
साल 1301 में स्वतंत्र प्रान्तीय राज्य कश्मीर में सूहादेव ने हिन्दू राजवंश की नींव डाली। सूहादेव के समय मंगोल सरदार दलूचा ने आक्रमण किया। दलूचा के भय से सूहादेव कश्मीर से भाग निकला तत्पश्चात दलूचा ने कश्मीर के पुरुषों का व्यापक नरसंहार करवाया तथा महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाकर मध्य एशिया के व्यापारियों को बेच दिया। ऐसे में कश्मीर की समस्त प्रजा से सूहादेव का समर्थन सर्वदा के लिए समाप्त हो गया।
1320 ई. में एक तिब्बती सरदार रिनचन ने सूहादेव से कश्मीर छीन लिया। कश्मीर के शासक रिनचन ने शाहमीर नामक एक मुसलमान को अपनी सेवा में रखा, इसके बाद उसकी योग्यता से प्रसन्न होकर उसने शाहमीर को अपने बच्चों तथा पत्नी की शिक्षा के लिए नियुक्त किया।
तिब्बती सरदार रिनचन के पश्चात उदयनदेव कश्मीर का शासक बना परन्तु 1338 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उदयनदेव की पत्नी कोटा ने अपने बच्चों के अल्पवयस्क होने के चलते कश्मीर की शासन-सत्ता अपने हाथों में ले ली। तब तक मंत्री शाहमीर भी काफी प्रभावशाली हो चुका था, उसने अवसर का लाभ उठाकर उदयनदेव की पत्नी कोटा देवी तथा उसके बच्चों को कैद करके 1339 ई. में राज्य पर अधिकार कर लिया तथा कश्मीर में ‘शाहमीर वंश’ की स्थापना की। यहां तक कि शाहमीर ने उदयन देव की रानी कोटा देवी से जबरदस्ती शादी की। शाहमीर मूलत: स्वात का रहने वाला था।
शाहमीर ने सुल्तान ‘शमसुद्दीनशाह के नाम से कश्मीर पर शासन किया। उसने कश्मीर से सामन्ती व्यवस्था को समाप्त कर हिन्दू-मुस्लिम सेनानायकों को इक्ताएं आवंटित की तथा तुर्की शासन व्यवस्था को प्रचलित किया। सुल्तान शमसुद्दीन के चार पुत्रों -जमशेद, अलाउद्दीन, शिहाबुद्दीन तथा कुतुबुद्दीन ने क्रमश: 46 वर्षों तक शासन किया।
सुल्तान अलाउद्दीन (1342 से 1354 ई.)
शाहमीर यानि सुल्तान शमसुद्दीन ने केवल तीन वर्ष तक ही शासन किया तत्पश्चात उसका बड़ा पुत्र जमशेद कश्मीर का शासक बना परन्तु कुछ ही महीने बाद उसके भाई अलाउद्दीन ने उसके सिंहासन पर अधिकार कर लिया। अलाउद्दीन ने तकरीबन 12 वर्षों तक शासन किया। अलाउद्दीन के बाद सिहाबुद्दीन सिंहासन पर बैठा।
सुल्तान शिहाबुद्दीन (1354 से 1373 ई.)
सिहाबुद्दीन को शाहमीर वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। शिहाबुद्दीन ने 19 वर्ष तक शासन किया। उसने सभी दिशाओं में आक्रमण किए। शिहाबुद्दीन ने सम्पूर्ण कश्मीर पर आधिपत्य कायम करने के साथ ही शासन का पुनर्गठन किया। बेहतरीन प्रशासनिक क्षमता के कारण सुल्तान शिहाबुद्दीन को ‘ कश्मीर का ललितादित्य’ कहा जाता है। सुल्तान शिहाबुद्दीन ने एक नए शहर शिहाब-उद-दीन पोरा (वर्तमान में शादिपोरा) को बसाया।
शिहाबुद्दीन ने सिंध, काबुल, गजनी, दर्दिस्तान, गिलगित, बलूचिस्तान और लद्दाख जैसे कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। ऐसे में पेशावर से लेकर गजनी तथा कन्धार तक उसका नाम विख्यात हो गया। उसने दक्षिण में सतलुज नदी तक आक्रमण किए। उसने तिब्बत के राजा से मित्रता कर ली। हांलाकि यह सब उसने लूटमार के लिए किया, साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं। सिहाबुद्दीन की मौत के पश्चात उसका भाई कुतुबुद्दीन कश्मीर की गद्दी पर बैठा।
कुतुबुद्दीन (1373 से 1389 ई.)
सुल्तान कुतुबुद्दीन ने कश्मीर पर 15 वर्षों तक शासन किया। 1389 ई. में कुतुबुद्दीन की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र सिकन्दर शाह कश्मीर की गद्दी पर बैठा।
सिकन्दर शाह (1389 से 1413 ई.)
सिकन्दर शाह धार्मिक दृष्टिकोण से एक धर्मान्ध शासक था। सिकन्दर शाह का प्रधान सेनापति सुहाभट्ट जाति से ब्राह्मण था परन्तु सुहाभट्ट ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। सुहाभट्ट के सुझाव पर सिकन्दर शाह ने कश्मीर की बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा पर खूब अत्याचार किए तथा जजिया ‘कर’ लगाया।
इस सम्बन्ध में इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि “सुहाभट्ट के सुझाव पर सुल्तान ने आज्ञा दी कि सभी ब्राह्मण तथा विद्वान हिन्दू से मुसलमान बन जाएं और जो भी इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करे, वो कश्मीर घाटी से निकल जाए।” लिहाजा अनेक हिन्दुओं ने जहर खा लिया। बड़ी संख्या में हिन्दू कश्मीर छोड़कर भाग गए, शेष मुसलमान बन गए।
कश्मीरी इतिहास में सिकन्दर शाह को ‘बुतशिकन’ कहा जाता है क्योंकि उसने मंदिरों का विध्वंस कर धातु निर्मित (सोने-चांदी) मूर्तियों को गलाकर सिक्के ढलवा दिए। जोनराजा ने लिखा है कि “सिकन्दर शाह को मूर्तियों को नष्ट करने में आनन्द आने लगा। उसने मार्तण्ड, विश्य, इसाना, चक्रवत तथा त्रिपुरेश्वर की मूर्तियों को तोड़ दिया। राज्य का ऐसा कोई शहर, गांव अथवा जंगल बाकी न रहा, जहां उसने ईश्वर के मंदिरों को न तोड़ा हो।”
सिकन्दर शाह ने सती प्रथा पर रोक लगाई। सिकन्दर शाह के शासनकाल में ही तैमूर ने कश्मीर पर आक्रमण किया। सिकन्दर शाह के समय ईरानी सूफी सन्त सैय्यद अली हमदानी का पुत्र सैय्यद मुहम्मद हमदानी कश्मीर आया था। 1413 ई. में सिकन्दर शाह की मृत्यु हो गई।
अली शाह (1413 ई. से 1420 ई.)
सिकन्दर शाह की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र अली शाह ने शासन किया। अलीशाह के वजीर ने धार्मिक कट्टरता की नीति को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया तथा सिकन्दर शाह के बचे-खुचे कार्यों की पूर्ति कर दी। अलीशाह अपने भाई शाह खान से संघर्ष के दौरान खोक्खरों द्वारा कैद कर लिया गया और चदुरा नामक स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद 1420 ई. में अलीशाह के भाई शाह खान ने (जैनुल अबीदीन) ने कश्मीर के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया।
जैनुल अबीदीन (1420 से 1470 ई.)
शाह खान ने ‘जैनुल अबीदीन’ नाम से कश्मीर पर शासन करना शुरू किया। जैनुल अबीदीन अपने पिता सिकन्दर शाह के मुकाबले काफी उदार तथा धर्मसहिष्णु शासक था। जैनुल अबीदीन ने अपने पिता सिकन्दर शाह द्वारा नष्ट किए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया तथा राज्य से पलायन करने वाले ब्राह्मणों को दोबारा कश्मीर आने के लिए प्रेरित किया। जैनुल अबीदीन की इसी उदार नीतियों के कारण उसे ‘कश्मीर का अकबर’ कहा जाता है। तकरीबन 100 वर्षों के पश्चात अकबर का दरबारी इतिहास अबुल फजल लिखता है कि “कश्मीर में तकरीबन 150 से अधिक भव्य मंदिर है, जो सम्भवत जैनुल अबीदीन के शासनकाल में पुन: बहाल किए गए।”
जैनुल अबीदीन ने हिन्दुओं के प्रति उदार नीति अपनाते हुए गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसके साथ ही उसने हिन्दुओं को जजिया ‘कर’ से मुक्त कर दिया तथा सती प्रथा से प्रतिबन्ध हटाते हुए ‘अंत्योष्टि कर’ भी हटा लिया। विद्वान शासक जैनुल अबीदीन कई भाषाओं का ज्ञाता था। वह कुतुब उपनाम से फारसी में कविताएं लिखता था तथा ‘शिकायतनामा’ नामक एक ग्रन्थ की रचना भी की।
इतना ही नहीं, जैनुल अबीदीन ने ‘महाभारत’ तथा ‘राजतंरगिणी’ का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया। जैनुल अबीदीन को ‘बुडशाह’ (महान शासक) के नाम से भी जाना जाता है। कश्मीर राज्य में मूल्य नियंत्रण व्यवस्था लागू करने के कारण उसे ‘कश्मीर का अलाउद्दीन खिलजी’ भी कहा जाता है।
जैनुल अबीदीन ने वूलर झील में ‘जैन- उल- लंका’ नामक एक द्वीप का निर्माण करवाया। जैनुल अबीदीन ने श्रीनगर में ‘ज़ैना कदल’ नामक एक लकड़ी का पुल भी बनवाया। उसने ज़ैनापुर, ज़ैनाकुट और ज़ैनागिर नामक शहरों की स्थापना की।
अपने ज्येष्ठ पुत्र को देश निकाला देने वाले जैनुल अबीदीन के न्यायमंत्री तथा राजवैद्य का नाम श्रेय भट्ट था। जैनुल अबीदीन के शासनकाल में कश्मीर राज्य का अधिकाधिक विस्तार हुआ। उसने गान्धार, सिन्ध, राजपुरी, लद्दाख, लेह आदि स्थानों पर अधिकार कर लिए। जैनुल अबीदीन ने खोक्खर नेता जसरथ की मदद से जम्मू के मुस्लिम शासक को पराजित किया। जैनुल अबीदीन ने लद्दाख में मंगोल आक्रमणकारियों को भी पराजित किया।
संगीत प्रेमी जैनुल अबीदीन के दरबार में ग्वालियर के राजा मान सिंह ने संगीत की दो दुर्लभ पुस्तकें भिजवाई। जैनुल अबीदीन ने कश्मीर में कागज बनाने, बन्दूक तथा पटाखे बनाने, शाल बनाने, बहुमूल्य पत्थरों को काटने तथा पॉलिश करने के साथ-साथ कांच की बोतल बनाने जैसी गतिविधियों को प्रेरित किया। जैनुल अबीदीन के दिल्ली, गुजरात, ग्वालियर, मक्का, मिस्र तथा खुरासान आदि के शासकों संग बेहद मधुर सम्बन्ध रहे। 1470 ई. में जैनुल अबीदीन की मृत्यु हो गई। जैनुल अबीदीन की जीवनी ग्रन्थ ‘जैन प्रकाश’ के लेखक का नाम यदु भट्ट है।
हैदरशाह
जैनुल अबीदीन की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र हाजी खां ‘हैदरशाह’ के नाम से कश्मीर के सिंहासन पर बैठा। वह महज एक वर्ष ही शासन कर सका। हैदरशाह अयोग्य था, उसने भी धार्मिक असहिष्णुता नीति अपनाई। हैदरशाह की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र हसनशाह सिंहासन पर बैठा।
हसनशाह ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई परन्तु वह अपने सरदारों को काबू में नहीं रख सका लिहाजा कश्मीर राज्य का पतन आरम्भ हो गया। ‘शाह मीर’ वंश के अंतिम शासक का नाम हबीब शाह (तकरीबन 1555 ई.) था। हबीब शाह को उसके सेनापति मुहम्मद गाजी शाह चक ने गद्दी से उतारकर कश्मीर पर अधिकार कर लिया और ‘चक राजवंश’ की स्थापना की।
चक राजवंश (1555 से 1540 ई.)
तकरीबन 1555 ई. में हबीब शाह के सेनापति मुहम्मद गाजी शाह चक ने कश्मीर में ‘चक राजवंश’ की स्थापना की। गिलगिट क्षेत्र से ताल्लुकात रखने वाले चक शासकों ने बाबर तथा हुमायूं जैसे मुगल शासकों को कश्मीर पर अधिकार करने से रोकने में सफलता पाई।
अली शाह चक का पुत्र युसूफ शाह चक कश्मीर का शासक बना। युसुफ शाह चक को मुगल बादशाह अकबर ने वार्ता के लिए बुलाया परन्तु बिहार में उसे कैद कर लिया गया और वहीं उसकी मौत हो गई। युसूफ शाह चक के बाद उसका पुत्र याकूब शाह चक कश्मीर के सिहांसन पर बैठा किन्तु मुगल सेनापति कासिम खान ने उसे कारारी शिकस्त दी लिहाजा मुगल बादशाह अकबर ने कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
कश्मीर पर मुगलों का शासन
सल्तनतकाल में दिल्ली के किसी भी सुल्तान ने कश्मीर पर अधिकार नहीं किया परन्तु मुगलकाल में हुमायूं के रिश्तेदार मिर्जा हैदर दुगलत ने 1540 ई. में कश्मीर पर विजय प्राप्त की। उसने 1546 ई. तक कश्मीर पर शासन किया। मिर्जा हैदर दुगलत को कई बार विद्रोहों (सम्भवत: चक राजवंश) का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1586 ई.में बादशाह अकबर ने कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। मुगल साम्राज्य ने कश्मीर पर 1586 से 1751 ई. तक शासन किया। मुगलों के पतन के पश्चात अफगानी पठानों ने कश्मीर पर कब्जा कर लिया, इसे ‘कश्मीर का काला युग’ कहा गया है। 1814 ई. में पठानों को शिकस्त देकर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर में सिख साम्राज्य की स्थापना की।
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