भारत का इतिहास

Founder of the Maurya Empire: Chandragupta Maurya

मौर्य साम्राज्य का संस्थापक : चन्द्रगुप्त मौर्य (323-298 ई.पू.)

चन्द्रगुप्त मौर्य ने 25 वर्ष की आयु में अपने गुरु आचार्य चाणक्य की सहायता से अंतिम नंद शासक घनानन्द को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के उन महानतम सम्राटों में से एक है, जिसने अपनी व्यापक विजयों से पहली बार अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की।

ब्राह्मण ग्रन्थ चन्द्रगुप्त मौर्य को एक स्वर में शूद्र अथवा निम्न कुल से सम्बन्धित बताते हैं जबकि बौद्ध तथा जैन ग्रन्थ उसे क्षत्रिय साबित करते हैं। वहीं ग्रीक साहित्य चन्द्रगुप्त को निम्न कुल का नहीं अपिुत निम्न परिस्थितियों में जन्मा हुआ बताते हैं। विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त को नंदराज का पुत्र माना गया है तथा वृषल (निम्न कुल का) कहा गया है। मुद्राराक्षस का टीकाकार धुण्डिराज भी चन्द्रगुप्त को शूद्र साबित करता है।

सर्वप्रथम विलियम जोन्स ने सेन्ड्रोकोटस की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य से की। यह पहचान भारतीय इतिहास के तिथिक्रम की आधारशिला बन गई। यूनानी लेखकों में स्ट्रेबो व जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सैन्ड्रोकोटस तथा एरियन व प्लूटार्क ने एन्ड्रोकोटस तथा फिलार्कस ने सेन्ड्रोकोप्टस कहा है।

यूनानी इतिहासकार जस्टिन चन्द्रगुप्त की सेना को डाकूओं का गिरोह कहता है। यूनानी लेखक प्लूटार्क के अनुसार, “चन्द्रगुप्त ने छह लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और उस पर अधिकार कर लिया।  प्लिनी अपनी कृति नेचुरल हिस्ट्री में लिखता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य 6,00,000 पैदल सैनिक, 30,000 घुड़सवार और 9,000 हाथी के सैन्यदल को प्रतिदिन वेतन देते थे।महावंश में कहा गया है कि कौटिल्य (चाणक्य) ने चन्द्रगुप्त को जम्बूद्वीप का सम्राट बनाया।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने 305 ईसा पूर्व में यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर (पूर्व में सिकन्दर का सेनापति) को पराजित किया। तत्पश्चात सन्धि के फलस्वरूप सेल्युकस निकेटर ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त से करके एरिया, अराकोसिया, जेड्रोसिया और पेरीपेमिसदाई (काबुल, कन्धार, बलूचिस्तान और हेरात प्रदेश) के चारों प्रान्त दहेज के रूप में दिए।  प्लूटार्क के अनुसार, चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस निकेटर को 500 हाथी उपहार में दिए

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तर पश्चिम में ईरान (फारस) से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक (मैसूर) तक फैला हुआ था। यूनानी शासन से देश को मुक्त करना था तथा नंदों के घृणित एवं अत्याचारपूर्ण शासन की समाप्ति चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन की दो मुख्य उपलब्धियां थीं।

अशोक के लेखों से सिद्ध होता है कि काबुल की घाटी तथा गांधार मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत थे। ऐसे में मौर्य साम्राज्य की सीमा ईरान तथा अफगानिस्तान तक पहुंच गई। हिन्दूकुश-पर्वतमाला मौर्य साम्राज्य और सेल्युकस के राज्य के बीच की सीमा बन गई। निष्कर्षत: विश्व के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य।

इतिहासकार झा एवं श्रीमाली के अनुसार, तकरीबन 2000 से अधिक वर्ष पूर्व चन्द्रगुप्त मौर्य ने उस प्राकृतिक सीमा को प्राप्त किया जिसके लिए अंग्रेज तरसते रहे तथा मुगल बादशाह पूरी तरह​ प्राप्त करने में असमर्थ रहे।

सेल्युकस निकेटर की पुत्री हेलन तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के बीच वैवाहिक सम्बन्धों का वर्णन स्ट्रेबो ने किया हैविशाखदत्त के नाटक मुद्राराक्षस में सेल्युकस की पुत्री हेलन से चन्द्रगुप्त के विवाह तथा युद्ध का ​वर्णन है। वहीं यूनानी लेखक एप्पियानस ने भी सेल्युकस और चन्द्रगुप्त के मध्य युद्ध तथा सन्धि का उल्लेख किया है।

सेल्युकस निकेटर ने मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा। मेगस्थनीज 304 ईसा पूर्व से 299 ईसा पूर्व के बीच पाटलिपुत्र के दरबार में उपस्थित हुआ और तकरीबन चार साल तक यूनानी राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं दी।। मेगस्थनीज ने भारत में रहकर जो कुछ देखा उसे इंडिका नामक कृति में लिपिबद्ध किया।

मेगस्थनीज ने अपनी कृति में चन्द्रगुप्त की राजधानी पाटलिपुत्र की काफी प्रशंसा की है। वह लिखता है कि गंगा तथा सोन नदियों के संगम पर स्थित यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा नगर था। मेगस्थनीज के अनुसार, पाटलिपुत्र नगर के मध्य चन्द्रगुप्त मौर्य का विशाल राजप्रासाद था, जिसकी भव्यता और शौन-शौकत में सूसा तथा एकबतना के राजमहल भी उसकी तुलना नहीं कर सकते थे।हांलाकि स्ट्रेबो ने मेगस्थनीज के इस वृत्तांत को पूर्णतया असत्य एवं ​अविश्वसनीय कहा है।

चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में आचार्य चाणक्य (विष्णुगुप्त व कौटिल्य) की महती भूमिका रही। आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक महान कृति की रचना की। अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं। इस ग्रन्थ में श्लोकों की संख्या 4000 बतायी गई है। अर्थशास्त्र के छठें अधिकरण में राज्य के सप्तांग स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, बल, कोष तथा मित्र के स्वरूप व कार्यों आदि का वर्णन किया गया है।

चाणक्य रचित अर्थशास्त्र में शीर्षस्थ अधिकारियों को तीर्थ कहा गया है, इनकी संख्या 18 थी। सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ महामात्य एवं पुरोहित थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने शासन सुविधा के लिए अपने साम्राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त कर दिया था। इन प्रान्तों को चक्र कहा जाता था।

चन्द्रगुप्त मौर्य की बंगाल विजय की जानकारी महास्थान अभिलेख से प्रकट होती है। तमिल ग्रन्थों अहनानूर एवं पुरनानूर तथा संगमकालीन कवि मामुलनार चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय की जानकारी देता है। अशोक के अभिलेखों से भी चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण भारत विजय के विषय में जानकारी मिलती है।

मेगस्थनीज के अनुसार, भारतवासी यूनानी देवता डियोनिसयस (भगवान शिव) तथा हेराक्लीज (श्रीकृष्ण) की पूजा करते थे। मेगस्थनीज अपनी कृति इंडिका में लिखता है कि भारतीय समाज सात वर्गों में विभाजित थादार्शनिक, कृषक, शिकारी और पशुपालक, व्यापारी और शिल्पी, योद्धा, निरीक्षण तथा मंत्री।मेगस्थनीज के अनुसार, मौर्य प्रशासन में सैन्य विभाग 30 सदस्यीय एक सर्वोच्च परिषद के नियंत्रण में कार्य करती थी, जो 6 भागों में विभाजित था।

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन की मुख्य विशेषताएं थींसत्ता का अत्यधिक केन्द्रीकरण, विकसित अधिकारितंत्र, उचित न्याय व्यवस्था, नगर-शासन, कृषि, शिल्प उद्योग, संचार, वाणिज्य एवं व्यापार की बढ़ोतरी के लिए राज्य द्वारा अनेक कारगर उपाय।

पाटलिपुत्र में सर्वोच्च न्यायालय था। न्यायालय दो भागों में विभाजित था- धर्मस्थीय न्यायालय तथा कण्टक शोधन न्यायालय। दीवानी अदालत को धर्मस्थीय कहते थे जबकि फौजदारी अदालत को कण्टकशोधन कहा जाता था आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र में गुप्तचरों को गूढ़ पुरूष कहा गया है।

पिंडकर एक प्रकार से रिवाजी कर था। समाहर्ता एक प्रकार से आधुनिक वित्तमंत्री तथा गृहमंत्री का कार्य करता था। जैन लेखों के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ा था। चन्द्रगुप्त मौर्य के महास्थान तथा सौहगरा अभिलेख अकाल से निपटने के प्रबन्धों पर प्रकाश डालते हैं।

महास्थान अभिलेख में कांकणी (काकिनी) नामक मुद्रा का उल्लेख मिलता है। पश्चिम में सौराष्ट्र चन्द्रगुप्त मौर्य के अधिकार में था, इसकी पुष्टि शक महाक्षत्रप रूद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से होती है। चन्द्रगुप्त के सौराष्ट्र के गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन नामक झील का निर्माण करवाया था।

चन्द्रगुप्त का मुख्य पुरोहित तथा प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य था। हेमचन्द्र ने लिखा है कि चन्द्रगुप्त ब्राह्मणों का आदर करता था। मेगस्थनीज लिखता है कि वह वन में रहने वाले तपस्वियों से परामर्श करता था और उन्हें देवताओं की पूजा के लिए नियुक्त करता था। यूनानी लेखकों के अनुसार, चन्द्रगुप्त यज्ञ करने के अवसर पर राजमहल से बाहर निकलता था।

परिशिष्ट पर्व के अनुसार, जीवन के अंतिम चरण में चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया24 वर्षों तक शासन करने के पश्चात जीवन के अंतिम दिनों में चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य सिंहासन अपने पुत्र बिन्दुसार को सौंपकर जैनमुनि भद्रबाहु से जैनधर्म की दीक्षा ली और श्रवणबेलगोला (मैसूर) जाकर 298 ईसा पूर्व में उपवास (सल्लेखना) द्वारा कैवल्य प्राप्त किया। श्रवणवेलगोला की एक छोटी सी पहाड़ी आज भी चन्द्रगिरि कही जाती है, जहां चन्द्रगुप्तबस्ती नामक एक मंदिर है।

इसे भी पढ़ें : मौर्य राजवंश का इतिहास जानने के प्रमुख स्रोत

इसे भी पढ़ें : चन्द्रगुप्त मौर्य को दहेज में मिला था यह देश जिसके लिए तरसते रहे मुगल और अंग्रेज