ब्लॉग

Gujarat/Khudawand Khan who built the Surat fort

कौन था ‘खुदावंद खान’ जिसने बनवाया था सूरत का किला?

गुजरात राज्य का एक प्रमुख शहर सूरत दुनियाभर में ‘डायमंड सिटी’ के नाम से विख्यात है। सूरत बंदरगाह कभी दुनिया के सबसे व्यस्ततम बंदरगाहों में से एक था, यहां किसी समय 84 देशों के व्यापारिक जहाज अपना लंगर डालते थे। सूरत शहर के बीच से गुजरने वाली प​वित्र नदी ताप्ती के किनारे पर खड़ा सूरत का किला कई सदियों का इतिहास समेटे हुए है।  इस किले ने सल्तनत, मुगल, पुर्तगाली, अंग्रेज और मराठा आक्रमणों को झेला है। मुगलों ने अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत बनाए रखने के लिए सूरत बंदरगाह को सर्वदा अपने अधीन बनाए रखने की ​कोशिश की क्योंकि इसका उपयोग अरब सागर के रास्ते समुद्री व्यापार के लिए किया जाता था।

पुर्तगाली यात्री दुआर्ते बारबोसा 1500 से 1516 ई. तक भारत में एक पुर्तगाली अधिकारी के रूप में रहा और 1517-18 में अपने देश लौट गया। 1514 ई. में उसने गुजरात की यात्रा की, वह अपने यात्रा वृत्तांत में लिखता है कि सूरत एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था जिससे राजा को एक बड़ी आय प्राप्त होती थी। वह आगे लिखता है कि मालाबार सहित अन्य बंदरगाहों से कई व्यापारिक जहाज यहां रूकते थे। 

बता दें कि सूरत शहर 15वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के आतंक से ग्रसित था। पुर्तगाली यात्री बारबोसा के आने से पूर्व ही इस शहर को 1512 ई. में पुर्तगालियों ने जला दिया था। इतना ही नहीं 1530 में ‘एंटोनियो दा सिल्वारिया’ के नेतृत्व में पुर्तगालियों ने इस शहर पर कब्जा कर लिया था। इस शहर को ​अकारण समुद्री डाकूओं के हमले का भी शिकार होना पड़ा। पुर्तगालियों ने 1531 में इस शहर को दोबारा जला दिया था। इस प्रकार सूरत के लगातार विनाश से नाराज गुजरात के सुल्तान महमूद शाह तृतीय ने एक मजबूत किला बनाने का आदेश दिया, ऐसे में यहां से शुरू होती है खुदावंद खान और सूरत किले की कहानी।

सूरत का गवर्नर था खुदावंद खान

ख्वाजा सफर सुलेमानी का जन्म आधुनिक इटली के नेपल्स साम्राज्य के ओट्रान्टो में एक अल्बानियाई परिवार में हुआ था। बता दें कि ख्वाजा सफर सुलेमानी को गुजरात के सुल्तान महमूद शाह तृतीय ने ‘खुदावंद खान’ की उपाधि से सम्मानित किया था। इतिहास की पुस्तकों में खुदावंद खान को तुर्की भाषा में ख्वाजा सफ़र सलमानी, अरबी में ख़ुदजा तज़फ़र, इतालवी में कोसा ज़फ़र और पुर्तगाली भाषा में कोगे सोफ़र के नाम से वर्णित किया गया है।

ऐसा कहा जाता है कि गुजरात के मुहम्मद तृतीय ने ही ईसाई कोसा सफर का नाम बदलकर ‘ख्वाजा’ सफर कर दिया था।  पश्चिमी युद्ध कला में प्रशिक्षित ख्वाजा सफ़र सुलेमानी ने इटली और फ़्लैंडर्स की सेनाओं में सेवा करते हुए अपने कैरियर की शुरूआत की थी। ख्वाजा सफर की सैन्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ओटोमन सुल्तान ने उसे क़ुस्तुंतुनिया में पुर्तगालियों पर हमला करने के लिए कई जहाजों की कमान सौंपी थी। इसके बाद उसे खंभात (गुजरात आणंद ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर जिसे पूर्व में कैम्बे कहा जाता था) भेज दिया गया, इसी दौरान ख्वाजा सफर की मुलाकात गुजरात के सुल्तान महमूद शाह तृतीय से हुई।

1527 के आसपास जब ख्वाजा सफर सुलेमानी ने दीव में अपना कदम रखा था, तब उसके साथ 30 हजार नौसैनिक तथा 600 तुर्की सैनिक थे। साल 1537 में पुर्तगालियों ने जब दीव पर आक्रमण करने के लिए एक बेड़ा भेजा तब ख्वाजा सफर सुलेमानी की सेना ने दीव की सुरक्षा की। अप्रैल 1538 में एक बार फिर से ख्वाजा सफर को पुर्तगाली बेड़े के युद्ध की तैयारी की खबर मिली अत: उसने गुप्त रूप से अपनी पत्नी और बच्चों को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और सुल्तान महमूद तृतीय के सामने उपस्थित हुआ। इसके बाद ​पश्चिमी युद्धकला में प्रवीण ख्वाजा सफर सुलेमानी को महमूद शाह तृतीय ने ‘खुदावंद खान’ की उपाधि से सम्मानित किया और सूरत का गवर्नर नियुक्त किया। इतना ही नहीं खुदावंद खान को महमूद शाह तृतीय ने अपनी सेना का कमांडर भी नियुक्त किया था।

1540 ई. पुर्तगाली हमलों से सुरक्षा के लिए ख्वाजा सफर सुलेमानी ने अत्यंत छोटे, पुराने किले की जगह सुदृढ़ और विशाल किले का निर्माण करवाया जिसका पुर्तगालियों ने जबरदस्त विरोध किया। 1545 ई. में ख्वाजा सफर ने पुर्तगालियों के विरूद्ध दीव की घेराबंदी का असफल प्रयास किया था। 1546 ई. में उसने गुजरात के सुल्तान से शिकायत की कि उनके व्यापारिक जहाजों को पुर्तगालियों द्वारा परेशान किया जा रहा है, ऐसे में उसने गुजरात के सुल्तान को एक बार फिर से दीव पर हमला करने के लिए राजी कर लिया।

सूरत में अपना जनाधार मजबूत करने के बाद खुदावंद खान ने मार्च 1546 ई. में दीव को पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए तकरीबन 8000 सैनिकों के साथ दीव पर आक्रमण किया। दीव की घेराबंदी के दौरान 24 जून 1546 ई. को किले की खाइयों की निगरानी करते समय पुर्तगालियों की ओर से दागे गए तोप के गोले से ख्वाजा सफर सुलेमानी का सिर उड़ गया। इसके बाद ख्वाजा सफर सुलेमानी को सूरत में दफनाया गया।

ख्वाजा सफर सुलेमानी का मकबरा

ख्वाजा सफ़र सुलेमानी का मकबरा धनुषाकार है। यह मकबरा किनारे तथा पीछे के मेहराबों पर बने सुंदर नक्काशीदार पत्थर की जालीदार खिड़कियों के लिए प्रसिद्ध है। सूरत के चौक बाजार स्थित यह मकबरा तकरीन 500 साल पुराना है। ख्वाजा सफर सुलेमानी के बाद उसका बेटा सिकन्दर खान सूरत का गर्वनर बना था। सिकन्दर खान ने ही ख्वाजा सफर सुलेमानी के मकबरे का निर्माण करवाया था। खुदावंद खान के मकबरे का जीर्णोद्धार साल 1933-34 में करवाया गया था।

सूरत का किला

गुजरात के सुल्तान महमूद शाह तृतीय के निर्देश पर सूरत किले अथवा सूरत कैसल का निर्माण खुदावंद खान यानि ख्वाजा सफर सुलेमानी ने करवाया था, यह किला 1546 में बनकर तैयार हुआ। ताप्ती नदी के तट पर तकरीबन एक एकड़ में स्थित सूरत किले के प्रत्येक कोने पर 15 मीटर चौड़ा एक बड़ा गोल बुर्ज है जिसकी ऊंचाई 12.2 मीटर है और दीवार की मोटाई 4.1 मीटर है। किले की दीवार की ऊंचाई 20 गज है। सूरत किले के बर्जुों का निर्माण पुर्तगाली शैली में किया गया है। किले के पूर्वी हिस्से पर एक विशाल द्वार है जिसमें उभरी हुई कीलों से सुसज्जित मजबूत दरवाजे लगे हुए हैं।

सूरत किले की मजबूती के लिए इसकी दीवारों को पुर्तगाली हमलों से सुरक्षा के लिए खुदावंद खान ने इस किले को तोपों से युक्त कर रखा था। लोहे की पट्टियों से एक साथ बांध दिया गया और इसके जोड़ों को पिघला हुआ सीसा डालकर भर दिया गया ​​था। साल 2015 में गुजरात सरकार के निर्देश पर सूरत नगर निगम ने इस ऐतिहासिक किले के संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम शुरू किया। इस महत्वपूर्ण कार्य के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद 29 सितंबर 2022 को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सूरत किले का उद्धाटन किया था।

इसे भी पढ़ें : क्या गौतम बुद्ध ने सच में खाया था सूअर का मांस?

इसे भी पढ़ें : मीराबाई की शादी में आखिर कैसे पहुंचे थे संत रविदास?