मैसूर के शक्तिशाली शासक हैदरअली तथा उसकी पत्नी फातिमा फकरुन्निसा के घर बहुत प्रार्थना के बाद 20 नवम्बर 1750 को एक पुत्र रत्न जन्मा जो आधुनिक भारत के इतिहास में टीपू सुल्तान के नाम से विख्यात हुआ। सुल्तान उसके नाम का एक अंग था, वह अपने शासनकाल में इसी नाम से जाना जाता था। हांलाकि उसका नाम सुल्तान फतेह अली था जिसे ‘शेर-ए-मैसूर’ भी कहा जाता था। अनपढ़ हैदरअली ने अपने बेटे टीपू को एक राजकुमार के योग्य पूर्ण शिक्षा दिलवाई। टीपू सुल्तान अरबी, फारसी, कन्नड़ तथा उर्दू में सुगमता से बातचीत कर सकता था। शारीरिक रूप से बलवान टीपू सुल्तान बंदूक तथा तलवार चलाने में सिद्धहस्त था। वह अपने शासनकाल में नवाचारों के लिए जाना जाता है। उसने मैसूर रेशम उद्योग, एक नई सिक्का प्रणाली और कैलेंडर के अतिरिक्त लौह आवरण वाले रॉकेट का अविष्कार किया था जिनकी मारक क्षमता तकरीबन 910 मीटर से ज्यादा थी और इन रॉकेटों में 450 ग्राम बारूद का इस्तेमाल किया जाता था। मॉर्डन रॉकेट के जनक रोबर्ट गोडार्ड ने भी टीपू सुल्तान को ही रॉकेट का वास्तविक जनक स्वीकार किया है। टीपू सुल्तान ने अपने रॉकेट का नाम 'तकरनुकसाक' रखा था।
ऐसा माना जाता है कि टीपू सुल्तान की मौत के बाद अंग्रेजों ने उसकी अनेक मिसाइलों को इंग्लैण्ड भेज दिया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, लंदन के साइंस म्यूजियम में टीपू के कुछ रॉकेट रखे हैं। इस प्रकार टीपू सुल्तान के शोहरत की गूंज भारत से लेकर इंग्लैण्ड तक आज भी कायम है। अब आप सोच रहे होंगे कि हैदर अली के बेटे का नाम फतेह अली था फिर उसका नाम टीपू कैसे पड़ा, जी हां आपका यह सोचना बिल्कुल लाजिमी है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि टीपू सुल्तान के नाम के पीछे एक हैरतंगेज कहानी छुपी है, जो कि अर्कोट के प्रसिद्ध सूफी संत हजरत टीपू मस्तान औलिया से जुड़ी है।
दोस्तों, सूफी संतों की दरगाह हिन्दुस्तान के कोने-कोने में मौजूद हैं, जहां हर धर्म के लोग अपना सिर बड़ी श्रद्धा के साथ झुकाते हैं। सांसारिक मोहमाया से विरक्त होकर सर्वदा ईश्वर की याद में तल्लीन रहना ही सूफी संतों का एकमात्र धर्म और उनकी पहचान है। इसी क्रम में तमिलनाडु के रानीपेट जिले में स्थित अर्कोट शहर मक्कन पेड़े और बिरयानी के लिए मशहूर है। अर्कोट में सूफी संत हजरत टीपू मस्तान औलिया की दरगाह भी है जिनके सम्मान में मैसूर के शासक हैदरअली और उसकी पत्नी फातिमा फखरून्निसा ने अपने बेटे का नाम टीपू रखा था।
हजरत टीपू मस्तान औलिया से जुड़े चमत्कारिक किस्से
बता दें कि 17वीं-18वीं सदी के आसपास सूफी संत हजरत टीपू मस्तान औलिया बीजापुर से अर्कोट आए थे। टीपू मस्तान औलिया दरअसल हजरत तवक्कल मस्तान के छोटे भाई थे। हजरत तवक्कल मस्तान की दरगाह बेंगलुरु शहर के कॉटनपेटे में स्थित है जिन्हें ‘शहंशाह-ए-बेंगलुरू’ भी कहा जाता है। हजरत टीपू मस्तान औलिया अर्कोट में जिस नीम के पेड़ के नीचे बैठकर साधना किया करते थे, ठीक उसी जगह पर इनकी दरगाह शरीफ मौजूद है। हजरत टीपू मस्तान औलिया के कई चमत्कारिक किस्से आज भी अर्कोट में मशहूर हैं।
पहला किस्सा— हजरत टीपू मस्ताल आलिया के समय अर्कोट पर नवाब सादतुल्ला खान की हुकूमत थी। नवाब सादुतल्ला खां से किसी ने आकर शिकायत की कि एक फकीर है जो नीम के पेड़ के नीचे बैठा रहता है और जुमे की नमाज में भी नहीं दिखता है। इसके बाद अर्कोट के काजी ने आदेश दिया कि कल वह फकीर (हजरत टीपू मस्तान औलिया) जुमा की नमाज उनके साथ मस्जिद में पढ़ेगा।
इस फरमान को सुनकर हजरत टीपू मस्तान औलिया केवल मुस्कुराए और चुप रहे। अगले दिन जुमे की नमाज के वक्त सभी नमाजियों ने एक मत से यह स्वीकार किया कि अरकोट की सभी मस्जिदों में हजरत टीपू मस्ताल औलिया मौजूद थे। जबकि हजरत टीपू मस्तान औलिया तो काजी के साथ जुमे की नमाज में बैठे हुए थे। यह हैरान कर देने वाली बात सुनकर उस काजी ने टीपू मस्तान औलिया से अपने गुनाहों के लिए माफी मांगी।
दूसरा किस्सा—एक बार नवाब सादतुल्ला खान की मां गम्भीर रूप से बीमार पड़ गईं और कई वैद्यों-हकीमों के इलाज का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था। ऐसे में नवाब सादतुल्ला खान ने हजरत टीपू मस्तान औलिया से अपनी मां के स्वस्थ्य होने की प्रार्थना की। इसके बाद हजरत टीपू मस्तान औलिया ने नवाब सादतुल्ला खान से कहा कि जब आप छोटे थे तभी आपके पिता का इंतकाल हो गया था और उस समय आपकी मां ने हुकूमत किया था। तब उन्होंने घोड़ों को बांधने के लिए हजारों पेड़ों को कटवा दिया था जिससे बड़ी संख्या परिन्दे बेघर हो गए थे। उन्हीं परिन्दों को कष्ट पहुंचाने की वजह से आपकी मां की तबियत खराब हुई है। यदि आप फिर से पेड़ लगवाएं तो आपकी मां दोबारा स्वस्थ्य हो जाएंगी। इसके बाद नवाब सादतुल्ला खां ने तकरीबन 9 लाख वृक्ष लगवाएं और नवाब की मां तंदुरूस्त हो गईं। जिस जगह यह पेड़ लगवाएं गए उस गांव का नाम नौलाख पड़ गया जो कि अर्कोट से तकरीबन 8 या 9 किमी. दूर है।
तीसरा किस्सा— ऐसा कहा जाता है कि हजरत टीपू मस्तान औलिया ईश्वर को याद करते हुए अक्सर रात को बाहर टहलने निकल जाया करते थे, इसी क्रम में एक रात इश्क-ए-खुदा में मग्न होकर वह एक वीरान जंगली इलाके से गुजर रहे थे तभी वहां मौजूद कुछ सिपाहियों की नजर उन पर पड़ी और उन्हें चोर-डाकू समझकर घेर लिया। उन सिपाहियों ने टीपू मस्तान औलिया से पूछा कि तुम कौन हो और इतनी रात को यहां क्या कर रहे हो?
सिपाहियों के बार-बार परिचय पूछने पर भी हजरत टीपू मस्तान औलिया चुपचाप खड़े रहे, इसके बाद सिपाहियों ने उन्हें मारने के लिए जैसे ही अपना हाथ उठाया उनके आंखों की रोशनी चली गई। इसके बाद सभी सिपाही फूट-फूटकर रोने लगे और हजरत टीपू मस्तान औलिया से माफी मांगने लगे। सूफी संत हजरत टीपू मस्तान औलिया को रहम आया और उन्होंने उन सिपाहियों के शरीर पर जैसे ही अपना हाथ फेरा उनके आंखों की रोशनी वापस आ गई।
सबसे मशूहर किस्सा— यह कहानी उस वक्त की है जब हजरत टीपू मस्तान औलिया का इन्तकाल हो चुका था और नवाब हैदर अली और उनकी पत्नी फातिमा फखरून्निसा की शादी को वर्षों बीत चुके थे फिर भी इनकी कोई संतान नहीं थी। इसके बाद नवाब हैदरअली और फातिमा फखरून्निसा ने एक संतान के लिए हजरत टीपू मस्तान औलिया की दरगाह पर आकर काफी मिन्नतें की। कहते हैं एक रात हैदरअली की पत्नी फखरून्निसा को यह सपना आया कि तुम्हे एक बेटा होगा जिसकी बहादुरी बेमिसाल होगी और उसकी शोहरत का डंका पूरी दुनिया में बजेगा। इसके बाद हैदरअली और फातिमा फखरून्निसा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। अत: सूफी संत हजरत टीपू मस्तान औलिया के सम्मान में ही इस दंपत्ति ने अपने बेटे का नाम ‘टीपू’ रखा। टीपू सुल्तान के जन्म से जुड़ी यह हैरतंगेज कहानी अर्कोट और वेल्लोर में अक्सर सुनने को मिल जाती है।
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