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Ashoka the Great was once known as Chandal Ashoka

महान अशोक कभी कहलाता था चांडाल अशोक, जानते हैं क्यों?

महान योद्धा चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र तथा बिन्दुसार का पुत्र अशोक एक चक्रवर्ती सम्राट था जिसने भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। अफगानिस्तान के पूर्वी हिस्सों सहित वर्तमान पाकिस्तान तथा भारत के अधिकांश (केरल तथा तमिलनाडु को छोड़कर) प्रान्तों पर सम्राट अशोक का शासन था। भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में चक्रवर्ती सम्राट अशोक को महान अशोक की लोकप्रियता प्राप्त है।

परन्तु क्या आप जानते हैं, नाटे कद का सम्राट अशोक दिखने में बेहद बदसूरत था। इतना ही नहीं, बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पूर्व सम्राट अशोक इतना क्रूर था कि लोग उसे चांडाल अशोक अथवा चंडा अशोक कहते थे। इतना ही नहीं, बेहद कामुक स्वभाव के चलते उसका एक नाम कामाशोक भी था। अब आपका यह सोचना बिल्कुल ला​जिमी है कि आखिर में महान अशोक ने अपने शुरूआती जीवन में ऐसे कौन-कौन से क्रूर कर्म किए थे? इस रोचक तथ्य को जानने के लिए यह ऐतिहासिक स्टोरी अवश्य पढ़ें।

अशोक का प्रारम्भिक जीवन

तिब्बती लेखक तारानाथ के अनुसार, “नाटे कद का था अशोक। मोटा होने के साथ-साथ उसके चेहरे पर कई दाग थे जिसके चलते वह बदसूरत दिखता था। अपने शुरूआती दिनों में अशोक बेहद कामुक था अत: उसे कामाशोक भी कहा गया।

अशोक अपनी युवावस्था में बेहद क्रोधी स्वभाव का था। बचपन से ही सैन्य गति​विधियों में निपुण अशोक ने राजसिंहासन प्राप्त करने के लिए अपने 100 भाईयों की हत्या कर दी। अशोक पूरे राज्य में अपनी बर्बरता के लिए जाना जाता था, लोगों को तड़पा-तड़पा कर मारना उसके लिए बाएं हाथ का खेल था। अशोक के क्रूर कर्मों के कारण बौद्ध साहित्य में उसेचांडाल अशोक अथवा चंड अशोक कहा गया है।

अशोक की क्रूरताएं

मौर्य वंश के तीसरे शासक अशोक ने हर उस शख्स की हत्या कर दी जो उसके सिंहासन के बीच में रोढ़ा बना। सबसे पहले अशोक ने अपने पिता बिन्दुसार को जेल में कैद कर दिया। इसके बाद अशोक ने अपने 100 भाईयों की हत्या कर दी। अशोक का सबसे छोटा भाई तिष्य था, अपने सभी भाईयों में वही एक जिन्दा बचा था। 

अशोकवदन के मुताबिक, अपने जीवन के शुरूआत में सम्राट अशोक ने कई क्रूर कर्म किए। अशोक ने राज्य के तकरीबन 500 पदाधिकारियों को अपने हाथों से मार डाला। यही नहीं, उसने 500 रखैलों को जिंदा जला दिया। ऐसा उल्लेख मिलता है कि अशोक ने अपनी पत्नी को भी जला दिया, क्योंकि उसने एक बौद्ध भिक्षु का अपमान किया था।

बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पूर्व सम्राट अशोक मृगया (मनोरंजन के लिए वन्य पशुओं का वध) में विशेष रूचि लेता था। अशोक द्वारा आयोजित गोष्ठियों तथा प्रीतिभोजों में मांस आदि बड़े चाव से पकाए-खाए जाते थे। अशोक की शाही रसोई में भी प्र​तिदिन सहस्रों पशु-पक्षी मारे जाते थे।

अशोक ने बनवाया था नर्क महल (यातना कक्ष)

अशोक द्वारा बनवाए गए नर्क महल अर्थात यातना कक्ष का वर्णन अशोकवदन में विस्तार से किया गया है। अशोक का नर्क महल यानि की यातना कक्ष विशेष स्नानागार जैसी सुविधाओं से युक्त था। इतना ही नहीं, फूलों, फलदार वृक्षों तथा आभूषणों से सुसज्जित नर्क महल का निर्माण अशोक ने पाटलिपुत्र (अब पटना) में करवाया था। 

अशोक का यह यतना कक्ष बाहर से बेहद सुन्दर दिखता किन्तु इस नर्क महल के अन्दर बेहद क्रूर उपकरणों से युक्त कक्ष बनाए गए थे जिनमें कैदियों पर डाले जाने वाले धातुओं को पिघलाने वाली भट्टियाँ भी शामिल थीं। अशोक के यातना कक्ष के आधिकारिक जल्लाद का नाम गिरिका था जिसेक्रूर गिरिका कहा गया। गिरिका ने अपने माता-पिता दोनों की हत्या कर दी थी।

अशोक के नर्क महल में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को जीवित बाहर आने की अनुमति नहीं थी। अशोकवदना में यातना कक्ष के क्रूर कर्मों की लंबी सूची दर्ज है, जिसमें गिरिका द्वारा कैदियों का मुंह लोहे से खोलने तथा उनके गले में उबलता हुआ तांबा डालने का उल्लेख मिलता है।

बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में उस स्थान का दौरा किया जहां कभी अशोक का यातना कक्ष हुआ करता था जिसे अशोक का नर्क कहा जाता था। ह्वेनसांग अपने यात्रा वृत्तांत में लिखता है कि उसने अशोक के यातना कक्ष की पहचान करने वाले स्तम्भ को देखा था।चीनी बौद्ध भिक्षु फाह्यान ने भी 5वीं शताब्दी में अशोक के नर्क महल वाले स्थान का दौरा था, किन्तु फाह्यान का विवरण ह्वेनसांग के विवरण से थोड़ा अलग है।

धर्मात्मा अशोक

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर में ऐसा क्या हुआ जिससे चांडाल अशोक एकदम से महान अशोक में परिवर्तित हो गया। सम्राट अशोक को उसके अभिलेखों में देवानामप्रिय एवं प्रियदर्शी आदि की उपाधियों से सम्बोधित किया गया है। सम्राट अशोक के13वें शिलालेख में कलिंग युद्ध (261 ई.पू.) का वर्णन मिलता है।

इस शिलालेख के मुताबिक, कलिंग युद्ध में तकरीबन एक लाख 50 हजार लोगों को बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिया गया जबकि एक लाख लोगों की हत्या कर दी गई। इतना ही नहीं, इससे भी कई गुना अधिक लोग युद्ध में मारे गए। कलिंग युद्ध में लाशों का अम्बार देखकर सम्राट अशोक वि​चलित हो उठा और उसने जीवन में कभी भी हथियार नहीं उठाने की कसम खाई।

इस प्रकार कलिंग युद्ध के बाद चक्रवर्ती सम्राट अशोक अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चल पड़ा और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। बौद्ध भिक्षु बने अशोक ने जनकल्याण के लिए 84,000 स्तूप बनवाए और धम्मशोक’ (धर्मात्मा अशोक) के नाम से विख्यात हुआ।

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