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Historical evidence related to Shringaverpur, the glorious city of Shri Ram's best friend Nishadraj

श्रीराम के परम मित्र निषादराज गुह्य की वैभवशाली नगरी श्रृंगवेरपुर से जुड़े ऐतिहासिक साक्ष्य

इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से 22 मील उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित सिंगरौर नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से प्रसिद्ध था। महाकाव्य ‘रामायण’ से पता चलता है कि अयोध्या से वन जाते समय श्रीराम अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ इसी स्थान पर एक रात के लिए ठहरे थे जहां उनके परममित्र और सहपाठी निषादराज गुह्य ने उनकी सेवा की थी। लंका से अयोध्या लौटते समय भगवान राम का पुष्पक विमान सबसे पहले श्रृंगवेरपुर में उतरा था। श्रृंगवेरपुर नगर गंगा नदी के तट पर स्थित था। भवभूति ने ‘उत्तररामचरित’ में भी इस स्थान का वर्णन किया है। महाभारत में श्रृंगवेरपुर को ‘तीर्थस्थल’ कहा गया है। अनुश्रुति के मुताबिक, यहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम था, अत: इस स्थल का नाम श्रृंगवेरपुर हुआ। वर्तमान में श्रृंगवेरपुर में श्रृंगी ऋषि और उनकी सहधर्मिणी देवी शांता का भव्य मंदिर भी है।

उत्खनन से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्य

भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक डॉ. बी.बी. लाल और उनके सहयोगी के. एन. दीक्षित के निर्देशन में साल 1977-1978 में श्रृंगवेरपुर (सिंगरौर) में हुई खुदाई के दौरान मिले अवशेषों से यह जानकारी मिलती है कि प्राचीन काल में श्रृंगवेरपुर कभी वैभवशाली नगर हुआ करता था। यहां उत्खनन के दौरान पक्की ईटों से निर्मित एक आयताकार तालाब मिला है। इस तालाब में उत्तर की ओर से जल प्रवेश और दक्षिण की ओर से जलनिकासी के लिए नाली बनाई गई थी। इसमें पेयजल की सफाई का विशेष प्रबन्ध किया गया था। भारत के किसी पुरातात्विक स्थल से उत्खनित यह सबसे बड़ा तालाब है। इस उत्खनन स्थल से यह साबित होता है कि यहां नगरीकरण अपने उत्कर्ष पर था। इतना ही नहीं इस जगह से गहरवार वंश के शासक गोविन्दचन्द्र के 13 चांदी के सिक्के, आभूषण, तलवारें व अन्य स्मृतियां मिली हैं। इस स्टोरी में हम आपको निषादराज गृह्य की राजधानी श्रृंगवेरपुर से जुड़े इ​तिहास की जानकारी देने का प्रयास करेंगे।

श्रीराम के श्रृंगवेरपुर पहुंचने की संक्षिप्त कथा

चौदह वर्षों के लिए वनगमन करते समय श्रीराम अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या की सीमा पारकर गंगा नदी के जिस तट पर पहुंचे थे, वहां से थोड़ी दूरी पर श्रृंगवेरपुर स्थित था। श्रृंगवेरपुर में श्रीराम के सहपाठी और उनके मित्र निषादराज गुह्य (निषाद, मल्लाह, साहनी, केवट, मांझी, राजभर, बाथम, कोली, भील,बिंद, मझवार, रैकवार, बाथम आदि जातियों के राजा) का शासन था। निषादराज गुह्य को जैसे ही खबर मिली कि उनके प्रिय मित्र श्रीराम आएं है, वे अपने साथियों के साथ कंदमूल और फल के साथ उनसे मिलने आए। इस अवसर पर निषादराज गृह्य ने श्रीराम से अपने नगर श्रृंगवेरपुर चलने का आग्रह किया लेकिन श्रीराम ने निषादाराज से कहा कि वनवास के दौरान मुझे वन में निवास करते हुए ऋषि-मुनियों की तरह ही जीवन-यापन करना है अत: मैं किसी गांव या नगर में प्रवेश नहीं कर सकता। इसके बाद निषादराज ने एक वृक्ष के नीचे ही कोमल पत्ते तथा घास-फूस बिछाकर श्रीराम और सीता के लिए विश्राम करने की व्यवस्था की। इस स्थान पर एक रात्रि विश्राम करने के बाद श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी पार करवाने में निषादराज गुह्य ने मदद की।

वाल्मीकि ‘रामायण’ में श्रृंगवेरपुर

महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य ‘रामायण’ में श्रीराम के मित्र निषादराज गुह्य और श्रृंगवेरपुर का कुछ इस तरह उल्लेख किया है-

'समुद्रमहिषीं गंगां सारसक्रौंचनादिताम्, आससाद महाबाहुः श्रंगवेरपुरं प्रति।

 तत्र राजा गुहो नाम रामस्यात्मसमः सखा, निषादजात्यो बलवान् स्थपतिश्चेति विश्रुतः।'

इसके अतिरिक्त अयोध्या के राजा भरत अपने अग्रज श्रीराम से मिलने के लिए श्रृंगवेरपुर होते हुए चित्रकूट गए थे,  जिसका वर्णन महर्षि वाल्मीकि ने कुछ इस प्रकार किया है-

'ते गत्वा दूरमध्वानं रथ यानाश्चकुंजरैः समासेदुस्ततो गंगां श्रंगवेरपुरं प्रति।

गोस्वामी तुलसीदास के महाकाव्य रामचरितमानस में श्रृंगवेरपुर

गोस्वामी तुलसीदास ने निषादराज गुह्य द्वारा श्रीराम के आदर-सत्कार का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-

यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बंधु बोलाई॥ लिए फल मूल भेंट भरि भारा। मिलन चलेउ हियँ हरषु अपारा॥

अर्थ निषादराज गुह्य को जब श्रीराम के आगमन की खबर मिली,तब आनंदित होकर उसने अपने प्रियजनों और बंधु-बांधवों को बुला लिया और भेंट देने के लिए फल, मूल (कन्द) लेकर और उन्हें बहँगियों में भरकर मिलने के लिए चला। उसके हृदय में अत्यंत हर्ष हो रहा था।

करि दंडवत भेंट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें॥ सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई॥

अ​र्थ दण्डवत प्रणाम करके और भेंट सामने रखकर वह अत्यन्त प्रेम से प्रभु को देखने लगा। श्री रघुनाथजी ने स्वाभाविक स्नेह के वश होकर उसे अपने पास बैठाकर कुशल पूछी।

नाथ कुसल पद पंकज देखें। भयउँ भागभाजन जन लेखें॥ देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा॥

अर्थ निषादराज ने उत्तर दिया- हे नाथ! आपके चरणकमल के दर्शन से ही सब कुशल है, आज मैं भाग्यवान पुरुषों की गिनती में आ गया। हे देव! यह पृथ्वी, धन और घर सब आपका है। मैं तो परिवार सहित आपका तुच्छ सेवक हूँ।

महाकाव्य महाभारत के वनपर्व में श्रृंगवेरपुर

महाकाव्य महाभारत के वनपर्व में श्रंगवेरपुर उल्लेख तीर्थस्थल के रूप में किया गया है

ततो गच्छेत राजेन्द्र श्रंगवेरपुरं महत् यत्र तीर्णो महाराज रामो दाशरथिः पुरा।

अर्थ हे राजा, श्रंगवेरपुर के महान नगर में जाएं, जहां दशरथ के पुत्र महाराजा राम ने रा​त्रि विश्राम किया था।

श्रंगवेरपुर में था श्रृंगी ऋषि का आश्रम

अनुश्रुतियों के अनुसार, श्रृंगवेरपुर में श्रृंगी ऋषि का आश्रम था जहां वे अपनी पत्नी शांता के साथ रहते थे। कौशल्‍या की बहन वर्षिणी और उनके पति अंग देश के राजा रोमपद की कोई संतान नहीं थी अत: इस दंपति ने शांता को गोद लिया था।  बाद में शांता का विवाह ऋषि श्रृंगी से कर दिया गया। महर्षि वशिष्ठ के परामर्श पर महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्ठी यज्ञ किया था, इस यज्ञ का संचालन ऋषि श्रृंगी ने ही किया था। इस प्रकार पुत्रकामेष्ठी यज्ञ के पश्चात ही राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। विभांडक ऋषि के पुत्र और कश्यप ऋषि के पौत्र ऋृंगी ऋषि के नाम पर ही इस स्थल का नाम श्रृंगवेरपुर पड़ा। चूंकि श्रृंगवेरपुर के ऋषि श्रृंगी के कारण भगवान राम का जन्म हुआ था, इसलिए इस श्रृंगवेरपुर धाम को कुछ लोग संतान तीर्थ भी कहते हैं।

श्रंगवेरपुर में निषादराज और श्रीराम की 51 फीट ऊंची प्रतिमा

निषादराज गुह्य की राजधानी श्रृंगवेरपुर में निषादराज पार्क का निर्माण किया गया है। गंगा नदी के किनारे बने इस पार्क में श्रीराम व निषादराज की गले लगते हुए तांबे की 51 फीट ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। 470 लाख रुपये लागत की 51 फीट ऊंची तांबे की मूर्ति को राज्य ललित कला अकादमी ने तैयार किया है। तकरीबन साढ़े पांच हेक्टेयर में बने निषादराज पार्क का निर्माण पर्यटन विभाग की देखरेख में किया गया है।

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