भारत का इतिहास

Iranian invasion of India

भारत पर ईरानी आक्रमण

ईरानी आक्रमण से पूर्व भारत की स्थिति उत्तर पूर्व भारत के सभी गणराज्यों अथवा प्रान्तों का मगध साम्राज्य में विलय हो चुका था। यद्यपि मगध सम्राटों का अधिकार भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेशों तक विस्तृत नहीं हो सका था। वहीं पश्चिमोत्तर भारत के छोटे-छोटे राज्य जैसे-कम्बोज, गान्धार, मद्र आदि अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने को आतुर थे, अत: इन राज्यों में परस्पर वैमनस्य और संघर्ष चलता रहता था।

इस क्षेत्र में मगध जैसा कोई शक्तिशाली साम्राज्य नहीं था जो अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करके इन युद्धरत समुदायों को संगठित राज्य में एकीकृत कर सके। इसके अतिरिक्त, हिन्दू कुश के दर्रे से पश्चिमोत्तर भारत में आसानी से प्रवेश किया जा सकता था। इसी राजनीतिक एवं भौगोलिक दुर्बलता ने सर्वप्रथम ईरानी तत्पश्चात यूनानियों जैसे विदेशी आक्रमणकारियों को अपनी तरफ आकर्षित किया।

हखामनी (पारसीक) आक्रमण भारत के पश्चिमोत्तर प्रान्त आर्थिक और सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण थे। ऐसे में दक्षिण एशिया के उत्तरापथ मार्ग पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से छठीं शताब्दी ईसा पूर्व में ईरान के हखामनी वंश (पारसीक साम्राज्य) के राजाओं ने भारत पर सर्वप्रथम आक्रमण किया। 559 ईसा पूर्व में ईरान (फारस) का शक्तिशाली राजा था साइरस, इसने 529 ईसा पूर्व तक शासन किया।

यूनानी इतिहासकारों हेरोडोटस, एरियन तथा स्ट्रैबो के अनुसार, हखामनी वंश के संस्थापक साइरस (कुरूष) ने जेड्रोसिया के ​रेगिस्तानी मार्ग से होकर भारत पर आक्रमण किया किन्तु साइरस को विनाशकारी असफलताओं का सामना करना पड़ा। मार्ग में साइरस की सम्पूर्ण सेना नष्ट-भ्रष्ट हो गई, केवल सात सैनिकों के साथ वह जान बचाकर भाग निकला।

वहीं रोमन लेखक प्लिनी के विवरण से ज्ञात होता है कि साइरस ने कपिशा नगर को ध्वस्त कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि साइरस ने दूसरी बार काबुल घाटी की ओर से भारत पर आक्रमण किया। इस बार साइरस को कुछ सफलता मिली। इतिहासकार एरियन एक अन्य जगह लिखता है कि सिन्धु तथा काबुल नदियों के बीच के प्रान्त ईरानियों के अधीन थे।

जेनोफोन ने साइरस के जीवनी ग्रन्थ’ (साइरोपीडिया) में लिखा है कि साइरस ने भारतीय तथा बैक्ट्रियनों को जीतकर अपना प्रभाव हिन्द महासागर तक स्थापित कर लिया था। इससे स्पष्ट है होता कि काबुल घाटी पर साइरस का अधिकार था।

साइरस के उत्तराधिकारी डेरियस प्रथम (दारा प्रथम) ने भारत पर पहला सफल आक्रमण किया और 516 ईसा पूर्व में उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, सिंध और पंजाब के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। सिकन्दर के आक्रमण से पूर्व तक इन सभी क्षेत्रों पर ईरान का कब्जा बना रहा।

डेरियस प्रथम के तीन अभिलेखों बेहिस्तून, पर्सिपोलिस तथा नक्शेरूस्तम से यह साबित होता है कि उसने सर्वप्रथम सिन्धु नदी के तटवर्ती भारतीय भू-भागों को अधिकृत किया था। डेरियस ने अपने साम्राज्य को 23 प्रान्तों में विभक्त किया जिनके शासकों को क्षत्रप कहा जाता था। हेरोडोटस के अनुसार, डेरियस प्रथम द्वारा अधिकृत भारतीय भू-भाग ईरानी साम्राज्य का बीसवां प्रान्त बना। यहां से डेरियस को सम्पूर्ण राजस्व का तीसरा भाग कर’ (tax) के रूप में प्राप्त होता था। यह धनराशि 360 टेलेन्ट स्वर्ण चूर्ण के बराबर थी।

हेरोडोटस के विवरण से पता चलता है कि डेरियस प्रथम ने 517 ईसा पूर्व अपने सेनापति स्काइलैक्स (यूनानी व्यक्ति)  की अगुवाई में एक जहाजी बेड़ा सिन्धु नदी के मार्ग का पता लगाने के लिए भेजा था। सम्भव है, इसी बेड़े की मदद से दारा ने भारतीयों क्षेत्रों पर अधिकार किया।

हखामनी साम्राज्य का विस्तार करते हुए डेरियस प्रथम ने कम्बोज, पश्चिमी गांधार तथा सिन्ध को भी जीत लिया। डेरियस के सुसा पैलेस शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि सम्राट के महल निर्माण के लिए सागौन की लकड़ी गांधार (वर्तमान पेशावर और रावलपिंडी) से लाई गई थी।  इस दौरान पश्चिमोत्तर प्रान्त के भारतीय नागरिकों को भी ईरानी सेना में भर्ती किया गया। दारा प्रथम की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र जरक्सीज ईरानी साम्राज्य का शासक बना। उसने अपने पिता के साम्राज्य को सुरक्षित रखा।

पर्सिपोलिस लेख से यह पता चलता है कि जरक्सीज ने अहुरमज्दा की इच्छा से देव मंदिरों को गिरवा दिया और पूजा बन्द किए जाने का आदेश दिया था। हांलाकि थर्मोपॅली के युद्ध में जरक्सीज को यूनानियों ने परास्त कर दिया और 465 ईसा पूर्व के लगभग वह अपने किसी अंगरक्षक के द्वारा मार डाला गया।

जरक्सीज के तत्कालिक उत्तराधिकारियों- जरक्सीज प्रथम एवं द्वितीय ने डेरियस प्रथम (दारा प्रथम) द्वारा निर्मित साम्राज्य को सुरक्षित बनाए रखा। पारसीकों के अंतिम सम्राट डेरियस तृतीय (दारा तृतीय) को यूनानी शासक सिकन्दर ने आरबेला के युद्ध में बुरी तरह परास्त कर उसकी विशाल सेना को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इसी पराजय के साथ भारत से ईरानी साम्राज्य का अंत हो गया।

ईरानी आक्रमण का भारत पर प्रभाव

भारत से ईरान का यह सम्पर्क तकरीबन 200 वर्षों तक बना रहा। ​इस दौरान भारत और ईरान के बीच व्यापार को बढ़ावा मिला, इसके साथ ही कई सांस्कृतिक परिणाम भी देखने को मिले।

भारत और ईरान के बीच विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला। इस समय बहुत से व्यापारी समुद्र मार्ग द्वारा पश्चिमी देशों में आने-जाने शुरू हो गए।

भारतीय व्यापारियों का सामान ईरान के साथ-साथ सुदूर मिस्र तथा यूनान तक पहुंचने लगा।

भारत के विद्वान तथा दार्शनिक ईरान (फारस) गए जिससे वहां के बुद्धिजीवियों के साथ विचारों का खुलकर आदान-प्रदान हुआ।

पश्चिम भारत में दायीं से बाईं ओर लिखी जाने वाली खरोष्ठी लिपि का प्रचार-प्रसार हुआ।

उत्तर पश्चिम भारत में सम्राट अशोक के शिलालेख (मनसेहरा तथा शाहबाजगढ़ी) खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण किए गए थे। ईरानी शब्द दिपी के लिए अशोककालीन लेखकों ने लिपी शब्द का प्रयोग किया।

अशोक के स्तम्भों का शीर्ष घंटाकार होना ईरानी प्रेरणा से प्रभावित था।

स्तूप बनाने की कला भी भारतीयों को ईरानियों से ही मिली।

मौर्य युगीन मूर्तिकला पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

सिन्धु नदी तट पर रहने वाले भारतीयों को ईरानी हिन्दू कहते थे, तभी से हम लोग हिन्दू कहलाते हैं।

ईरानियों ने आरमेइक लिपि का प्रचार-प्रसार किया।

ईरानियों के चलते भारत में अभिलेख उत्कीर्ण करने की प्रथा शुरू हुई।

ईरानियों से भारतीयों ने पॉलिश करने की कला सीखी।

भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में बड़ी संख्या में फारसी, यूनानी, तुर्क आदि भारतीयों के साथ विवाह कर पूर्ण रूपेण बस गए।

मौर्यकाल में भी साम्राज्य को प्रान्तों में विभक्त करने की प्रथा जारी रही।

ईरानियों की क्षत्रप शासन प्रणाली का शक-कुषाण शासकों ने पर्याप्त विकास किया।

भारत के शासकों ने फारसी चांदी के सिक्कों के अनुरूप परिष्कृत एवं सुन्दर सिक्के ढालने की तकनीक अपना ली।

ईरानियों के जरिए यूनानियों को भारत की अपार सम्पदा की जानकारी मिली, अत: इसी लालच में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया।

ईरानी आक्रमणों से भारत की रक्षा कमजोरी का पता चला और सिकन्दर ने अपनी विजय का मार्ग प्रशस्त किया।

ईरानी आक्रमण से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

1. ईरान के हखामनी राजाओं ने भारत पर कब आक्रमण किया था- छठीं शताब्दी ईसा पूर्व।

2. ईरानी आक्रमणकारियों ने भारत के किस हिस्से पर ज्यादा आक्रमण किए - उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, सिंध और पंजाब।

3. प्राचीन भारत पर किन-किन ईरानी शासकों ने आक्रमण किए - साइरस, डेरियस प्रथम, जरक्सीज और डेरियस तृतीय।

4. फारस यानि ईरान कहां स्थित है- भारत के उत्तर-पश्चिम दिशा में टिगरिस नदी के तट पर स्थित है फारस।

5. ईरानी राजा डेरियस प्रथम ने किस रास्ते भारत पर आक्रमण किया था - हिन्दुकुश दर्रे से।

6. उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रांत, सिंध और पंजाब के क्षेत्रों पर ईरानियों का कब तक कब्जा बना रहा- सिकन्दर के आक्रमण तक। 

7. भारत के किस क्षेत्र में मिले ईरानी सिक्के भारत और ईरान के बीच व्यापार के अस्तित्व का संकेत करते हैं - उत्तर पश्चिमी सीमान्त क्षेत्र।

8. भारत में खरोष्ठी लिपि किसकी देने है- ईरानी लेखकों की।

9. ईरानी शब्द दिपी के लिए अशोककालीन लेखकों ने किस शब्द का प्रयोग किया- लिपि।

10. भारतीयों ने पॉलिश करने की कला सीखी - ईरानियों से।

11. ईरानियों की क्षत्रपशासन प्रणाली का भारत के किन शासकों ने अनुसरण किया - शक एवं कुषाण।

12. यूनानी शासक सिकन्दर ने आरबेला के युद्धमें किस ईरानी सम्राट को बुरी तरह पराजित किया - डेरियस तृतीय।

13. किस शासक के पराजित होने के पश्चात भारत से ईरानी साम्राज्य का अंत हो गया- डेरियस तृतीय (दारा तृतीय)

14. यूनानियों को भारत की अपार सम्पदा तथा रक्षा कमजोरी के बारे में पता चला - ईरानियों से।

15. भारत के व्यापारी ईरानियों के साथ किन चीजों का व्यापार करते थे- कपास, नील, रेशम और मूल्यवान धातु।