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Marathi Brahmins did not consider Chhatrapati Shivaji Maharaj a Kshatriya

छत्रपति शिवाजी महाराज को क्षत्रिय नहीं मानते थे मराठी ब्राह्मण, जानिए क्यों?

मराठा उत्थान के लिए शिवाजी का संघर्ष- यूरोपीय इतिहासकार ग्रान्ट डफ लिखता है कि, “17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मराठों का उदय एक आकस्मिक अग्निकांड की भांति हुआ।”  शाहजी भोंसले और जीजाबाई के पुत्र शिवाजी ने साल 1645-1647 के बीच महज 18 वर्ष की उम्र में अनेक पहाड़ी किलों राजगढ़, कोंडना, तोरना पर विजय प्राप्त की। शिवाजी ने मराठों के प्रमुख चन्द्रराव मोरे को पराजित करने के बाद जावली पर भी अधिकार कर लिया, जिससे उन्हें इस क्षेत्र का निर्विवाद स्वामी बना दिया। अप्रैल 1656 ई.में रायगढ़ किले को जीतकर शिवाजी ने उसे अपनी राजधानी बनाई। 

चाकन, कोंडाना, तिकोना, बारामती, सूपा, लोहागढ़ आदि अन्य किलों पर अधिकार करने वाले शिवाजी ने 1660 में बीजापुर से पन्हाला का दुर्ग भी जीत लिया। इसके बाद 1663 में दक्कन के मुगल गवर्नर शाइस्ता खां को पूना से मार भगाया जिससे उनकी प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि हुई। इसके साथ ही उन्होंने 1664 तथा 1670 में मुगलों के व्यापारिक नगर सूरत को भी लूटा। हांलाकि 1665 में मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा भेजे गए  राजा जयसिंह ने शिवाजी को पराजित कर पुरन्दर की सन्धि करने के लिए बाध्य किया जिसमें उन्हें अपने 23 किले गंवाने पड़े। परन्तु 1670 में शिवाजी ने एक बार फिर से पुरन्दर की सन्धि में खोये किलों को जीत लिया। कोंकण पर अधिकार व 1659 में शिवाजी द्वारा बीजापुर के शक्तिशाली सरदार अफजल खान की हत्या के बाद दक्कन सहित मुगलों में उनकी धाक जम गई।

अपनी वित्तीय हालत सुधारने के लिए उन्होंने अहमदनगर, बरार, बगलाना व खानदेश के प्रदेशों को भी लूटा। 1672 ई. में शिवाजी के पेशवा मोरोपन्त पिंगले ने मुगल सूबेदार बहादुर खान, दिलेर खां के नेतृत्व वाली शाही सेना तथा गुजरात के गवर्नर की संयुक्त सेना को खानदेश व गुजरात की सीमा पर सलहेर के युद्ध में पराजित किया।

इस प्रकार मराठा प्रमुखों, दक्षिणी सुल्तानों और मुगलों के विरूद्ध शिवाजी के संघर्ष की तार्किक पूर्णाहूति हुई और 1674 ई. में जब उनके राज्याभिषेक का अवसर आया तब महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने उन्हें क्षत्रिय मानने से ही इनकार कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि आखिर में महाराष्ट्र के स्थानीय ब्राह्मणों ने शिवाजी को क्षत्रिय मानने से क्यों मना कर दिया था जबकि कर्म, कौशल और ज्ञान के संदर्भ में शिवाजी एक क्षत्रिय ही थे।

क्या शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे?  - सन् 1674 ई. में रायगढ़ के दुर्ग में शिवाजी ने महाराष्ट्र के स्वतंत्र शासक के रूप में अपना राज्याभिषेक करवाया। हांलाकि हैरानी की बात यह है कि इस शुभ अवसर महाराष्ट्र के ​स्थानीय ब्राह्मणों ने राज्यारोहण के उत्सव में भाग लेने तथा उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया क्योंकि उन ब्राह्मणों की नजरों में शिवाजी क्षत्रिय जाति के नहीं थे।

दरअसल महान योद्धा छत्रपति शिवाजी की जाति को लेकर इतिहासकारों में आज भी मतभेद है। दलित लेखक प्रज्ञा पवार के मुताबिक, शिवाजी क्षत्रिय जाति से नहीं बल्कि निचली जाति से थे। वहीं कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एलिसन बुश ने भी लिखा है कि ‘शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे’। इतिहासकार व प्रोफेसर अब्दुल क़ादिर मुकादम का कहना है कि मराठा समुदाय के लोग पहले निजामशाही के अधीन काम करते थे और शिवाजी के पहले मराठा समुदाय में किसी ने भी राजा बनने की कोशिश नहीं की थी। इसलिए इस समुदाय को शूद्र माना जाता था। इसी क्रम में ज्यादातर इतिहासकारों का मत है कि शिवाजी महाराज कुर्मी (कुन्बी) जाति के थे।

शायद इसीलिए शिवाजी ने स्वयं को कुलीन क्षत्रिय कुल से सम्बद्ध कर महाराष्ट्र के प्राचीन और अभिजात कुलों के सामाजिक स्तर पर आने का प्रयास किया। इसके लिए शिवाजी के कुलीन क्षत्रिय होने के दावे को बनारस के सुप्रसिद्ध ब्राह्मण गंगा भट्ट द्वारा विधिवत मान्यता दी गई। उसने ही शिवाजी का राज्याभिषेक किया। शिवाजी ने अपने वंश की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए अपनी वंशावली भी तैयार करवाई, जिसमें उनको प्राचीन सूर्यवंशी क्षत्रिय वर्ग से सम्बद्ध किया गया। प्रमुख इतिहासकार हरिश्चन्द्र वर्मा के अनुसार, शिवाजी ने अपने इस दावे को सिद्ध करने के लिए क्षत्रिय कुलाववंश अर्थात ‘क्षत्रिय कुल का विभूषण’ की पदवी धारण की। परन्तु यहां यह उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है कि सभी कुलीन क्षत्रिय शिवाजी की इस नवीन पद स्थिति से आश्वस्त नहीं हुए तथा प्राचीन राजपूत कुलों में भी उनको अपने समकक्ष नहीं माना गया। इस विषय में राजा जयसिंह का दृष्टांत दिया जा सकता है जो उन्हें निम्न वर्ग का समझता था। आमेर का राजा जयसिंह खुद को भगवान राम का वंशज मानता था। यह वहीं जयसिंह था जिसने 1665 ई. के युद्ध में शिवाजी को पराजित कर उन्हें चार लाख वार्षिक हूण वाले 23 किले देने के लिए बाध्य कर दिया था। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि शिवाजी ने क्षत्रिय होने का दावा किया और इस दावे को विधिवत मान्यता दिलवाई।

वाराणसी के विद्वान ब्राह्मण गंगा भट्ट को आमंत्रण - मराठा ब्राह्मणों के विरोध के बाद शिवाजी ने काशी के एक विद्वान ब्राह्मण गंगा भट्ट को इस बात के लिए सहमत किया कि वह उन्हें उच्चकुल क्षत्रिय घोषित करे। मूलरूप से महाराष्ट्र के रहने वाले पंडित गंगा भट्ट काशी में आकर बस गए थे। गंगा भट्ट न केवल एक पुरोहित थे बल्कि वेदों के प्रकाण्ड विद्वान माने जाते थे। गंगा भट्ट को कर्मकाण्डों के लिए बड़े राजघरानों में आमंत्रित किया जाता था। ऐसे में शिवाजी के कहने पर गंगा भट्ट ने उनकी वंशावली का ​विधिवत अध्ययन कर यह साबित किया कि कालान्तर में शिवाजी के पूर्वज मेवाड़ से दक्षिण चले गए थे अत: भोंसले वंश मूलत: मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश की ही एक शाखा है।

शिवाजी का राज्याभिषेक उत्सव- साल 1674 में तारीख 6 जून को शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। वेदों तथा उपनिषदों के ज्ञाता वाराणसी के विद्वान ब्राह्मण गंगा भट्ट ने सात पवित्र नदियों (यमुना, सिंधु, गंगा, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी) के जल से शिवाजी महाराज का वैदिक रीति-रिवाज से राज्याभिषेक करवाया। राज्याभिषेक के उत्सव पर रायगढ़ में उपस्थित तकरीबन पचास हजार लोगों के समक्ष शिवाजी ने ‘छत्रपति’ (क्षत्रियों का राजा) की उपाधि धारण की तथा भगवा ध्वज को अपना झंडा बनाया। 

इस राज्यारोहण समारोह में शिवाजी के साथ आठ मंत्रियों ने भी पद ग्रहण किया। इस प्रकार छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक बड़े धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ। हांलाकि इस राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही शिवाजी की मां जीजाबाई का देहान्त हो गया। इसके बाद शिवाजी का दूसरा राज्याभिषेक एक तांत्रिक निश्चलपुरी गोस्वामी ने 4 अक्टूबर 1674 को सम्पन्न करवाया। इस तांत्रिक के अनुसार, शिवाजी का पहला राज्याभिषेक अशुभ मुहूर्त में हुआ था।

गौरतलब है कि इस एक व्यवस्था से शिवाजी दक्कनी सुल्तानों के समकक्ष हो गए और उनका दर्जा विद्रोही का न रहकर एक प्रमुख का हो गया। अन्य मराठा सरदारों के बीच भी शिवाजी का रूतबा बढ़ गया।

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