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GhatotkachGupta's grandson Samudragupta is called 'Napoleon of India'

कौन था घटोत्कच जिसका पौत्र कहलाता है ‘भारत का नेपोलियन’

महाभारत कथा के अनुसार, पांडु पुत्र भीम ने हिडिम्बा राक्षसी से विवाह किया था, ऐसे में इन दोनों से एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम घटोत्कच था। घटोत्कच की पत्नी का नाम मौरवी था। इन दोनों से बर्बरीक, अंजनपर्व और मेघवर्ण पैदा हुए। घटोत्कच पुत्र बर्बरीक को ही हम सभी खाटूश्याम के नाम से जानते हैं।

राक्षसी हिडिम्बा का पुत्र होने के चलते घटोत्कच मायावी और अत्यधिक बलशाली था। भीमसेन के पुत्र घटोत्कच ने महाभारत युद्ध के दौरान कौरव सेना का बड़े पैमाने पर नरसंहार किया था। घटोत्कच ने अभिमन्यु का वध करने वाले दुःशासन के पुत्र दुर्मासन का वध कर दिया। इसके साथ ही उसने दु:शासन को भी बुरी तरह घायल कर दिया। एक वक्त ऐसा लगा कि वह दुर्योधन को भी अपना शिकार बना लेगा किन्तु महारथी कर्ण ने देवराज इन्द्र प्रदत्त शक्ति बाण से घटोत्कच का वध कर दिया।

अब आपका यह सोचना लाजिमी है कि भीमपुत्र घटोत्कच तो एक राक्षस था फिर घटोत्कच कौन था जिसके पौत्र ने सम्पूर्ण भारत जीत लिया था। जी हां, मैं गुप्त वंश के वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम के पिता घटोत्कच की बात कर रहा हूं। ऐसे में प्राचीन भारतीय इतिहास से जुड़ा यह तथ्य जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें। 

गुप्त वंश की जाति

गुप्त वंश का आरम्भिक राज्य उत्तर प्रदेश तथा बिहार में था। सम्भवत: गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्व वाला प्रान्त था क्योंकि आरम्भिक गुप्त मुद्राएं और अभिलेख मुख्यत: उत्तर प्रदेश में ही पाए गए हैं। हांलाकि गुप्तों की जाति को लेकर इतिहासकारों में आज भी मतभेद है।

वज्जिका रचित नाटक कौमुदीमहोत्सवमें चन्द्रगुप्त प्रथम को कारस्कर कहा गया है। बौधायन ने इसका अर्थ निम्नजातीय बताया है, इस प्रकार चन्द्रगुप्त प्रथम शूद्र प्रमाणित होता है। जबकि व्याकरण ग्रन्थ चन्द्रगोमिन में गुप्त शासकों को जाट कहा गया है।

इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न इतिहासकारों ने गुप्त वंश के राजाओं को अलग-अलग जाति का बताया है, जैसे- के.पी.जयसवाल ने शूद्र, रोमिला थापर ने वैश्य, हेमचन्द्र राय चौधरी ने ब्राह्मण तथा रमेशचन्द्र मजूमदार व गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने गुप्त शासकों को क्षत्रिय साबित करने का प्रयास किया है।चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त ने पूना ताम्रपत्र अभिलेख में गुप्त वंशीय लोगों को धारण गोत्र का बताया है। वहीं स्मृतियों में नाम के अंत में गुप्त शब्द का जोड़ा जाना वैश्यों की विशेषता थी।

समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख’, कुमारगुप्त के विलसड स्तम्भ लेख तथा स्कन्दगुप्त के भितरी स्तम्भ लेख के मुताबिक, श्रीगुप्त को गुप्त वंश का संस्थापक माना जाता है। प्रभावती गुप्त के पूना तामपत्र अभिलेख में श्रीगुप्त को आदिराज कहा गया है। श्रीगुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की। प्रयाग, साकेत तथा मगध के कुछ हिस्सों पर श्रीगुप्त का शासन था। चीनी यात्री 'इत्सिंग' अपने यात्रा वृत्तांत में लिखता है कि श्रीगुप्त ने मगध में एक मंदिर का निर्माण करवाया और उस मंदिर के खर्च हेतु 24 ग्राम दान में दिए थे।

घटोत्कच गुप्त

श्रीगुप्त के पुत्र घटोत्कच गुप्त ने भी महाराज की उपाधि धारण की। समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख पर गुप्त लिपि में महाराजा श्री घटोत्कच उत्कीर्ण है। घटोत्कच प्रारम्भ में शक साम्राज्य का सेनापति था। प्रभावती गुप्त के पूना तथा रिद्धपुर अभिलेखों में घटोत्कच को गुप्त वंश का प्रथम राजा बताया गया है।

स्कन्दगुप्त के सुपिया (रीवा) लेख में गुप्त वंश को घटोत्कच वंश कहा गया है। जाहिर है घटोत्कच अपने पिता श्रीगुप्त से अधिक शक्तिशाली रहा होगा। इस आधार पर कुछ विद्वानों का सुझाव है कि घटोत्कच ही गुप्त वंश का संस्थापक था।

घटोत्कच ने मधुमती नामक क्षत्रिय कन्या से विवाह किया था। लिच्छिवियों से भी घटोत्कच के मधुर सम्बन्ध थे। घटोत्कच के पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम का विवाह लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से हुआ। घटोत्कच का राज्य मगध के आसपास तक ही सीमित था। घटोत्कच ने 319-20 ईस्वी के लगभग तक राज्य किया।

हांलाकि घटोत्कच के पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम (320-335 ई.) ने गुप्त वंश को एक शक्तिशाली राज्य में प्रतिष्ठित किया। इसीलिए चन्द्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। गुप्त वंशावली में चन्द्रगुप्त प्रथम ही पहला शासक था जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चंद्रगुप्त प्रथम की तुलना में श्रीगुप्त और घटोत्कच कम शक्तिशाली थे।

घटोत्कच से जुड़ी मुद्राएं

वैशाली से कुछ स्वर्ण मुहरें प्राप्त हुई हैं जिन पर घटोत्कच गुप्त नामक शासक का नाम उत्कीर्ण है, ब्रिटिश इतिहासकार विसेन्ट स्मिथ इन मुहरों को श्रीगुप्त पुत्र घटोत्कच गुप्त का ही मानते हैं। 

सेंटपीटसवर्ग संग्रहालय से एक सिक्का मिला है जिसके एकतरफघटो-गुप्ततथा दूसरी तरफ विक्रमादित्यकी उपाधि उत्कीर्ण है।

घटोत्कच के काल की कुछ ऐसी भी मुद्राएं मिली हैं, जिन पर 'श्रीघटोत्कचगुप्तस्य' या केवल 'घट' लिखा है। 

कुछ इतिहासकारों ने वैशाली तथा अन्य स्वर्ण मुहरों पर उत्कीर्ण घटोत्कच गुप्त को कुमारगुप्त का एक पुत्र माना है जिसने कुमारगुप्त की मृत्यु के पश्चात खुद को स्वतंत्र घोषित कर लिया था। कुमारगुप्त के शासनकाल में घटोत्कच गुप्त मध्यप्रदेश के एरण का प्रांतीय शासक था।

घटोत्कच का पौत्र समुद्रगुप्त

घटोत्कच के पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। भारतीय इतिहास में गुप्त संवत चलाने का श्रेय चन्द्रगुप्त प्रथम को दिया जाता है। गुप्त वंश में चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही सर्वप्रथम चांदी के सिक्कों का प्रचलन करवाया था।

चन्द्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था। कुमारदेवी और चन्द्रगुप्त प्रथम के पुत्र समुद्रगुप्त के समय गुप्त साम्राज्य का सबसे अधिक विस्तार हुआ। घटोत्कच के पौत्र और चन्द्रगुप्त प्रथम के पुत्र समुद्रगुप्त की सामरिक विजयों का विस्तृत विवरण हरिषेण के प्रशस्ति काव्य (प्रयाग प्रशस्ति) में मिलता है। समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत पर प्रत्यक्ष शासन किया।

इसके साथ ही समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत के 12 शासकों को पराजित किया था। समुद्रगुप्त की दक्षिणापथ विजय को धर्मविजय की संज्ञा प्रदान की गई है। प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार, “समुद्रगुप्त ने अपने बाहुबल से सम्पूर्ण भूमण्डल को बांध लिया। प्रयाग प्रशस्ति में ही समुद्रगुप्त को सौ युद्धों का विजेता कहा गया है।

हरिषेण लिखता है कि भारत के बाहर विदेशी शासकों पर भी समुद्रगुप्त के पराक्रम का भय छा गया था।चीनी स्रोतों के अनुसार, “सिंहल द्वीप (श्रीलंका) के राजा मेघवर्ण ने समुद्रगुप्त की आधीनता स्वीकार कर ली थी। उसने समुद्रगुप्त के पास उपहारों सहित एक दूतमण्डल भेजा था। मेघवर्ण ने बिहार के गया में लंका के बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक भव्य विहार बनवाया था।अपनी समस्त विजयों के पश्चात समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया था। यही वजह है कि ब्रिटिश इतिहासकार विसेन्ट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है।

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