठाकर सूबेदार जफर खां ने साल 1401 में मुजफ्फर शाह की उपाधि धारण कर गुजरात में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। मुजफ्फरिद राजवंश का संस्थापक था मुजफ्फर शाह। मुजफ्फर शाह ने मालवा के शासक हुसंगशाह को पराजित करके उसकी राजधानी धार पर अधिकार कर लिया। यद्यपि बाद में उसने हुसंगशाह को उसका राज्य वापस लौटा दिया। 1411 ई. में मुजफ्फर शाह की मृत्यु हो गई।

अहमदशाह प्रथम (1411 से 1443 ई.)

मुजफ्फर शाह के पौत्र व तातार खां के पुत्र अहमदशाह को स्वतंत्र राज्य गुजरात का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। अपने 32 वर्ष के कार्यकाल में अहमदशाह ने गुजरात के स्थानीय राजाओं समेत राजपूताना, मालवा तथा दक्षिण भारत के पड़ोसी राज्यों से निरन्तर संघर्ष किया। अहमदशाह ने मालवा के शासक हुसंगशाह को पराजित किया। इसके अति​रिक्त अहमदशाह ने राजपूताना के झालवाड़, बूंदी, डूंगरपुर आदि राज्यों को अपने अधीन कर लिया।

अहमदशाह ने 1413 ई. में अहमदाबाद नगर की स्थापना की तत्पश्चात उसने अपनी राजधानी पाटण से अहमदाबाद स्थानान्तरित कर दी।  वह न्याय के प्रति बेहद सख्त था, उसने हत्या के जुर्म में अपने दामाद को सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी।

हांलाकि अहमदशाह धर्मान्ध शासक था। उसने गुजरात में पहली बार ​जजिया कर लगाया तथा प्रख्यात हिन्दू तीर्थस्थल सिद्धपुर पर आक्रमण कर, वहां के कई सुन्दर मंदिरों को नष्ट कर दिया। अहमदशाह ने अहमदाबाद में जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। अहमदशाह द्वारा बनवाई गई इमारतें जैसे- भव्य मस्जिदें, खानकाह, मदरसे आदि इस्लामी तथा हिन्दू स्थापत्य कला का नमूना हैं।

अहमदशाह ने प्रशासन के आधे पदों पर मुसलमानों तथा आधे पदों पर दासों को नियुक्त कर रखा था। बनिया जाति से ताल्लुक रखने वाले मानिकचंद तथा मोतीचंद को अहमदशाह ने अपना मंत्री बनाया था। अहमदशाह एक अच्छा कवि था। अहमदशाह के समय मिस्र के विद्वान बदरूद्दीन दमामीनी ने गुजरात की यात्रा की। सुल्तान की प्रशंसा में विद्वान बदरूद्दीन दमामीनी ने लिखा कि वह सुल्तानों में विद्वान तथा विद्वानों का सुल्तान था।

गयासुद्दीन मुहम्मदशाह (1443 से 1451 ई.)

1443 ई. में अहमदशाह की मृत्यु हो गई। इसके बाद अहमदशाह का ज्येष्ठ पुत्र गयासुद्दीन मुहम्मदशाह गुजरात की गद्दी पर बैठा। गयासुद्दीन मुहम्मदशाह अपने पिता अहमदशाह की भांति सैनिक दृष्टिकोण से बहुत निपुण नहीं था अपितु वह बेहद उदार प्रवृत्ति का था। यही वजह है कि गयासुद्दीन मुहम्मदशाह को करीम (दयालु) कहा जाता था। इसके साथ ही गयासुद्दीन मुहम्मदशाह अत्यन्त विलासी तथा कामुक प्रवृत्ति का था।

उदार प्रवृत्ति के चलते गयासुद्दीन मुहम्मदशाह का एक नाम जरबख्श भी था, जरबख्श से तात्पर्य है - ‘स्वर्णदान करने वाला  गयासुद्दीन मुहम्मदशाह की 1451 ई. में मौत हो गई, तत्पश्चात कुतुबुद्दीन अहमद शाह तथा दाउद खां दो अयोग्य शासक गुजरात की गद्दी पर बैठे।

कुतुबुद्दीन अहमद शाह ने 1451 से 1458 ई. तक शासन किया परन्तु दाउद खां का शासन केवल कुछ ही दिनों तक रहा। राज्य के सरदारों ने अयोग्य दाउद खां को गद्दी से उतारकर 1448 ई. में अबुल फतेह खां को सिंहासन पर बैठा दिया।

महमूद बेगड़ा (1458 से 1511 ई.)

अहमदशाह के पौत्र अबुल फतेह खां ने महमूद शाह की उपाधि धारण कर साल 1459 में गुजरात की गद्दी सम्भाली। गुजरात के दो सबसे ​शक्तिशाली किलों - गिरनार (वर्तमान में जूनागढ़) तथा चम्पानेर को ​जीतने के कारण वह बेगड़ा कहलाया

बता दें कि महमूद बेगड़ा अपने वंश का सबसे महान शासक था। महमूद बेगड़ा ने गिरनार के निकट मुस्तफाबाद तथा चम्पानेर के पास बाग--फिरदौस(स्वर्ग का बगीचा) की स्थापना की। 

महमूद बेगड़ा के दरबारी कवि उदयराज ने सुल्तान की प्रशंसा में संस्कृत ग्रन्थ महमूद चरित की रचना की। उदयराज ने महमूद बेग़ड़ा पर आधारित राजा विनोद नामक पुस्तक लिखी। महमूद बेगड़ा के शासनकाल में ललित कलाओं तथा साहित्य की खूब प्रगति हुई। महमूद बेगड़ा के शासनकाल में कई कृतियों का अरबी से फारसी में अनुवाद किया गया। महमूद बेगड़ा ने पूर्णरूप से शिक्षा नहीं प्राप्त की थी परन्तु निरन्तर विद्वानों के सम्पर्क में रहने के कारण उसने काफी ज्ञान अर्जित कर लिया था।

महमूद बेगड़ा ने द्वारका को जीतकर वहां के कई मंदिरों को नष्ट किया। महमूद बेगड़ा के द्वारका आक्रमण का मुख्य कारण यह था कि उस बन्दरगाह से मक्का जाने वाले हज यात्रियों को समुद्री डाकू लूट लिया करते थे।

महमूद बेगड़ा का सबसे बड़ा दोष यही था कि वह एक धर्मान्ध शासक था। वह हिन्दू प्रजा के प्रति बेहद अ​सहिष्णुतापूर्ण व्यवहार करता था। बावजूद इसके महमूद बेगड़ा का प्रमुख सरदार राय रायन तथा मुख्यमंत्री मलिक गोपी हिन्दू ही थे।  महमूद बेगड़ा ने फारस, तुर्की तथा मिस्र से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किए। उसने अपने दो जनरलों अमीर हुसैन तथा सुलेमान रईस को मिस्र और तुर्की भेजा था। 1508 ई. में दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी ने गुजरात में एक दूतावास स्थापित किया था।

महमूद बेगड़ा को मेवाड़ के शासक महाराणा कुम्भा के आक्रमण का सामना करना पड़ा। महमूद बेगड़ा के शासनकाल तक जूनागढ़, सोरठा, कच्छ तथा द्वारका के अन्य छोटे राजपूत राज्य भी अधीन हो चुके थे। साल 1508 में महमूद बेगड़ा ने चौल के युद्ध में मिस्र के सुल्तान की मदद से नौसैनिक युद्ध में पुर्तगालियों को पराजित किया लेकिन 1509 ई. में पुर्तगाली गवर्नर अल्बकुर्क ने उन्हें पूरी तरह कुचल दिया। बम्बई द्वीप पर कब्जा करने का श्रेय भी महमूद बेगड़ा को ही जाता है, जो उसने बहमनी सल्तनत के जागीरदार कोली जनजातियों से छीना था।

 विदेशी यात्रियों बारबोसा तथा बार्थेमा ने अपने यात्रा वृत्तांत में महमूद बेगड़ा के बारे में कई रोचक बातें लिखी हैं। बारबोसा लिखता है कि महमूद बेगड़ा को बचपन से जहर का सेवन कराया जाता था, ताकि कोई भी दुश्मन उसे जहर देकर नहीं मार सके। बेगड़ा इतना ही जहरीला था कि जब कोई भी मक्खी उस पर बैठती थी, वह तुरन्त मर जाती थीवह इतना पेटू था कि अपने बेड के दोनों तरफ खाना रखकर सोता था, ताकि नींद खुलते ही भोजन कर सके।

बा​र्थेमा के अनुसार, महमूद बेगड़ा की मूंछें इतनी लम्बी थी कि वह उन्हें अपने सिर के पीछे बांधता था। वह आगे लिखता है कि कैम्बे के राजकुमार का प्रतिदिन का भोजन एक गधा, वेसिलिस्क और मेंढक था। जी हां, वह राजकुमार कोई और नहीं महमूद बेगड़ा ही था।  

मुजफ्फर शाह द्वितीय (1511 से 1526 ई.)

महमूद बेगड़ा की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र खलील खांमुजफ्फर शाह द्वितीय (1511 से 1526 ई.) के नाम से गुजरात की गद्दी पर बैठा। मुजफ्फर शाह द्वितीय की मां राजपूत थी और उसने स्वयं कई राजपूत राजकुमारियों से विवाह किया था। मुजफ्फर शाह द्वितीय ने मेदिनीराय के विरूद्ध मालवा के शासक महमूद खिलजी की मदद की और उसकी शक्ति को मांडू में स्थापित करवाया। यद्यपि चन्देरी पर मेदिनीराय का अधिकार बना रहा।

मुजफ्फर शाह द्वितीय का मुख्य प्रति​द्वंदी मेवाड़ का शक्तिशाली शासक राणा संग्राम था जो मेदिनीराय सहित अन्य राजपूत राजाओं की मदद कर रहा था। साल 1520 में मेवाड़ के राणा सांगा ने उत्तरी गुजरात पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया।

यद्यपि मुजफ्फर शाह द्वितीय को महाराणा संग्राम के विरूद्ध कोई भी सफलता नहीं मिल सकी और 1526 ई. में मुजफ्फर शाह द्वितीय की मौत हो गई। उसके पश्चात सिकन्दर और महमूद ​द्वितीय नामक दो अयोग्य शासक हुए परन्तु उन्होंने केवल कुछ माह तक ही शासन किया।

बहादुरशाह (1526 से 1537 ई.)

बहादुरशाह 1526 ई. में सिंहासन पर बैठा। बहादुशाह के शासनकाल में गुजरात की शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर थी। बहादुरशाह ने साल 1531 में मालवा को गुजरात में मिला लिया।

बहादुरशाह ने 1531 ई. में तुर्की नौसेना की मदद से पुर्तगाली नौसेना को दीव में पराजित किया। बहादुरशाह के समय पुर्तगाली गवर्नर नुन्हो डी कुन्हा था। 1535 ई. में बहादुरशाह ने मेवाड़ पर भी आक्रमण किया तथा चित्तौड़ किले में खूब लूटमार की। हांलाकि बाद में मुगल बादशाह हुमायूं ने बहादुरशाह को पराजित कर दिया।

1535 ई. में बहादुरशाह ने बम्बई द्वीप पुर्तगालियों को सौंप दिया। साल 1537 ई. में जब वह पुर्तगालियों संन्धि के लिए उन्ही के एक जहाज पर मौजूद था तभी पुर्तगालियों ने धोखे से उसकी हत्या कर दी। ऐसा कहा जाता है कि झगड़े के दौरान पुर्तगालियों ने या तो उसे समुद्र में फेंक दिया या फिर वह स्वयं कूद गया जिससे पानी में डूबने से उसकी मौत हो गई।

बहादुरशाह के कार्यकाल में मालवा तथा राजस्थान पर कब्जा करने के प्रयासों के कारण मुगलों से टकराव हुआ जो गुजरात जैसे शक्तिशाली राज्य के लिए विनाशकारी साबित हुआ। बहादुरशाह के पश्चात गुजरात में अत्यन्त दुर्बल शासक हुए। आखिरकार 1572 ई. में बादशाह अकबर ने गुजरात को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।

गुजरात के अंतिम शासक मुजफ्फर शाह तृतीय को बन्दी बनाकर आगरा ले जाया गया किन्तु वह 1583 ई. में जेल से भाग निकला। हांलाकि वह अकबर के सेनापति अब्दुल रहीम खान-ए-खाना से पराजित होने से पहले कुछ समय के लिए गुजरात की गद्दी हासिल करने में सफल रहा। गुजरात पर मुगलों का शासन 18वीं सदी के मध्य तक रहा, इसके बाद राज्य पर मराठों का अधिकार हो गया।

मध्यकालीन स्वतंत्र प्रान्तीय राज्य गुजरात से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

उत्कृष्ट हस्तशिल्प और समुद्री बन्दरगाहों के लिए प्रसिद्ध था गुजरात।

उत्तरी भारत का अधिकांश समुद्री व्यापार होता था गुजरात से।

दिल्ली के सुल्तान मुहम्मदशाह तुगलक ने 1391 ई. में जफर खां को सूबेदार बनाया था गुजरात का।

मुजफ्फर शाह उपाधि थी जफर खां की।

1401 ई. में स्वतंत्र गुजरात राज्य की घोषणा की थी मुजफ्फर शाह ने।

मुजफ्फर शाह के बाद गुजरात का सुल्तान बना अहमदशाह।

अहमदशाह के पिता का नाम था तातार खां।

तातार खां के पुत्र अहमदशाह ने गुजरात पर शासन किया1411 से 1443 ई. तक।

स्वतंत्र राज्य गुजरात का वा​स्तविक संस्थापक माना जाता है अहमदशाह को।

अहमदाबाद नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाने वाला सुल्तान था अहमदशाह।

अबुल फतेह खां उर्फ महमूद बेगड़ा ने गुजरात पर शासन किया — 1458 से 1511 ई. तक।

गिरनार तथा चम्पानेर जीतने के कारण बेगड़ा कहलाया महमूद शाह।

गुजरात का जहरीला सुल्तान था महमूद बेगड़ा।

मुस्तफाबाद तथा बाग-ए-फिरदौस’ (स्वर्ग का बगीचा) की स्थापना की महमूद बेगड़ा ने।

गुजरात का वह सुल्तान जिसने पुर्तगालियों से संघर्ष किया महमूद बेगड़ा ने।

महमूद बेगड़ा ने बम्बई द्वीप छीना था कोली जनजातियों से।

महमूद बेगड़ा ने अपने जनरलों अमीर हुसैन तथा सुलेमान रईस को भेजा था मिस्र और तुर्की। 

गुजरात का अंतिम सुल्तान माना जाता है बहादुरशाह।

गुजरात पर 1526 से 1537 ई. तक शासन किया बहादुरशाह।

मालवा को गुजरात में मिलाया था बहादुरशाह ने।

1572 ई.में गुजरात को मुगल साम्राज्य में मिलाया था अकबर ने।

साल 1583 में गुजरात के किस शासक को बंदी बनाकर आगरा ले जाया गया था मुजफ्फर शाह तृतीय।

मुगल शासन के समय भारत का प्रमुख और मुख्य बंदरगाह था सूरत।