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Mughal emperor Babur who brought tulips and roses to India

ट्यूलिप और गुलाब को हिन्दुस्तान लाने वाला मुगल बादशाह कौन था?

हिन्दुस्तान में ट्यूलिप और गुलाब ऐसे दो फूल हैं जिनके प्रत्येक रंगों का अलग-अलग अर्थ होता है। लाल रंग का ट्यूलिप प्रेम-रोमांस का प्रतीक होता है, जबकि सफ़ेद ट्यूलिप किसी से क्षमा मांगने के लिए उपयोग में लाया जाता है, वहीं बैंगनी ट्यूलिप राजसी ठाठ-बाट तथा पीला ट्यूलिप खुशी और उल्लास का प्रतीक है।

यदि हम गुलाब की बात करें तो यह शाही फूल भी प्यार और रोमांस का प्रतीक है। पवित्रता और मासूमियत के लिए सफेद गुलाब तथा उत्साह-गर्व और कृतज्ञता के लिए नारंगी गुलाब तथा पहली नज़र में प्यार के लिए आशिक लोग लैवेंडर गुलाब का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा ट्यूलिप और गुलाब के अन्य रंगों के भी अलग-अलग अर्थ होते हैं, जिसकी चर्चा हम बाद में करेंगे। 

ट्यूलिप का फूल आमतौर पर उच्चवर्गीय लोगों की पसन्द है। वहीं, गुलाब का फूल प्रत्येक तबके के बीच काफी लोकप्रिय है। किसी जमाने में ट्यूलिप काफी महंगा हुआ करता था, लेकिन आज की तारीख में ट्यूलिप फूलों के गुच्छे 3,000 से 6,500 रुपए तक में मिल जाते हैं। वहीं गुलाब के गुच्छे 850 से 1200 रुपए या उससे अधिक कीमत में मिलते हैं।

कुल मिलाकर ट्यूलिप और गुलाब में मुख्य समानता यह है कि ये दोनों फूल प्रेम और सम्मान के प्रतीक हैं तथा दोनों से ही बेहतरीन किस्म के इत्र (perfume) तैयार किए जाते हैं। ऐसे में आप का यह सोचना लाजिमी है कि आखिर में ट्यूलिप और गुलाब को हिन्दुस्तान लाने वाला मुगल बादशाह कौन था

मुगल बादशाह बाबर लाया था ट्यूलिप

हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाले बादशाह बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक--बाबरी’ (बाबरनामा) में ट्यूलिप का ​उल्लेख किया है। बाबर अपनी आत्मकथा में आगे लिखता है कि वह मुगलों के साथ युद्ध के सि​लसिले में अफगानिस्तान के एक हिस्से में गया, जहां उसने 34 अलग-अलग प्रकार ट्यूलिप के फूल खिले हुए देखे।अफगानी संस्कृति में ट्यूलिप के फूल प्यार व पवित्रता के प्रतीक हैं।

बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में विभिन्न क्षेत्रों के पौधों, फलों और प्राकृतिक वातावरण का विस्तार से वर्णन किया है। सम्भव है, जिस प्रकार से वह अपने साथ काबुल से खरबूजे और अंगूर जैसे अन्य पौधे साथ लाया था, ठीक उसी प्रकार बाबर ही ट्यूलिप के फूलों को अफगानिस्तान से भारत के मैदानी इलाकों में लेकर आया था।

लाजिमी है, कश्मीर में भी ट्यूलिप की उत्पत्ति का श्रेय मुगल बादशाह बाबर को ही दिया जा सकता है। वर्तमान में  श्रीनगर का इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन 30 हेक्टेयर में फैला है, जो एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डेन्स में से एक है। इस विशाल गार्डेन में 1.5 मिलियन से अधिक ट्यूलिप रंगों की श्रृंखला देखते ही बनती है। वहीं जम्मू स्थित सनासर ट्यूलिप गार्डन सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना रहता है, 5 एकड़ में फैले सनासर ट्यूलिप गार्डन में 25 से अधिक विभिन्न किस्मों के ट्यूलिप लगे हुए हैं।

दरअसल टयूलिप की खेती 10वीं शताब्दी में ईरान में शुरू हुई। ट्यूलिप के बॉटनिकल नामट्यूलिपा की उत्पत्ति ईरानी भाषा के टोलिबन शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ- ‘पगड़ी होता है। दरअसल ट्यूलिप के फूलों को उलट देने से ये पगड़ी नामक शिरोवेश जैसे दिखाई देते हैं। ईरानी संस्कृति में ट्यूलिप का विशेष महत्व है। फ़ारसी नववर्ष का त्यौहार नवरोज़ तकरीबन 3,000 से भी ज़्यादा वर्षों से मनाया जाता रहा है।

ईरान में वसंत ऋतु के आगमन के प्रतीक नवरोज़ के दौरान ट्यूलिप का खिलना आम बात है। हर साल ईरानी गाते हैं, “यह वसंत आपके लिए सौभाग्य की बात हो, ट्यूलिप के खेत आपके लिए आनंददायी हों।ईरानी प्रेम कहानी शिरीन-फरहाद में प्रेमिका शिरीन की मौत की खबर सुनकर प्रेमी फरहाद भी एक चट्टान से गिरकर मर जाता है। इस कहानी के मुताबिक, फरहाद का रक्त जहां गिरा वहां एक लाल ट्यूलिप खिल गया- जो शाश्वत प्रेम का प्रतीक है।

वहीं, साल 1495 में लिखित तुर्की ग्रन्थ चगताई हुसैन बयकारा में ट्यूलिप का उल्लेख मिलता है। सामान्यतया ट्यूलिप तुर्की के आधिकारिक प्रतीक का प्रतिनिधित्व करता है जिसे यहां के बगीचों में सजावटी पौधे के रूप में उगाया जाता था। आज भी तुर्की में 14 प्रजातियों के टयूलिप उगाए जाते हैं। टर्की से ही टयूलिप 1554 ई. में ऑस्ट्रिया, 1571 ई. में हॉलैंड और 1577 ई. में इग्लैंड ले जाया गया।

वसंत ऋतु में फूलने वाले ट्यूलिप के पौधे को आज की तारीख में एशिया माइनर, अफगानिस्तान, कश्मीर से कुमाऊँ तक के हिमालयी क्षेत्र, उत्तरी ईरान, टर्की, चीन, जापान, साइबीरिया तथा भूमध्य सागर के निकटवर्ती देशों में आसानी से देखा जा सकता है।

बाबर ने ईरान से मंगवाए थे गुलाब

गुलाब को हिन्दुस्तान लाने का श्रेय मुगल बादशाह बाबर को जाता है। बाबर ने ईरान से ऊँटों पर लादकर गुलाब के फूल मंगवाए थे, जिसका उल्लेख वह अपनी आत्मकथा बाबरनामा में करता है। बाबर को गुलाब के प्रति इतना आकर्षण था कि वह इस शानदार फूल का जिक्र अपनी कविताओं में अपने दिल की भावनाएं व्यक्त करने के लिए करता था।

मुगल बादशाह बाबर की गुलाब की दीवानगी इसी बात से साबित होती है कि उसने अपनी चार बेटियों के नाम भी गुलाब के नाम पर ही रखे। गुलचिहरा (गुलाब गाल वाली), गुलरुख (गुलाबी चेहरे वाली), गुलबदन (गुलाब जैसा बदन) और गुलरंग (गुलाब जैसा रंग)। बता दें कि फारसी शब्दगुल का अर्थ गुलाब होता है।

यह सच है कि भारत में गुलाब को लो​कप्रिय बनाने का श्रेय मुगल बादशाहों को जाता है। मुगल लघुचित्रों में अकबर, जहांगीर, शाहजहां से लेकर दाराशिकोह तथा औरंगजेब तक को गुलाब के साथ दर्शाया गया है। मुगलों ने गुलाब को अपनी कला-संस्कृति में शामिल किया। बादशाह शाहजहां अपने चित्रों में अक्सर उंगलियों के बीच गुलाब लिए नजर आते हैं, इसके जरिए शाहजहां ने अपनी छवि मानवतावादी राजा के रूप में प्रदर्शित करने की कोशिश की है।

इतालवी यात्री निकोलाओ मानूची अपने यात्रा वृत्तांत में लिखता है कि मुगल बादशाहों को गुलाब के प्रति इतना प्यार था कि वे इसके पानी से ही नहाते थे। यहां तक कि शाही घोड़ों को भी गुलाब के पानी से ही नहलाया जाता था।

मुगल बादशाहों ने बनवाए गुलाब के गार्डेन

सबसे पहले मुगल बादशाह बाबर ने चार बाग का निर्माण करवाया जिसे आज का मुगल गार्डन कहा जाता है। चार बाग में बाबर ने ईरान-अफगानिस्तान से कई प्रजातियों के गुलाब मंगवाकर लगवाए थे। मौजूदा समय में दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डेन (अब अमृत उद्यान) में गुलाब की कई किस्में खास है। इसके साथ ही 12 अनूठी ट्यूलिप की किस्में भी लगाई गई हैं जो कि विभिन्न चरणों में खिलेंगी।

मुगल गार्डेन की तर्ज पर ही जहांगीर ने अपनी पत्नी नूरजहां के लिए श्रीनगर में डल झील के उत्तर-पूर्वी किनारे पर शालीमार बाग का निर्माण करवाया तथा नूरजहां के भाई आसिफ खान ने डल झील के पूर्वी किनारे पर निशात बाग बनवाया था।

मुगल बादशाहों ने कश्मीर के अलावा कुछ इसी तरह के गार्डेन आगरा और दिल्ली में भी बनवाए। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन सभी बागों में कई देशों के विभिन्न प्रजातियों के गुलाब के पौधे लगवाए गए। 

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