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Sultan Zain-ul-Abidin is called 'Akbar of Kashmir'

सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन को कहा जाता है ‘कश्मीर का अकबर’, जानिए क्यों?

कल्हण द्वारा रचित संस्कृत ग्रन्थ ‘राजतरंगिणी’ में कश्मीर का इतिहास वर्णित है अत: इस ग्रन्थ में कश्मीर के आठवें सुल्तान के रूप में ज़ैन-उल-आबिदीन के शासनकाल का उल्लेख मिलता है। अपने पिता सिकन्दरशाह की कट्टर और धर्मान्ध नीतियों के विपरीत सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन ने उदार, जनकल्याणकारी और सहिष्णुवादी नीतियों का अनुसरण किया इसलिए भारतीय इतिहास में इस शासक को ‘कश्मीर का अकबर’ कहा जाता है। इस स्टोरी में हम आपको सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देने का प्रयास करेंगे।

शाहमीर वंश का संक्षिप्त परिचय

शाह मिर्जा अथवा शाहमीर शाह ने 1339 ई. में कश्मीर के सिंहासन पर अधिकार करके शाहमीर वंश की स्थापना की। शाहमीर ने कश्मीर में सामन्तवादी व्यवस्था को समाप्त करके न्याय और निष्पक्ष शासन करना शुरू किया। शाहमीर ने अपने राज्य के हिन्दू तथा मुस्लिम सैन्याधिकारियों को इक्ताएं आवंटित करके तुर्की शासन व्यवस्था प्रचलित की। 1356 ई. में सुल्तान शिहाबुद्दीन कश्मीर की गद्दी पर बैठा। इसे शाहमीर वंश का ‘वास्तविक संस्थापक’ कहा जाता है। उसने सम्पूर्ण कश्मीर पर अपने प्रभुत्व की स्थापना की और शासन को नए सिरे से पुनर्गठित किया। सुल्तान शिहाबुद्दीन का शासनकाल 1374 ई. तक रहा। इस वंश का अगला शासक सिकन्दर शाह था जो कश्मीर के लिए धर्मान्ध और अनुदार सुल्तान साबित हुआ। इसका शासनकाल 1389 से 1413 ई. तक रहा। सिकन्दर शाह के शासनकाल में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया था।

सुल्तान सिकन्दरशाह के काल में ईरानी के सूफी संत सैय्यद अली हमदानी का पुत्र सैय्यद मुहम्मद हमदानी कश्मीर आया था जिसका सुल्तान ने सम्मान के साथ स्वागत किया और उसके लिए खानकाह का निर्माण करवाया। सिकन्दरशाह के ब्राह्मण सेनापति सुहाभट्ट ने भी इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। सिकन्दरशाह ने कश्मीर में सती प्रथा पर रोक लगायी थी। सिकन्दरशाह द्वारा गैर मुस्लिम जातियों किए जाने वाले व्यवहार के बारे में इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि “सेनाप​ति सुहाभट्ट के परामर्श पर सुल्तान ने अपने राज्य में आज्ञा दी कि सभी विद्वान ब्राह्मण तथा हिन्दू या तो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें या कश्मीर से निकल जाएं।” इतना ही नहीं, सिकन्दरशाह ने मंदिरों को नष्ट कर सोने-चांदी की मूर्तियों को शाही टकसाल में गलवाकर सिक्के ढलवा दिए।

सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन (1420 से 1470 )

धर्मान्ध सुल्तान सिकन्दरशाह के पुत्र ज़ैन-उल-आबिदीन ने कश्मीर पर 1420 ई. से 1470 ई. तक शासन किया। अलीशाह ने मक्का की तीर्थयात्रा पर जाते समय सिकन्दरशाह के बेटे शाही खान को ‘ज़ैनुल-आबिदीन’ की उपाधि दी थी। सुल्तान ग़ियास​-उद​-दीन ज़ैन​-उल-अबिदीन को मध्यकालीन इतिहास में कश्मीर के सबसे महान शासकों में से एक गिना जाता है। सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर पर शासन करने वाले ज़ैन-उल-आबिदीन ने अपने राज्य में धार्मिक सहिष्णुता तथा उदारता के साथ शासन किया। इसीलिए कश्मीर के लोग ज़ैन-उल-आबिदीन को ‘बुड शाह’ यानि बड़े शाह ​​अथवा ‘महान शाह’ के नाम से याद करते हैं। सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन की मृत्यु के बाद शाहमीर वंश का पतन शुरू हो गया।

ज़ैन-उल-आबिदीन के शासनकाल के आखिरी दिनों में उसके तीन पुत्रों आदम खान, हाजी खान और बहराम खान ने विद्रोह कर दिए हांलाकि सुल्तान ने इस विद्रोह को कठोरता से कुचलने का प्रयास किया, यहां तक कि अपने बड़े पुत्र को दंडस्वरूप देश निकाला दे दिया था।  सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन का पुत्र हाजी खान उसका उत्तराधिकारी बना जिसने हैदर खान की उपाधि धारण की। चूंकि सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन के उत्तराधिकारी अयोग्य सबित हुए इसलिए साल 1586 ई. में मुगल बादशाह अकबर ने कश्मीर को अपने साम्राज्य में मिला लिया।

ज़ैन-उल-आबिदीन की धार्मिक सहिष्णुता

शाहमीर वंश का आठवां सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन ने अपनी प्रजा के साथ धार्मिक सहिष्णुता का व्यवहार किया तथा अपने शासनकाल में लोक कल्याणकारी नीतियों को लागू किया। सर्वप्रथम उसने पिता द्वारा नष्ट करवाए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया तथा हिंदुओं पर जजिया कर समाप्त कर दिया।

इसके साथ ही जिन विद्वान ब्राह्मणों तथा हिन्दूओं को कश्मीर से निष्कासित किया गया था उन्हें पुन: स्वदेश आने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही विद्वान ब्राह्मणों को वजीफा देने की फिर से शुरुआत की गई। सुल्तान ने गौ हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया हांलाकि गोमांस खाने के बारे में कुछ नियम लागू किए। सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन ने कश्मीर की हिन्दू जनता की भावनाओं का आदर करते हुए सती प्रथा से प्रतिबंध हटा लिया था।

ज़ैन-उल-आबिदीन का साहित्यानुराग

सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन संस्कृत, तिब्बती, कश्मीरी, फारसी और अरबी भाषा का विद्वान था। वह ‘कुतुब’ उपनाम से फारसी में कविताएं भी लिखता था। सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन ने  ‘शिकायतनामा’ ग्रन्थ की रचना की। उसने महाभारत तथा राजतरंगिणी का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया। बता दें कि उसने राजतरंगिणी के अगले भाग का अनुवाद संस्कृत के विद्वान जोनराज से करवाया। सुल्तान के संगीत प्रेम को देखते हुए ग्वालियर के राजा ने उसके लिए संगीत के दो दुर्लभ संस्कृत ग्रंथ भिजवाए थे।  ज़ैन-उल-आबिदीन की उदार नीतियों की वजह से मध्यकालीन इतिहास में उसे ‘कश्मीर का अकबर’ कहा जाता है।

सुल्तान की प्रशासनिक नीतियां

सुल्तान ने प्रजाहित में अनेक कार्य किए, बतौर उदाहरण- उसके शासनकाल में स्थानीय गर्वनरों द्वारा की जाने वाली अवैध कर वसूली पर रोक दी गई जिससे किसानों को बड़ी राहत मिली। ज़ैन-उल-आबिदीन ने नए शहरों की स्थापना, पुलों का निर्माण तथा नहरों की खुदाई जैसे महत्वपूर्ण कार्यों पर विशेष ध्यान दिया। कश्मीरी शॉल उद्योग के संस्थापक भी कश्मीर के सुल्तान ज़ैन-उल-अबिदीन ही थे, जो  तुर्किस्तान से बुनकरों को यहां लेकर आए थे। यहां तक कि उसने अपने राज्य में वस्तुओं की कीमत को नियंत्रित किया, जिसके कारण लोग उसे ‘कश्मीर का अलाउद्दीन​ खिलजी’ भी कहते हैं। सुल्तान ने स्थानीय अपराधों पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी ग्राम समुदायों को दे दी। इतिहासकार मोहिब्बुल हसन के मुताबिक, “ज़ैन-उल-आबिदीन को कश्मीर के समस्त सुल्तानों में सबसे महान कहा जाता है, जिन्होंने कश्मीर के लोगों को आधी सदी तक शांति, समृद्धि और परोपकारी शासन प्रदान किया।