संक्षिप्त परिचय-
जानकारी के लिए बता दें कि 1785 में वारेन हेस्टिंग्स के इंग्लैंड जाने के बाद मैक्फर्सन को अस्थाई गर्वनर बनाया गया था। 1786 में मैक्फर्सन के बाद लार्ड कार्नवालिस को गर्वनर जनरल नियुक्त किया गया। दरअसल 1786 में ब्रिटीश पार्लियामेंट ने पिट्स इंडिया एक्ट में संशोधन किया था ताकि लार्ड कार्नवालिस स्वयं को गवर्नर-जनरल और कमांडर-इन-चीफ की शक्ति में संयोजित कर सके। उन्हें अपनी कार्यकारी परिषद के सदस्यों पर शासन करने की शक्ति भी दी गई थी।
लॉर्ड कार्नवालिस इंग्लैंड के एक उच्च सम्मानित परिवार के थे। बंगाल के गवर्नर जनरल के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले उन्होंने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में उत्तरी अमेरिका में ब्रिटिश सेनाओं के कमांडर-इन-चीफ के रूप में काम किया था। अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध के दौरान 1781 ई. में उपनिवेशी सेना के सम्मुख ब्रिटेन के सेनापति लॉर्ड कार्नवालिस ने यॉर्क टाउन में आत्मसमर्पण कर दिया था। लिहाजा लार्ड कार्नवालिस ने बड़े संकोच के साथ गवर्नर-जनरल के पद को स्वीकार किया था।
भारत में सिविल सेवा को अस्तित्व में लाने और व्यवस्थित करने का श्रेय लार्ड कार्नवालिस को दिया जाता है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ज़िला फौजदारी न्यायालयों को समाप्त कर दिया और कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद तथा पटना में सर्किट अदालतों की स्थापना की।
लॉर्ड कॉर्नवॉलिस को पुलिस व्यवस्था का जनक भी कहा जाता है। ज़िलों में पुलिस थाना की स्थापना कर दरोगा को उसका प्रभारी बनाया गया। लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने 1793 ई. में प्रसिद्ध ‘कॉर्नवॉलिस कोड’ का निर्माण करवाया, जो ‘शक्तियों के पृथकीकरण’ सिद्धान्त पर आधारित था। कॉर्नवॉलिस कोड’ से कलेक्टरों की न्यायिक एवं फ़ौजदारी से सम्बन्धित शक्ति का हनन हो गया और अब उनके पास मात्र टैक्स सम्बन्धित शक्तियाँ ही रह गयी थीं।
इतना ही नहीं उन्होंने हिंदुओं के लिए बनारस में एक संस्कृत कॉलेज की स्थापना की और यह आज बनारस में सरकारी संस्कृत कॉलेज है। कार्नवालिस ने कलकत्ता में एक टकसाल भी स्थापित की। लार्ड कार्नवालिस स्थाई बंदोबस्त के लिए विख्यात हैं। उन्होंने बंगाल और भारत के अन्य हिस्सों विशेषकर बिहार और वाराणसी मंडल में स्थायी बंदोबस्त शुरू किया।
स्थायी बंदोबस्त के तहत जमींदारों को भूमि का मालिक बना दिया गया। जमींदारों को किसी भी समय किसानों को बेदखल करने का अधिकार था। जमींदारों को भू-राजस्व का 89 फीसदी हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ता था। स्थाई बंदोबस्त को दस वर्ष की अवधि के लिए निर्धारित किया गया था। भू राजस्व से जुड़ी इस व्यवस्था ने भारत से ब्रिटेन तक धन के निकास को तेज़ कर दिया। स्थाई बंदोबस्त ने जमींदारों का एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया जो अंग्रेजों के हिमायती बन गए क्योंकि इस व्यवस्था ने जमींदारों को मालामाल कर दिया था।
लॉर्ड कॉर्नवॉलिस की मृत्यु-
जानकारी के लिए बता दें कि लॉर्ड कॉर्नवॉलिस दो बार भारत के गवर्नर-जनरल बनाये गये थे। पहली बार उनका कार्यकाल 1786-1793 ई.तक था तथा दूसरी बार 1805 ई. में गवर्नर-जनरल बनाये गये। 1793 में कार्नवालिस के इंग्लैंड चले जाने के बाद उनकी जगह सर जॉन शोर ने ले ली। साल 1805 में गवर्नर जनरल के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए एक बार फिर लार्ड कार्नवालिस भारत लौटे लेकिन इस बार उनका प्रवास सफल नहीं रहा।
अपने दूसरे कार्यावधि के दस सप्ताह के बाद लार्ड कार्नवालिस जलमार्ग के द्वारा कोलकाता से बनारस जा रहे थे। रास्ते में इनकी आंतों में इन्फेक्शन हो गया था, वह मलेरिया बुखार से पीड़ित थे। ऐसे में 05 अक्टूबर 1805 को गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद क्षेत्र स्थित गौसपुर गांव के पास गंगा नदी के तट पर 67 वर्ष की उम्र में लार्ड कार्नवालिस की मृत्यु हो गई।
पीजी कॉलेज, गाजीपुर के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ. समर बहादुर सिंह के मुताबिक उन दिनों आवागमन के आधुनिक साधन मौजूद नहीं थे, जिससे कि लार्ड कार्नवालिस को ब्रिटेन ले जाया जा सके इसलिए इस अंग्रेज गर्वनर को गाजीपुर में ही दफनाने का निर्णय लिया गया। हांलाकि उन दिनों अन्य अंग्रेज सैन्याधिकारियों और सैनिकों को हाथीखाना स्थित ब्रिटीश कब्रगाह में दफनाया जाता था, चूंकि लार्ड कार्नवालिस गर्वनर जनरल था इसलिए उसे गोराबाजार में एक विशेष जगह दफना दिया गया, जहां पर शानदार मकबरे का निर्माण किया गया। चूंकि ग़ाज़ीपुर शहर में मौजूद अंग्रेजों के बंगले, कोठियाँ ज्यादातर यहीं स्थित थीं, जिसके कारण स्थानीय लोग इस जगह को गोराबाजार के नाम से पुकारते थे, तभी से यह नाम प्रचलित है।
लार्ड कार्नवालिस के मकबरे की बनावट -
कलकत्ता के ब्रिटिश नागरिकों ने लार्ड कार्नवालिस के सम्मान में यहां एक स्मारक बनवाया। भारत में यह स्मारक लार्ड कार्नवालिस के मकबरे के रूप में विख्यात है। मकबरे के चारो तरफ 10 बीघे के क्षेत्रफल में बड़ा पार्क भी बनाया गया है।
पांच गज मोटे तथा 40 फुट ऊंचे 12 विशाल खंभों पर खड़ा पांच प्रस्तर खंड वाला यह मकबरा देखने लायक है। इसके हल्के गुलाबी रंग के पत्थरों पर कहीं दाग नहीं हैं । सोलह सीढ़ी को पार कर इसकी ऊंचाई पर पहुंचा जा सकता है। इसमें चार तरह के पत्थर है। खंभों में प्रयोग किए गए पत्थर पर नीले छींटे हैं। फूल पत्तियों की सजावट और ब्रिटिश सरकार का राजकीय चिन्ह, दाहिनी ओर पत्र बंध की एक माला और खूब उभरी हुई, आकर्षक शिल्प चमत्कार से युक्त है। सामने अंग्रेजी में और पीछे फारसी में लार्ड कार्नवालिस के आने और दिवंगत होने आदि की सूचना और परिचय है।
ब्रिटिश पत्थरों से बना यह मकबरा यूरोप व भारत के वेस्टर्न का समन्वय है। एक बड़े भू-भाग पर बना यह गोल स्मारक हमें दृढ़ता का संदेश देता है। संगमरमर का फर्श और मध्य स्तम्भ का दुग्ध धवल पत्थर अद्भुत है। 19 साल में बनकर तैयार हुए धूसर रंग के संगमरमर से बने इस मक़बरे के केन्द्र में लार्ड कार्नवालिस का आधा ऊपरी शीर्ष भाग, जिसके अगल-बगल हिन्दू और मुसलमान शोकमग्न खड़े हैं, साथ ही उस पर कमल के फूल, कलियां एवं पत्तियों की उत्कृष्ट नक़्क़ाशी उकेरी गयी है। जबकि इसी हिस्से के दूसरी तरफ बीच में कमल का फूल, बाएं पार्श्व में पत्रमाला का सूक्ष्म कलात्मक बंधक और दो सिपाही बंदूक नीचे किए मर्माहत मुद्रा में खड़े हैं।
गौरतलब है कि लेख में दिखने वाली लार्ड कार्नवालिस से जुड़ी ऑयल पेटिंग्स 1814-15 में सीता राम द्वारा पटना से बनारस की यात्रा के दौरान बनाई गई थी। सीता राम ईस्ट इंडिया कंपनी में चित्रकार के रूप में कार्यरत थे। दोनों ऑयल पेटिंग्स में से एक गंगा किनारे स्थित उस मकान की है जहां लार्ड कार्नवालिस अपनी बीमारी के दौरान अंतिम समय में ठहरे थे और दूसरी पेटिंग निर्माणाधीन कार्नवालिस मकबरे की है।
हाथीखाना स्थित अंग्रेज सैनिकों की कब्रगाह
दोस्तों, यदि हम लार्ड कार्नवालिस के मकबरे को केन्द्र बनाकर उसके आस-पास के एक से दो किमी. के दायरे में आने वाले परिक्षेत्र की बात करें तो मुख्य रूप से छावनी लाइन, पत्थरघाट, बारह बंगला, फाक्सगंज और हाथीखाना का नाम उभरकर सामने आता है। ये सभी नाम अपने आप में ब्रिटीश हुकूमत का इतिहास समेटे हुए हैं। लार्ड कार्नवालिस के मकबरे से दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर हाथीखाना गांव है जो मौजूदा समय में गाजीपुर नगरपालिका के अन्तर्गत आता है। स्थानीय नागरिकों के मुताबिक मुगलों के जमाने में यहां हाथी बांधे जाते थे। हाथीखाना गांव के पास ही एक बहुत बड़ा तालाब था जो कि अब समाप्ति के कगार पर है, उक्त तालाब में बड़े-बड़े हौदे भी मिले थे। हाथीखाना से ठीक पूरब दिशा में गंगा किनारे बना चांदमारी नामक स्थान आज भी मौजूद है, जहां अंग्रेज सिपाही ट्रेनिंग के दौरान असलहे चलाने का अभ्यास करते थे।
इन सब बातों से परे हाथीखाना स्थित ब्रिटीश कब्रगाह आज अपने स्वरूप को लेकर विनष्ट होने की कगार पर है। लगभग बीस से पच्चीस बीघे में फैली यह ब्रिटीश कब्रगाह आज भी ब्रितानिया हुकूमत की याद दिलाने के लिए काफी है। इस कब्रगाह के अन्दर स्मृति चिन्ह के रूप में लगे सैकड़ों शिलापट्ट एवं स्तम्भ टूटने के कगार पर हैं और कुछ टूट चुके हैं। बावजूद इसके इन शिलापट्टों एवं स्तम्भों पर बनी नक्काशी यह कहती है कि अंग्रेजों की रिहायशी इमारतें ही नहीं बल्कि उनकी कब्रगाहें भी ब्रितानिया शान-शौकत को प्रदर्शित करती थी। इस खूबसूरत कब्रगाह की मौजूदा स्थिति यह है कि जंगली झाड़ियों और पेड़ों के बीच असंख्य नक्काशीदार शिलापट्ट टूटते और बिखरते हुए मूक खड़े हैं। इन शिलापट्टों पर दिवंगत अंग्रेज अधिकारियों, कर्मचारियों तथा उनके परिवार के लोगों के नाम, पेशा एवं दिवंगत होने की तिथि तथा स्थान आंग्ल भाषा में आकर्षक ढंग से उत्कीर्ण किया गया है। साल 2011 में मैंने अपने कुछ साथियों को लेकर बरसात के दिनों में इस कब्रगाह में प्रवेश करने की हिमाकत की थी, लेकिन इन झाड़ियों में घुसकर गहन तहकीकात करना जीवन को जोखिम में डालने के समान था क्योंकि आजादी के बाद से इस पुरातात्विक स्थल की साफ-सफाई नहीं होने से सांप-बिच्छू जैसे जहरीले जीवों का होना सामान्य सी बात है। ग्रामीणों के द्वारा बनाई गई पगडंडियों के किनारे खड़े कुछ शिलापट्टों से मैंने जो नाम लिपिबद्ध किए वो इस प्रकार हैं: 1- आर्थर एम. कार्टन, दिवंगत 26 मार्च 1833, 2- मिसेज मार्ग्रेट पत्नी फ्रांसिस वर्ड, ग्रेनेडियर कंपनी, दिवंगत 7 जून 1834, 3- राबर्ट केन्नी, दिवंगत 18 सितम्बर 1833, 4- एडवर्ड केन्ड्रान पुत्र ब्रेयान एंड मैरी, दिवंगत 23 मार्च 1837, 5- नील फॉक्स, दिवंगत गहमर फैक्ट्री, 7 अगस्त 1914, 6- अल्बर्ट जेम्स अर्नाल्ड मैथ्यूज पुत्र अल्बर्ट मैथ्यूज, दिवंगत बक्सर, 21 अप्रैल 1862, 7- सेमुअल ब्राउन, दिवंगत दमदम, 18 जून 1859, 8- सेमुअल एंड एलिजा ब्राउन दिवंगत गाजीपुर, 7 जून 1858, 9- राबर्ट जोसेफ ब्राउन, दिवंगत दमदम, 13 अगस्त 1858, 10- मार्ग्रेट बटलर पत्नी कार्प सेमुअल बटलर, एच.एम.77 रेजिडेन्ट गाजीपुर दिवंगत 7 अप्रैल 1860, 11- मेरी एन्न बटलर पुत्री सेमुअल बटलर, दमदम दिवंगत 6 अगस्त 1858, 12- जेम्स स्विन्ने पुत्र जॉन एंड होनोरिया स्विन्ने एच.एम.33 रेजिडेन्ट, गाजीपुर, 13- फोरेस्टर बेक, एच.एम. 37 रेजिडेन्ट गाजीपुर, दिवंगत 11 सितम्बर 1857, 14- विनीड स्विन्चेट पत्नी कॉर्प जे. स्विन्चेट, एच.एम. 77 रेजिडेन्ट दिवंगत गाजीपुर 30 मार्च 1860.
शिलापट्टों पर उत्कीर्ण सूचीबद्ध नाम हमारे जेहन अनेक सवाल खड़ा करते हैं। पहला प्रश्न यह है कि जिस अंग्रेज की मृत्यु दमदम (कलकत्ता) में हुई उसे गाजीपुर क्यों लाया गया? दूसरा प्रश्न यह उठता है कि शिलापट्ट में गंगा तट पर स्थित गहमर में फैक्ट्री का उल्लेख है, अत: गहमर में वह कौन सी जगह है जहां अंग्रेजों की फैक्ट्री स्थित थी? तीसरा सवाल यह है कि मैंने जिन अंग्रेजों के नाम सूचीबद्ध किए हैं, वे सभी 1857 की महाक्रांति के आसपास ही दिवंगत हुए हैं।
गौरतलब है कि कब्रगाह में मौजूद अन्य शिलापट्टों पर न जाने कितने नाम और प्रश्न शेष हैं, जिन्हें लिपिबद्ध कर गाजीपुर के ब्रिटीश इतिहास को एक नया आयाम दिया जा सकता है।
लार्ड कार्नवालिस के मकबरे तक कैसे पहुंचे?
अगर आप हवाई मार्ग तय करना चाहते हैं तो इसके लिए लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, वाराणसी सबसे मुफीद साबित होगा। यह वाराणसी से 26 किमी उत्तर-पश्चिम में बाबतपुर में स्थित है। तत्पश्चात वाराणसी कैन्ट से आप ट्रेन या बस के द्वारा रेलवे स्टेशन गाज़ीपुर सिटी अथवा गाजीपुर बस स्टैण्ड तक पहुंच सकते हैं। बता दें कि लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से गाजीपुर रेलवे स्टेशन अथवा बस स्टैण्ड की दूरी तकरीबन 95 किमी. है। गाजीपुर रेलवे स्टेशन अथवा बस स्टैण्ड से आप ऑटो रिक्शा अथवा जीप आदि से गोराबाजार स्थित लार्ड कार्नवालिस के मकबरे तक आसानी से पहुंच सकते हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन लार्ड कार्नवालिस का मकबरा सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।
इसका प्रवेश शुल्क कुछ इस प्रकार है- विदेशी– 300 रुपए, भारतीय– 25 रुपए, जबकि 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए प्रवेश निःशुल्क।
DR.UDAY PRAKASH