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Mythological and scientific facts related to Ram Setu that will surprise you

रामसेतु से जुड़े पौराणिक तथा वैज्ञानिक तथ्य जो आपको हैरान कर देंगे

दोस्तों, भारतवर्ष में भगवान श्रीराम के जीवन-चरित्र पर आधारित रामायण नामक ग्रन्थों की संख्या तकरीबन 300 से भी अधिक है। यदि हम देश के प्रमुख रामायण ग्रन्थों की बात करें तो संस्कृत भाषा में वाल्मीकि रामायण’, अवधी में रामचरितमानस’, तमिल में कम्बन रामायण’, असम  में असमी रामायण’, बंगाली में कृतवास रामायण तथा मराठी भावार्थ रामायण का प्रमुखता से उल्लेख किया जाता है। इन सभी में आदिकवि म​हर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित रामायण को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

गौर करने वाली बात यह है कि उपरोक्त सभी प्रमुख रामायण ग्रन्थों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता को लंकापति रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए अपनी विशाल वानर सेना के साथ लंका की तरफ कूच किया था, जहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने समुद्र पर एक सेतु का निर्माण करवाया। भारत से श्रीलंका को जोड़ने वाले पत्थरों से ​निर्मित इस सेतु को हम सभी रामसेतु के नाम जानते हैं।

भारत के सनातनी समाज से इतर कुछ तबका ऐसा भी है जो रामसेतु को मानव निर्मित नहीं अपितु प्रकृति के द्वारा निर्मित मानता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर इस स्टोरी में हम आपको कुछ ऐसे पौराणिक तथा वैज्ञानिक साक्ष्यों से रूबरू कराने जा रहे हैं जिससे यह साबित होता है कि रामसेतु का निर्माण स्वयं भगवान श्रीराम और उनकी विशाल वानरी सेना ने ही किया था।

रामसेतु के विभिन्न नाम

रामेश्वरम के धनुषकोडी से श्रीलंका स्थित तलैमन्नार द्वीप तक समुद्र पर बने इस अति प्राचीन सेतु के कई नाम हैं, जैसे- एडम ​ब्रिज, आदम ब्रिज, नल सेतु, सेतु बन्ध तथा रामसेतु। परन्तु इस सभी नामों में भगवान श्रीराम के निर्देश पर उनकी वानर सेना द्वारा तैयार किया गया रामसेतु ही सर्वाधिक विख्यात है।

सनातनी समाज के प्रमुख धर्मग्रन्थों वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, महाभारत महाकाव्य, स्कन्द पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्म पुराण तथा महाकवि कालीदास के महाग्रन्थरघुवंश में भी रामसेतु का ही उल्लेख किया गया है। जाहिर है, भारत के पम्बन द्वीप से श्रीलंका स्थित तलैमन्नार द्वीप को जोड़ने वाले उस पुल को रामसेतु कहना सर्वदा उचित होगा।

श्रीराम की वैज्ञानिक सोच का प्रमाण है रामसेतु

भगवान श्रीराम के समकालीन महर्षि वाल्मीकि अपने महाग्रन्थ रामायण में लिखते हैं कि श्रीराम ने तीन दिन के गहन खोजबीन के बाद रामेश्वरम से आगे वह जगह ढूंढ निकाली जहां से बड़ी सरलतापूर्वक श्रीलंका तक पहुंचा जा सकता है।

इस तथ्य को गोस्वामी तुलसीदास भी अपने ग्रन्थ रामचरितमानस में कुछ इस तरह से लिखते हैं-“विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीत।। इस पंक्ति में देश की जनता को सरल शब्दों में समझाने के लिए गोस्वामी तुलसीदासजी ने ऐसा लिखा कि श्रीराम ने तीन दिन तक समुद्र देवता की अनुनय-विनय की। परन्तु यदि हम वैज्ञानिक सोच की बात करें तो श्रीराम ने समुद्र से अनुनय-विनय नहीं अपितु तीन दिन तक गहन मन्थन के पश्चात रामसेतु का निर्माणकार्य शुरू करवाया था।

महज पांच दिन में बना था रामसेतु

विभिन्न हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, 100 योजन लम्बा और तकरीबन 10 योजन चौड़ा रामसेतु महज पांच दिन में बनकर तैयार हो गया था। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे सम्भव हो गया?

वाल्मीकि रामायण में इस बात का उल्लेख किया गया है​ कि श्रीराम की सेना के वानरों द्वारा यंत्रों के जरिए बड़े-बड़े पत्थरों को समुद्र तट पर लाया गया। ऐसे में यह स्पष्ट है कि उन दिनों भी राम की सेना द्वारा रामसेतु बनाने में उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। रामायण में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि रामसेतु बनाने के वक्त कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे अर्थात समुद्र पर पुल का निर्माण बिल्कुल मापकर हो रहा था।

रामसेतु ​का निर्माण करने वाले दो प्रमु​ख अभियन्ताओं का नाम नल-नील था जो विश्व सृजनकर्ता भगवान विश्वकर्मा के औरस पुत्र थे। यही वजह है कि समुद्र पर बने इसे सेतु का नाम भगवान श्रीराम ने नल सेतु रखा था, इस बात का उल्लेख श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में मिलता है।

यदि हम 100 योजन लम्बे सेतु के निर्माण में लगे वानरों की संख्या की बात करें तो गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं- “अस मैं सुना श्रवन दसकंधर। पदुम अठारह जूथप बंदर॥ गणित के हिसाब से एक पद्म में 15 शून्य होते हैं, जबकि श्रीराम की सेना में 18 पद्म बन्दर थे। ऐसे में आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि भगवान श्रीराम की इतनी विशाल सेना के समक्ष रामेसतु का पांच दिन में बनकर तैयार हो जाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं था।

वहीं, भगवान श्रीराम द्वारा रामसेतु के विध्वंस का जिक्र किया जाए तो इसका उल्लेख कम्बन रामायण में जरूर मिलता है। कही-कहीं यह भी लिखा गया है कि लंका के राजा विभिषण के कहने पर श्रीराम ने इस सेतु पर अपने बाणों से प्रहार किया था जिससे रामसेतु 2 से 3 फीट नीचे चला गया।

रामसेतु से जुड़े वैज्ञानिक साक्ष्य

तमिलनाडु के पम्बन द्वीप को श्रीलंका के मन्नार द्वीप से जोड़ने वाले सेतु का नाम है रामसेतु।

रामेश्वरम के दक्षिणी छोर पर स्थित गांव धनुषकोडी से श्रीलंका स्थित तलैमन्नार द्वीप की दूरी महज 18 मील है।

इस जगह का नाम धनुषकोडी इसलिए पड़ा क्योंकि इसका आकार धनुष के समान है।     

भारत और श्रीलंका के बीच धनुषकोडि ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां समुद्र बिल्कुल नदी की तरह है, जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

दिसम्बर 1917 में अमेरिकी साइंस चैनल पर आधारित एक टीवी शो ‘Ancient Land Bridge’ में अमेरिकी पुरातत्विदों ने इस तथ्य को स्वीकारा था कि भगवान श्रीराम द्वारा श्रीलंका तक सेतु बनाने की पौराणिक कथा बिल्कुल सच हो सकती है।

अमेरिकी पुरातत्वविदों के मुताबिक 50 किमी. लम्बी एक रेखा चट्टानों से बनी है, जो तकरीबन 7000 साल पुरानी है और जिस बालू पर यह चट्टानें टिकी है, वह तकरीबन 4000 साल पुराना है। ऐसे में नासा वैज्ञानिकों का कहना है कि रामसेतु की चट्टानों तथा बालू के उम्र की विसंगति यह प्रमाणित करती है कि इस सेतु को इंसानों ने ही बनाया था।

यदि रामसेतु की कार्बन डेटिंग तथा रामायण काल की बात करें तो इन दोनों का तालमेल एकदम सटीक बैठता है। ऐसे में रामसेतु के रामायणकाल में बने होने की बात सच साबित होती है।

विभिन्न पौराणिक ग्रन्थों में भी यह बात लिखी गई ​है कि रामसेतु निर्माण में जल में तैरने वाले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। वहीं वैज्ञानिक साक्ष्य के अनुसार, रामसेतु बनाने में प्यूमाइस स्टोननामक पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। इस तरह के स्टोन भारत के अलावा, फिजी, न्यूजीलैंड और न्यू कैलेडोनिया में पाए जाते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि प्यूमाइस स्टोनज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं।

रामसेतु की तस्वीरें अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा’ (NASA) ने 14 दिसंबर 1966 को जेमिनी-11 से ली थीं।

धनुषकोडी और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिम में पंबन द्वीप के बीच समुद्र में स्थित 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे भू-भाग की उपग्रह से खींची गई तस्वीर को नासा ने साल 1993 में जारी किया। इसके बाद रामसेतु के अस्तित्व को लेकर विवाद गहराता गया।

रामसेतु से जुड़े विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर वैज्ञानिकों का ऐसा कहना है कि अभी 15वीं शताब्दी तक इस पुल के रास्ते रामेश्वर से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लोग पैदल चलकर जाया करते थे। वर्तमान में रामसेतु जलस्तर से महज 3 फीट नीचे हैं, कहीं-कहीं यह 30 फीट नीचे है।

जल के नीचे रामसेतु के अस्तित्व में होने के कारण समुद्री जहाजों को तकरीबन 780 किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा करनी पड़ती है।

यदि हम रामसेतु के विध्वंस की बात करें तो कालान्तर में आए कई समुद्री तूफानों ने इसे ज्यादा गहरा कर दिया। इसके अतिरिक्त 1480 ई. में आए भयावह चक्रवात के कारण यह सेतु विध्वंस हो गया तथा ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ने से यह डूब गया।

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