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Mythological history: Names and works of the 11 most beautiful Apsaras of heaven

पौराणिक इतिहास : स्वर्ग की सबसे खूबसूरत 11 अप्सराओं के नाम और काम

दोस्तों, ऋग्वेद, अथर्ववेद, कौशीतकी उपनिषद, शतपथ ब्राह्मण, भागवत पुराण, रामायण तथा महाभारत महाकाव्य सहित विभिन्न पौराणिक कथाओं में अप्सराओं का उल्लेख मिलता है। देवताओं के महलों में निवासी करने वाली अप्सराओं को अत्यंत सुन्दर, युवा, इच्छानुसार रूप बदलने में माहिर बताया गया है। ऐसा वर्णित है कि अप्सराओं का कौमार्य कभी भंग नहीं होता अर्थात् वे सैदव कुंवारी बनी रहती हैं।

एक प्रसंग में अप्सरा उर्वशी वार्तालाप के दौरान मार्कण्डेय ऋषि से कहती है कि मेरे समक्ष कितने इन्द्र आए और गए, मैं वहीं की वहीं हूं। जब तक अभी 14 इन्द्र अपना पद नहीं भोग लेते तब तक मेरी मृत्यु नहीं होगी। अब आप सौन्दर्य से युक्त अप्सराओं के चिरंजीवी होने के सामर्थ्य को समझ गए होंगे।

देवराज इन्द्र के दरबार में नर्तकी तथा सेविका के रूप में कार्यरत अप्सराओं को गन्धर्वों की पत्नियों के रूप में भी उल्लेखित किया गया है। नृत्य कला में पारंगत अप्सराओं को दैविक तथा लौकिक दोनों बताया गया है, यही वजह है कि स्वर्ग के अप्सराओं की कथा भारत के पौराणिक इतिहास में भी यत्र-तत्र देखने को मिल ही जाती है।

अप्सराओं को सौन्दर्य का पर्याय माना गया है, बतौर उदाहरण- किसी भी सुन्दर महिला को लोग अप्सरा कहकर सम्बोधित करते हैं। जाहिर है, अब आप भी अप्सराओं से जुड़े पौराणिक इतिहास जानने को उत्सुक होंगे। ऐसे में अप्सराओं के विषय में रोचक बातें जानने के लिए यह स्टोरी अवश्य पढ़ें।

दैवीय अप्सराओं की उत्पत्ति

अप्सराओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न पौराणिक ग्रन्थों में अलग-अलग कथाएं उल्लेखित हैं। कई अप्सराओं की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा ने की थी, इनमें तिलोत्तमा अप्सरा का नाम प्रमुख है। वहीं भागवत पुराण के मुताबिक, महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री मुनि से कई अप्सराओं का जन्म हुआ। भागवत पुराण में ही वर्णित है कि दिव्य ऋषि नारायण की उरु (जांघ) से उर्वशी नामक अप्सरा का जन्म हुआ। कामदेव तथा रति को भी कई अप्सराओं का जनक बताया गया है, वहीं कुछ ग्रन्थों में देवराज इन्द्र को अप्सराओं के उत्पत्तिकर्ता के रूप में वर्णित किया गया है। 

देवलोक की सबसे खूबसूरत 11 अप्सराओं के नाम

पौराणिक कथाओं के मुताबिक परी, अप्सरा, यक्षिणी,  इन्द्राणी तथा पिशाचिनी में अप्सराओं को सबसे सुन्दर और जादुई शक्ति से सम्पन्न माना गया है। इच्छानुसार रूप बदलने में माहिर, वरदान एवं श्राप देने में सक्षम अप्सराओं को उप देवियों की श्रेणी में रखा गया है।

विभिन्न हिन्दू कथाओं में अप्सराओं को तरुण, अत्यन्त सुन्दर, कमर तक वस्त्र से आच्छादित, नृत्य-संगीत सहित विभिन्न कलाओं में दक्ष, तेजस्वी तथा अलौकिक दिव्य से युक्त देवलोक की स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है।

वैसे तो देवलोक में अप्सराओं की संख्या 108 बताई गई है लेकिन देवराज इन्द्र की संरक्षण में रहने वाली 11 अप्सराएं प्रमुख थीं – 1. मेनका, 2. रम्भा, 3. उर्वशी, 4. घृताची, 5. कृतस्थली, 6. प्रम्लोचा, 7. अनुम्लोचा, 8. वर्चा, 9. तिलोत्तमा, 10. पूर्वचित्ति, 11. पुंजिकस्थला।

इन 11 दैवीय अप्सराओं में से 4 अप्सराओं रम्भा, उर्वशी, मेनका और तिलोत्तमा का सौंदर्य अद्वितीय माना गया है। अत्यंत खूबसूरत अप्सरा रम्भा समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थी। पौराणिक ग्रन्थों में कुबेर पुत्र नलकुबेर की पत्नी रम्भा को सभी अप्सराओं का प्रमुख बताया गया है।

देवलोक की अन्य अप्सराओं के नाम

अम्बिका, अनावद्या, अलम्वुषा, अरुणा, असिता, अनुचना, चन्द्रज्योत्सना, बुदबुदा, गुनमुख्या, हर्षा, देवी, गुनुवरा, काम्या, इन्द्रलक्ष्मी, कांचन, मालाकर्णिका, केशिनी, क्षेमा, कुण्डला, हारिणि, लता, लक्ष्मना, मारिची, मनोरमा, मृगाक्षी, मिश्रास्थला, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, भूषिणि, ऋतुशला, रक्षिता, रत्नमाला, साहजन्या, सौरभेदी, समीची, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुरसा, सुराता, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुवाहु, उमलोचा।

अप्सराओं के प्रमुख काम

गन्धर्वों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखने वाली अप्सराओं का मुख्य काम स्वर्गलोक में नृत्य-संगीत के जरिए इन्द्र तथा अन्य देवताओं का मनोरंजन करना तथा जरूरत पड़ने पर वासना की पूर्ति करना भी शामिल है। अनेक प्रसंगों में महान ऋषियों तथा तपस्वियों का ध्यान भंग करने हेतु देवराज इन्द्र ने अप्सराओं को भेजा, जिसमें वे सफल भी हुईं।

संगीत और सौन्दर्य की धनी इन अप्सराओं में से कुछ अप्सराओं को ​​ऋषियों के श्राप का दंश भी झेलना पड़ा। कई अप्सराओं ने सिर्फ अपने कामुक सौन्दर्य के दम पर ऋषियों को दिव्य शक्तियां प्राप्त करने से रोकने तथा ऋषि मार्ग से विमुख करने में सफलता प्राप्त की।

ऐसी अप्सराओं की संख्या 34 बताई गई है जिन्हें श्रृषियों के द्वारा पृथ्वीलोक पर रहने का श्राप मिला, इनमें वानरराज बालि की पत्नी तारा, दैत्यराज शम्बर की पत्नी माया, पवनपुत्र हनुमान की माता देवी अंजना तथा राजा पुरुरवा की पत्नी उर्वशी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

पृथ्वीलोक पर अप्सराओं से जुड़े कुछ रोचक प्रसंग

1.मेनका और म​हर्षि विश्वामित्र - अप्सराओं की प्रमुख रम्भा को महर्षि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने में सफलता नहीं मिली परन्तु एक नए स्वर्गलोक का निर्माण करने की क्षमता रखने वाले महर्षि विश्वामित्र ने आखिरकार मेनका के कामुक सौन्दर्य के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। महर्षि विश्वामित्र और मेनका से शकुंतला नामक पुत्री का जन्म हुआ। शकुंतला ने राजा दुष्यंत से गन्धर्व विवाह किया, इसके बाद भरत का जन्म हुआ। भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।

2.रम्भा और लंकापति रावण - नलकुबेर की पत्नी रम्भा के सौन्दर्य से आकर्षित होकर लंकापति रावण ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। इसके बाद अप्सरा रम्भा ने रावण को श्राप दिया कि यदि वह किसी भी स्त्री को बिना उसकी इच्छा के स्पर्श करेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। मान्यता है कि इसी श्राप के कारण रावण ने माता सीता को स्पर्श करने का साहस तक नहीं किया।

3.उर्वशी और पुरुरवा - एक बार उर्वशी अपने सखियों के साथ धरती की यात्रा पर थी, परन्तु जब वह स्वर्गलोक लौटने लगी तभी एक राक्षस ने उसका अपहरण कर लिया। इस दौरान उसी मार्ग से चन्द्रवंशी राजा पुरुरवा जा रहे थे, उन्होंने उस राक्षस को मारकर अप्सरा उर्वशी तथा उसकी सखियों को मुक्त कराया। फिर क्या था, उर्वशी राजा पुरुरवा की तरफ आकर्षित हो गई, वहीं राजा पुरुरवा भी उर्वशी को दिल दे बैठे।

आखिरकार उर्वशी देवलोक लौट गई लेकिन दोनों एक-दूसरे भूला नहीं पा रहे थे। एक दिन स्वर्ग में एक नाटक आयोजित किया गया जिसका निर्देशन भरत मुनि कर रहे थे। उस नाटक में उर्वशी को माता लक्ष्मी का किरदार मिला था। संवाद बोलते समय उर्वशी ने भगवान विष्णु की जगह राजा पुरुरवा का नाम बोल दिया।

इसके बाद भरतमुनि ने उर्वशी को श्राप देते हुए कहा कि एक मानव के प्रति आकर्षि​त होने के कारण तुझे पृथ्वी पर रहना पड़ेगा और मनुष्यों की तरह संतान भी पैदा करनी होगी। भरत मुनि का श्राप सच साबित हुआ। राजा पुरुरवा और उर्वशी के विवाह के पश्चात भारतवर्ष में सर्वाधिक प्रतापी पुरुवंश का जन्म हुआ।

4.उर्वशी और अर्जुन - देवराज इन्द्र के निमंत्रण पर उनके औरस पुत्र अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए स्वर्गलोक गए थे। इस दौरान उर्वशी धर्नुधारी अर्जुन पर मोहित हो गई, परन्तु अर्जुन ने उर्वशी का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया जिससे वह क्रोधित हो गई। उर्वशी ने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का श्राप दिया था।

5.घृताची और वेदव्यास - कश्यप ऋषि तथा प्राधा की पुत्री थी घृताची। पौराणिक मान्यता है कि सभी अप्सराओं में अत्यन्त सुन्दर और कामुक घृताची ने कई पुरुषों के साथ समागम किया। महान ऋषि वेदव्यास को उनके क्रोध और तप के लिए जाना जाता है बावजूद इसके महर्षि वेदव्यास सुन्दरतम अप्सरा घृताची के प्रति कामासक्त हो गए जिससे शुकदेव का जन्म हुआ।

6.अंजनी और केसरी- संकटमोचन हनुमान की माता अंजनी पूर्व में पुंजिकस्थला अप्सरा थीं परन्तु ऋषि ने उन्हें श्राप दिया था कि जब भी उन्हें प्रेम होगा तब वह वानरी बन जाएंगी।

7.प्रम्लोचा और ऋषि कंड्डु - अप्सरा प्रम्लोचा ने ऋषि कंड्डू की तपस्या भंग की थी। ऋषि कंड्डू और अप्सरा प्रम्लोचा में अटूट प्रेम था परन्तु इस सच को छुपाने के लिए अप्सरा प्रम्लोचा को तकरीबन 907 साल तक पृथ्वी पर रहना पड़ा।

8.तिलोत्तमा और सुन्द -उपसुन्द - पृथ्वी पर कभी सुन्द और उपसुन्द नामक असुरों का अत्याचार काफी बढ़ गया था। सुन्द और उपसुन्द दोनों भाई थे, इनके अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए देवराज इन्द्र ने तिलोत्तमा को भेजा। अत्यंत कामुक और सौन्दर्य की मलिका तिलोत्तमा के मोहपाश में फंसकर सुन्द और उपसुन्द ने एक-दूसरे को ही मार गिराया। इस प्रकार अप्सरा तिलोत्तमा के जरिए सुन्द-उपसुन्द की मृत्यु हुई।

9.अनुम्लोचा, पूर्वचित्ति, कृतस्थली और वर्चा -

अनुम्लोचा, पूर्वचित्ति, कृतस्थली और वर्चा स्वर्गलोक की ऐसी चार अप्सराएं थी जिन्होंने अपनी खूबसूरती के दम पर कई ​ऋषि-मुनियों की तपस्या भंग की थी। देवराज इन्द्र की खास अप्सराओं में इन चारों अप्सराओं का नाम शामिल था।  अप्सराओं से जुड़ी उपरोक्त सभी जानकारियां पौराणिक ग्रन्थों पर आधारित हैं। परन्तु यह कितना सच है, इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है।

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