पूर्वांचल की पहचान थे श्री चन्द्रेशखर, विशेषकर बागी बलिया तो आज भी चन्द्रशेखर की मुरीद है। भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता श्री चन्द्रशेखर अपनी बेबाकी और निश्छल व्यवहार के लिए पूरे देश में विख्यात थे। चन्द्रेशखर के करीब जो भी आया वो उनका दीवाना बनकर रह गया। चन्द्रशेखर अपने साथियों के गुण-दोषों की परवाह किए बगैर हर कीमत पर रिश्ते को बनाए रखते थे।
भारतीय राजनीति में चन्द्रशेखर इकलौते नेता हैं जिन्होंने कभी कोई सरकारी पद नहीं सम्भाला और सीधे प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। पूर्वांचल के आमजन एवं बुद्धिजीवियों के बीच यह किस्सा आज भी कहने-सुनने को मिल जाता है कि कीनाराम सिद्धपीठ के सबसे विख्यात अघोरी अवधूत भगवान राम के आशीर्वाद से ही चन्द्रशेखर को प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अवधूत भगवान राम ने श्री चन्द्रशेखर को अपनी कुछ शक्तियां भी दी थीं। यह प्रसंग अवधूत भगवान राम के भक्तों तथा अनुयायियों के बीच आज भी जीवन्त है। अब आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर में अवधूत भगवान राम ने अपने प्रिय शिष्य चन्द्रशेखर को क्या संकेत दिया था जिसके बाद वह प्रधानमंत्री बने। इस रोचक प्रसंग को जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
अवधूत भगवान राम का जीवन-परिचय
अवधूत भगवान राम की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह एक प्रख्यात अघोरी संत थे। अघोर परम्परा से जुड़े अवधूत भगवान राम आमजन के बीच एक सिद्ध पुरुष के रूप में विख्यात थे, उनकी चमत्कारी शक्तियों की चर्चा आज भी लोगों के बीच जीवन्त हैं।
अवधूत भगवान राम के पास ‘रावल’ नाम का एक बाघ था। अवधूत भगवान राम के गोद में ही खेलता था बाघ ‘रावल’। अवधूत भगवान राम के प्रिय कुत्ते का नाम ‘न्याय’ था, जो उनका चहेता था। 12 सितंबर 1937 को बिहार के आरा जिला स्थित गुंडी ग्राम में जन्में अवधूत भगवान राम के पिता का नाम बैजनाथ सिंह और माता का नाम लखराजी देवी था।
अवधूत भगवान राम जब पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई तत्पश्चात उनका पालन-पोषण उनके दादा ने किया। अवधूत भगवान राम किशोरावस्था में ही तीर्थयात्रा पर निकल पड़े तथा जगन्नाथ पुरी में कुछ दिन रहने के पश्चात वापस घर लौट आए। इसके बाद जब वह 15 वर्ष के थे तब काशी आ गए। अवधूत भगवान राम ने युवावस्था का अधिकांश समय मनिहरा, महड़ौरा व सकलडीहा के आस-पास के क्षेत्रों में बिताया।
अवधूत भगवान राम कीनाराम सिद्धपीठ में अघोर दीक्षा लेकर तप-साधना में जुट गए। वर्षोंपरान्त अघोर साधना में प्रवीण होने के पश्चात अवधूत भगवान राम ने मंडुवाडीह में सर्वेश्वरी आश्रम की स्थापना की। समाज सेवा के लिए अवधूत भगवान राम ने न केवल सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की अपितु पड़ाव में एक कुष्ठ आश्रम भी स्थापित किया जिसमें कुष्ठ रोगियों की सेवा की जाती थी। बाबा के इस कुष्ठ आश्रम का उद्घाटन तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने किया था। यह संस्थान आज भी कुष्ठ रोगियों की सेवा में कार्यरत है।
अंतिम दिनों में अवधूत भगवान राम किडनी की गम्भीर बीमारी से पीड़ित थे, हांलाकि किडनी ट्रान्सप्लान्ट के बावजूद बाबा का स्वस्थ्य गिरता जा रहा था। ऐसे में चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह पर अवधूत भगवान राम को न्यूयार्क के माउन्ट सिनाई चिकित्सालय में भर्ती कराया गया जहां 29 नवंबर 1992 को उनका निधन हो गया।
श्री चन्द्रशेखर की पहल पर भारतीय दूतावास के मदद से बाबा के मृत शरीर को एयर इंडिया के विमान से दिल्ली लाया गया। इसके बाद भुवनेश्वरी आश्रम, भोंड़सी में पूजन-दर्शन का आयोजन हुआ। फिर अवधूत भगवान राम का पार्थिव शरीर 1 दिसम्बर 1992 को दोपहर एक बजकर दस मिनट पर भारतीय वायु सेना के एक विशेष विमान के जरिए बनारस लाया गया।
कीनाराम सिद्धपीठ के मंहत बाबा सिद्धार्थ गौतम राम और अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम तथा पड़ाव आश्रम के तत्कालीन उपाध्यक्ष श्री हरि सिन्हा जी के निर्देशन में अवधूत भगवान राम की अंत्योष्टि क्रिया सम्पन्न हुई। ध्यान देने योग्य बात यह है कि पूर्व प्रधानमत्री श्रीचन्द्रशेखर अपनी सुरक्षा व्यवस्था की परवाह न करते हुए अपने पुत्र पंकज शेखर तथा पुत्रवधू मिसेज रश्मि के साथ अवधूत भगवान राम की अंत्येष्टि में सक्रिय रूप से शामिल रहे।
चन्द्रशेखर से विशेष स्नेह रखते थे अवधूत भगवान राम
अवधूत भगवान राम के शिष्यों एवं अनुयायियों की गिनती नहीं की जा सकती। यदि हम कुछ नामी-गिरामी शख्सियतों की बात करें तो मोरारजी देसाई, इंदिरा गांधी, डॉ. कर्ण सिंह, जगजीवन राम, राजनारायन, वीर बहादुर सिंह, कमलापति त्रिपाठी, मुलायम सिंह यादव सहित कई प्रख्यात नेता उनके भक्त थे। किन्तु पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर पर भगवान अवधूत राम का विशेष स्नेह देखते ही बनता था।
अवधूत भगवान राम से मिलने श्री चन्द्रशेखर अक्सर बाबा के आश्रम में आते रहते थे। कहते हैं, बाबा के दर्शनार्थ श्री चन्द्रशेखर को जमीन पर बैठने में भी कोई गुरेज नहीं था। आश्रम में रूकने के दौरान श्री चन्द्रशेखर लिट्टी-चोखा खाते तत्पश्चात बाबा से मिलकर ही वापस लौटते थे। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि अवधूत भगवान राम ने श्री चन्द्रशेखर को अपनी कुछ शक्तियां भी दी थीं। यह प्रसंग अवधूत भगवान राम के भक्तों के बीच आज भी जीवन्त है।
अवधूत भगवान राम सारनाथ में जिस जगह आए थे उसी अघोर टेकरी के समीप नगर निगम की भूमि पर सन 1979 में चंद्रशेखर ने आचार्य नरेंद्र देव महासम्मेलन का आयोजन किया था। पूर्व प्रधानमंत्री की जयंती पर हर साल यहां लोग जुटते हैं। अब हम बात करतें हैं भगवान अवधूत राम के उस आशीर्वाद की जिसकी बदौलत श्री चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे।
साल 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिरने के बाद सियासी गलियारे हलचल मची हुई थी। इस दौरान श्री चन्द्रेशखर दिल्ली से दूर हटकर अवधूत भगवान राम के पास बनारस पहुंचे। सात दिनों के पश्चात आठवें दिन अवधूत भगवान राम ने श्री चन्द्रशेखर से मुलाकात की। अवधूत भगवान राम ने चन्द्रशेखर को देखते ही कहा- तुम यहां क्या कर रहे हो? दिल्ली जाओ, वहां तुम्हारी आवश्यकता है।
इसके बाद चंद्रशेखर जैसे ही दिल्ली के लिए निकले, उन्हें सूचना मिली कि कांग्रेस पार्टी आपको समर्थन देने के लिए तैयार है और आपका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित हो रहा है। इस प्रकार नवम्बर 1990 में चन्द्रशेखर ने महज 64 सांसदों तथा कांग्रेस के समर्थन की बदौलत प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
विशेष - अवधूत भगवान राम के आशीर्वाद से पीएम बने थे श्री चन्द्रशेखर, यह प्रसंग सिर्फ जनश्रुतियों पर आधारित है, किसी भी प्रमाणिक पुस्तक में इस तरह का कोई दावा नहीं किया गया है।
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