भारत का इतिहास

Medieval Provincial dynasty: History of Bengal

मध्यकालीन प्रान्तीय राजवंश : बंगाल का इतिहास

बंगाल में 8वीं शताब्दी में पाल वंश तथा 12वीं शताब्दी में सेन राजवंश का शासन था। मुहम्मद गोरी के सेनानायक इख्तियारूद्दीन मु​हम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने बंगाल को 12वीं सदी के अंतिम दशक में जीता था। साल 1279 में तुगरिल विद्रोह को बलबन ने क्रूरतापूर्वक दबा दिया तथा अपने पुत्र बुगरा खां को बंगाल का गवर्नर बनाया। बलबन पुत्र बुगरा खां ने बंगाल में नए वंश की नींव डाली जो वास्तव में दिल्ली से स्वतंत्र राज्य करता था।

दिल्ली सल्तनत के दौरान उत्तर भारतीय प्रान्तों में सर्वाधिक विद्रोह बंगाल में हुए। गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल पर प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए इसे तीन भागों में बांटा जिनकी राजधानियां इस प्रकार थींलखनौती (उत्तरी बंगाल), सतगांव (दक्षिणी बंगाल) तथा सोनारगांव (पूर्वी बंगाल)

सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के समय 1338 ई. में उत्तरी बंगाल के गवर्नर अलाउद्दीन अलीशाह ने विद्रोह किया। अलाउद्दीन अलीशाह ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर लिया और अपनी राजधानी लखनौती से पण्डुआ स्थानान्तरित की।

शमसुद्दीन इलियास शाह (1342 - 1357 ई.)

साल 1342 में अलाउद्दीन अलीशाह के एक सरदार इलियास खां ने सुल्तान शमसुद्दीन इलियास शाह के नाम से गद्दी हथिया ली तथा पूरे बंगाल का शासक बन बैठा। इलियास शाह एक लोकप्रिय शासक था उसे बंगाल का नेपोलियन अथवा सिकन्दर कहा जाता है। इलियास शाह ने तिरहुत तथा उड़ीसा पर आक्रमण कर उसे बंगाल में मिला लिया। उसने सोनारगाँव तथा लखनौती पर भी अधिकार कर लिया।

इलियास शाह ने तिरहुत से चम्पारण तथा उत्तर प्रदेश के बनारस और गोरखपुर तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया। आखिरकार फिरोज शाह तुगलक को इलियास शाह के विरूद्ध सैन्य अभियान चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। फिरोज शाह तुगलक ने बंगाल पर पहली बार आक्रमण किया। फिरोजशाह तुगलक ने इलियास शाह की राजधानी नगर पांडुआ पर कब्जा कर उसे एकदला किले में शरण लेने के लिए बाध्य कर दिया।

ऐसे में इलियास शाह को फिरोजशाह तुगलक के साथ सन्धि करनी पड़ी, इस सन्धि के तहत इलियास शाह बिहार की कोसी नदी से आगे नहीं बढ़ सकता था। हांलाकि दिल्ली के साथ हुई सन्धि के पश्चात इलियास शाह को कामरूप (वर्तमान असम) पर अपना नियंत्रण बढ़ाने में सफलता प्राप्त हुई। 1357 ई. में इलियास शाह की मृत्यु हो गई।

सिकन्दर शाह (1357 से 1389 ई.)

इलियास शाह की मौत के बाद उसका बेटा सिकन्दर शाह बंगाल की गद्दी पर बैठा। सिकन्दर शाह ने साल 1368 में ​गौड़ से तकरीबन 20 मील दूर पांडुआ की अदीना मस्जिद का निर्माण करवाया। अदीना मस्जिद में चार सौ गुम्बद हैं और यह बंगाल की सबसे उल्लेखनीय इमारत मानी जाती है।

सिकन्दर शाह के शासनकाल में फिरोजशाह तुगलक ने बंगाल पर दोबारा आक्रमण किया किन्तु उसे असफल होकर लौटना पड़ा। इसके बाद तकरीबन 200 वर्षों तक दिल्ली के आक्रमणों से बंगाल वंचित रहा। इस दौरान कई राजवंश बंगाल की सत्ता में आए। हांलाकि 1538 ई. में शेरशाह ने बंगाल पर कब्जा कर लिया।

गयासुद्दीन आजमशाह (1390 से 1411 ई.)

सिकन्दर शाह के बाद गयासुद्दीन आजमशाह बंगाल का शासक बना। गयासुद्दीन आजमशाह एक न्यायप्रिय शासक था। ​ लोकप्रिय शासक गयासुद्दीन आजमशाह वै​देशिक सम्बन्धों के लिए विख्यात था। उसने चीनी सम्राट के दरबार में दूतमंडल भेजा तत्पश्चात मिग वंश के चीनी सम्राट चुई-ली ने भी उसके पास दूतमण्डल तथा उपहार भेजे1409 ई. में चीनी सम्राट चुई-ली ने गयासुद्दीन आजमशाह से बौद्ध भिक्षुओं को चीन भेजने की प्रार्थना की थी। चीन के साथ व्यापारिक आयात-निर्यात में चटगाँव बंदरगाह बंगाल का एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह था।

गयासुद्दीन आजमशाह प्रसिद्ध कवि हाफिज शिराजी सहित कई विद्वानों से पत्र व्यवहार करता था। 1410 ई. में गयासुद्दीन आजमशाह की हत्या के बाद उसके पुत्र शैफुद्दीन हमजाशाह के शासनकाल में राजा गणेश नामक हिन्दू ज़मींदार काफी प्रभावी हो गया।

राजा गणेश (1415 से 1418 ई.)

शैफुद्दीन हमजाशाह की मृत्यु के बाद 1415 ई. राजा गणेश बंगाल की गद्दी पर बैठा। राजा गणेश के अधीन बंगाल में हिंदू शासन का एक संक्षिप्त दौर शुरू हुआ। फ़ारसी पांडुलिपियों में राजा गणेश को केस नाम से उल्लेखित किया गया है। राजा गणेश ने दनुज मर्दनकी उपाधि धारण की। 1418 ई. में राजा गणेश की मृत्यु हो गई।

चूंकि राजा गणेश हिन्दू था अत: बंगाल के सूफी संन्तों तथा उलेमाओं ने उसका विरोध किया। तत्पश्चात उसके पुत्र जदुसेन को इस्लाम धर्म में दीक्षित कर जलालुद्दीन मुहम्मद शाह के नाम से बंगाल का शासक नियुक्त किया गया।

जलालुद्दीन मुहम्मद शाह (जदुसेन)

जलालुद्दीन मुहम्मद शाह ने बृहस्पति मिश्र नामक विद्वान को संरक्षण दिया जिसने मेघदूत, कुमार सम्भव, रघुवंश आदि पर टीकाएं लिखी। 1431 ई. में जलालुद्दीन मुहम्मद शाह की मृत्यु के पश्चात उसका बेटा शमसुद्दीन अहमद बंगाल की गद्दी पर बैठा।

शमसुद्दीन अहमदशाह (1431 से 1442 ई.)

जलालुद्दीन मुहम्मद शाह की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र शमसुद्दीन अहमदशाह बंगाल के राजसिंहासन पर आसीन हुआ। शमसुद्दीन अहमदशाह के शासनकाल में जौनपुर के सुल्तान इब्राहिम शर्की ने बंगाल पर आक्रमण किया। 1431-32 में एक चीनी दूतमण्डल उसके दरबार में आया था। शमसुद्दीन अहमदशाह ने 1442 ई. तक शासन किया।

1442 ई. में हाजी इलियास के पौत्र नासिरूद्दीन महमूद शाह ने बंगाल में 'इलियास शाही राजवंश' की पुर्नस्थापना की। नासिरूद्दीन महमूद शाह तथा उसके उत्तराधिकारियों ने गौड़ को अपनी राजधानी बनाकर साल 1442 - 1487 ई. तक शासन किया।

रूकनुद्दीन बारबक शाह (1459 से 1474 ई.)

बंगाल के योग्य शासक बारबक शाह ने बंगाली साहित्य को प्रोत्साहन दिया। बारबक शाह के काल में मालाधर बसु ने 1473 ई. में श्रीकृष्ण विजय की रचना की। बारबक शाह ने श्रीकृष्ण विजय नामक ग्रन्थ के र​चयिता मालाधर बसु को गुणराज खान तथा उसके पुत्र को सत्यराज खान की उपाधि प्रदान की।

बारबक शाह के काल में कृत्तिवास ओझा ने रामायण का बांग्ला भाषा में अनुवाद किया। कृ​तिवास रामायण को बंगाल का बाइबिल कहा जाता है। फरिश्ता के अनुसार,बारबक शाह हिन्दुतान का सर्वप्रथम शासक था जिसके पास अत्यधिक संख्या में अबीसीनियाई दास थे। बारबक शाह ने अपनी सेना में अरबी तथा अबीसीनियाई दासों को नियुक्त किया था।

बारबक शाह की मृत्यु के पश्चात अबीसीनियाई दासों ने राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू किया जिससे बंगाल में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई।  1486 ई. में एक अबीसीनियाई दास ने खुद को बारबकशाह नाम से सुल्तान घोषित किया था।

अलाउद्दीन हुसैनशाह (1493 से 1519 ई.)

बंगाल के अमीरों ने 1493 ई. अलाउद्दीन हुसैनशाह को बंगाल की गद्दी पर बैठाया। इस प्रकार अलाउद्दीन हुसैनशाह ने बंगाल में हुसैन शाही राजवंश की नींव डाली तथा सर्वप्रथम अबीसीनियाई दासों को निष्कासित किया। अलाउद्दीन हुसैनशाह बंगाल के सभी शासकों में श्रेष्ठ तथा विद्वान था।

अलाउद्दीन हुसैनशाह ने जाजनगर, उड़ीसा और कामरूप पर विजय प्राप्त कर चटगांव बन्दरगाह तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया अहोमो के सहयोग से उसने कामताराजा को नष्ट किया।

अलाउद्दीन हुसैनशाह ने समूचे प्रान्त में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी उद्घोष किया। अलाउद्दीन हुसैनशाह ने सत्यपीर आन्दोलन शुरू किया था। अलाउद्दीन हुसैनशाह ने बंगला साहित्य को प्रोत्साहित किया था तथा वह चैतन्य महाप्रभु का समकालीन था।

उसने हिन्दुओं के प्रति उदार नीति अपनाई तथा हिंदुओं को उच्च पद पर आसीन किया।  हुसैनशाह का मंत्री गोपीनाथ तथा चिकित्सक मुकुन्द दास था। उसके प्रधान अंगरक्षक का नाम केशव क्षत्री तथा टकसाल अधीक्षक अनूप था।  रूप तथा सनातन नाम के दो वैष्णव भाई उसके दो प्रमुख अधिकारी थे।

हुसैनशाह ने लोदियों के विरूद्ध जौनपुर के शर्की सुल्तान हुसैनशाह को शरण दी थी। हुसैनशाह ने खलीफतुल्लाह की उपाधि धारण की। उसने अपनी राजधानी पांडुआ से गौड़ स्थानांतरित की। हिन्दुओं के प्रति उदारता के कारण उसे कृष्ण का अवतार, नृपति तिलक और जगत भूषण की उपाधियां दी गई।

हैरानी की बात यह है कि अलाउद्दीन हुसैनशाह के 24 साल के शासनकाल के दौरान एक भी विद्रोह नहीं हुआ। उसने प्रजा प्रिय शासक के रूप में शांतिपूर्वक सुखभोग करके 1518 ई. में गौड़ में अंतिम सांस ली। साल 1518 में हुसैनशाह की मौत के बाद उसका बड़ा बेटा नसीब खान ने नुसरशाह की उपाधि धारण कर बंगाल की राजगद्दी सम्भाली।

नुसरतशाह (1519 से 1533 ई.)

बंगाल के अमीरों ने अलाउद्दीन हुसैनशाह के 18 पुत्रों में से सबसे बड़े बेटे नसीब खान को उसका उत्तराधिकारी चुना। साल 1518 में नसीब खान नेनासिरूद्दीन नुसरत शाह की उपाधि धारण कर बंगाल की गद्दी सम्भाली। नुसरत शाह ने सुल्तान इब्राहिम लोदी की बेटी से विवाह कर अफगानों को बंगाल में शरण दी। नुसरत शाह ने बादशाह बाबर से संधि कर बंगाल को मुगल आक्रमणों से बचाया। हांलाकि 1529 ई. में बाबर ने नुसरतशाह को घाघरा के युद्ध में पराजित किया। यही नहीं, नुसरत शाह को अहोमों से भी पराजय का स्वाद चखना पड़ा।

नुसरतशाह ने साहित्य व स्थापत्य को संरक्षण दिया। नुसरतशाह ने गौड़ में बड़ा सोना मस्जिद व कदम रसूल मस्जिद बनवाई। नुसरतशाह ने महाभारत का पहला बंगाली अनुवाद काशीराम से करवाया।

नुसरतशाह की मृत्यु के पश्चात उसके बेटे अलाउद्दीन फिरोज शाह ने गद्दी संभाली। अलाउद्दीन फिरोज शाह के शासनकाल में बंगाल की सेना असम में प्रवेश कर कलियाबोर तक पहुंच गई थी। ग़यासुद्दीन महमूदशाह ने 1533 ई. में नुसरतशाह की हत्या कर दी।

गयासुद्दीन महमूदशाह (1533 से 1538 ई.)

बंगाल के अंतिम शासक गयासुद्दीन महमूदशाह ने सोनारगांव से शासन किया। गयासुद्दीन महमूदशाह को उसके सेनापति खुदाबख्श खान तथा हाजीपुर के गवर्नर मखदूम आलम के विद्रोहों का सामना करना पड़ा। गयासुद्दीन महमूदशाह ने पुर्तगालियों को चटगांव तथा हुगली में कारखाने लगाने की अनुमति दी थी।

शेरशाह सूरी ने इससे 1538 ई. में बंगाल छीन लिया और दिल्ली साम्राज्य में मिला लिया। साल 1574 में अकबर ने बंगाल पर विजय प्राप्त कर उसे मुगल सूबों का हिस्सा बनाकर खान-ए-जहां को सूबेदार नियुक्त किया। इसके ठीक तीन साल बाद 1578 ई. में अकबर ने मानसिंह को बंगाल का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

जहांगीर के शासनकाल में बंगाल पूरी तरह से मुगल शासन का हिस्सा था। हांलाकि इस अवधि में मूसा खान, सताराजीत, राजा प्रतापदित्य तथा रामचन्द्र सहित अन्य कई जमींदारों ने विद्रोह किए। यद्यपि शाहजहां तथा औरंगजेब के शासनकाल में बंगाल शांति और समृद्धि की ओर अग्रसित हुआ। मुगलों ने ढाका से समूचे बंगाल का संचालन किया।

साल 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों की कमजोरी का लाभ उठाकर गवर्नर मुर्शिद कुली खान ने खुद को बंगाल का नवाब घोषित कर लिया और मुर्शिदाबाद को अपनी राजधानी बना लिया।

स्वतंत्र प्रान्तीय राज्य बंगाल से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

— ‘इलियास शाही राजवंश का संस्थापक कौन था इलियास शाह।

इलियास शाह के शासनकाल में बंगाल की राजधानी थी पाण्डुआ। 

दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने बंगाल के किस शासक को हराया था इलियास शाह।

इलियास शाह के पुत्र सिकन्दर शाह ने पराजित किया फिरोजशाह तुगलक को।

सिकन्दर शाह ने बनवाया था अदीना मस्जिद।

गौड़ में बड़ा सोना मस्जिद व कदम रसूल मस्जिद बनवाई नुसरतशाह ने।

गयासुद्दीन आजमशाह के शासनकाल में किसने रामायण का बंगाली अनुवाद किया कृतिवास ओझा।

बंगाल में गणेश राजवंश का संस्थापक राजा गणेश।

गणेश राजवंश की राजधानी थी गौड़।

राजा गणेश के पुत्र जदुसेन ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर अपना नाम रखाजलालुद्दीन मुहम्मद शाह।

बांग्ला देश का फरीदपुर किसके नियंत्रण में था जलालुद्दीन मुहम्मद शाह।

हुसैन शाही राजवंश का संस्थापक कौन था अलाउद्दीन हुसैन शाह।

बंगाल का अकबर कहा जाता था अलाउद्दीन हुसैन शाह को।

बंगाल का कौन सा सुल्तान बहलोल लोदी के समकालीन था अलाउद्दीन हुसैन शाह।

कामरूप, कामता, जाजनगर और उड़ीसा का विजेता था हुसैन शाह।

हुसैन शाही वंश का अंतिम सुल्तान था गयासुद्दीन मुहम्मद शाह।

गयासुद्दीन मुहम्मद शाह की अनुमति के बाद पुर्तगालियों ने कारखाने स्थापित किए चटगांव और हुगली में।

गयासुद्दीन मुहम्मद शाह और पुर्तगालियों की सम्मिलित सेना को पराजित किया था शेरशाह सूरी ने। 

बंगाल सल्तनत के सिक्के ढाले जाते थे अरबी तथा बंगाली लिपी में।

बंगाल में चांदी के सिक्के टका पर अंकित होता था सुल्तान का नाम।

बंगाल सल्तनत की आधिकारिक, राजनयिक और वाणिज्यिक भाषा फारसी।