ब्लॉग

Emperor Ashoka was a devotee of Shiva, why did he accept Buddhism?

शिव भक्त था सम्राट अशोक, आखिर क्यों ग्रहण कर लिया बौद्ध धर्म?

महान योद्धा चन्द्रगुप्त मौर्य का पोता और बिन्दुसार का पुत्र अशोक एक ऐसा चक्रवर्ती सम्राट था जिसने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। अफगानिस्तान के पूर्वी भाग सहित वर्तमान पाकिस्तान और भारत के अधिकांश हिस्से (तमिलनाडु और केरल को छोड़कर) सम्राट अशोक के अधिकार क्षेत्र में थे।

सम्राट अशोक नाटे कद के थे और मोटे भी थे। इतना ही नहीं, त्वचा की बीमारी के कारण सम्राट अशोक बेहद बदसूरत भी नजर आते थे। ऐसे में अशोक के पिता बिन्दुसार ने बड़े बेटे सुसीमा को मगध का उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था। मिर्गी की बीमारी से बिन्दुसार की मृत्यु हो गई तत्श्चात अशोक ने चार वर्षों के सत्ता संघर्ष के दौरान सुसीमा सहित अपने 99 सौतेले भाईयों की हत्या कर खुद को मगध का सम्राट घोषित किया।

साम्राज्य विस्तार के क्रम में कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) सम्राट अशोक का अंतिम युद्ध माना जाता है। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार और कलिंग की जनता के कष्ट ने सम्राट अशोक की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुंचाया। अशोक ने युद्ध नीति को सर्वदा के लिए त्याग दिया और दिग्विजय के स्थान पर धम्म विजय की नीति को अपनाया। कलिंग विजय के पश्चात सम्राट अशोक नाम मात्र के बौद्ध से एक धार्मिक बौद्ध के रूप में परिवर्तित हो गए।

ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक, सम्राट अशोक ने अपने शासन के चौथे वर्ष यानि 265 ईसा पूर्व में ही बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। अब सवाल यह उठता है कि परम शिव भक्त सम्राट अशोक ने आखिर में बौद्ध धर्म क्यों ग्रहण कर लिया था? इस रोचक प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।

भगवान शिव का उपासक था सम्राट अशोक

इतिहासकार द्विजेन्द्र नारायण झा और कृष्ण मोहन श्रीमाली के अनुसार, “सम्राट अशोक भी अपने पूर्वजों की ही भांति ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। पालि भाषा में रचित ऐतिहासिक महाकाव्य महावंश के अनुसार, सम्राट अशोक प्रतिदिन 60 हजार ब्राह्मणों को भोजन दिया करता था।

कल्हण की राजतरंगिणी के मुताबिक, अशोक के इष्टदेव शिव थे। अशोक ने पुत्र प्रा​प्ति के लिए भगवान शिव की पूजा की थी, इसके बाद सम्राट अशोक की रानी से जलौक (इतिहासकार रोमिला थापर के अनुसार, राजकुमार कुनाल) पैदा हुआ था। भगवान शिव के परम भक्त सम्राट अशोक ने कई शैव मंदिरों का जीर्णोद्धार भी करवाया था जिनमें विदिशा के पास ग्यारसपुर, उड़ीसा का भुवनेश्वर मंदिर, हुमा मंदिर तथा श्री पंचतत्त्वेश्वर शिवालय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। कल्हण की राजतरंगिणी से पता चलता है कि अशोक ने कश्मीर में विजयेश्वर नामक एक शैव मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था तथा उसके भीतर दो समाधियां निर्मित करवाई थीं।

इतिहासकार के.सी. श्रीवास्तव लिखते हैं कि, “सम्राट अशोक अपनी प्रजा के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार की गोष्ठियों एवं प्रीतिभोजों का भी आयोजन करता था जिसमें मांस आदि बड़े चाव से खाए जाते थे। इसके लिए अशोक के राजकीय पाकशाला में प्रतिदिन सहस्रों पशु-पक्षी मारे जाते थे। अब सवाल यह उठता है कि आखिर में ऐसा क्या हुआ जिससे सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।

बौद्ध अनुयायी क्यों बन गया सम्राट अशोक

मौर्य राजदरबार में सभी धर्मों के विद्वान वाद-विवाद में भाग लेते थे जैसे- ब्राह्मण, दार्शनिक, निग्रंथ, आजीवक बौद्ध व यूनानी दार्शनिक। सम्राट अशोक भी अपने पूर्वजों की ही भांति जिज्ञासु था। दीपवंश के मुताबिक, सम्राट अशोक अपनी धार्मिक जिज्ञासा शांत करने के लिए अपनी राज्यसभा में विभिन्न सिद्धान्तों के व्याख्याताओं को आमंत्रित किया करता था। उन विद्वानों को सम्राट अशोक उपहार आदि देकर सम्मानित करता था, इसके साथ ही स्वयं भी विचारार्थ अनेक प्रश्न प्रस्तावित करता था। दरअसल वह यह जानना चाहता था कि धर्म के किन पंथों में सत्य है। अशोक के प्रश्नों के जो भी उत्तर मिले उनसे वह संतुष्ट नहीं हुआ।

एक दिन अपने राजभवन की खिड़की से अशोक ने सात वर्षीय श्रमण निग्रोथ को भिक्षा के लिए जाते हुए देखा और उसके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ। श्रमण भिक्षु निग्रोथ अशोक के बड़े भाई सुसीम का पुत्र था। निग्रोथ के प्रवचन को सुनकर अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया।

सिंहली अनुश्रुतियों- दीपवंश और महावंश के अनुसार, सम्राट अशोक को उसके शासन के चौथे वर्ष सातवर्षीय बौद्ध भिक्षु निग्रोथ ने उसे बौद्ध मत में दीक्षित किया। तत्पश्चात मोग्गालिपुत्ततिस्स के प्रभाव से वह पूर्णरूपेण बौद्ध हो गया। जबकि दिव्यावदान के मुताबिक, ‘उपगुप्तनामक बौद्ध भिक्षु ने सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था।

अशोक के बौद्ध बनने के दो वर्ष के अंदर ही उसका पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा भी बौद्ध साधु और साध्वी बन गए थे। सम्राट अशोक को किस बौद्ध भिक्षु ने दीक्षित किया, इन विरोधी मतों से इतर अधिकांश इतिहासकार उसके पूर्ण बौद्ध धर्मानुयायी होने का सम्बन्ध कलिंग युद्ध से जोड़ते हैं।

कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म के प्रति समर्पण

अशोक के 13वें शिलालेख से कलिंग युद्ध से जुड़ी विस्तृत जानकारी मिलती है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष (261 ईसा पूर्व) कलिंग के विरूद्ध युद्ध किया था। पैट्रिक ओलिवेल की किताब 'अशोका पोर्टरेट ऑफ़ अ फ़िलोस्फ़र किंग’  के अनुसार, उस समय के कलिंग की जनसंख्या 9 लाख 75 हज़ार के करीब थी।

अशोक 13वें शिलालेख के अनुसार, कलिंग युद्ध में एक लाख लोगों की हत्या की गई थी वहीं इससे कई गुना अधिक युद्ध के बाद पैदा हुई परिस्थितियों से मर गए। कलिंग युद्ध में एक लाख 50 हजार लोगों को बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिया गया था। सम्राट ने इस भारी-भरकम नरसंहार को अपनी आंखों से देखा था।

कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्टों ने अशोक की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने गौतम बुद्ध के विचारों को पूर्णतया आत्मसात कर लिया जो भारत में अभी नया नया था। चार्ल्स एलन लिखते हैं, "कलिंग युद्ध ने अशोक को नाममात्र के बौद्ध से एक धार्मिक बौद्ध बना दिया।

कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने सबसे पहले बोधगया की यात्रा की। महावंश के मुताबिक, सम्राट अशोक ने अपने शासन के 18वें वर्ष श्रीलंका के राजा को भेजे गए एक संदेश में बताया था कि वह शाक्यपुत्र (गौतम बुद्ध) के धर्म का एक साधारण उपासक बन चुका है।

अशोक ने अपने शासन के बीसवें वर्ष लुम्बिनी की यात्रा की, उसने वहां पत्थर की सुदृढ़ दीवार बनवाई तथा शिला स्तम्भ खड़ा करवाया। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी को सम्राट अशोक ने करमुक्त घोषित कर दिया। अशोक ने नेपाल की तराई में स्थित निग्लीवा में कनकमुनि के स्तूप को भी विस्तारि​त करवाया। अनुश्रुतियों के अनुसार, सम्राट अशोक ने 84 स्तूपों का निर्माण करवाया था।

इस प्रकार भारत के महान विजेता सम्राट अशोक ने युद्ध नरसंहार से द्रवित होकर न केवल भगवान बुद्ध के धर्म को ग्रहण कर लिया बल्कि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। प्राचीन भारत के इतिहास में अशोक ही एक मात्र ऐसा सम्राट है जिसके व्यक्तित्व में साधुता की झलक दिखती है।

इसे भी पढ़ें : 100 भाईयों को मारकर सम्राट बना था यह शख्स, सिर्फ एक घटना ने बना दिया महान

इसे भी पढ़ें : उत्तर भारत के पांच विख्यात मंदिर जहां नियुक्त हैं दलित पुजारी