
समाजवाद के पुरोधा डॉ. राममनोहर लोहिया और राजनीतिक शक्ति की पर्याय इंदिरा गांधी को दो टूक जवाब देने की हिम्मत हिन्दुस्तान में बहुत कम राजनेताओं के पास थी। परन्तु चन्द्रशेखर एकमात्र ऐसे राजनेता थे जिनकी हनक संसद के गलियारे से लेकर देश की सभी राजनीतिक पार्टियों में थी।
भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर युवा तुर्क, बलिया के बाबू साहब, अध्यक्ष जी आदि कई नामों से विख्यात थे। श्री चंद्रशेखर में राजनीतिक नतीजों की परवाह किए बगैर किसी को भी बेबाक अन्दाज में जवाब देने की अद्भुत क्षमता थी। चन्द्रशेखर जी ने बिना किसी राजनीतिक स्वार्थ के सिर्फ गरीबों-मजलूमों के लिए साल 1983 में कन्याकुमारी से नई दिल्ली के राजघाट तक पैदल यात्रा कर सियासी गलियारे में भूचाल ला दिया था।
बेहतरीन वक्ता, समाजवादी विचारक तथा कभी भी समझौता न करने वाले कार्यकर्ता-राजनेता श्री चन्द्रशेखर की साख देश के प्रत्येक राजनीतिक पार्टी और राजनेताओं में थी, कोई भी राजनेता उनकी बात को दरकिनार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था।
साल 2001-2002 में मुझे भी पी.जी.कॉलेज, गाजीपुर के चौराहे पर आयोजित एक कार्यक्रम में चन्द्रशेखर जी को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चन्द्रशेखर जी ने अपने भाषण के दौरान कहा कि मैं गाजीपुर और बलिया को कभी अलग नहीं मानता हूं। उन्होंने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश के प्रत्येक युवा को अपनी बात खुलकर कहने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, किसी भी युवा को किसी के दबाव में आने की जरूरत नहीं है। जब मंच संचालक ने चन्द्रशेखर की प्रशंसा करनी शुरू की तो उन्होंने डांटकर उसे बैठाने की बात कही, तत्पश्चात मंच संचालक स्वयं ही चुप हो गया, ऐसे थे चन्द्रशेखर जी जिन्हें चाटुकारिता बिल्कुल पसन्द नहीं थी।
यह सच है कि देश के युवाओं को निडर राजनीति की राह दिखाने वाले चन्द्रशेखर जी जैसा कद्दावर नेता पूर्वांचल में अब दोबारा कभी पैदा नहीं होगा। इस स्टोरी में हम आपको चन्द्रशेखर से जुड़े कुछ ऐसे रोचक किस्से बताने जा रहे हैं, जिसमें उन्होंने अपने बेबाक जवाब से डॉ. लोहिया तथा इंदिरा गांधी जैसे बड़े नेताओं को मौन रहने पर विवश कर दिया।
चन्द्रशेखर जी का राजनीतिक परिचय : एक नजर में
बागी बलिया के अभिमान चन्द्रशेखर जी सियासी गलियारे में अपने तीखे तेवर तथा बेबाक अन्दाज के लिए जाने जाते थे। श्री चन्द्रशेखर के बागी रवैये तथा विरोधियों पर हावी होने की कला ने उन्हें ‘युवा तुर्क’ नाम से मशहूर कर दिया।
बलिया के इब्राहिमपट्टी में जन्में चन्द्रशेखर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई खत्म करने के बाद ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’ ज्वाइन कर लिया। अपने जीवन के बहुमूल्य 13 वर्ष उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को समर्पित कर दिए परन्तु जब उन्हें लगा कि पार्टी संगठन अव्यवस्थित तथा पार्टी खुद भी भ्रमित है, अत: कुछ ठोस राजनीतिक उपलब्धि हासिल नहीं की जा सकती तो उन्होंने यह पार्टी खुद छोड़ दी।
इसके बाद कांग्रेस को एक प्रमुख राजनीतिक ताकत मानते हुए चन्द्रशेखर ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली। कांग्रेस में रहते हुए भी चन्द्रशेखर ने अपने समाजवादी विचारों से कभी समझौता नहीं किया। कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव, अमृत स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई का विरोध तथा आपातकाल के दौरान लोकनायक जयप्रकाश के आन्दोलन को खुलकर समर्थन देना, इन सभी मुद्दों पर संसद से लेकर सड़क तक चन्द्रशेखर ने इंदिरा गांधी को खुली चुनौती दी। आखिरकार चन्द्रशेखर ने कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दे दिया।
बलिया के बाबू साहब के नाम से विख्यात श्री चन्द्रशेखर साल 1977 से लेकर मृत्युपर्यन्त अपने संसदीय क्षेत्र बलिया से आठ बार सांसद रहे। बिना किसी राजनीतिक स्वार्थ के महज देश की ज्वलंत समस्याओं के निराकरण के लिए चन्द्रशेखर जी ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 के बीच कन्याकुमारी से नई दिल्ली के राजघाट तक तकरीबन 4,260 किलोमीटर की पैदल यात्रा की।
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार लिखा कि “चंद्रशेखर जी ने गरीबों-मजलूमों और गांवों को ध्यान में रखते हए पदयात्रा पूरी की थी। यह कदम उन्होंने चुनाव के मद्देनजर नहीं उठाया था। देश को उन्हें जो गौरव देना चाहिए था वह हमने नहीं दिया।”
चन्द्रशेखर जी ने दिल्ली से ‘यंग इंडियन’ नामक पत्रिका का सम्पादन शुरू किया, जिसमें देश की समकालीन समस्याओं से जुड़े लेख वह स्वयं लिखा करते थे। हांलाकि आपातकाल के समय ‘यंग इंडियन’ पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जनता पार्टी के अध्यक्ष पद को सुशोभित करने वाले चन्द्रशेखर जी ने अपने जीवनकाल में किसी भी छोटे-मोटे राजनीतिक पद के लिए समझौता नहीं किया। साल 1990 में वह राजनीतिक के शिखर पहुंचे और भारत के प्रधानमंत्री बने। यह देश का दुर्भाग्य है कि वह महज आठ महीने ही इस पद पर रह सके।
डॉ. राममनोहर लोहिया से जुड़े दो रोचक किस्से
प्रसंग-1. बलिया के ददरी मेले में युवा तुर्क चन्द्रशेखर ने एक राजनीतिक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता के लिए वे आचार्य नरेन्द्र देव के पास गए किन्तु नरेन्द्र देव उन दिनों ‘दमा’ से पीड़ित थे अत: उन्होंने चन्द्रशेखर से कहा कि मैं तो नहीं जा सकता किन्तु तुम डॉ. लोहिया को ले जाओ।
डॉ. राम मनोहर लोहिया भी वहीं बैठै थे। डॉ. लोहिया ने कहा कि, मुझे कलकत्ता जाना है, अत: मैं इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकता। तब चन्द्रशेखर ने कहा कि कार्यक्रम के बाद आप कलकत्ता चले जाइएगा। पंजाब मेल बक्सर रेलवे स्टेशन से कलकत्ता जाती है अत: मैं आपके लिए बलिया से बक्सर तक जीप की व्यवस्था करवा दूंगा। यह वो दौर था जब जीप मिलना भी बहुत मुश्किल था।
इस तरह डॉ. लोहिया जब बलिया स्टेशन पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत किया गया और कार्यक्रम स्थल तक जाने के लिए कार की व्यवस्था की गई थी। बलिया स्टेशन पर ट्रेन से उतरते ही डॉ. लोहिया ने पूछा – क्या जीप की व्यवस्था हो गई है?, इस पर चन्द्रशेखर चुप रहे। बलिया के एक बड़े जमींदार रायबहादुर सुदर्शन सिंह के यहां डॉ. लोहिया के रूकने का इंतजाम किया गया था।
डॉ.लोहिया जब रायबहादुर सुदर्शन सिंह के यहां पहुंचे तब भी इधर-उधर नजर दौड़ाई और बोले कि जीप कहां है? फिर थोड़ी देर बाद बोले- तुम झूठ बोलते हो, जीप की कोई व्यवस्था नहीं हुई है। इसके बाद युवा चन्द्रशेखर ने कहा कि केवल आप ही ईमानदारी के पुतले नहीं हैं। आप मेरे कहने से नहीं बल्कि आचार्य नरेन्द्र देव के कहने पर यहां आए हैं। वो रही जीप, अब आप जा सकते हैं। फिर क्या था, डॉ. लोहिया कलकत्ता नहीं गए और ददरी मेले में एक शानदार भाषण दिया।
प्रसंग-2. बात 1953 ई. की है, जब प्रतापगढ़ में राम मनोहर लोहिया भाषण दे रहे थे। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि यदि लड़के को तैरना सीखाना है तो उसे पानी में उतारना होगा। यदि उसका हाथ नहीं छोड़ोगे तो वह कभी भी तैरना नहीं सीखेगा। भीषण के बीच में चन्द्रशेखर खड़े हुए और बोले आपने तैरने के तीन प्वाइंट बता दिए। लेकिन आपने चौथा प्वाइंट ‘नेचर आफ वॉटर’ नहीं बताया। यदि पानी की धारा तेज हो तो बच्चा बह जाएगा। यदि पानी स्थिर हो तो सम्भव है, उसमें मगरमच्छ हो और वह बच्चे को खा जाएगा। सभा में सन्नाटा छा गया, लोहिया के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था।
इंदिरा गांधी से जुड़े दो रोचक किस्से
प्रसंग-1. यह प्रसंग हरिवंश (राज्यसभा के उपसभापति) और रवि दत्त बाजपेयी द्वारा लिखित किताब 'चंद्रशेखर - वैचारिक राजनीति के अंतिम प्रतीक' से उद्धृत है। इंदिरा गांधी उन दिनों प्रधानमंत्री थीं, शाम के वक्त इंद्र कुमार गुजराल तथा अशोक मेहता जैसे कई नेता विभिन्न विषयों पर उनसे चर्चा करने के लिए मिलते थे। चन्द्रेशखर के मित्रों का मानना था कि उन्हें भी इस औपचारिक बैठक में शामिल होना चाहिए, परन्तु चन्द्रशेखर इसके लिए अनिच्छुक थे। हांलाकि मित्रों के अनुरोध पर चन्द्रशेखर भी एक शाम इंदिरा गांधी से मिलने पहुंचे।
इंदिरा गांधी और चन्द्रशेखर की वह मुलाकात ऐतिहासिक बन गई। बैठक में इंदिरा गांधी ने चन्द्रशेखर से पूछा कि क्या वह कांग्रेस पार्टी को समाजवादी ईकाई मानते हैं? तब चन्द्रशेखर ने कहा- “मैं तो बिल्कुल नहीं मानता, हां, कुछ लोग ऐसा मानते हैं।”
इंदिरा गांधी ने चन्द्रशेखर से दोबारा सवाल किया- यदि आप कांग्रेस को समाजवादी संगठन में बदलने में विफल रहे तो क्या करेंगे? तब चन्द्रशेखर ने बड़े बेबाकी से जवाब दिया- वह कांग्रेस पार्टी को तोड़ देंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी एक बड़े बरगद का पेड़ बन चुकी है, अत: इसकी छाया में कोई और पौधा नहीं उग सकता। चंद्रशेखर के इस जवाब से इंदिरा गांधी हैरान रह गईं।
इंदिरा गांधी ने चन्द्रशेखर से एक दूसरा सवाल दागा- फिर आप कांग्रेस में क्यों शामिल हुए? चन्द्रशेखर ने कहा कि यदि आप सच जानना चाहती हैं तो सुनिए, मैंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को अपने जीवन के 13 साल समर्पित कर दिए परन्तु जब देखा कि पार्टी संगठन अव्यवस्थित तथा दिग्भ्रमित है तो मुझे लगा कि मैं कोई राजनीतिक उपलब्धि हासिल नहीं कर पाऊंगा। अत: कांग्रेस को एक बड़ी राजनीतिक शक्ति मानते हुए, मैंने इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली।
इंदिरा गांधी ने चन्द्रशेखर से फिर पूछा कि अब आप यहां क्या करना चाहेंगे? तब चन्द्रशेखर ने जवाब दिया- मैं कांग्रेस पार्टी को सच्चे समाजवाद की तरफ ले जाना चाहूंगा। यदि मैं इसमें विफल रहा तो पार्टी को तोड़ने का प्रयास करूंगा। मेरा ऐसा मानना है कि जब तक कांग्रेस खंडित नहीं होगी, तब तक इस देश में कोई नई तरह की राजनीति नहीं उभर सकती। अब आप समझ सकते हैं कि भारतीय राजनीति की एक बड़ी हस्ती इंदिरा गांधी को इस तरह का दो टूक जवाब देने की क्षमता सिर्फ और सिर्फ चन्द्रशेखर जी में ही थी।
प्रसंग-2. यह बात उन दिनों की है जब इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में मोरारजी देसाई वित्त मंत्री थे। चन्द्रशेखर ने मोरारजी पर बेटे कांति देसाई को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया था, इसे लेकर राज्य सभा में दोनों के बीच काफी कहासुनी भी हुई थी। साल 1974 में गुजरात आंदोलन भी उफान पर था, ऐसे में मोरारजी देसाई आमरण अनशन पर थे।
इस दौरान इंदिरा गांधी ने चन्द्रशेखर से कहा कि आप उम्र में छोटे हैं, इसलिए मोरारजी से माफी मांग लीजिए। इंदिरा गांधी ने आखिरी बार चन्द्रशेखर से कहा- मैं नहीं चाहती कि आप कांग्रेस से बाहर किए जाएं।
जवाब में चन्द्रशेखर ने इंदिरा जी से कहा- “मैं कोई हिन्दू रमणी नही हूं कि शादी हो गई तो ताउम्र उसी पति के साथ जिंदगी काटूं। सम्मान के लिए मैं राजनीति में आया और सम्मान नहीं रहा तो इस पार्टी को छोड़ दूंगा।” हांलाकि चन्द्रशेखर जी अनशन पर बैठे बुजुर्ग नेता मोरारजी से मिलने पहुंचे। चन्द्रशेखर जी ने कहा कि यदि आप को कुछ हो जाएगा तो देश की हालत बुरी होगी। बड़ी हिंसा होगी, बड़ा उत्पात होगा। मैं आपका बहुत आदर करता हूं। श्री चन्द्रशेखर का यह भाव लोकतंत्र के प्रति उनकी खूबसूरती को दर्शाता है।
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