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Rani Rashmoni was Shudra woman who built Dakshineshwar Kali Temple

कौन थी वह शूद्र स्त्री जिसने बनवाया दक्षिणेश्वर काली मंदिर?

कोलकाता में हुगली नदी के पूर्वी तट पर मौजूद दक्षिणेश्वर काली मंदिर में देश-दुनिया से आए श्रद्धालु भक्तों का सालभर तांता लगा रहता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर ही वह पवित्र स्थल है जिसने रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानन्द सहित बंगाल की कई महान हस्तियों को जन्म दिया।

25 एकड़ क्षेत्र में स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर को एक धनाढ्य परिवार की शूद्र महिला ने बनवाया था इसलिए इस जागृत मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं मिल रहा था। अब आपका यह सोचना लाजिमी है कि आखिर में कौन थी वह शूद्र महिला जिसने इतने भव्य और विश्वविख्यात दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण करवाया?

कौन थी रानी रासमणि

कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण रासमणि ने करवाया था। पूरे बंगाल में रानी रासमणि के नाम से जुड़ा रानी शब्द कोई औपचारिक पदवी नहीं थी, य​द्यपि रासमणि के दयालु स्वभाव, जनकल्याण की भावना तथा गरीबों के प्रति अथक प्रेम के चलते लोग रासमणि को रानी रासमणि कहने लगे।

उत्तर चौबीस परगना स्थित हालीशहर के कोना ग्राम के एक सामान्य कृषक परिवार में 26 सितम्बर 1793 ई. को रानी रासमणि का जन्म हुआ था। रानी रासमणि के पिता हरेकृष्ण दास और माता का नाम रामप्रिया देवी था। हरेकृष्ण दास केवट जाति (मल्लाह) के थे। अत्यन्त सुन्दरी रानी रासमणि का विवाह कोलकाता स्थित जानबाजार के शूद्र जमींदार बाबू राजचन्द्र दास के हुआ। जमींदार राजचन्द्र दास की तीसरी पत्नी थी रासमणि। उम्र में काफी बड़े राजचन्द्र दास और रासमणि से चार बेटियां हुईं।

राजचन्द्र दास ने अपनी पत्नी रासमणि के साथ मिलकर व्यापार को आगे बढ़ाया। राजा राममोहन राय के करीबी राजचन्द्र दास का साल 1830 में निधन हो गया। इसके बाद विधवा रानी रासमणि ने व्यापार व जमींदारी का सारा कार्यभार अपने कन्धों पर उठा लिया। तकरीबन 30 सालों तक जमींदारी तथा जनहित का कार्य  करने के पश्चात 21 फरवरी 1861 ई. को 67 वर्ष की उम्र में रानी रासमणि का भी निधन हो गया।

रानी रासमणि की उपल​ब्धियां

1850 के दशक में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने हुगली नदी में मछुआरों के मछलियां पकड़ने पर टैक्स लगा दिया था, तत्पश्चात रानी रासमणि ने अपने प्रभाव से यह टैक्स हटवा दिया।

रानी रासमणि ने घुसुरी से मटियाबुर्ज तक हुगली नदी का एरिया पट्टे पर ले लिया और इस इलाके में मछलियां पकड़ने का हक स्थानीय मछुआरों को दे दिया।

रानी रासमणि ने जगन्नाथ भक्तों के लिए सुवर्णरेखा नदी से पुरी तक सड़क बनवाई।

रानी रासमणि ने हुगली के किनारे कई घाटों का निर्माण करवाया जैसे- बाबूघाट, अहीरटोला घाट और नीमताल घाट

रानी रासमणि ने प्रेसिडेन्सी कॉलेज (अब हिन्दू कॉलेज) तथा राष्ट्रीय पुस्तकालय (इम्पीरियल लाइब्रेरी) अलीपुर को खूब दान दिया।

राजा राममोहन रॉय से प्रभावित रानी रासमणि ने ईश्वरचंद्र विद्यासागर समर्थित विधवा पुनर्विवाह को समर्थन दिया था।

रानी रासमणि ने बहुविवाह के खिलाफ ईस्ट इंडिया कंपनी के पास एक ड्राफ्ट बिल भी जमा करवाया था।

द्वारकानाथ टैगोर ने अपनी ज़मींदारी की कुछ ज़मीन (नार्थ 24 परगना, संतोषपुर के आसपास का इलाका तथा सुंदरवन का हिस्सा) रानी रासमणि के पास गिरवी रखी थी, इस जमीन में रानी रासमणि ने कृत्रिम तालाब बनवाकर फिशरी व्यापार को बढ़ावा दिया।

मां काली की परमभक्त रानी रासमणि ने 25 एकड़ जमीन खरीदकर विश्वविख्यात दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण करवाया।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर  का निर्माण

ऐसा कहते हैं कि रानी रासमणि को एक रात सपने में मां काली ने दर्शन देकर उस स्थान से परिचित करवाया जहां दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण होना था। तत्पश्चात रानी रासमणि ने 25 एकड़ जमीन खरीदकर दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण कार्य साल 1847 में शुरू करवाया। इस भव्य काली मंदिर को बनकर तैयार होने में 8 साल का समय लगा और तकरीबन 9 लाख रुपए की लागत आई।

इस मंदिर में मां काली के अवतार मां भवतारिणी की पूजा की जाती है। बंगाली समाज में व्याप्त कुलीन प्रथा तथा छूआछूत के उस दौर में दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए ब्राह्मण पुजारी नहीं मिल रहे थे। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह थी कि रानी रासमणि एक शूद्र महिला थी।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापत्य कला

कोलकाता के हुगली तट पर स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र के हरे-भरे मैदान में निर्मित है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के चारों तरफ भगवान शिव के 12 मंदिर बने हुए हैं। हिन्दू नवरत्न शैली में निर्मित दक्षिणेश्वर काली मंदिर में 12 गुम्बद हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर 46 फुट चौड़ा और 100 फुट लम्बा है।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर के गर्भगृह में चांदी निर्मित कमल पुष्प में हजार पंखुड़ियां है, जिस पर लेटे हुए भगवान शिव के ऊपर मां काली की सशस्त्र प्रतिमा विराजमान है। विशाल चबूतरे पर निर्मित दक्षिणेश्वर काली मंदिर तीन मंजिला है, श्रद्धालुजन सीढ़ियों के जरिए मंदिर में प्रवेश करते हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के ठीक सामने नट मंदिर स्थित है।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर को नहीं मिल रहे थे ब्राह्मण पुजारी

किसी शूद्र स्त्री महिला द्वारा मंदिर का निर्माण करवाना बंगाल के सनातनी मानदंडों के खिलाफ था। मल्लाह परिवार में जन्म लेने के कारण स्थानीय ब्राह्मणों ने रानी रासमणि को मां काली को भोजन-प्रसाद चढ़ाने के लिए अयोग्य समझा। फिर क्या था, रानी रासमणि द्वारा निर्मित दक्षिणेश्वर मंदिर में कोई भी ब्राह्मण पुजारी धार्मिक विधि-विधान के लिए तैयार नहीं था।

आखिरकार रामकुमार चट्टोपाध्याय दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पहले पुजारी बने। रानी रासमणि काली मंदिर के रखरखाव तथा पूजा-अर्चना के लिए उन्हें सालाना पैसे देती थीं। मंदिर निर्माण के दो वर्ष पश्चात रामकुमार के बाद उनके छोटे भाई गदाधर चट्टोपाध्याय (रामकृष्ण परमहंस) महज 20 वर्ष की उम्र में दक्षिणेश्वर काली मंदिर के मुख्य पुजारी बने।

ऐसी मान्यता है कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रामकृष्ण चट्टोपध्याय को मां काली ने साक्षात दर्शन दिए थे। दक्षिणेश्वर काली मंदिर ही वह पवित्र स्थल है जहां रामकृष्ण चट्टोपध्याय ने स्वयं को रामकृष्ण परमहंस में परिवर्तित कर लिया।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर ही वो शक्ति स्थल है जहां रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्य नरेन्द्रनाथ दत्त को स्वामी विवेकानन्द में बदल दिया। स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण के प्रभाव तथा शिक्षाओं की बदौलत अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का परचम लहराया।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर कैसे पहुंचे

दक्षिणेश्वर काली मंदिर का पटद्वार सुबह साढ़े पांच बजे से साढ़े दस बजे तक तत्पश्चात सायं साढ़े चार बजे से साढ़े सात बजे तक खुला रहता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में आदि शक्ति के साधकों तथा भक्तजनों का पूरे वर्ष तांता लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि दक्षिणेश्वर मंदिर में मां काली के दर्शन से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है।

यदि आप भी दक्षिणेश्वर काली मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो जानकारी के लिए बता दें कि कोलकाता शहर देश के प्रत्येक बड़े शहरों से वायुसेवा से जुड़ा है। यदि वायु सेवा को छोड़ दें तो कोलकाता के दो सबसे बड़े रेलवे स्टेशन सियालदह तथा हावड़ा भी सभी प्रमुख बड़े शहरों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में कोलकाता पहुंचने के बाद मेट्रो, बस सेवा अथवा निजी वाहन के द्वारा बड़ी आसानी दक्षिणेश्वर काली मंदिर तक जा सकते हैं।

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