काबुल के अतिरिक्त कंधार, गजनी और हेरात अफगानिस्तान के बड़े शहरों में शुमार किए जाते हैं। इन इलाकों पर अधिकार करने का मतलब पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ये सभी इलाके कभी भारत के अधीन थे, चन्द्रगुप्त मौर्य को ये सभी क्षेत्र यूनानी विजेता सेल्युकस से दहेज में मिले थे। मध्यकाल में शक्तिशाली मुगल भी इस क्षेत्र पर अधिकार करने में असफल रहे। जबकि 19वीं सदी में शक्तिशाली अंग्रेजों ने इसके लिए तीन युद्ध लड़े लेकिन इसे जीतने का सपना अधूरा ही रह गया। दोस्तों, इस स्टोरी में हम आपको यह बताएंगे कि चन्द्रगुप्त मौर्य को यह महत्वपूर्ण इलाका यूनानी विजेता सेल्युकस को पराजित करने के बाद मिला था या फिर दहेज में।
सेल्युकस का भारत पर आक्रमण- यूनानी विजेता सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसके पूर्वी प्रदेशों का उत्तराधिकारी सेल्युकस हुआ। एन्टीओकस के पुत्र सेल्युकस ने बेबीलोन तथा ईरान के विभिन्न राज्यों को जीतकर बैक्ट्रिया पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार पर्याप्त शक्ति अर्जित करने के पश्चात सेल्युकस 305 ईसा पूर्व के लगभग काबुल मार्ग से होते हुए सिन्धु नदी की ओर बढ़ा। परन्तु इस समय का भारत यूनीनी विजेता सिकन्दर के समय से काफी भिन्न था। इस बार यूनानी विजेता सेल्युकस को कई छोटे-छोटे सरदारों के स्थान पर संगठित भारत के एक महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से युद्ध करना था। परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि यूनानी तथा रोमन लेखक सेल्युकस और चन्द्रगुप्त मौर्य के बीच हुए युद्ध का सटीक विवरण नहीं देते हैं।
सेल्युकस और चन्द्रगुप्त मौर्य के बीच युद्ध- चन्द्रगुप्त एक योग्य शासक ही नहीं वरन एक कुशल योद्धा, सेनानायक तथा महान विजेता था। सेल्युकस निकेटर को जब यह मालुम हुआ कि चन्द्रगुप्त की सेना में हाथियों का एक विशाल दल है तो वह भी अपने साथ हाथियों की फौज ले आया। परन्तु अपने गुरु प्रधानमंत्री चाणक्य के कहने पर चन्द्रगुप्त ने बारिश के मौसम का इंतजार किया। इस प्रकार सेल्युकस निकेटर जहां युद्ध के मैदान में हाथियों की फौज के साथ उतरा वहीं चन्द्रगुप्त मौर्य ने कुशल घुड़सवारों के साथ युद्ध किया।
बारिश के मौसम में चन्द्रगुप्त के घुड़सवार योद्धा सेल्युकस की फौज पर भारी पड़े। ऐसा लगा कि अगर यह युद्ध एक या दो दिन तक चला तो सेल्युकस मारा जाएगा। अप्पिआनुस लिखता है कि, “सिन्धु नदी पारकर सेल्युकस निकेटर का चन्द्रगुप्त से युद्ध हुआ। कालान्तर में दोनों में सन्धि हो गई तथा एक वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हो गया।”
स्ट्रेबो लिखता है कि “सिन्धु नदी के सीमावर्ती क्षेत्रों को जीतकर सिकन्दर ने अपना प्रान्त स्थापित किया था। किन्तु सेल्युकस निकेटर ने वैवाहिक सम्बन्ध के परिणामस्वरूप चन्द्रगुप्त को दे दिया तथा बदले में पांच सौ हाथी प्राप्त किए।” इन विवरणों से स्पष्ट है कि सेल्युकस निकेटर युद्ध में पराजित हुआ।
चन्द्रगुप्त मौर्य को दहेज में मिला यह महत्वपूर्ण क्षेत्र- यूनानी इतिहासकार स्ट्रेबो लिखता है कि, वैवाहिक सम्बन्ध के फलस्वरूप सेल्युकस निकेटर ने चन्द्रगुप्त को ऐरियाना के प्रदेश दिए। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि यूनानी राजकुमारी सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से ब्याही गई और ये प्रदेश दहेज के रूप में दिए गए। कुछ विद्वानों के अनुसार, सन्धि को सुदृढ़ एवं स्थायी बनाने के लिए सेल्युकस निकेटर ने अपनी बेटी हेलेना (अन्य नाम कार्नेलिया) का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ कर दिया। इसके साथ ही सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त को एरिया (काबुल), अराकोसिया (कन्धार), जेड्रोसिया (मकरान) तथा पेरीपेमिसदाई (हेरात के प्रदेश) दहेज में दिए।
प्लूटार्क लिखता है कि ‘चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी सेल्युकस निकेटर को 500 हाथी उपहार में दिए।’ सम्राट अशोक के अभिलेखों से यह साबित होता है कि गांधार भी मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत था। इस प्रकार सेल्युकस और चन्द्रगुप्त की बीच हुई सन्धि के पश्चात हिन्दुकुश मौर्य साम्राज्य और सेल्युकस के राज्य के बीच की सीमा बन गया। इतना ही नहीं, सेल्युकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा ताकि यह मैत्री सम्बन्ध दोनों के उत्तराधिकारियों के बीच भी बना रहे। मेगस्थनीज बहुत दिनों तक पाटलिपुत्र में रहा तथा भारत में रहकर ही उसने ‘इण्डिका’ नामक एक विख्यात पुस्तक की रचना की।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व इतिहासकार कृष्ण मोहन श्रीमाली के अुनसार, दो हजार से अधिक वर्ष पूर्व भारत के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने उस प्राकृतिक सीमा को प्राप्त किया जिसके लिए अंग्रेज तरसते रहे और जिसे मुगल सम्राट भी पूरी तरह से प्राप्त करने में असमर्थ रहे।
अफगानिस्तान और मुगल- हेरात से मध्य एशिया, काबुल और भारत जाने वाले मुख्य मार्गों पर स्थित कन्धार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए मुगलों ने पुरजोर प्रयास किए थे लेकिन उनका यह प्रयास अधूरा रहा। हांलाकि पूर्व में इस क्षेत्र पर सिकन्दर, सेल्युकस और चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार था।
शहजादे औरंगजेब के नेतृत्व में 50000 मुगल सैनिकों ने कन्धार पर अधिकार करने का असफल प्रयास किया था। हांलाकि कंधार किले की दीवारों को नष्ट करने या तोड़ने के लिए पर्याप्त तोपखाने की कमी थी। ऐसे में मुगल सेना को पीछे हटना पड़ा। इस युद्ध में तकरीबन 3000 लोग मारे गए थे। औरंगजेब की अगुवाई वाली मुगल सेना ने दोबारा प्रयास किया लेकिन कंधार के सफ़विद रक्षकों की सटीक तोपों के सामने मुगल सेना को काबलु वापस लौटना पड़ा। दो बार असफल होने के बाद राजकुमार दाराशिकोह के नेतृत्व में मुगल सेना ने कंधार को फिर से जीतने का प्रयास किया। लेकिन इस बार भी मुगलों को अपनी घेराबन्दी पीछे हटानी पड़ी।
अफगानिस्तान और अंग्रेज- ब्रिटेन को 19वीं सदी का सबसे ताकतवर साम्राज्य माना जाता था। काबुल, कन्धार और हेरात के प्रदेशों को जीतने के लिए 1839 से 1919 के बीच ब्रिटेन ने तीन बार आक्रमण किया लेकिन हर बार असफल रहे। अंत में ब्रितानी साम्राज्य को अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर जाना पड़ा और उन्हें स्वतंत्रता देनी पड़ी। इससे इतर सोवियत संघ रूस ने भी दस सालों तक निरर्थक प्रयास किया। सोवियत संघ रूस से हुए युद्ध में पूरा अफगानिस्तान तबाह हो गया था बावजूद इसके यह शक्तिशाली देश स्थानीय गुरिल्ला लड़ाकों से हार गया।
इस क्षेत्र को जीतने के लिए दुनिया की सर्वोच्च शक्ति अमेरिका ने साल 2010 और 2012 के बीच प्रति वर्ष लगभग 100 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए थे बावजूद इसके इन्हें भी अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भागना पड़ा है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि इन ताकतवर सेनाओं के लिए अफगानिस्तान एक कब्रगाह सिद्ध हुआ ।
विचारणीय प्रश्न यह है कि जिस देश पर मुगल साम्राज्य, ब्रितानी हुकूमत और सोवियत संघ रूस तथा अमेरिका जैसी सर्वोच्च शक्तियां अधिकार करने में असफल रहीं, उस देश पर चन्द्रगुप्त मौर्य ने जीवनपर्यन्त शासन किया, आखिर कैसे।
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