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Love story of Rani Roopmati and Baz Bahadur, why did Rani Roopmati consume poison?

मुगल सेनापति बेडरूम में पहुंचा तब तक जहर खा चुकी थी यह खूबसूरत रानी

यह घटना है, साल 1561 की जब ताकतवर मुगल बादशाह अकबर ने अपनी धाय मां माहम अनगा के बेटे अधम खान को एक बड़ी मुगल सेना के साथ मालवा विजय के लिए भेजा। उन दिनों मालवा पर सुल्तान बाजबहादुर का शासन था। बाजबहादुर एक उच्चकोटि का संगीतज्ञ था, जबकि उसकी अत्यंत खूबसूरत रानी भी एक कवयित्री एवं मधुर आवाज की धनी थी। जी हां, मैं बाजबहादुर की पत्नी रानी रूपमती की बात कर रहा हूं, जिससे वह बेहद प्रेम करता था।

मुगल सेनापति अधम खान ने सारंगपुर के युद्ध में बाजबहादुर को करारी शिकस्त दी। बाजबहादुर अपनी जान बचाकर खानदेश भाग खड़ा हुआ। वहीं दूसरी तरफ अधम खान को मालवा सल्तनत की अकूत दौलत हाथ लगी जिसमें हीरे-जवाहररात के साथ कई हजार हाथी-घोड़े भी शामिल थे।

किन्तु इन सब तथ्यों से परे अधम खान तो रानी रूपमती की खूबसूरती पर लट्टू था। अब आपका यह सोचना लाजिमी है कि आखिर में खूबसूरत रानी रूपमती जहर खाने को विवश क्यों हुई? यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

रानी रूपमती और बाजबहादुर की संक्षिप्त प्रेम कहानी

मालवा का अंतिम शासक बाजबहादुर उच्च कोटि का संगीतज्ञ था। मुगल इतिहासकार अबुल फ़ज़ल लिखता है कि बाजबहादुर एक अद्वितीय गायक था।बाजबहादुर एक बार शिकार करने के लिए निकला तब उसने एक बेहद खूबसूरत ब्राह्मण कन्या रूपमती की मधुर आवाज सुनी। बाजबहादुर उस खूबसूरत कन्या पर मोहित हो गया और उसके समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। इतिहासकार एम. रायकवार के अनुसार, रानी रूपमती निमाड़ क्षेत्र के धरमपुरी गांव की ब्राह्मण कन्या थी।

कहते हैं अत्यंत सुन्दरी रूपमती प्रतिदिन नर्मदा नदी का दर्शन करने के पश्चात ही अन्न-जल ग्रहण करती थी। ऐसे में रूपमती ने बाजबहादुर के समक्ष प्रस्ताव रखा कि मैं तुम्हारे साथ तभी मांडू चलूंगी जब मुझे प्रतिदिन मां नर्मदा का दर्शन होगा। फिर क्या था, बाजबहादुर ने यह शर्त स्वीकार कर ली और रूपमती से विवाह कर लिया। एक प्रकार से यह अंर्तधार्मिक विवाह था।

तत्पश्चात बाजबहादुर ने रानी रूपमती के लिए तकरीबन 365 मीटर ऊँची खड़ी चट्टान पर बलुआ पत्थर से निर्मित दो सुंदर गुंबदों से सुसज्जित तथा कई गलियारों से युक्त एक आलीशान महल का निर्माण करवाया, जहां से रानी रूपमती प्रतिदिन मां नर्मदा का दर्शन किया करती थी। इतना ही नहीं, इस महल से पूरे मांडू की सुरक्षा व्यवस्था पर भी नजर रखी जाती थी। मांडू स्थित रानी रूपमती का यह महल आज भी सैलानियों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।

एल.एम. करम्प साल 1926 में प्रकाशित अपनी किताब द लेडी ऑफ द लोटस : रूपमती ​में लिखते हैं कि संगीतकार एवं कवयित्री रानी रूपमती ने भीम कल्याण रागिनी का सृजन किया था।वहीं मोहम्मद हुसैन आज़ाद की पुस्तक दरबार-ए-अकबरीके अनुसार, “रानी रूपमती के सौन्दर्य रूप का बाज़ बहादुर दीवाना था। पूनम के चांद जैसी खूबसूरत रानी रूपमती हास्य, हाज़िर जवाबी, शायरी और गाने-बजाने में बेजोड़ थी।

साल 1555 में विवाह के पश्चात बाजबहादुर अपनी प्रेयसी व पत्नी रानी रूपमती से एक पल के लिए भी दूर नहीं होता था। बाजबहादुर और रानी रूपमती तकरीबन छह साल तक एक-दूसरे में खोए रहे। किन्तु साल 1561 में बाजबहादुर पर एक बहुत बड़ी मुसीबत आन पड़ी जब बादशाह अकबर की विशाल मुगल सेना ने मालवा पर आक्रमण कर दिया। 

बादशाह अकबर का मालवा अभियान

मुगल बादशाह हुमायूं ने साल 1535 में जब गुजरात को जीता तब मालवा स्वत: ही दिल्ली साम्राज्य का हिस्सा बन गया। तत्पश्चात शेरशाह सूरी द्वारा हुमायूं को हिन्दुस्तान से बाहर खदेड़ने के पश्चात मालवा सूर साम्राज्य का हिस्सा बन गया। हांलाकि शेरशाह सूरी और उसके पुत्र की मौत के बाद मालवा के गवर्नर बाजबहादुर ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

ऐसा कहते हैं, मुगल बादशाह अकबर को अत्यंत खूबसूरत रानी रूपमती की काव्यकला तथा संगीत निपुणता के बारे में सूचना मिली तो वह रानी को अपने हरम में शामिल करने के लिए आतुर हो उठा। इसके लिए सबसे पहले उसने मालवा के सुल्तान बाज बहादुर को पत्र लिखा जिसमें रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजने की बात कही गई थी।

जाहिर सी बात है, बाजबहादुर अपनी पत्नी रानी रूपमती से बेइंतहा प्रेम करता है, ऐसे में उसने मुगलिया बादशाह के फरमान को अनसुना कर दिया। अत: साल 1561-62 में मुगल बादशाह अकबर ने आधम खान एवं पीर मुहम्मद के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना मालवा विजय के लिए भेजा। सारंगपुर के युद्ध में 25 मार्च 1561 ई. को मुगल सेना ने मालवा के तत्कालीन शासक बाजबहादुर को बुरी तरह पराजित कर दिया। 

बाज़बहादुर अपनी जान बचाकर नर्मदा और ताप्ती नदी पार करके ख़ानदेश (अब महाराष्ट्र में) की तरफ़ भाग गया। वहीं दूसरी तरफ अधम खान ने रानी रूपमती को कैद कर लिया। अधम खान को मालवा सल्तनत से कई हजार हाथी, अरबी-ईरानी घोड़े तथा बेइंतहा हीरे-जवाहरातों की दौलत प्राप्त हुई।

रानी रूपमती से मिलने को बेताब था अधम खान

मालवा सल्तनत की अकूत दौलन पाकर आधम खान खान तो पहले ही मस्त हो चुका था, किन्तु वह वास्तव में रानी रूपमती की खूबसूरती पर लट्टू पर था। दरअसल रानी रूपमती को अपने हरम में शामिल करने को बेताब अधम खान ने शादी के प्रस्ताव के साथ अपने मातहतों के जरिए रानी को दो-तीन पत्र लिखे। 

किन्तु रानी रूपमती ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर आधम खान खान रानी को जबरदस्ती अपने कब्जे में लेने ही वाला तभी रानी रूपमती फूल बेचने वाली का वेश धारण करके भाग निकली किन्तु दस-पन्द्रह मुगल घुड़सवारों ने उसे पकड़ लिया गया और कड़ी सुरक्षा के बीच मांडू वापस भेज दिया।

रानी रूपमती समझ गई कि अब आधम खान से उसे निजात नहीं मिलने वाली है, इसलिए उसने आधम खान को पत्र लिखकर निश्चित समय पर अपने शयनकक्ष (बेडरूम) में मिलने का ​वादा किया। मुगल सेनापति आधम खान रातभर इंतजार करता रहा।

सुबह हो गई, ऐसे में अधम खान खुद रानी के शयनकक्ष में जा पहुंचा, तब उसने देखा कि सोलह श्रृंगार कर रानी रूपमती फूलों के सेज पर जहर खाकर सो गई थी, बस उसका निर्जीव शरीर पड़ा। इस प्रकार रानी रूपमती ने खुद को आधम खान के हरम में जाने से पहले ही ज़हर खाकर अपनी प्रेमकहानी को सदा के लिए अमर कर दिया।

अकबर का मालवा विलय

जब बादशाह अकबर तक रानी रूपमती के मृत्यु की खबर पहुंची, तब वह अपनी धाय मां माहम अनगा के बेटे आधम खान से नाराज हो उठा, उसने आधम खान को मालवा से वापस बुला लिया। इसके ठीक एक साल बाद यानि साल 1562 में उसने उज्बेग अब्दुला खान की अगुवाई में एक बार फिर से मुगल सेना भेजी, जिसने बाजबहादुर को करारी शिकस्त दी।

इस हार के बाद बाजबहादुर चित्तौड़ भाग गया। तत्पश्चात अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। अंत में बाजबहादुर ने अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली, फिर उसे 2000 का मनसबदार बना दिया गया।

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